durga

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

durga

 

                                                                            श्री सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा

सप्तश्लोकी दुर्गा ( सप्तशती ) :- प्रतिदिन  माँ भगवती की आराधना दुर्गा सप्तसती के पाठ से की जाती है, परन्तु समयाभाव में आप भगवान् शिव द्वारा  रचित सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ भी कर सकते  है।
सप्तश्लोकी दुर्गा में माँ भगवती का सप्त  श्लोकों में स्तुति की गई है।

अथ  सप्तश्लोकी दुर्गा

शिव उवाच
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

शिव जी बोले :- हे देवि! तुम भक्तोंके लिये सुलभ (सरल, सहज) हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो। कलियुगमें कामनाओं की प्राप्ति के लिए यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा उचित तरीके से व्यक्त करो।देव्युवाच
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

देवी ने कहा :- हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुगमें समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो! उसका नाम है ‘ अम्बास्तुति ‘।

विनियोग :-
ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र​स्य नारायण ऋषिः,
अनुष्टुप छन्दः,श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः,
श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः।

विनियोग का अर्थ :- ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ में इसका विनियोग किया जाता है।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

अर्थ :- वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींच कर मोह में डाल देती हैं ॥ १ ॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता ॥2॥

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो ॥ २ ॥

सर्व मङ्गल मङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥3॥

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है ॥ ३ ॥

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥4॥

अर्थ :- शरणमें आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि ! तुम्हें नमस्कार है ॥ ४ ॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥5॥

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियों से सम्पन्न दिव्य रूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है ॥ ५ ॥

रोगा नशेषा नपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामा श्रितानां न विपन्न राणां
त्वामा श्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

अर्थ :- देवि ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरणमें जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरणमें गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ॥ ६ ॥

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥7॥

अर्थ :- सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो ॥ ७ ॥

विशेष  :- अगर आप इस स्तोत्र का एक से अधिक बार पाठ करते हो तो आपको इसका विनियोग सिर्फ एक ही बार करना है एक दिन में। किन्तु दूसरे दिन वैसे ही फिर कर पाठ का आरम्भ करे।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे
सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ से माँ दुर्गा सभी प्रकार के दुःख, दरिद्रता और भय रोगों व परेशानियों से रक्षा एवं नष्ट कर देती है। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा की आराधना करने से परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं। सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ नवरात्रो तथा प्रति दिन सोमवार को करने से इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

श्री दुर्गा एवं चालीसा

 सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

 

                                                                             श्री सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ ( 1 )
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥ ( 2 )

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ ( 3 )

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ ( 4 )

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ ( 5 )
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ ( 6 )

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ ( 7 )
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ ( 8 )

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ ( 9 )
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ ( 10 )

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ ( 11 )
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥ ( 12 )

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ ( 13 )
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ ( 14 )

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ ( 15 )
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ ( 16 )

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥ ( 17 )
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥ ( 18 )

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ ( 19 )
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥ ( 20 )

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥ ( 21 )
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ ( 22 )

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ ( 23 )
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥ (24 )

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥ (25 )
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥ (26 )

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ ( 27 )
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥ ( 28 )

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ ( 29 )
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥ ( 30 )

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ ( 31 )
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥ ( 32 )

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ ( 33 )
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ ( 34 )

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ ( 35 )
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥ ( 36 )

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ ( 37 )
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥ ( 38 )

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥ ( 39 )
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥ ( 40 )

देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

”प्रति दिन पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति सहित समस्त कामनाएं पूरी हो जाती है। “

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

॥ चौपाई॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

अर्थ – सुख प्रदान करने वाली मां दुर्गा को मेरा नमस्कार है। दुख हरने वाली मां श्री अम्बा को मेरा नमस्कार है।

निराकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

अर्थ – आपकी ज्योति का प्रकाश असीम है, जिसका तीनों लोको (पृथ्वी, आकाश, पाताल) में प्रकाश फैल रहा है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥

अर्थ – आपका मस्तक चन्द्रमा के समान और मुख अति विशाल है। नेत्र रक्तिम एवं भृकुटियां विकराल रूप वाली हैं।

