mata ji

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा

शिव उवाच
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

शिव जी बोले :- हे देवि! तुम भक्तोंके लिये सुलभ (सरल, सहज) हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो। कलियुगमें कामनाओं की प्राप्ति के लिए यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा उचित तरीके से व्यक्त करो।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

देव्युवाच
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

देवी ने कहा :- हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुगमें समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो! उसका नाम है ‘ अम्बास्तुति ‘।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

विनियोग :-
ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र​स्य नारायण ऋषिः,
अनुष्टुप छन्दः,श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः,
श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः।

विनियोग का अर्थ :- ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ में इसका विनियोग किया जाता है।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

अर्थ :- वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींच कर मोह में डाल देती हैं ॥ १ ॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता ॥2॥

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो ॥ २ ॥

सर्व मङ्गल मङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥3॥

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है ॥ ३ ॥

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥4॥

अर्थ :- शरणमें आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि ! तुम्हें नमस्कार है ॥ ४ ॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥5॥

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियों से सम्पन्न दिव्य रूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है ॥ ५ ॥

रोगा नशेषा नपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामा श्रितानां न विपन्न राणां
त्वामा श्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

अर्थ :- देवि ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरणमें जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरणमें गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ॥ ६ ॥

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥7॥

अर्थ :- सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो ॥ ७ ॥

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह पूजन समर्पित किया जाता है मां दुर्गा को. यह आलेख आपको समझाएगा कि साप्त्श्लोकी दुर्गा पाठ का नियम क्या होता है और इसे कैसे अनुसरण करना चाहिए ताकि आपके जीवन में सुख और समृद्धि आ सके।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ भगवान दुर्गा के स्तुति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो दुर्गा सप्तशती के भाग में आता है। इसमें सात श्लोक होते हैं, जिनमें मां दुर्गा की महिमा और शक्ति का गुणगान किया जाता है। इस पाठ को पढ़कर और उसका अनुष्ठान करके, विश्वास किया जाता है कि भक्त सफलता, खुशियाँ, और सुख का आनंद उठा सकते हैं।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

साप्त्श्लोकी दुर्गा पाठ को पूरी भावना के साथ किया जाना चाहिए, ताकि इसका महत्व समझा जा सके। यहां हम साप्त्श्लोकी दुर्गा पाठ के नियमों को विस्तार से बता रहे हैं:सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

1. अनुष्ठान की नियमितता

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ को नियमित रूप से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रतिदिन किया जा सकता है, या फिर विशेष पर्वों और त्योहारों में अधिक सक्रिय रूप से किया जा सकता है।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

2. ध्यान और श्रद्धा

पाठ के समय, आपको पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। मां दुर्गा के प्रति अपनी विशेष भावनाओं को व्यक्त करें और उनके दिव्य शक्तियों का आभास करें।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

3. विशेष आवश्यकताओं का ध्यान
यदि आपके पास कोई विशेष आवश्यकता हो, तो पाठ के समय उसे मां दुर्गा के समक्ष रखें और उनसे आपकी समस्या का समाधान मांगें।

4. अध्ययन और समझ
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ का अध्ययन करें और इसका समझने का प्रयास करें। यह श्लोक हमें मां दुर्गा के गुणों और महिमा के प्रति जागरूक करते हैं।

5. संगीत और भजन
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के साथ गाने और भजन गाने से यह अनुष्ठान और भी आनंदमय बना सकता है।

सप्तश्लोकी पाठ को करने के कई कारण होते हैं जो आपके जीवन में सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं:

आध्यात्मिक विकास: सप्तश्लोकी पाठ आपको आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विकसित कर सकता है। यह आपकी आध्यात्मिक जीवन को मजबूत और स्थिर बनाने में मदद करता है.सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

शांति और ध्यान: सप्तश्लोकी पाठ करने से मानसिक शांति और ध्यान की स्थिति में सुधार हो सकता है. यह आपके मन को सान्त्वना प्रदान करता है और स्थितियों के सामने साहस और सहनशीलता बढ़ावा देता है.सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

आत्म-संरक्षण: सप्तश्लोकी पाठ करने से आप अपने आत्म-संरक्षण की भावना और आत्म-संयम में सुधार कर सकते हैं. यह आपको बुराइयों से बचाने में मदद कर सकता है.सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सफलता और सुख: सप्तश्लोकी पाठ का नियमित अभ्यास आपके जीवन में सफलता, सुख, और समृद्धि का अनुभव करने में मदद कर सकता है।

कर्मों की रक्षा: यह पाठ आपको बुराई से बचने में मदद कर सकता है और आपके कर्मों की रक्षा कर सकता है।

धार्मिक दृष्टिकोण: सप्तश्लोकी पाठ आपको अपने धार्मिक मूल्यों के प्रति समर्पित बनाता है और आपके जीवन को धार्मिक मानदंडों के साथ जीने में मदद कर सकता है.सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

सप्तश्लोकी पाठ को नियमित रूप से और श्रद्धा भाव से करने से ये लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

सप्तश्लोकी पाठ का महत्वपूर्ण कारण है कि यह भगवान विष्णु के प्रति भक्ति, आदर, और श्रद्धा का व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पाठ भगवान विष्णु के करुणा और अनुग्रह को प्राप्त करने का माध्यम है और विशेष रूप से उनके सत्कार्यों को लाभान्वित करने का साधना करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

यहां कुछ कारण हैं कि आपको सप्तश्लोकी पाठ करना चाहिए:

आत्मा की शुद्धि: सप्तश्लोकी पाठ आपकी आत्मा को शुद्ध करने में मदद करता है और आपके मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारता है।

भक्ति और आदर: यह पाठ आपके भक्ति और आदर को बढ़ावा देता है और आपको भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शाता है।

शांति और सुख: सप्तश्लोकी पाठ का अनुष्ठान करने से आपके जीवन में शांति और सुख का आभास होता है और आपको जीवन के कठिनाइयों का समाधान ढूंढने में मदद मिलती है।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

कर्मफल की प्राप्ति: यह पाठ भगवान विष्णु के अनुग्रह को प्राप्त करने का माध्यम है और आपको अधिक कर्मफल की प्राप्ति में मदद कर सकता है।

दुखों का निवारण: सप्तश्लोकी पाठ दुखों और संकटों का निवारण करने में मदद कर सकता है और आपको स्थितियों के साथ साहसी रूप से मुकाबला करने में मदद करता है।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

इन कारणों से सप्तश्लोकी पाठ करना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है और आपके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का साधना कर सकता है|सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

समापन

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ का अनुसरण करने से आप अपने जीवन में खुशियों और समृद्धि का आभास करेंगे। यह पाठ आपको मां दुर्गा के शक्तिशाली आशीर्वाद से लाभान्वित कर सकता है।सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ क्या है?(Saptshloki Durga Paath)सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के नियम

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)
शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

शिव तांडव स्तोत्र |

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले
गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥1॥

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥2॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥4॥

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥5॥

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा
निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥6॥

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र
कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर
त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध
गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र
जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

॥ इति रावण कृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

शिव तांडव के लाभ:

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ हो सकते हैं:

आध्यात्मिक साक्षरता: शिव तांडव का पाठ करने से आप आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं, जो आपके मानसिक और आत्मिक विकास में मदद कर सकता है।

मानसिक शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक तनाव कम हो सकता है और आपकी मानसिक शांति में सुधार हो सकता है।

सांस्कृतिक मूल्यों का समर्थन: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आप अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति अधिक समर्थन और समर्पण दिखा सकते हैं।

वाणी कौशल: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आपकी वाणी कौशल में सुधार हो सकता है, क्योंकि इसमें रचनात्मक और सुंदर भाषा का उपयोग होता है।

भक्ति और आदर: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आप भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और आदर को व्यक्त कर सकते हैं और उनके साथ गहरा संबंध बना सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

ध्यान और श्रद्धा के साथ शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से ये लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र को पढ़ते समय या उसका पाठ करते समय ध्यान देने योग्य नियमों में से कुछ निम्नलिखित हो सकते हैं:

सुखद और शांति वातावरण: शिव तांडव स्तोत्र को पढ़ने के लिए एक शांत और सुखद वातावरण में बैठें जहाँ आपको ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिले।

आदरपूर्ण भावना: इस कविता को पढ़ते समय आपको भगवान शिव के प्रति आदरपूर्ण और भक्तिपूर्ण भावना रखनी चाहिए।

मानसिक साक्षरता: स्तोत्र के शब्दों को समझने के लिए मानसिक साक्षरता की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए ध्यान से पढ़ें और उनका अर्थ समझें।

समय और स्थान: इस स्तोत्र को पढ़ने के लिए एक निर्धारित समय और स्थान चुनें, जो ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयुक्त हो।

ध्यान और मेधा: स्तोत्र का पाठ करने में ध्यान और मेधा बरतें, ताकि आप इसकी गहरी अर्थपूर्णता को समझ सकें।

पूजा और अर्चना: कुछ लोग इस कविता का पाठ करने से पहले पूजा और अर्चना करते हैं ताकि वे भगवान शिव के साथ एक गहरा संबंध बना सकें।

ये नियम आपको शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने में मदद कर सकते हैं और आपको इसके महत्वपूर्ण संदेशों को समझने में मदद कर सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

शिव तांडव स्तोत्र(Shiv Tandav Stotram)

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?
शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥1॥

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥2॥

शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥3॥
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य
मूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥4॥

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥5॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं
यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति
शिवेन सह मोदते ॥

शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र, जिसे “ॐ नमः शिवाय” के रूप में जाना जाता है, एक प्रमुख हिन्दू मंत्र है जो भगवान शिव की पूजा के समय जाप किया जाता है। इस मंत्र का अर्थ है, “हे ओंकार, मैं शिव को प्रणाम करता हूँ”। यह मंत्र पूरे भारत में बहुत प्रसिद्ध है और शिव के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आध्यात्मिक महत्त्व

शिव पंचाक्षर स्तोत्र का आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। यह मंत्र भक्तों को आध्यात्मिक साधना और मानसिक शांति की दिशा में मदद करता है। जब कोई व्यक्ति इस मंत्र का जाप करता है, तो वह अपने मन को शुद्ध करता है और अपनी आत्मा के साथ एक मानसिक संबंध स्थापित करता है।

मानसिक शांति का उपाय

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से व्यक्ति का मानसिक दबाव कम होता है। यह मंत्र मानसिक स्थिरता और शांति की ओर एक कदम बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति की आत्मा को सुखद और प्रसन्न बनाने में मदद मिलती है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

आध्यात्मिक उन्नति

इस मंत्र के नियमित जाप से आध्यात्मिक उन्नति होती है। व्यक्ति की आत्मा का संबंध उच्चतम आध्यात्मिक शक्तियों के साथ होता है, और वह अपने जीवन में सफलता और सुख की दिशा में बढ़ता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के लाभ

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के अनगिनत लाभ हैं जो व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक और मानसिक विकास में मदद करते हैं।

मानसिक शांति

इस मंत्र का नियमित जाप करने से मानसिक चिंता और तनाव कम होता है। यह व्यक्ति को एक शांत और सुखमय जीवन की दिशा में मदद करता है।

स्वास्थ्य लाभ

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यह रोगों को दूर रखने में मदद करता है और शारीरिक तौर पर ताकत और ऊर्जा को बढ़ावा देता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

समृद्धि और सफलता

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। यह मंत्र उन विचारों को प्रोत्साहित करता है जो सफलता की ओर बढ़ते हैं और व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)

शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

नियमित जाप कैसे करें?

शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें:

ध्यान से मंत्र का उच्चारण करें: मंत्र का सही उच्चारण करने के लिए सुन्दर और शांत माहौल में बैठें।

माला का उपयोग करें: माला का उपयोग करके मंत्र का 108 बार जाप करें।

समय निर्धारण करें: शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप करने के लिए एक स्थिर समय निर्धारित करें, जैसे कि प्रात: काल या संध्या काल।

श्रद्धा और भक्ति से करें: मंत्र का जाप करते समय श्रद्धा और भक्ति से करें, और भगवान शिव की ओर अपनी भावनाओं को समर्पित करें।

आध्यात्मिक अनुभव

शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव होता है। यह अनुभव उसे भगवान शिव के साथ एक अद्वितीय संबंध की ओर बढ़ता है, जिससे वह अपने जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से देखता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

ॐ नमः शिवाय

इस मंत्र का उच्चारण करते समय, योगी और भक्त अपने मन को शिव की ओर ध्यानित करते हैं और शांति और आनंद की अनुभूति करते हैं। यह मंत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है और व्यक्ति को आत्मिक विकास में मदद करता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

इस मंत्र का नियमित जाप करने से मानसिक शांति, आत्मा का संबंध, स्वास्थ्य लाभ, समृद्धि, और सफलता प्राप्त हो सकती है। यह एक पूर्ण और पावन मंत्र है, और इसका नियमित उच्चारण करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

समापन

शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप करना आध्यात्मिक और मानसिक उन्नति में मदद कर सकता है, और व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मिक संबंध, स्वास्थ्य लाभ, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद कर सकता है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक और शारीरिक विकास होता है, जिससे वह अपने जीवन को सफलता और सुख की दिशा में बढ़ा सकता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र(Shiv Panchakshar Stotra)शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व
अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अप्राजिता स्तोत्र: एक आध्यात्मिक मंत्र जो आपकी आत्मा को प्रेरित करेगा

अप्राजिता स्तोत्र एक अत्यधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक मंत्र है जिसे विशेष भावना और श्रद्धा के साथ जपने से आत्मा को शांति, सुख,न्यायालय एवं शत्रु पर विजय और उत्तम दिशा की प्राप्ति होती है। इस मंत्र का जाप करने से शरीर, मन, और आत्मा की संयमित और सान्निध्यपूर्ण जीवनशैली आती है।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

यह स्तोत्र महाभारत के अनुषासन पर्व में आया है और इसे द्रौपदी द्वारा कहा गया था जब वे कौरवों की अत्याचारित परिस्थितियों के बावजूद भी आत्मविश्वास और साहस बनाए रखने में सफल रही थीं। यह स्तोत्र विभिन्न आध्यात्मिक मान्यताओं में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसका नियमित जाप करने से व्यक्ति की आत्मा में शांति और स्वान्तःसुख की प्राप्ति होती है।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

स्तोत्र का पाठ विधि

अप्राजिता स्तोत्र को नियमित और विशेष भावना के साथ पाठ करने से उसका पूरा परिणाम प्राप्त होता है। आप इसे दिन में किसी भी समय जप सकते हैं, लेकिन सुबह और सायंकाल के समय इसका जाप करना अधिक शुभ माना जाता है। स्तोत्र के पाठ के दौरान अपने मन को शांत रखें और उसके अर्थ को समझकर जपें।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

आध्यात्मिक लाभ

अप्राजिता स्तोत्र का नियमित जाप करने से आत्मा को नया जीवन मिलता है। यह स्तोत्र आपके मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और आपको निरंतरता की ओर आग्रह करता है। यह आपके आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है और आपको अपने जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है।

अप्राजिता स्तोत्र एक ऐसा आध्यात्मिक उपहार है जो हमें अपने जीवन के असंभावित संघर्षों में भी सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। इसका नियमित जाप करके हम अपने आत्मा को प्रेरित कर सकते हैं और अपने जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता पाठ के नियम

अपराजिता पाठ के नियम: आत्मा के शांति और सफलता की ओर एक कदम

अपराजिता पाठ एक शक्तिशाली आध्यात्मिक उपाय है जिसे नियमित अनुष्ठान से हम अपने जीवन को सफलता और शांति की दिशा में बढ़ा सकते हैं। यह पाठ हमें आत्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करता है और हमें जीवन की चुनौतियों का समाधान निकालने में सहायता प्रदान करता है।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

नियमित अनुष्ठान का महत्व

अपराजिता पाठ को नियमित रूप से अपने दैनिक जीवन में शामिल करने से हम अपने आत्मा को शांति और सफलता की दिशा में बढ़ा सकते हैं। यह पाठ हमारे मानसिक स्थिति को सुधारता है, हमारे स्वभाव में पॉजिटिव बदलाव लाता है और हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

पाठ की विधि

अपराजिता पाठ को करने के लिए एक शांत और ध्यानयोग्य स्थान का चयन करें। आराम से बैठें और आत्मा की ओर ध्यान केंद्रित करें। फिर अपनी आँखें बंद करें और मन में पूरे श्रद्धा और समर्पण के साथ पाठ की शुरुआत करें।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

पाठ के मन्त्र

अपराजिता पाठ में कई महत्वपूर्ण मन्त्र होते हैं जिन्हें नियमित रूप से जपने से उनकी शक्ति बढ़ जाती है। कुछ महत्वपूर्ण मन्त्र निम्नलिखित हैं:

“ॐ महा काल्यै च विद्महे काली मुखायै धीमहि। तन्नो काली प्रचोदयात्॥”
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
“ॐ क्रीं कालिकायै नमः॥”अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

आध्यात्मिक फायदे
अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व
अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता पाठ के नियमित अनुष्ठान से हम आत्मा के साथ गहरा संबंध बना सकते हैं और अपने जीवन की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। यह पाठ हमें मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाता है और आत्मा को शांति और सुख की अनुभूति कराता है।अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजितास्तोत्रम्

श्रीत्रैलोक्यविजया अपराजितास्तोत्रम् ।

ॐ नमोऽपराजितायै ।
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः

वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।
लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।
हुं शक्तिः ।
सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।
ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।
शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम्
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥

मार्कण्डेय उवाच –
श‍ृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय,
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने,
शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय
अजाय अजिताय पीतवाससे,

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध,
हयग्रीव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत,
वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा,

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड-
सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान्
उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच
मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय
चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन
गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा ।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध,
जय जय, विजय विजय, अजित, अमित,
अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र,
ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल,
विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह,
महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण,
पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश,
केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर,
सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन,
सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर,
सर्वबन्धविमोक्षण,सर्वाहितप्रमर्दन,
सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण,
सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।

विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ॥ ५॥

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।
नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ॥ ६॥

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ॥ ७॥

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ ८॥

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।
या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ॥ ९॥

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।
सर्वकामदुघा वत्स श‍ृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ॥ १०॥

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां
पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां
जपति पठति श‍ृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा
न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं,
न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं,
न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।

क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-
विद्वेषोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् ।
एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।

ॐ नमोऽस्तुते ।
अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे,
अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे,
स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि,
सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति,
गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति,
धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते,
गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि,
ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे,
सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं
वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।
म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ॥ ११॥

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ॥ १२॥

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।
एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ॥ १३॥

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।
शस्त्रं वारयते ह्येषा समरे काण्डदारुणे ॥ १४॥

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ॥
शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ॥ १५॥

इत्येषा कथिता विद्या अभयाख्याऽपराजिता ।
एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ॥ १६॥

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ॥१७॥

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।
अग्नेर्भयं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै विषात् ॥ १८॥

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ॥ १९॥

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।
पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ॥ २०॥

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।
हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ॥ २१॥

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।
पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ॥ २२॥

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ॥ २३॥

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ॥ २४॥

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ॥ २५॥

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ॥ २६॥

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।
महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ॥ २७॥

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श‍ृणु ॥ २८॥

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ॥ २९॥

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ॥ ३०॥

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।
द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ॥ ३१॥

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्,
धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच
विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा
दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्थिते विनायकमातः
रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि,
चक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि
विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि
केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।
शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं
क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।

ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान्
दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय
पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय
ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि
ऐन्द्रि चामुण्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि
आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि
ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।

ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि- विवर्द्धिनि ।
कामाङ्कुशे कामदुघे सर्वकामवरप्रदे ।
सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।
आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि,
धरणि धारिणि, तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।
महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।
यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।
सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।
यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।

ॐ स्वाहा ।
ॐ भूः स्वाहा ।
ॐ भुवः स्वाहा ।
ॐ स्वः स्वहा ।
ॐ महः स्वहा ।
ॐ जनः स्वहा ।
ॐ तपः स्वाहा ।
ॐ सत्यं स्वाहा ।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।
अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ॥ ३२॥

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ॥ ३३॥

नानया सदृशी रक्षा। त्रिषु लोकेषु विद्यते ।
तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ॥ ३४॥

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।
मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ॥ ३५॥

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।
उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ॥ ३६॥

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।
व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ॥ ३७॥

धावन्तीं गगनस्यान्तः पादुकाहितपादकाम् ।
दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ॥ ३८॥

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ॥ ३९॥

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रूरदृष्ट्या विलोकनात् ।
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयन्तीं मुहुर्मुहुः ॥ ४०॥

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ॥ ४१॥

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ॥ ४२॥

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीम् ॥ ४३॥

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।
व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ॥ ४४॥

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया
विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे
सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ॥ ४५॥

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ॥ ४६॥

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा
सब प्रकार के शत्रु और सब बन्ध्या दोष नष्ट होता है ।
विशेष रूप से मुकदमें में सफलता और राजकीय कार्यों में
अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है ।

अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता पाठ के नियम/Aprajita Stotram/अप्राजिता स्तोत्र का महत्व

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

संकट नाशन गणेश स्तोत्र: भगवान गणेश की कृपा से आपके संकट दूर होंगे

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

संकट और परेशानियाँ हमारे जीवन का हिस्सा हैं, और कई बार हमें इनसे निपटने के लिए आत्मबल की आवश्यकता होती है। भगवान श्री गणेश एक ऐसे देवता हैं जिनकी आराधना से हमारे जीवन के सभी प्रकार के संकट दूर हो सकते हैं।

इसलिए, हम आपके लिए लेकर आए हैं, “संकट नाशन गणेश स्तोत्र,” जिसके पाठ से आप अपने जीवन के सभी विकल्पित परिस्थितियों का समाधान पा सकते हैं।संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

गणेश चतुर्थी पर्व पर क्यों जरूरी है “संकट नाशन गणेश स्तोत्र” का पाठ?

