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ज्योतिष समाधान
जीवन के हर एक पड़ाव पर ज्योतिष आपका सर्वश्रेष्ट मार्गदर्शक होता है, हमारे सभी श्रेष्ठ ज्योतिषाचार्य हैं आपके सभी समस्यायों के समाधान के लिए.
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पंडित
श्रवण आचार्य
आचार्य श्रवण शास्त्री एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य हैं, जो ज्योतिष विद्या में मास्टर डिग्री (M.A.) रखते हैं। ये कुंडली निर्माण और अनुष्ठान विशेषज्ञ के रूप में भी ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। आचार्य श्रवण शास्त्री का नाम ज्योतिष जगत में उच्च आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
इन्होने अनेक वर्षों तक ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन और अनुसंधान किया है और इस क्षेत्र में उनका गहन ज्ञान और अनुभव है। ये विभिन्न प्रकार के ज्योतिषीय समस्याओं जैसे जन्म कुंडली, विवाह, करियर, स्वास्थ्य, और अन्य व्यक्तिगत मुद्दों पर विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करते हैं।
आचार्य श्रवण शास्त्री की विधिवत और शास्त्रीय ज्ञान से परिपूर्ण ज्योतिषीय दृष्टिकोण उन्हें अनुष्ठान और धार्मिक कार्यों के लिए भी विशिष्ट बनाता है। ये विभिन्न अनुष्ठानों और धार्मिक विधियों में निपुण हैं, जिनका उद्देश्य जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता लाना होता है|
पंडित श्रवण आचार्य
इनका उद्देश्य लोगों को उनके जीवन में सही दिशा प्रदान करना और उनके समस्याओं का ज्योतिषीय समाधान करना है।
पंडित श्रवण आचार्य
M.A. ज्योतिषाचार्य
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धार्मिक साधना के श्रेष्ठ आचार्य गण
धार्मिक साधना के श्रेष्ठ आचार्य गण
आचार्य ॐ प्रकाश मिश्र
ज्योतिष एवं कथा प्रवक्ता
पंडित अजय मिश्र जी
ज्योतिषाचार्य
पंडित श्रवण आचार्य जी
M. A. ज्योतिषाचार्य
श्री सुशील मिश्रा USA
PhD Computer science/ज्योतिषाचार्य
मांगलिक दोष
मंगल बाकि ग्रहों की भांति कुण्डली के बारह भावों में से किसी एक भाव में स्थित होता है। बारह भावों में से कुछ भाव ऐसे हैं जहां मंगल की स्थिति को मंगलीक दोष के रूप में लिया जाता है। कुण्डली में जब लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में मंगल स्थित होता है तब कुण्डली में मंगल दोष माना जाता है।
कालसर्प दोष
कालसर्प पूजा की विधी भगवान शिव (त्र्यंबकेश्वर) की पूजा के साथ शुरू होती है और फिर गोदावरी नदी में पवित्र स्नान करते है जिससे, आत्मा और मन की शुद्धि का संकेत माना जाता है, उसके बाद, मुख्य पूजा शुरूवात होती है।
शनि की साढ़े साती
शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है, इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।
पितृ दोष
त्रिपिण्डी पूजा, जिसे त्रिपिंडी श्राद्ध भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा को शांति देने और पितृ दोष को दूर करने के लिए की जाती है। यह पूजा श्राद्ध पक्ष के अंतर्गत की जाती है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार चार मास (आषाढ़, भाद्रपद, आश्वयुज, और कार्तिक) में होता है।
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प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान ।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान ॥
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमेंसे कलि में एक (दानरूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकारसे भी दिये जाने पर दान कल्याण ही करता है ॥
जय गौ माता !!जय गोपाल !! जो जहॉं है वही से गौ सेवा करे !!
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