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

अर्थ – मां दुर्गा का यह रूप अत्यधिक सुहावना है। इसका दर्शन करने से भक्तजनों को परम सुख मिलता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अर्थ – संसार के सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। जगत के पालन हेतु अन्न और धन प्रदान किया है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

अर्थ – अन्नपूर्णा का रूप धारण कर आप ही जगत पालन करती हैं और आदि सुन्दरी बाला के रूप में भी आप ही हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

अर्थ – प्रलयकाल में आप ही विश्व का नाश करती हैं। भगवान शंकर की प्रिया गौरी-पार्वती भी आप ही हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

अर्थ – शिव व सभी योगी आपका गुणगान करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवता नित्य आपका ध्यान करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

अर्थ – आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि प्रदान की और उनका उद्धार किया।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा।

प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥

अर्थ – हे अम्बे माता! आप ही ने श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को चीरकर प्रकट हुई थीं।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो।

हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥

अर्थ – आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योकिं वह आपके हाथों मारा गया।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

अर्थ – लक्ष्मीजी का रूप धारण कर आप ही क्षीरसागर में श्री नारायण के साथ शेषशय्या पर विराजमान हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

अर्थ – क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान हे दयासिन्धु देवी! आप मेरे मन की आशाओं को पूर्ण करें।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

अर्थ – हिंगलाज की देवी भवानी के रूप में आप ही प्रसिद्ध हैं। आपकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

मातंगी धूमावति माता।

भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥

अर्थ – मातंगी देवी और धूमावाती भी आप ही हैं भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख की दाता आप ही हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि।

छिन्न भाल भव दुख निवारिणि॥

अर्थ – श्री भैरवी और तारादेवी के रूप में आप जगत उद्धारक हैं। छिन्नमस्ता के रूप में आप भवसागर के कष्ट दूर करती हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

अर्थ – वाहन के रूप में सिंह पर सवार हे भवानी! लांगुर (हनुमान जी) जैसे वीर आपकी अगवानी करते हैं।

कर में खप्पर खड्ग विराजे।

जाको देख काल डर भाजे॥

अर्थ – आपके हाथों में जब कालरूपी खप्पर व खड्ग होता है तो उसे देखकर काल भी भयग्रस्त हो जाता है।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

अर्थ – हाथों में महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल उठाए हुए आपके रूप को देख शत्रु के हृदय में शूल उठने लगते है।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहूं लोक में डंका बाजत॥

अर्थ – नगरकोट वाली देवी के रूप में आप ही विराजमान हैं। तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

अर्थ – हे मां! आपने शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया व रक्तबीज (शुम्भ-निशुम्भ की सेना का एक राक्षस जिसे यह वरदान प्राप्त था की उसके

रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से सैंकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) तथा शंख राक्षस का भी वध किया।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

अर्थ – अति अभिमानी दैत्यराज महिषासुर के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी।

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

अर्थ – तब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी का सेना सहित सर्वनाश कर दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अर्थ – हे माता! संतजनों पर जब-जब विपदाएं आईं तब-तब आपने अपने भक्तों की सहायता की है।

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तव महिमा सब रहें अशोका॥

अर्थ – हे माता! जब तक ये अमरपुरी और सब लोक विधमान हैं तब आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥

अर्थ – हे मां! श्री ज्वालाजी में भी आप ही की ज्योति जल रही है। नर-नारी सदा आपकी पुजा करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे।

दुख दारिद्र निकट नहिं आवे॥

अर्थ – प्रेम, श्रद्धा व भक्ति सेजों व्यक्ति आपका गुणगान करता है, दुख व दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आते।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥

अर्थ – जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से निश्चित ही मुक्त हो जाता है।

जोगी सुर मुनि क़हत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

अर्थ – योगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं की आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है।

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

अर्थ – शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

अर्थ – उन्होने नित्य ही शंकर भगवान का ध्यान किया, लेकिन आपका स्मरण कभी नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछतायो॥

अर्थ – आपकी शक्ति का मर्म (भेद) वे नहीं जान पाए। जब उनकी शक्ति छिन गई, तब वे मन-ही-मन पछताने लगे।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

अर्थ – आपकी शरण आकार उनहोंने आपकी कीर्ति का गुणगान करके जय जय जय जगदम्बा भवानी का उच्चारण किया।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

अर्थ – हे आदि जगदम्बा जी! तब आपने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटाने में विलम्ब नहीं किया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुख मेरो॥

अर्थ – हे माता! मुझे चारों ओर से अनेक कष्टों ने घेर रखा है। आपके अतिरिक्त इन दुखों को कौन हर सकेगा?