गणेश चतुर्थी के पर्व पर हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, और “संकट नाशन गणेश स्तोत्र” का पाठ करने से हम उनकी कृपा को प्राप्त कर सकते हैं। इस स्तोत्र में गणेश भगवान के विभिन्न नामों का उल्लेख है जो उनकी शक्तियों को प्रकट करते हैं और हमें संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं।

गणेश चतुर्थी पर्व पर इस स्तोत्र का पाठ करने से हमारे जीवन में खुशियाँ, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति होती है।संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” का महत्व

“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” को पढ़ने से हमारे जीवन में आने वाले विभिन्न प्रकार के संकट दूर हो सकते हैं। यह स्तोत्र भगवान गणेश की पूजा का हिस्सा होता है और इसका पाठ करने से हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

गणेश भगवान को विघ्नहर्ता के रूप में जाना जाता है, और उनकी कृपा से हमारे जीवन के सभी प्रकार के विघ्न दूर हो सकते हैं।संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

स्तोत्र का पाठ कैसे करें

“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” का पाठ करने के लिए आपको एक पवित्र और शांत माहौल में बैठकर करना चाहिए। आप इसे रोज़ाना सुबह या शाम के समय पढ़ सकते हैं।

इसका पाठ करने से पहले आपको अपने मन में संकल्प लेना चाहिए कि आप इस स्तोत्र के पाठ से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और आपके सभी संकट दूर हों।संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ

“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” के पाठ से आपके जीवन में ये लाभ हो सकते हैं:

1. संकटों का नाश
यह स्तोत्र आपके जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकटों को दूर कर सकता है, चाहे वो व्याकुलता से जुड़े हो या वित्तीय समस्याएँ। गणेश भगवान की कृपा से आपके मार्ग में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और आप जीवन में प्रगति कर सकते हैं।

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

2. विद्या और बुद्धि की प्राप्ति

भगवान गणेश बुद्धि और विद्या के प्रतीक होते हैं। उनकी कृपा से आप अध्ययन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और नई उच्चताओं तक पहुँच सकते हैं।

3. परिवार में खुशियाँ
“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” के पाठ से परिवार में आपसी सदभाव और खुशियाँ बनी रहती हैं। गणेश भगवान की कृपा से परिवार के सभी सदस्य सुख-शांति में रहते हैं और आपके घर में हमेशा खुशहाली बनी रहती है।

निष्कर्ष

“संकट नाशन गणेश स्तोत्र” भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक है जो हमें सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से हमारे जीवन में खुशियाँ, सफलता, और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

॥ श्री गणेशायनमः ॥

नारद उवाच –
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के लाभ?Sankat Nashan Ganesh Stotra/स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra
गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥

इस मंत्र का हिंदी में मतलब है – हे प्रभु, कृपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये। यह मंत्र सूर्य देवता के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है।गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं
आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं
हे संसार के विधाता
हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें
क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें

मंत्र के प्रत्येक शब्द की हिंदी व्याख्या:
गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें

गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

गायत्री मंत्र को ‘वेदमाता’ के रूप में पुकारा जाता है और यह हिन्दू धर्म में एक प्रमुख मंत्र माना जाता है। यह मंत्र ऋग्वेद के मण्डल ३, सूक्त ६२ में प्रकट होता है। गायत्री मंत्र की विशेषता इसके महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व में है, जिसे निम्नलिखित कुछ प्रमुख आवश्यकताओं के साथ समझा जा सकता है:

विद्या का प्रतीक: गायत्री मंत्र में सद्गुणों की प्रतिष्ठा होती है और यह विद्या के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है।

ज्ञान की प्राप्ति: मंत्र में सूर्य देवता की पूजा की जाती है जिससे ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक उन्नति: गायत्री मंत्र की जापने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति का मानसिक स्थिति मजबूत होती है।

शुभ कार्यों की सिद्धि: इस मंत्र का नियमित जाप करने से शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और बुराईयों से बचाव होता है।

दीप्ति और ऊर्जा: गायत्री मंत्र के जाप से शरीर, मन, और आत्मा में दीप्ति और ऊर्जा का विकास होता है।

अंतर्ज्योति की प्रेरणा: मंत्र में प्राकृतिक और आत्मिक ज्योति की प्रेरणा होती है जो व्यक्ति को उद्देश्य की ओर आग्रहण करती है।

यह केवल एक संक्षिप्त व्याख्या है, गायत्री मंत्र की गहराईयों और विशिष्टताओं को समझने के लिए व्यक्तिगत अध्ययन और आध्यात्मिक गुरु की मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

गायत्री महा मंत्र अर्थ सहित/Gayatri Maha Mantra

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

॥ श्री मङ्गलाय नमः ॥

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12॥

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र: एक आध्यात्मिक अनुभव

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र एक प्रमुख आध्यात्मिक पाठ है जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह स्तोत्र हनुमान जी को समर्पित है और इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रकार के आवश्यकताओं से मुक्ति प्रदान करना है।

हमारे इस लेख में, हम ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के महत्व, उपयोगिता, और इसके प्रभाव की चर्चा करेंगे, ताकि आप इसके आध्यात्मिक महत्व को समझ सकें और इसका आनंद उठा सकें।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

स्तोत्र का महत्व

यह अद्भुत स्तोत्र हनुमान जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और वह अपने जीवन की समस्याओं का समाधान प्राप्त करता है।

इस स्तोत्र के पाठकों का मानना है कि हनुमान जी सभी विघ्नों को दूर करने वाले हैं और उनकी कृपा से हर कार्य सफलतापूर्वक पूरा होता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

स्तोत्र की विशेषता

यह स्तोत्र विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है जिनके पास समय की कमी होती है। रोज़ाना कुछ मिनट निकालकर इस स्तोत्र का पाठ करने से उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है और वे अपने दिन को पॉजिटिव और उत्तरदायित्वपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

स्तोत्र के लाभ

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के पाठ से मन और आत्मा शुद्धि प्राप्त करते हैं और उन्हें नए दृष्टिकोण की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र न केवल व्यक्ति की आत्मिक विकास में मदद करता है, बल्कि उसके चारों ओर के पर्यावरण को भी पॉजिटिव बनाता है।

विचारशीलता और नैतिकता में वृद्धि होती है और व्यक्ति का आत्मविश्वास भी मजबूत होता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

स्तोत्र का पाठ कैसे करें

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र को पठने के लिए आपको एक शांत और शुद्ध वातावरण में बैठकर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आप इसे दिन के किसी भी समय पढ़ सकते हैं, परंतु सुबह उठकर ब्रह्ममुहूर्त में इसका पाठ करने का विशेष महत्व है।

स्तोत्र के पाठ के पश्चात्, आपको विशेष रूप से भगवान गणेश की आराधना और पूजा करनी चाहिए।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

आध्यात्मिक संवाद

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करना एक आध्यात्मिक संवाद का अवसर प्रदान करता है। यह आपको अपने आत्मा के साथ एक मिलनसर अनुभव में ले जाता है और आपको आत्मा के महत्वपूर्ण पहलुओं की पहचान करने में मदद करता है।

यह आपको आत्मा की गहराईयों में विचलित करता है और आपके आत्मा के साथ एक अद्वितीय जुड़ाव की अनुभूति होती है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र एक अद्भुत आध्यात्मिक उपहार है जो हमें दिनचर्या में सकारात्मकता और ऊर्जा प्रदान करता है। इसका नियमित पाठ करके हम अपने जीवन की समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और आत्मा के साथ गहरा संवाद प्राप्त कर सकते हैं।

अगर आप अपने आत्मा के साथ एक अद्वितीय संवाद में जाना चाहते हैं, तो रिनमोचन मंगल स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र: सवालों के जवाब

कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 1: ऋण मोचन मंगल स्तोत्र क्या है?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र एक प्राचीन हिंदू धर्मिक पाठ है जो हनुमान जी को समर्पित है। इसका मुख्य उद्देश्य हनुमान की कृपा प्राप्त करना और विभिन्न प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करना है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 2: ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ क्यों किया जाता है?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। यह स्तोत्र हनुमान जी के प्रति श्रद्धाभक्ति को बढ़ावा देता है और विभिन्न विघ्नों को दूर करने में मदद करता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 3: क्या यह स्तोत्र सभी के लिए है?

जी हां, ऋण मोचन मंगल स्तोत्र को कोई भी व्यक्ति चाहे वो बच्चा हो या बड़ा, इसका पाठ कर सकता है। यह स्तोत्र सभी को अपने जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा प्रदान करने में मदद करता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 4: क्या यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति में मदद करता है?

जी हां, ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह स्तोत्र आत्मा के साथ अद्वितीय संवाद में ले जाता है और उसकी मानसिक शांति और स्थिरता में मदद करता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 5: ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

रिनमोचन मंगल स्तोत्र को पढ़ने से पहले, आपको एक शांत और प्राकृतिक वातावरण में बैठकर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सबसे पहले, आपको गहरे सांस लेना चाहिए और मन को शांत करने का प्रयास करना चाहिए। फिर आपको ध्यान में हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए और उनसे मदद मांगनी चाहिए।

इसके बाद, आपको रिनमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और स्तोत्र के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को जाहिर करना चाहिए।

प्रश्न 6: क्या यह स्तोत्र वास्तविकता में प्रभावी है?

जी हां, ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ वास्तविकता में प्रभावी है। कई लोगों ने इसके पाठ करके अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखा है और विभिन्न समस्याओं का समाधान प्राप्त किया है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 7: इस स्तोत्र का पाठ कितने बार करना चाहिए?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के पाठ की विशेष निर्देश नहीं होते हैं। आप इसका पाठ अपनी आवश्यकता और समय के अनुसार कर सकते हैं। आमतौर पर, लोग इस स्तोत्र का प्रतिदिन एक या दो बार पढ़ते हैं।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 8: क्या यह स्तोत्र केवल शुभ कामों के लिए है?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ केवल शुभ कामों के लिए ही नहीं है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता आती है और वह अपने जीवन की सभी पहलुओं में सफलता प्राप्त कर सकता है।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

प्रश्न 9: क्या यह स्तोत्र किसी विशेष धर्म से संबंधित है?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र को किसी विशेष धर्म से संबंधित नहीं माना जाता है। यह हर धर्म के व्यक्ति इसका पाठ कर सकते हैं और इसके लाभ उठा सकते हैं।

प्रश्न 10: ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ किस प्रकार किया जाता है?

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र को पाठ करने के लिए आपको सबसे पहले एक शांत और शुद्ध वातावरण में बैठकर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। फिर आपको स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और उसके अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

निष्कर्ष

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र एक आध्यात्मिक उपहार है जो हनुमान जी के प्रति श्रद्धाभक्ति को बढ़ावा देता है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। इसका नियमित पाठ करने से हम अपने जीवन की समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और आत्मा के साथ गहरा संवाद प्राप्त कर सकते हैं।कर्ज से मुक्ति पाने का सरल उपाय/Rinmochan Mangal Stotra/ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि
शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों का विशेष महत्व होता है, और शुक्र ग्रह इनमें से एक है जिसका विशेष महत्व है। शुक्र ग्रह को भगवान शुक्र के नाम पर रूपान्तरित किया गया है और यह विशेष रूप से प्रेम, सौन्दर्य, कला, संगीत, धन, विवाहित जीवन, और आनंद के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। शुक्र का अशुभ होने पर जीवन में विवाद, आर्थिक संकट, और विवाह संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह के प्रभाव

शुक्र ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा पड़ता है। यदि शुक्र ग्रह कुंडली में प्रासीन हो तो व्यक्ति खूबसूरती, कला, संगीत, और सौंदर्य से भरपूर होता है।

इसके साथ ही, ऐसे व्यक्ति का प्रेम और वैवाहिक जीवन भी सुखमय होता है। विपरीत यदि शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति को आर्थिक कठिनाइयाँ, संबंध संकट, और आनंदहीनता का सामना करना पड़ सकता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह की शांति के उपाय

यदि आपका कुंडली में शुक्र ग्रह की दशा अशुभ है, तो आप कुछ उपाय करके इसके द्रिष्टि गोचर को शांत कर सकते हैं।

1.मणि धारण करें

शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ावा देने के लिए आप मोती की माला धारण कर सकते हैं। मोती आपकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को सुधारकर आपको सकारात्मकता प्रदान कर सकता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

2.व्रत और पूजा

शुक्रवार को शुक्र ग्रह की पूजा करने से आपके जीवन में सुख और समृद्धि की वृद्धि हो सकती है। लक्ष्मी पूजा और कामदेव पूजा भी आपके शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने में मदद कर सकती है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

3.सफेद वस्त्र पहनें

शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग के कपड़े पहनना फायदेमंद होता है। इससे आपके आसपास पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है और आपका मनःस्थिति सुधारती है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह शांति: ज्योतिष में शुक्र का महत्व और उपाय

प्रश्न:ज्योतिष में शुक्र ग्रह का क्या महत्व होता है?

उत्तर:ज्योतिष में शुक्र ग्रह को वेणुस भी कहा जाता है और इसका महत्व काफी अधिक होता है। यह ग्रह प्रेम, सौंदर्य, कला, संगीत, धन, विवाहित जीवन, और आनंद से जुड़ा होता है।

जिन लोगों की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति शुभ होती है, वे व्यक्ति सुंदरता, सौंदर्य, और कला में प्रवृत्त होते हैं। विवाह और प्रेम संबंधों में भी यह ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

प्रश्न: अशुभ शुक्र ग्रह के क्या प्रभाव हो सकते हैं?

उत्तर: अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में होता है, तो उसके जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। विवाहित जीवन में दरारें आ सकती हैं और संबंधों में अनबन हो सकती है। आर्थिक परेशानियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं और व्यक्ति धन संबंधी मुद्दों का सामना कर सकता है।

प्रश्न: शुक्र ग्रह की शांति के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?

उत्तर: यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह की दशा अशुभ हो, तो उसे कुछ उपाय करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष
शुक्र ग्रह की शांति के लिए उपरोक्त उपायों का पालन करके आप अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और सौंदर्य को बढ़ावा दे सकते हैं। यदि आप इन उपायों को नियमित रूप से अपनाएं, तो शुक्र ग्रह की दशा में सुधार हो सकती है और आपका जीवन खुशियों से भरा रह सकता है।

शुक्र अशुभ प्रभाव/शुक्र ग्रह दोष: हमारी जन्म कुंडली में शुक्र प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, जीवनसाथी, प्रेमी, रोमांस, विवाह, साझेदारी, परिष्कार, शैली, लालित्य, आकर्षण, शांति, खुशी,भाग्य, सौभाग्य का प्रतीक है। सदाचार, मिलनसारिता, पवित्रता, ईमानदारी, ईमानदारी, नम्रता, स्नेह, दयालुता, संवेदनशीलता, स्त्री गुण, नारीत्व, घुंघराले बाल, आकर्षण, चमक, वैभव, घमंड, ग्लैमर आदि…

स्नेह की कमी, सुंदरता की कम सराहना, बदनामी, लांछन, वाहन और विलासिता की वस्तुओं की हानि। विवाह से संबंधित समस्याएँ, वित्तीय घाटा, विलासिता की कमी, प्रेम में असफलता, आनुवांशिक अंगों की समस्याएँ आदि अशुभ शुक्र के लक्षण हैं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार, शुक्र ग्रह को ऋषि भृगु के पुत्र के रूप में जाना जाता है। वह प्रेम का प्रतीक है और स्वभाव से अधिकतर परोपकारी है। रात के आकाश में चंद्रमा के बाद शुक्र सबसे चमकीली इकाई है। वह किसी के जीवन की परिष्कृत विशेषताओं को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है, जैसे; सौंदर्य, रोमांस, जुनून, कामुकता, आभूषण, विलासिता और धन।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र अशुभ प्रभाव का महत्व:ज्योतिषीय रूप से, शुक्र ग्रह (शुक्र ग्रह दोष) लोगों के जीवन में सुंदरता, संतुलन, सद्भाव, भावनाओं और स्नेह और सहानुभूति लाने की शक्ति रखता है। यह किसी व्यक्ति के विवाह, रोमांटिक संबंधों, व्यावसायिक साझेदारी, कला और सामाजिक जीवन पर शासन करता है।

एक मजबूत शुक्र ग्रह (शुक्र ग्रह दोष) विपरीत लिंग के लिए धन, आराम, आकर्षण लाता है और एक व्यक्ति को सौम्य, कोमल और विचारशील बनाता है। अशुभ शुक्र आंखों, अंडाशय, गठिया और विलासितापूर्ण जीवन शैली से संबंधित बीमारियों को जन्म देता है। यह वाहन दुर्घटनाओं, प्रेम और विवाह में बाधा और जीवन की सुख-सुविधाओं का कारण भी माना जाता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्राचार्य को असुरों का गुरु माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से शुक्र ग्रह एक ही स्थिति में होने पर व्यक्ति के जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होता है। शुक्र (शुक्र अशुभ प्रभाव) को लाभकारी माना जाता है और वह वृषभ (वृषभ) और तुला (तुला) का राशि स्वामी है। यह मीन राशि में उच्च का होता है और कन्या राशि में नीच का होता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

बुध और शनि ग्रह शुक्र के मित्र माने जाते हैं, सूर्य और चंद्रमा दूसरों के प्रति अमित्र और तटस्थ माने जाते हैं। शुक्र प्रेम, रोमांस और कामुकता, कलात्मक प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, धन, विपरीत लिंग, आनंद और प्रजनन, स्त्री गुणों और संगीत, नृत्य, पेंटिंग और मूर्तिकला जैसी ललित कलाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

जिन लोगों की कुंडली में शुक्र मजबूत होता है, वे प्रकृति की सराहना करते हैं और सौहार्दपूर्ण संबंधों का आनंद लेते हैं।

शुक्र (शुक्र अशुभ प्रभाव) तीन नक्षत्रों या चंद्र भावों का स्वामी है: भरणी, पूर्वा फाल्गुनी और पूर्वा आषाढ़। शुक्र का रंग सफेद, धातु चांदी और रत्न हीरा है। उनकी दिशा दक्षिण-पूर्व है, ऋतु वसंत है, तत्व जल है भोजन चावल, दही और मखाना है।

मूत्राशय में पथरी
नेत्र कष्ट
यौन अंगों की कमजोरी, वीर्य का निकलना
व्यापार में असफलता, व्यापार में भारी हानि
गरीबी और कर्ज
पारिवारिक जीवन में कलह
अशांत वैवाहिक जीवन, तलाक
सेक्स स्कैंडल से बदनामी
धन एवं वाहन की हानि
शुक्र ग्रह से संबंधित रंग सफेद, नीला, नारंगी, बैंगनी, बैंगनी और बरगंडी है और संबंधित रत्न हीरा है।
महादशा (शुक्र अशुभ प्रभाव):
शुक्र महादशा किसी व्यक्ति के जीवन में वह समय अवधि होती है जब शुक्र गृह (शुक्र अशुभ प्रभाव) या शुक्र ग्रह उस तारे या नक्षत्र के सबसे निकट होता है जिसमें उसका जन्म हुआ था। महादशा में शुक्र का प्रबल प्रभाव प्रेम, विलासिता, सुंदरता, अनुग्रह, मित्रता और नए वाहन जैसे भौतिक लाभ लाता है।

शुक्र के कमजोर होने से रिश्तों में दरार, आकर्षण में कमी और नपुंसकता, यौन एवं मूत्र संबंधी रोग और अस्थमा सहित शारीरिक बीमारियाँ हो सकती हैं।

किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र की कमजोर स्थिति या उसके अशुभ प्रभाव के कारण प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। शुक्र के इस प्रभाव को शुक्र दोष के नाम से जाना जाता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में जन्म नक्षत्र में शुक्र ग्रह की उपस्थिति को शुक्र महादशा के रूप में जाना जाता है। महादशा में एक मजबूत शुक्र काम करने की सौंदर्य भावना, नए वाहन, भौतिक लाभ और सुख, मित्रता, प्रेम, विलासिता, सौंदर्य और शालीनता लाता है।

कमजोर शुक्र यौन रोग, रिश्तों का टूटना, मूत्र रोग, लकवा, अस्थमा, नपुंसकता, शारीरिक चमक में कमी और अन्य बीमारियों का कारण बनता है।

शुक्र अशुभ प्रभाव क्या है?
किसी की जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की कठोर या कमजोर स्थिति के कारण, लोगों को अपने जीवन में बुरी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शुक्र के इस दुष्प्रभाव को शुक्र दोष/शुक्र अशुभ प्रभाव के नाम से जाना जाता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र अशुभ प्रभाव के उपाय:

शुक्र दोष (शुक्र अशुभ प्रभाव) के उपचार में शुक्रवार को उपवास करना शामिल है क्योंकि यह दिन शुक्र ग्रह की अधिष्ठात्री देवी शक्ति को प्रदान किया जाता है। देवी मां के लिए बने पवित्र स्थानों की यात्रा करने की भी सलाह दी जाती है। लोगों को खुशी और सांसारिक सुख का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान शुक्र की पूजा करने की भी सलाह दी जाती है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्रवार का दिन शक्ति, या माँ देवी लक्ष्मी को समर्पित है। लक्ष्मी की पूजा करने से सुख और भौतिक संपदा प्राप्त होती है, और व्यक्ति के जीवन में शुक्र दोष (शुक्र अशुभ प्रभाव) के कारण उत्पन्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। वह लोगों के जीवन में भाग्य और समृद्धि लाती है।

शुक्र ग्रह की अशुभता को कम करने या खत्म करने के लिए कई उपाय हैं। इनमें से कोई भी एक या दो या तीन का संयोजन शुक्र दोष को दूर करने के लिए पर्याप्त होगा।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

रत्न: शुक्र दोष/शुक्र अशुभ प्रभाव को दूर करने या शुक्र के लाभ को बढ़ाने के लिए हीरा रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। अंगूठी किसी भी धातु से बनाई जा सकती है; हालाँकि सफ़ेद सोना या चाँदी बेहतर है। जातकों को इसे अपनी अनामिका उंगली में पहनना चाहिए; खासकर शुक्रवार को. इसे किसी विशेषज्ञ से सलाह लेने के बाद ही पहनना चाहिए।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

रुद्राक्ष:
शुक्र दोष (शुक्र अशुभ प्रभाव) से सुरक्षा के लिए एक ऊर्जावान 7 मुखी रुद्राक्ष माला/कंगन पहनना चाहिए। उपवास: शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने और उसके दोष को दूर करने के लिए यह सलाह दी जाती है कि जातक शुक्रवार को उपवास रखें क्योंकि यह दिन शुक्र ग्रह की अधिष्ठात्री देवी शक्ति या माता लक्ष्मी को प्रदान किया जाता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