आशा तृष्णा निपट सतावें।

मोह मदादिक सब विनशावें॥

अर्थ – हे माता! आशा और तृष्णा मुझे निरन्तर सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या भी दुखी करते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

अर्थ – हे भवानी! मैं एकचित होकर आपका स्मरण करता हूँ। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए।

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥

अर्थ – हे दया बरसाने वाली अम्बे मां! मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिए और ऋद्धि-सिद्धि आदि प्रदान कर मुझे निहाल कीजिए।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥

अर्थ – हे माता! जब तक मैं जीवित रहूँ सदा आपकी दया दृष्टि बनी रहे और आपकी यशगाथा (महिमा वर्णन) मैं सबको सुनाता रहूँ।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

अर्थ – जो भी भक्त प्रेम व श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, सब सुखों को भोगता हुआ परमपद को प्राप्त होगा।

देविदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

अर्थ – हे जगदमबा! हे भवानी! ‘देविदास’ को अपनी शरण में जानकर उस पर कृपा कीजिए।

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

दुर्गा चालीसा पाठ के फायदे

 सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे

 

                                                                            श्री सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा

दुर्गा चालीसाके नियमित पाठ से भक्तों के कई दुख दूर होते हैं।
इसका पाठ करने से जीवन में आ रही परेशानियों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति के जीवन में भी आनंद बना रहता है।
दुर्गा चालीसा के जाप से हम मॉं दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं।
इस चालीसा के जाप से हम कामना करते हैं कि मॉं दुर्गा हमारा कल्याण करेंगी और हमारे सभी दुखों और दरिद्रता को दूर करेंगी।
मॉं दुर्गा की स्तुति करते हुए हम उनके गुणों का भी इस चालीसा के जरिये गुणगान करते हैं।
मॉं दुर्गा को इस कलयुग में पापों का नाश करने वाली शक्ति के रुप में देखा जाता है।
दुर्गा चालीसा के पाठ से भक्तों को सतगुणो की प्राप्ति भी होती है
Q.1 दुर्गा चालीसा क्या है?
दुर्गा चालीसा एक हिंदू भक्ति स्तोत्र है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। इसमें चालीस छंद शामिल हैं जो देवी के विभिन्न पहलुओं और उनकी दिव्य शक्तियों की प्रशंसा करते हैं और माँ दुर्गा आशीर्वाद प्राप्त करने के सरल उपाय है।

Q.2 दुर्गा चालीसा के जाप का क्या महत्व है?
माना जाता है कि दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्तों को शांति, समृद्धि और सुरक्षा मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि यह किसी के जीवन में नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को दूर करता है और सकारात्मक बदलाव लाता है।

Q.3 क्या कोई दुर्गा चालीसा का जाप कर सकता है?
हां, कोई भी अपनी जाति, पंथ या धर्म की परवाह किए बिना दुर्गा चालीसा का जाप कर सकता है। यह एक भक्ति स्तोत्र है जिसे कोई भी पढ़ सकता है जो देवी दुर्गा का आशीर्वाद चाहता है।

Q.4 दुर्गा चालीसा का पाठ कब किया जाता है?
दुर्गा चालीसा का जाप अक्सर नवरात्रि के दौरान किया जाता है, एक हिंदू त्योहार जो बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है। इसका जाप अन्य शुभ अवसरों जैसे शादियों, गृहप्रवेश समारोहों और अन्य धार्मिक आयोजनों पर भी किया जा सकता है।