देवी शक्ति या माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करें: वह ग्रह की शासक हैं। उनकी पूजा करने से सुख और भौतिक संपदा प्राप्त होती है। वह व्यक्ति के जीवन में शुक्र दोष के कारण उत्पन्न बाधाओं को दूर करती है। वह भाग्य और समृद्धि भी लाती है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

दान:
दान किसी भी दिव्य प्राणी को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका है। शुक्र ग्रह के जातकों को शुक्रवार के दिन दही, घी, चावल, चीनी, कपूर, चांदी, गाय और सफेद कपड़े का दान करने की सलाह दी जाती है।

ये दान सूर्योदय के समय करना चाहिए। शुक्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए सफेद घोड़ा और चंदन का दान करने की भी सलाह दी जाती है। शुक्रवार की शाम को किसी युवा लड़की को ग्रह का रत्न हीरा दान करना भी शुक्र दोष (शुक्र अशुभ प्रभाव) से बचने का एक तरीका है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

पूजा और मंत्र:
लक्ष्मी पूजा शुक्र दोष (शुक्र अशुभ प्रभाव) के प्रभाव को दूर कर सकती है। देवी लक्ष्मी की मूर्ति को पंच अमृत से स्नान कराएं और उन्हें सफेद फूल और चंदन का लेप चढ़ाएं। देवी मां दुर्गा या शक्ति की पूजा करने और देवी स्तुति या दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भी शुक्र प्रसन्न होगा। शुक्र बीज मंत्र या शुक्र स्तोत्र का पाठ करने से भी ग्रह के बुरे प्रभाव कम होंगे।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह मंत्र (शुक्र ग्रह मंत्र):
शुक्र एक स्वर्गीय पिंड है जो खुशी, सफलता और आनंद का प्रतीक है और जो बोरियत और कुरूपता और हेराल्ड की सुंदरता और रचनात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यदि किसी की जन्म कुंडली में ग्रह मजबूत और लाभकारी है तो निश्चित रूप से व्यक्ति ऐसे क्षेत्र में जाता है जिसमें रचनात्मकता और कल्पना शामिल होती है। और ऐसे कार्यों से व्यक्ति को सफलता और प्रसिद्धि अवश्य मिलती है।

लेकिन यदि शुक्र शुभ नहीं है तो भी शक्तिशाली शुक्र साधना (शुक्र मंत्र) द्वारा इसे लाभकारी बनाया जा सकता है। ऐसे बहुत से लोग हैं, विशेषकर फिल्म जगत से, जिन्होंने शुक्र की साधना की है और परिणामस्वरूप वे इसमें सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

पृथ्वी से दिखाई देने वाला सबसे चमकीला और चमचमाता खगोलीय पिंड शुक्र है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यह सुंदरता, चुंबकत्व, प्रसिद्धि, संगीत, ललित कला और जीवन की सभी अच्छी चीजों का प्रतीक है।

ज्योतिषीय ग्रंथ निर्दिष्ट करते हैं कि जन्म कुंडली में लाभकारी शुक्र (शुक्र मंत्र) व्यक्ति को महान प्रसिद्धि और सामूहिक अपील का सार्वजनिक व्यक्ति बनाता है। आम तौर पर इस ग्रह की दशा जीवन में सर्वांगीण सफलता का आश्वासन देती है और व्यक्ति की अधिकांश इच्छाओं को पूरा करने में मदद करती है।

संगीत, अभिनय, कला, फैशन, इंटीरियर डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों में इस ग्रह का दबदबा सबसे ज्यादा है। किसी की कुंडली में मजबूत शुक्र अद्भुत स्तर की प्रसिद्धि ला सकता है और किसी के जीवन को पूरी तरह से बदल सकता है।

शुक्र की महादशा 20 वर्ष की मानी जाती है। जिस मनुष्य के साथ यह महादशा होती है, उसे जीवन की सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र मंत्र साधना किसे करनी है? शुक्र ग्रह मंत्र

यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इनमें से किसी भी चीज़ की कमी है तो उसे शुक्र की साधना (शुक्र मंत्र) का सहारा लेना चाहिए।

इस अद्वितीय साधना की सफल सिद्धि से निम्नलिखित क्षेत्रों में सफलता की अद्भुत स्थिति प्राप्त हो सकती है – विज्ञापन/मॉडलिंग, मोशन पिक्चर्स, अभिनय, औषधि, आयुर्वेद, खिलौने, सौंदर्य प्रसाधन, ब्यूटी पार्लर, फैशन डिजाइनिंग, विदेश यात्रा, निर्यात-आयात से संबंधित व्यवसाय, चित्र, उच्च गुणवत्ता वाली कला, संगीत, लॉज व्यवसाय, इंटीरियर डिजाइनिंग, खेती, बागवानी, खेल, पेंटिंग मूर्तिकला, पारद विज्ञान (सोना तैयार करना) और अप्सरा साधना में दक्षता।

यदि आप इनमें से किसी भी क्षेत्र में सिद्धि चाहते हैं तो यह शुक्र मंत्र साधना करना आपके हित में हो सकता है। साधना का सर्वोत्तम काल वह है जब शुक्र मीन राशि में होगा – जो कि उसकी उच्च राशि है। अन्यथा किसी भी शुक्रवार को साधना कर सकते हैं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

यदि आप शुक्र से प्रभावित हैं, तो यह आपको उपरोक्त समस्याएं देगा (शुक्र मंत्र)। ऐसे कई उपाय हैं जिनमें से मंत्र साधना को सबसे अच्छा और तुरंत असर करने वाला कहा जाता है।

इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और यह आपको अशुभ प्रभाव से पूरी तरह बचा सकता है। यदि आप साधना करने में असमर्थ हैं तो तंत्रोक्त मंत्र का प्रतिदिन 5 माला सफेद हकीक माला से जाप करें। शुक्र के अशुभ प्रभाव कम होने लगते हैं लेकिन ख़त्म होने के बाद दोबारा शुरू हो जाएं तो साधना के लिए आगे बढ़ें। इस शुक्र मंत्र को करने के लिए आप किसी भरोसेमंद पंडित को नियुक्त कर सकते हैं।

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि
शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र के रत्न (शुक्र मंत्र/शुक्र ग्रह मंत्र):
रत्नशास्त्र के अनुसार शुक्र का रत्न हीरा और उपरत्न ओपल है। शुक्रवार को सूर्यास्त के समय सवा मन का हीरा या सवा सात मन का ओपल सोने या चांदी की अंगूठी में जड़वाकर दाहिने हाथ की छोटी उंगली में धारण करें।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र मंत्र साधना की विधि:

सुबह 4.24 बजे से 6.00 बजे तक या शाम 6.12 बजे से 8.30 बजे तक स्नान करके पूर्व दिशा की ओर मुख करके सफेद चटाई पर बैठें। जमीन पर चंदन के लेप से निम्नलिखित आकृति बनाएं। एक लकड़ी के स्टूल पर सफेद कपड़ा बिछाएं।

उस पर गुरु या भगवान शिव की तस्वीर रखें और साधना (शुक्र मंत्र) की सफलता के लिए प्रार्थना करें। नारियल या तिल के तेल का दीपक जलाएं। तेल में थोड़ा सा चंदन मिला लें।

कपड़े के ऊपर एक प्लेट रखें. उस पर चावल के दानों से एक तारा बनाएं। इस तारे पर अभिमंत्रित शुक्र यंत्र स्थापित करें और इसके बाद दाहिनी हथेली पर जल लेकर मंत्र का जाप करें।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह मन्त्र

शुक्र ग्रह दैत्य गुरु माना जाता है। यह सौरमंडल का सबसे चमकीला ग्रह है। यह आग्नेय कोण (दक्षिण और पूर्व के बीच की दिशा) का स्वामी है। शुक्र स्त्री जाति और श्याम गौर वर्ण ग्रह है। इसके प्रभाव से जातक का रंग गेंहुआ होता है। अंग्रेजी में इसे ‘वीनस’ कहा गया है। शुक्र व्यक्ति के जीवन में सांसारिक भोग विलास की स्थितियाँ लाता है। यह कामना प्रधान ग्रह है।

इसी कारण इस ग्रह से विवाह, भोग, विलास, प्रेम-सम्बन्ध, संगीत, चित्रकला, जुआ, विदेश गमन के साथ शारीरिक सुन्दरता तेजस्विता, सौन्दर्य में कोमलता इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। शुक्र ग्रह (Venus Mantra) के प्रधान व्यक्ति जीवन में हर समय मौज मस्ती करते देखे गये है। यह आकर्षक शक्ति का ग्रह है। इसी ग्रह के कारण स्त्री पुरुष में आकर्षक शक्ति बनती है।

शुक्र ग्रह मनुष्य के चेहरे पर विशेष प्रभाव डालता है। यह वृष और तुला का स्वामी है। मीन राशि में उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का होता है। शुक्र का शुक्र के साथ सात्विक व्यवहार, शनि, राहु के साथ तामसिक व्यवहार तथा चन्द्र, सूर्य और मंगल के साथ शत्रुवत व्यवहार रहता है। यह अपने स्थान से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टी से देखता है।

विंशोत्तरी महादशा में शुक्र की महादशा 20 वर्ष की मानी गई है। जिस जातक के जीवन में शुक्र ग्रह की महादशा आती है और यदि उसकी कुंडली में शुक्र उच्च राशि का राजयोग बना रहा है, तो उस समय वह व्यक्ति सारे भोग विलास प्राप्त करता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र साधना कौन करे?