Q.5 मैं दुर्गा चालीसा का जाप कैसे करूँ?
भक्ति और ईमानदारी के साथ चालीस श्लोकों का पाठ करके दुर्गा चालीसा का जाप कर सकते हैं। यह आमतौर पर सुबह या शाम को स्नान करने और दीया (दीपक) जलाने के बाद जप किया जाता है।

Q.6 दुर्गा चालीसा का जाप करने के क्या फायदे हैं?
माना जाता है कि दुर्गा चालीसा का पाठ  करने से नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा, इच्छाओं की पूर्ति, बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उत्थान जैसे कई लाभ मिलते हैं। यह भी कहा जाता है कि यह जीवन में बाधाओं और चुनौतियों पर काबू पाने में मदद करता है।

Q.7 क्या दुर्गा चालीसा का जाप करते हुए देवी दुर्गा की पूजा करने का कोई विशेष तरीका है?
दुर्गा चालीसा का पाठ  करते समय, देवी को फूल, धूप और प्रसाद (प्रसाद) चढ़ा सकते हैं। भजन का जाप करते समय देवी का ध्यान करने और उनके दिव्य रूप की कल्पना करके माँ से समृद्धि और सुख का आशीर्वाद माँगा जाता है।

 

उम्मीद है यह आर्टिकल आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगा,ऐसे ही तमाम जानकारी पाने के लिए सबस्क्राइब करें MantraKavach.com को एवं ऐसे ही तमाम पोस्ट आपको हमारे वेबसाइट MantraKavach.com पर समय समय पर मिलती रहेगी |

धन्यवाद

पं. श्रवण उपाध्याय (साहित्याचार्य)

सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ एवं चालीसा(अर्थ सहित) /Sampoorna Saptshloki Durga Path/सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदेMantraKavach.com

कालसर्प दोष कितने समय तक रहता है?Kaal sarp dosh/ कालसर्प दोष को हमेशा के लिए दूर कैसे करें? MantraKavach.com

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

maa-kali-min

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है

 

 माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है
माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी                                                                  मंदिर कहा है?

 

                                                                              पहाड़ियों पर स्थित माँ  कामाख्या

कामाख्या मंदिर कुलाचार तंत्र मार्ग का केंद्र और अंबुबाची मेला का स्थल है, जो एक वार्षिक त्योहार है जो देवी के मासिक धर्म का उत्सव  मनाता है। संरचनात्मक रूप से, मंदिर 8वीं-9वीं शताब्दी का है और इसके बाद कई पुनर्निर्माण हुए, और अंतिम मिश्रित वास्तुकला नीलाचल नामक एक स्थानीय शैली को परिभाषित करती है। यह शाक्त परंपरा के 51 पीठों में से सबसे पुराने 4 पीठों में से एक है।

अधिकांश इतिहास के लिए एक स्पष्ट पूजा स्थल, यह 19वीं शताब्दी में औपनिवेशिक शासन के दौरान, विशेष रूप से बंगाल के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया।

मूल रूप से एक स्थानीय देवी की पूजा का एक स्वायत्त स्थान जहां प्राकृतिक पत्थर में स्थापित एनिकोनिक भग की प्राथमिक पूजा आज भी जारी है, मंदिर की पहचान राज्य शक्ति के साथ तब हुई जब कामरूप के म्लेच्छ राजवंश ने इसे पहले संरक्षण दिया, उसके बाद पलास, कोच और अहोम। पाल शासन के दौरान लिखे गए कालिका पुराण में कामरूप राजाओं के वैध पूर्वज नरका को क्षेत्र और कामरूप साम्राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली देवी कामाख्या से जोड़ा गया है। 

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है

पूजा तीन चरणों में आगे बढ़ी

म्लेच्छों के अधीन योनि, पालों के अधीन योगिनी और कोचों के अधीन महाविद्याएँ।
मुख्य मंदिर शक्तिवाद की दस महाविद्याओं, अर्थात् काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी,
भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका को समर्पित व्यक्तिगत मंदिरों के एक परिसर से घिरा हुआ है।
इनमें से त्रिपुरसुंदरी, मातंगी और कमला मुख्य मंदिर के अंदर निवास करती हैं जबकि अन्य सात अलग-अलग मंदिरों में निवास करती हैं। एक समूह के रूप में अलग-अलग महाविद्याओं के लिए मंदिर, जैसा कि परिसर में पाया जाता है, दुर्लभ और असामान्य है।

जुलाई 2015 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर का प्रशासन कामाख्या डिबटर बोर्ड से बोर्डेउरी समाज को स्थानांतरित कर दिया।

वर्तमान संरचनात्मक मंदिर और आसपास बिखरी चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तिकला से पता चलता है कि मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार 8वीं-से 14वीं शताब्दी और उसके बाद भी कई बार किया गया है। 16वीं शताब्दी के वर्तमान स्वरूप ने एक मिश्रित स्वदेशी शैली को जन्म दिया है जिसे कभी-कभी नीलाचल प्रकार भी कहा जाता है: मंदिर में चार कक्ष हैं: गर्भगृह और तीन मंडप जिन्हें स्थानीय रूप से कलंता, पंचरत्न और नटमंदिर कहा जाता है।

शिखर और गर्भगृह
गर्भगृह के ऊपर के शिखर में पंचरथ योजना है, जो तेजपुर के सूर्य मंदिर के समान मोल्डिंग पर टिकी हुई है। चबूतरे के शीर्ष पर बाद के काल के डैडो हैं जो खजुराहो या मध्य भारतीय प्रकार के हैं, जिसमें पायलटों के साथ बारी-बारी से धँसे हुए पैनल शामिल हैं। पैनलों में गणेश और अन्य हिंदू देवी-देवताओं की मनमोहक मूर्तियां हैं। यद्यपि निचला भाग पत्थर का है, बहुभुज मधुमक्खी के छत्ते जैसे गुंबद के आकार का शिखर ईंट से बना है, जो कामरूप के मंदिरों की विशेषता है। शिखर बंगाल प्रकार के चारचला के कई मीनार प्रेरित अंगशिकारों से घिरा हुआ है। शिखर, अंगशिखर और अन्य कक्ष 16वीं शताब्दी और उसके बाद बनाए गए थे।

शिखर के भीतर का आंतरिक गर्भगृह, जमीनी स्तर से नीचे है और इसमें कोई छवि नहीं है, बल्कि योनि (भग ) के आकार में एक चट्टान की दरार है:

गर्भगृह छोटा, अंधेरा है और सकरी  खड़ी पत्थर की सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है। गुफा के अंदर पत्थर की एक चादर है जो दोनों तरफ से नीचे की ओर झुकती हुई लगभग 10 इंच गहरी योनि जैसी खाई में मिलती है। यह खोखला भूमिगत बारहमासी झरने के पानी से लगातार भरा रहता है। यह भग के आकार का गड्ढा है जिसकी पूजा स्वयं देवी कामाख्या के रूप में की जाती है और इसे देवी का सबसे महत्वपूर्ण पीठ (निवास) माना जाता है।

कैलंता, पंचरत्न, और नटमंदिर

 माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है
माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी                                                               मंदिर कहा है?

 

                                                                                पहाड़ियों पर स्थित माँ  कामाख्या

मंदिर में तीन अतिरिक्त कक्ष हैं। पश्चिम में पहला कैलांटा है, जो अचला प्रकार का एक वर्गाकार कक्ष है (विष्णुपुर के 1659 राधा-विनोद मंदिर के समान । मंदिर का प्रवेश द्वार आम तौर पर इसके उत्तरी दरवाजे से होता है, जो कि अहोम प्रकार का दोचाला है। इसमें देवी की एक छोटी चल मूर्ति है, जो बाद में जोड़ी गई है, जो नाम की व्याख्या करती है। इस कक्ष की दीवारों पर नर नारायण, संबंधित शिलालेख और अन्य देवताओं की गढ़ी हुई छवियां हैं। यह नीचे उतरती सीढ़ियों से होते हुए गर्भगृह में प्रवेश करती है।

कलंता के पश्चिम में पंचरत्न बड़ा और आयताकार है, जिसमें एक सपाट छत और मुख्य शिखर के समान शैली के पांच छोटे शिखर हैं। मध्य शिखर विशिष्ट पंचरत्न शैली में अन्य चार से थोड़ा बड़ा है।