शुक्र मौज मस्ती और भोग विलास का ग्रह है। इस ग्रह के विपरीत प्रभाव से व्यापार में धन हानि, धन का नुकसान, व्यापार न चलना, काम में मन न लगना, स्त्री से कष्ट, प्रेम विवाह न होना, स्त्री के प्रति कम रूचि, समय पर शादी न होना, स्त्री से नुकसान उठाना, पुत्र की प्राप्ति न होना, मानसिक कष्ट, कर्जा चढ़ना, नशा करना, अपमान, |

घर में क्लेश बना रहना, रिश्ते ख़राब होना, रिश्ते टूटना, तनाव, आर्थिक तंगी, गरीबी, किसी भी कार्य में सफल न होना, भाग्य साथ न देना, चेहरे पर दाने होना, स्किन के रोग, सुन्दरता में कमी, सम्भोग में कमजोरी, हृदय रोग, कमज़ोरी, कफ बनना, नसों की समस्या, बीमारियों पर पैसा खर्चा होना, जीवन में असफलता आदि सब शुक्र की महादशा, अंतर दशा, गोचर, या शुक्र के अनिष्ट योग होने पर होता है।

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं शुक्र ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। शुक्र ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है।

इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से शुक्र ग्रह के अनिष्ट प्रभाव से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो शुक्र तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 5 माला सफ़ेद आसन पर बैठकर सफ़ेद हकीक माला से जाप करें।

तब भी शुक्र ग्रह का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको शुक्र ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है, इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो ही अधिक अच्छा रहेगा। अगर आप साधना नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से भी करवा सकते है।

शुक्र का रत्न:

रत्न विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है और इसका उपरत्न ओपल है। शुक्रवार के दिन शाम को सूर्यास्त के समय सवा 1 रत्ती का हीरा या सवा 7 रत्ती का ओपल रत्न दाहिने हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) अंगुली में सफ़ेद सोने या चांदी की अंगूठी में बनवाकर धारण करना चाहिये।

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

साधना विधान:

शुक्र साधना को गुरु पुष्य योग या किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना प्रातः ब्रह्म मुहूर्त (4:24 से 6:00 बजे तक)या शाम को (6:12 से 8:30 के बीच) कर सकते है। इस साधना को करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र होकर सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर लें।

पश्चिम दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें और अपने सामने लकड़ी की चौकी पर सफ़ेद रंग का कपड़ा बिछा दें।

चौकी पर शिव (गुरु चित्र) चित्र या मूर्ति स्थापित कर मन ही मन शिव जी से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें। शिव चित्र के सामने एक थाली रखें उस थाली के बीच सफ़ेद चंदन से स्टार बनाये, उस स्टार में उड़द बिना छिलके वाली दाल भर दें फिर उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त “शुक्र यंत्र’ स्थापित कर दें।

यंत्र के सामने दीपक शुद्ध घी का जलाये फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें –शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि
शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

विनियोग:
ॐ अस्य शुक्र मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषि:, विराट् छन्द:, दैत्यपूज्य: शुक्रो देवता, ॐ बीजम् स्वाहा शक्ति:, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

विनियोग के पश्चात् गुरु का ध्यान करें —

ॐ श्वेत:श्वेताम्बरधरा:किरीट श्र्व चतुर्भज:।

दैत्यगुरु:प्रशान्तश्च साक्षसूत्र कमणडलु:॥

ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘शुक्र यंत्र’ का पूजन कर, पूर्ण आस्था के साथ ‘सफ़ेद हकीक माला’ से शुक्र सात्विक और गायत्री मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें –

शुक्र गायत्री मंत्र:

॥ ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् ॥

शुक्र सात्विक मन्त्र:

॥ ॐ शुं शुक्राय नम: ॥

इसके बाद साधक शुक्र तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करे।

शुक्र तांत्रोक्त मंत्र :

॥ ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:॥

शुक्र स्तोत्र : नित्य मन्त्र जाप के बाद शुक्र स्तोत्र का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें-

नमस्ते भार्गवश्रेष्ठदेव दानवपूजित ।

1.वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमोनम: ॥

देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदाङगपारग: ।

2.परेण तपसा शुद्र शङकरम् ॥

प्राप्तो विद्यां जीवनख्यां तस्मैशुक्रात्मने नम: ।

3.नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ॥

तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भासिताम्बर ।

4.यस्योदये जगत्सर्वं मङगलार्ह भवेदिह ॥

अस्तं याते हरिष्टं स्यात्तस्मै मङगलरूपिणे ।

5.त्रिपुरावासिनो देत्यान् शिवबाणप्रपीडितान् ॥

विद्दया जीवयच्छुको नमस्ते भृगुनन्दन ।

6.ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ॥

वलिराज्यप्रदोजीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।

7.भार्गवाय नम: तुभ्यं पूर्व गौर्वाणवन्दित॥

जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनमः ।

8.नम:शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ॥

नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।

9.स्तवराजमिदं पुण्यं भार्गवस्य महात्मन: ॥

य: पठेच्छृणुयाद्वापि लभते वास्छितं फलम् ।

10.पुत्रकामो लभेत्पुत्रान् श्रीकामो लभते श्रियम् ॥

राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम् ।

11.भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं समाहिते ॥

अन्यवारे तु होरायांपूजयेद् भृगुनन्दनम ।

12.रोगार्तो मुच्यते रोगाद्रयार्तो मुच्यते भयात् ॥

यद्दत्प्रार्थयते वस्तु तत्तप्राप्नोति सर्वदा ।

13.प्रातः काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत:॥

14.सर्वपापविनिर्मुक्त प्राप्नुयाच्छिवसन्निधौ ॥

शुक्र स्तोत्र का भावार्थ:
शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि
शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

1.देवों द्वारा पूजित हे भार्गव श्रेष्ठ,आप अतिवृष्टि को रोकने वाले तथा उपयुक्त वृष्टि करने वाले हैं आपको नमन हो।

2.देव वेदान्त को जानने वाले, असुरों के रक्षक, उग्र तप से पवित्रतम लोक कल्याण कर्ता आप को नमन हो।

3.मृत संजीवनी विद्या के ज्ञाता, भृगुपुत्र, ब्रह्मा के समान तेजस्वी, भगवान् शुक्र को नमन करता हूं।

4.नक्षत्रों के मध्य स्थित, प्रकाश भासित, चमकीले वस्त्र धारण किये हुए, जिनके उदित होते समस्त संसार मंगलमय होता है उन्हें नमस्कार।

5.जिनके अस्त होने पर संसार में अनिष्ट होता है। ऐसे मंगलस्वरूप, शिव के बाण से पीड़ित, त्रिपुरा पर घिरे हुए असुरों से रक्षा करने वाले आपको नमन करता हूं।शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

6.अपनी विद्या से असुरों को जीवित करने वाले भृगुनन्दन, कविराज, ययाति कुल के गुरु आप को नमन हो।

7.राजा बलि को उसका राज्य तथा उसके प्राण को देने वाले, देवों द्वारा पूजित भगवान् शुक्राचार्य को नमन करता हूँ।

8.प्राणियों को अमृतत्व का ज्ञान देने वाले भृगुपुत्र का मैं ध्यान करता हूँ।

9.समस्त संसार के कारण स्वरुप, कार्य को सम्पन्न करने वाले, महात्मा भार्गव इस पवित्र स्तोत्र का पाठ करता हुआ नमन करता हूँ।

10.जो साधक प्रतिदिन पाठ करता है, सुनता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। पुत्रार्थी पुत्र को तथा धनार्थी धन को प्राप्त करता है।

11.राज्यार्थी राज्य को, स्त्री का इच्छुक सुन्दर पत्नी को प्राप्त करता है। अत: शुक्रवार को ध्यान पूर्वक इस स्तोत्र को पाठ करना चाहिए।

12.अन्य दिनों में भी एक घड़ी जो साधक भगवान शुक्र की पूजा करता है, वह रोग से मुक्त होकर भय रहित हो जाता है।

13.जो साधक श्रद्धा पूर्वक प्रार्थना करता है उसे वह प्राप्त करता है, प्रात: इस पूजा को सम्पन्न करना चाहिए।

14.इस प्रकार सभी पापों से मुक्त होकर साधक शिव साम्राज्य को प्राप्त करता है।

शुक्र साधना

ग्यारह दिन की है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें।

ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे शुक्र अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है,शुक्र से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

शुक्र ग्रह शांति के उपाय/Shukra Graha Shanti Ke Upay/शुक्र ग्रह मंत्र साधना की विधि

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी क्यों मनाया जाता है?

जन्माष्टमी,एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की जयंती के रूप में मनाया जाता है और यह हिन्दू पंचांग के भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। यह एक धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है जिसमें लोग आपसी भक्ति,ध्यान,और आनंद के साथ भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

श्रीकृष्ण -एक अवतार

भगवान श्रीकृष्ण,विष्णु भगवान के अवतार माने जाते हैं। वे महाभारत के ‘भगवद गीता’ में अर्जुन को अपने कर्तव्य की महत्वपूर्णता के बारे में उपदेश देते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म कंश के कारागार मथुरा में हुआ था और उनका बचपन बांसुरी बजाने,गोपियों के साथ खेलने,और लीलाओं में गुजरा।

उनके बलिदान और दिव्य लीलाओं की कहानियां भागवत पुराण में प्रस्तुत हैं जो लोगों के दिलों में बसी हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी का महत्व

जन्माष्टमी का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के जन्म दिन का उत्सव है। यह एक धार्मिक उत्सव होने के साथ-साथ एक परंपरागत महत्व भी रखता है। इस दिन लोग व्रत रखकर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और उनके चरणों में अपनी भक्ति और समर्पण व्यक्त करते हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

उत्सव और परंपराएँ

जन्माष्टमी के उत्सव को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। बड़े मंदिरों में भगवान कृष्ण की प्रतिमा की अभिषेक किया जाता है और उनके चरणों में खीर और मक्खन चढ़ाया जाता है। छोटे मंदिरों और घरों में भक्त रात्रि को उनके चरणों में अपनी पूजा और भक्ति व्यक्त करते हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी के खास परिप्रेक्ष्य

यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन इसके पीछे और भी गहरा मार्ग है। यह एक मानवता के लिए उदाहरण है कि हमें अधर्म पर धर्म की जीत के लिए लड़ना चाहिए।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

उपसंग्रहण

जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान कृष्ण के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। यह एक धार्मिक और पारंपरिक उत्सव है जो लोगों को उनके आदर्शों की ओर प्रेरित करता है और उनके जीवन के महत्वपूर्ण सिखों को याद दिलाता है।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी मुहूर्त

निशिता पूजा का समय: 23:56:25 से 24:42:09 तक अवधि: 0 घंटा 45 मिनट जन्माष्टमी पारण का समय: 8 सितंबर को 06:01:46 के बाद

जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
राक्षस राजा कंस की नगरी मथुरा में, भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को राजा की जेल में देवकी की आठवीं संतान के रूप में हुआ था।
जब उनका जन्म हुआ उस समय आधी रात थी और चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र के साथ उदित हो रहा था। इसलिए, कृष्णाष्टमी को हर साल भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

कृष्णजन्माष्टमी मुहूर्त

1.जब आधी रात के समय अष्टमी व्याप्त हो तो व्रत अगले दिन करना चाहिए।

2.यदि अष्टमी तिथि दूसरे दिन की आधी रात तक ही व्याप्त हो तो व्रत दूसरे दिन ही करना चाहिए।

3.यदि अष्टमी दो दिनों की आधी रात तक व्याप्त हो और रोहिणी नक्षत्र केवल एक रात के दौरान व्याप्त हो, तो उस रात के अगले दिन को व्रत के लिए माना जाना चाहिए।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

4.यदि अष्टमी दो दिन की आधी रात तक व्याप्त हो और दोनों रातों में रोहिणी नक्षत्र भी हो तो कृष्ण जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन रखा जाता है।

5.यदि अष्टमी दो दिन की मध्यरात्रि तक व्याप्त हो और किसी भी दिन रोहिणी नक्षत्र न हो तो कृष्ण जयंती व्रत दूसरे दिन रखा जाता है।

6.यदि इन दोनों दिनों की मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि व्याप्त न हो तो व्रत दूसरे दिन रखा जाएगा।

नोट: उपरोक्त मुहूर्त स्मार्थों के अनुसार दिया गया है। दूसरे दिन वैष्णव गोकुलाष्टमी मनाते हैं। इस त्योहार को मनाने को लेकर स्मार्थ और वैष्णवों की अलग-अलग मान्यताएं हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार,वैष्णव वे लोग हैं जो वैष्णव समुदाय द्वारा दीक्षित होते हैं।
ये लोग आमतौर पर पवित्र मोतियों की एक छोटी माला पहनते हैं और विष्णु के चरणों के प्रतीक के रूप में अपने माथे पर तिलक लगाते हैं।

इन वैष्णव लोगों के अलावा, अन्य सभी लोगों को स्मार्त माना जाता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है,उन्हें स्मार्त कहा जाता है।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि

1.उत्सव अष्टमी के व्रत और पूजा से शुरू होता है, और नवमी को पारण के साथ समाप्त होता है।

2.व्रत रखने वाले को एक दिन पहले यानी सप्तमी को कुछ हल्का सात्विक भोजन अवश्य करना चाहिए। अगली रात को जीवनसाथी के साथ किसी भी तरह की शारीरिक अंतरंगता से बचें और सभी इंद्रियों को नियंत्रण में रखें।

3.व्रत के दिन सुबह जल्दी तैयार होकर सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें; फिर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें।

4.हाथ में पवित्र जल, फल और फूल रखकर व्रत का संकल्प लें।

5.इसके बाद काले तिल मिश्रित जल को अपने ऊपर छिड़कें और देवकी जी के लिए प्रसव कक्ष बनाएं।

6.अब इस कमरे में एक शिशु पलंग और उसके ऊपर एक पवित्र कलश रखें।

7.इसके अतिरिक्त, कृष्ण को दूध पिलाती देवकी जी की मूर्ति या चित्र भी रखें।

8.क्रमशः देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेकर पूजा करें।

9.यह व्रत आधी रात के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता है. केवल फल और ऐसी कोई चीज़ ही ली जा सकती है जैसे कुट्टू के आटे की तली हुई पूड़ियाँ ,गाढ़े दूध से बनी मिठाइयाँ और सिंघाड़े का हलवा।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जन्माष्टमी कथा
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

द्वापर युग के अंत में मथुरा पर राजा उग्रसेन राज्य करते थे। उग्रसेन का एक पुत्र था जिसका नाम कंस था।
राजगद्दी के लिए कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कारागार में धकेल दिया।
कंस की बहन देवकी का विवाह यादव समुदाय के वासुदेव के साथ तय हुआ।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

जब कंस अपनी बहन की शादी के बाद उसे विदा करने जा रहा था, तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी, हे कंस! यह देवकी जो तुम्हें इतनी प्रिय है, उसकी आठवीं संतान तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनकर कंस अत्यंत क्रोधित हो गया और उसे मारना चाहा।
उसने सोचा कि यदि देवकी मर गई तो वह किसी भी बच्चे को जन्म नहीं दे पाएगी।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

वसुदेव ने कंस को समझाने की कोशिश की कि उसे देवकी से नहीं बल्कि उसकी आठवीं संतान से डर है।
अत:वह अपनी आठवीं संतान उसे दे देगा।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

कंस इस बात पर सहमत हो गया और उसने वासुदेव और देवकी को अपनी जेल में बंद कर दिया।
तुरंत ही नारद वहाँ प्रकट हुए और कंस से पूछा कि उसे कैसे पता चलेगा कि आठवीं गर्भावस्था कौन सी है।

सबसे पहले या आखिरी से गिनती शुरू होगी. नारद की बात स्वीकार करते हुए कंस ने एक-एक करके देवकी के सभी बच्चों को बेरहमी से मार डाला।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था जब रोहिणी नक्षत्र प्रबल था। उनके इस दुनिया में आते ही पूरी जेल रोशनी से भर गई। वसुदेव और देवकी ने शंख, चक्र (पहिया हथियार), गदा और एक हाथ में कमल लिए चार भुजाओं वाले भगवान को देखा।

भगवान ने कहा,अब मैं बालक का रूप धारण करूंगा। मुझे तुरंत गोकुल में नंद के घर ले चलो और उनकी नवजात कन्या को कंस के पास ले आओ। वसुदेव ने बिल्कुल वैसा ही किया और बच्ची को कंस को अर्पित कर दिया।जब कंस ने इस कन्या को मारना चाहा तो वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गयी।

तब वह देवी बनकर बोली, ‘मुझे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा? तुम्हारा शत्रु गोकुल तक पहुँच गया है। यह देखकर कंस हैरान और घबरा गया। उसने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक राक्षस भेजे। कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों से उन सभी को मार डाला। बड़े होने पर उन्होंने कंस का वध किया और उग्रसेन के सिंहासन पर बैठे।

जनमाष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

1.इस दिन देश के सभी मंदिरों को सजाया जाता है।

2.कृष्ण के जन्मदिन के अवसर पर कई झाँकियाँ सजाई जाती हैं।

3.कृष्ण का श्रृंगार करने के बाद उन्हें पालने में बिठाया जाता है और सभी लोग उन्हें झुलाते हैं।

उपासक आधी रात तक उपवास रखते हैं। आधी रात को शंख और घंटियों की पवित्र ध्वनि के साथ कृष्ण के जन्म की खबर हर जगह भेजी जाती है। कृष्ण की आरती गाई जाती है और पवित्र भोजन वितरित किया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 6 सितंबर 2023 को रात्रि 07 बजकर 58 मिनट से हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 7 सितंबर 2023 रात्रि 07 बजकर 51 मिनट पर होगा।

कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा मध्य रात्रि की जाती है, इसलिए इस साल भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव 6 सितंबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का 5250 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

कृष्ण जन्माष्टमी 2023 पूजा मुहूर्त
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

6 सितंबर 2023, दिन बुधवार को रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट के बीच जन्माष्टमी की पूजा की जाएगी। बता दें कि कान्हा का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में हुआ था।

06 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत दोपहर 02 बजकर 39 मिनट से हो रही है। अगले दिन 7 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 07 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। वहीं जन्माष्टमी व्रत का पारण 7 सितंबर को सुबह 06 बजकर 02 मिनट या शाम 04 बजकर 14 मिनट के बाद किया जा सकेगा।

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?
गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लिए जन्माष्टमी की तिथि
बता दें कि गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लोग अलग-अलग दिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं।

ऐसे में 6 सितंबर 2023 को गृहस्थ जीवन वाले लोग और 7 सितंबर 2023 को वैष्णव संप्रदाय के लोग कान्हा का जन्मोत्सव मना सकते हैं।जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि/ Krishna Janmashtmi 2023/कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?MantraKavach.com

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन, एक प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है जो भाई-बहन के पवित्र और अनूठे रिश्ते का समर्थन करता है। यह त्योहार श्रावण मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर ‘राखी’ बांधती हैं जो भाई की रक्षा की प्रतीक होती है।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन का महत्व

रक्षा बंधन का मतलब होता है ‘रक्षा की बंधन’। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र और अनूठे रिश्ते का प्रतीक होता है जो प्यार और समर्थन की भावना को दर्शाता है।

बहनें अपने भाइयों के लिए विशेष रूप से रखी तैयार करती हैं, जिन्हें भाई अपनी कलाई पर धारण करते हैं। इसके साथ ही, भाई बहन को उपहार देते हैं और उनके साथ प्यार और देखभाल की भावना जताते हैं।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन की रस्में और परंपरा

रक्षा बंधन की रस्में और परंपराएं भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह त्योहार बहनों के और भाइयों के बीच प्यार और समर्थन की भावना को प्रकट करता है और परिवार के महत्वपूर्ण सदस्यों के बीच मजबूत रिश्तों को मजबूती देता है।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

भाई-बहन का अद्भुत रिश्ता

रक्षा बंधन के माध्यम से दुनियाभर में भाई-बहन के अद्भुत रिश्ते का परिचय होता है। यह रिश्ता प्यार, देखभाल, और समर्थन पर आधारित होता है जो जीवन के हर मोड़ पर एक-दूसरे के साथ खुशियों और दुःखों को साझा करता है। भाई अपनी बहन की रक्षा करते हैं और बहन अपने भाई के लिए शुभकामनाएं और प्रेम भेजती हैं।

रक्षा बंधन का उत्सव

रक्षा बंधन का उत्सव भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और आनंदमय समय है। इस दिन पर परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर आनंद और खुशियों का आयोजन करते हैं।

बहनें अपने भाइयों के लिए स्वादिष्ट खाने की विशेष व्यंजन तैयार करती हैं और उन्हें उपहार देती हैं। इसके साथ ही, भाई-बहन मिलकर खेलते हैं, मनोरंजन करते हैं और खुशियों के पलों का आनंद लेते हैं। राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

आपके लिए विशेष

यह त्योहार भाई-बहन के प्यार और समर्थन की मिशाल है, जो समृद्धि और खुशियों की दिशा में बढ़ता है। रक्षा बंधन के इस महत्वपूर्ण पर्व को आप परिवार के साथ खास रूप से मना सकते हैं और अपने रिश्तों को मजबूती दे सकते हैं।

निष्कर्ष
रक्षा बंधन एक प्रेम और समर्थन का परिचय है जो भाई-बहन के बीच अद्वितीय और अनमोल रिश्ते को दर्शाता है। इस त्योहार के माध्यम से हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ बने रहते हैं और उनके साथ खुशियों के पलों का आनंद लेते हैं।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन का मंत्र: भगवान श्रीकृष्ण की आराधना

ॐ क्लीं श्रीकृष्णाय नमः।

इस मंत्र का जाप करके हम भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और समर्थन प्राप्त कर सकते हैं और रक्षा बंधन के त्योहार पर भगवान की आराधना करते समय इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं। यह मंत्र हमें अपने भाई-बहन के प्यार और समर्थन के रिश्ते की रक्षा करने में मदद कर सकता है।

रक्षा बंधन की पौराणिक, ऎतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक कथाएं

भारत त्यौहारों का देश है दिवाली, होली, दशहरा और रक्षा बंधन यहां प्रसिद्ध त्यौहार हैं. इन त्यौहारों में रक्षा बंधन विशेष रुप से प्रसिद्ध है. रक्षा-बंधन का पर्व भारत के कुछ स्थानों में रक्षासूत्र के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल से यह पर्व भाई-बहन के निश्चल स्नेह के प्रतीक के रुप में माना जाता है. हमारे यहां सभी पर्व किसी न किसी कथा, दंत कथा या किवदन्ती से जुडे हुए है. रक्षा बंधन का पर्व भी ऎसी ही कुछ कथाओं से संबन्धित है. रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, यह जानने का प्रयास करते है.

रक्षा बंधन के पौराणिक आधार
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुडा हुआ है. कथा कुछ इस प्रकार है. एक बार की बात है, कि दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे करने के बाद चाहा कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो, राजा बलि कि इस मनोइच्छा का भान देव इन्द्र को होने पर, देव इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा.

घबरा कर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उनसे प्राथना करते हैं जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें. ब्राह्माण बने श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी|राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया. अभी तीसरा पैर रखना शेष था. बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया. ऎसे मे राजा बलि अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होगा है.

आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए. वामन भगवान ने ठीक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि परलोक पहुंच गया.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें. इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया.,

श्री विष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा. इस समस्या के समाधान के लिये लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया. लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांध अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आई.

इस दिन का यह प्रसंग है, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी. उस दिन से ही रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाने लगा.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार

एक बार देव और दानवों में युद्ध शुरु हुआ, युद्ध में देवता पर दानव हावी होने लगें. यह देखकर पर इन्द्र देव घबरा कर बृ्हस्पति के पास गये. इसके विषय में जब इन्द्राणी को पता चला तो उन्होने ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर इसे अपने पति के हाथ पर बांध लिया.

जिस दिन यह कार्य किया गया उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था. उसी दिन से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन यहा धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन का ऎतिहासिक आधार
बात उस समय की है, जब राजपूतों और मुगलों की लडाई चल रही थी. उस समय चितौड के महाराजा की विधवा रानी कर्णवती ने अपने राज्य की रक्षा के लिये हुमायूं को राखी भेजी थी. हुमायूं ने भी उस राखी की लाज रखी और स्नेह दिखाते हुए, उसने तुरंत अपनी सेनाएं वापस बुला लिया.

इस ऎतिहासिक घटना ने भाई -बहन के प्यार को मजबूती प्रदान की. इस घटना की याद में भी रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

महाभारत में दौपदी का श्री कृ्ष्ण को राखी बांधना

राखी का यह पर्व पुराणों से होता हुआ, महाभारत अर्थात द्वापर युग में गया, और आज आधुनिक काल में भी इस पर्व का महत्व कम नहीं हुआ है. राखी से जुडा हुआ एक प्रसंग महाभारत में भी पाया जाता है.

प्रसग इस प्रकार है. शिशुपाल का वध करते समय कृ्ष्ण जी की तर्जनी अंगूली में चोट लग गई, जिसके फलस्वरुप अंगूली से लहू बहने लगा. लहू को रोकने के लिये द्रौपदी ने अपनी साडी की किनारी फाडकर, श्री कृ्ष्ण की अंगूली पर बांध दी.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

इसी ऋण को चुकाने के लिये श्री कृ्ष्ण ने चीर हरण के समय दौपदी की लाज बचाकर इस ऋण को चुकाया था. इस दिन की यह घटना है उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा थी.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन का धार्मिक आधार
भारत के कई क्षत्रों में इसे अलग – अलग नामों से अलग – अलग रुप में मनाया जाता है. जैसे उतरांचल में इसे श्रावणी नाम से मनाया जाता है भारत के ब्राह्माण वर्ग में इस इन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है.

इस दिन यज्ञोपवीत धारण करना शुभ माना जाता है. इस दिन ब्राह्माण वर्ग अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते है. अमरनाथ की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा भी रक्षा बंधन के दिन समाप्त होती है.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षा बंधन का सामाजिक आधार

भारत के राजस्थान राज्य में इस इद्न रामराखी और चूडा राखी बांधने की परम्परा है. राम राखी केवल भगवान को ही बांधी जाती है. व चूडा राखी केवल भाभियों की चूडियों में ही बांधी जाती है. यह रेशमी डोरे से राखी बनाई जाती है.

यहां राखी बांधने से पहले राखी को कच्चे दूध से अभिमंत्रित किया जाता है. और राखी बांधने के बाद भोजन किया जाता है.राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

राखी के अन्य रुप
भारत में स्थान बदलने के साथ ही पर्व को मनाने की परम्परा भी बदल जाती है, यही कारण है कि तमिलनाडू, केरल और उडीसा के दक्षिण में इसे अवनि अवितम के रुप में मनाया जाता है. इस पर्व का एक अन्य नाम भी है,

इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से पहले तक ठाकुर झुले में दर्शन देते है, परन्तु रक्षा बंधन के दिन से ये दर्शन समाप्त होते है.

सबसे पहले पति-पत्नी ने बांधी थी राखी

रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में नहीं था. इंद्र और इंद्राणी की पौराणिक कथा से इसका पता चलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान इंद्र राजा बलि से हार रहे थे,

तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया, जिसे उन्होंने इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इसके बाद युद्ध में इंद्र की विजय हुई. वह धागा किसी भी बुराई के खिलाफ उनकी सुरक्षा बन गया.

रक्षाबंधन कथाएं
श्रीकृष्ण और द्रौपदी
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था तब उनकी उंगली पर खून निकल आया था। द्रौपदी वहीं थीं और अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर उंगली में बांध दिया। उस दिन भी पूर्णिमा ही थी। श्रीकृष्ण ने इस राखी का उपकार चीरहरण के वक्त साड़ी बढ़ाकर चुकाया था। जैसे कि हर भाई अपनी बहन की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध होता है।

सिकंदर की पत्नी ने बांधी राखी

सिकंदर अब पुरुवास से लड़ाई करने जा रहा था। पुरुवास बहुत ताकतवर था। सिकंदर की पत्नी को उसकी चिंता हुई और उसने पुरुवार सो राखी भेज कर मुहंबोला भाई बना लिया। पुरुवास ने सिकंदर को नहीं मारने का वचन दिया और इसी का सम्मान करते हुए युद्ध के दौरान उसने सिकंदर की जान बख्श दी।

कर्णावती और हुमायूं

बहादुरशाह मेवाड़ पर हमला करने वाला था। मेवाड़ की रानी कर्णावती को इसकी खबर लग गई। रानी लड़ने में सक्षम नहीं थी इसलिये उसने हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा करने को कहा।

हुमायूं मुसलमान था पर राखी का कर्ज चुकाने के लिये उसने बहादुरशाह के खिलाफ लड़ाई की और मेवाड़ की रक्षा की।
महाभारत युद्ध के दौरान
युधिष्ठिर ने जब श्रीकृष्ण से पूछा कि सेना की रक्षा कैसे हो सकती है तो उन्होंने उसे राखी बांधने को कहा था।

श्रीकृष्ण ने कहा कि इस धागे में इतनी शक्ति है कि ये हर आपत्ति से छुटकारा पा सकते हैं।
राजा महाबलि और मां लक्ष्मी
जब वामन अवतार लेकर राजा महाबलि को विष्णु भगवान ने पाताल लोक भेज दिया तब महाबलि ने एक वर मांग था कि वो जब भी सुबह उठें तो उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन हों।

अब हर रोज विष्णु राजा बलि के सुबह उठने पर पाताल लोक जाते थे। ये देखकर माता लक्ष्मी व्याकुल हो उठीं। तब नारद मुनि ने सहाल दी कि अगर वो राजा बलि को भाई बना लें और उनसे विष्णु की मुक्ति का वचन ले लें तो सब सही हो सकता है।

इस पर मां लक्ष्मी एक सुंदर स्त्री का भेष धरकर रोते हुए बलि के पास पहुंची और कहा कि उनका कोई भाई नहीं है जिससे वे दुखी हैं। राजा बलि ने उनसे कहा कि वे दुखी न हों आज से वे उनके भाई हैं।

भाई बहन के पवित्र रिश्ते में बंधने के बाद मां लक्ष्मी ने बलि से उनके पहरेदार के रूप में सेवाएं दे रहे भगवान विष्णु को अपने लिए वापस मांग लिया और इस प्रकार नारायण संकट से मुक्त हुए।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षाबंधन कब है?

ज्योतिषों और पंचांग के अनुसार सावन महीने की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त 2023 को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से प्रारम्भ हो रही है और इसका समापन 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगा। 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि के साथ ही यानी सुबह 10 बजकर 58 मिनट से ही भद्रा काल की शुरूआत हो रही है जो रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगा।राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना गया हैं| इसलिए इस समय राखी नही बांधनी चाहियें| इस कारण इस बार 30 अगस्त को रात 09 बजकर 03 मिनट से 31 अगस्त 2023 को प्रात:काल 7 बजकर 05 मिनट तक राखी बाँधने का सबसे उपयुक्त समय हैं| इसलिए इस बार राखी का त्यौहार दो दिन 30 अगस्त व 31 अगस्त को मनाया जायेगा|

लेकिन आपकों भद्राकाल का ध्यान रखना होगा|पौराणिक मान्यतों के अनुसार राखी बाँधने का सबसे उपयुक्त समय दोपहर का होता हैं| लेकिन इस बार भद्राकाल के कारण 30 अगस्त को दिन में राखी बाँधने का मुहूर्त नही हैं|

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त का समय 30 अगस्त को रात में 9 बजकर 34 मिनट से 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगा|
उपयुक्त समय 30 अगस्त को रात 09 बजकर 03 मिनट से 31 अगस्त को सवेरे 7 बजकर 05 मिनट तक रहेगा|

भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

पौराणिक मान्यतों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में राखी बांध दी थी, जिस वजह से रावण के पूरे कुल का सर्वनाश हो गया। इसलिए ऐसा माना जाता है कि भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। ऐसा माना जाता हैं कि भद्राकाल में राखी बांधने से भाई की उम्र कम होती है।

राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षाबंधन पूजन विधि

राखी बांधने से पहले बहन और भाई दोनों को व्रत रखना चाहियें|
भाई को राखी बांधते समय पूजा की थाली में कुमकुम, राखी, रोली और मिठाई रखें|
सबसे पहले भाई को माथे पर तिलक लगाये|
फिर भाई के दाहिने हाथ में रक्षासूत्र बांधें|

राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारे|
आरती उतारने के बाद भाई का मुंह मीठा करवाएं| राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?

रक्षाबंधन पर इस मंत्र का करें जाप

राखी बांधते समय इस मंत्र का जाप करना चाहियें –

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि, रक्षे माचल माचल:।।
कौनसी राखी हैं सबसे उपयुक्त
राखी के लिए रेशम के धागे या सूती धागे का उपयोग करना सबसे सर्वोतम माना जाता हैं|

इसके बाद सोने व चांदी से बनी राखियों को अच्छा माना जाता हैं|

राशियों के अनुसार राखियों का रंग

मेष राशि – लाल रंग
वृष राशि – नीला रंग
मिथुन राशि – हरा रंग
सिंह राशि – सफेद रंग
कर्क राशि – सुनहरा या पीला रंग
कन्या राशि – हरा रंग
तुला राशि – सफेद या सुनहरा सफेद रंग
वॄश्चिक राशि – लाल रंग
धनु राशि – पीला रंग
मकर राशि – नीला रंग
कुम्भ राशि – नीला रंग
मीन राशि – सुनहरा, पीला या हल्दी रंग|
FAQ
Q.1. रक्षा बंधन की असली तारीख क्या है?
Ans – इस बार राखी का त्यौहार दो दिन 30 अगस्त व 31 अगस्त को मनाया जायेगा|

Q.2. रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त कब है?
Ans – अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त 30 अगस्त को रात में 9 बजकर 34 मिनट से 10 बजकर 58 मिनट तक होगा|

Q.3. भद्रा काल कौन है?
Ans – भद्राकाल को अपवित्र या अशुभ समय माना जाता है। इसलिए इस दौरान कोई भी कार्य करने से बचना ही अच्छा विचार है।
Q.4. रक्षा बंधन की खोज किसने की थी?

Ans – सत्रहवीं शताब्दी के मध्य के राजस्थानी वृत्तांत के अनुसार, राणा की मां रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी के रूप में एक कंगन भेजा, जिसने वीरतापूर्वक जवाब दिया और मदद की। राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त/Raksha Bandhan 2023/भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं? MantraKavach.com

अन्य जानकारी व सुझाव के लिए संपर्क करें-+ 91 9918486001

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com