नटमंदिर रंगहार प्रकार की अहोम शैली की एक गोलाकार सिरे और उभरी हुई छत के साथ पंचरत्न के पश्चिम तक फैला हुआ है। इसकी अंदर की दीवारों पर राजेश्वर सिंहा (1759) और गौरीनाथ सिंहा (1782) के शिलालेख हैं, जो इस संरचना के निर्माण की अवधि का संकेत देते हैं।[27] बाहरी दीवार पर पहले के काल की पत्थर की मूर्तियां उच्च उभार में अंकित हैं।

इतिहासकारों ने सुझाव दिया है कि कामाख्या मंदिर संभवतः खासी और गारो लोगों के लिए एक प्राचीन बलिदान स्थल था और यह नाम खासी देवी, का मीखा (शाब्दिक रूप से: बूढ़ी-चचेरी-माँ) से उत्पन्न हुआ है; और ये दावे इसके द्वारा समर्थित हैं इन्हीं लोगों की लोककथाएँ। कालिका पुराण (10वीं शताब्दी) और योगिनी तंत्र के पारंपरिक वृत्तांतों में भी दर्ज है कि देवी कामाख्या किरात मूल की हैं, और कामाख्या की पूजा कामरूप (चौथी शताब्दी सीई) की स्थापना से पहले की है।माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है?

प्राचीन||  
पहाड़ियों पर स्थित माँ  कामाख्या https://dharmiksadhna.com/
कामरूप के सबसे पुराने ऐतिहासिक राजवंश, वर्मन (350-650), साथ ही 7वीं शताब्दी के चीनी यात्री जुआनज़ैंग ने कामाख्या का उल्लेख नहीं किया है; और यह माना जाता है कि कम से कम उस अवधि तक पूजा ब्राह्मणवादी दायरे से परे किरात-आधारित थी। हेवज्र तंत्र, संभवतः 8वीं शताब्दी के सबसे पुराने बौद्ध तंत्रों में से एक, कामरूप को एक पीठ के रूप में संदर्भित करता है, जबकि देवी कामाख्या का पहला अभिलेखीय नोटिस 9वीं शताब्दी के वनमालावर्मादेव की तेजपुर प्लेटों में पाया जाता है। म्लेच्छ वंश. कला इतिहासकारों का सुझाव है कि पुरातात्विक अवशेष और मंदिर का निचला हिस्सा एक पुरानी संरचना का संकेत देता है जो 5वीं से 7वीं शताब्दी तक पुरानी हो सकती है। म्लेच्छ राजवंश ने कामाख्या को जो महत्व दिया उससे पता चलता है कि उन्होंने या तो इसका निर्माण किया या इसका पुनर्निर्माण किया। चबूतरे और बंधन की ढलाई से, मूल मंदिर स्पष्ट रूप से नागर प्रकार का था जो संभवतः मालव शैली का था।

कामरूप राजाओं के बाद के पाल, इंद्र पाल से लेकर धर्म पाल तक, तांत्रिक सिद्धांत के अनुयायी थे

और उस अवधि के दौरान कामाख्या तांत्रिक धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। कालिका पुराण (10वीं शताब्दी) की रचना की गई और कामाख्या जल्द ही तांत्रिक बलिदान, रहस्यवाद और जादू-टोना का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया। रहस्यवादी बौद्ध धर्म, जिसे वज्रयान के नाम से जाना जाता है और लोकप्रिय रूप से “सहजिया पंथ” कहा जाता है, 10वीं शताब्दी में कामरूप में भी प्रमुखता से उभरा। तिब्बती अभिलेखों से यह पता चलता है कि 10वीं और 11वीं शताब्दी के तिब्बत के कुछ प्रतिष्ठित बौद्ध प्रोफेसर कामरूप से थे। [उद्धरण वांछित]

मध्यकालीन
ऐसी परंपरा है कि मंदिर को सुलेमान कर्रानी (1566-1572) के सेनापति कालापहाड़ ने नष्ट कर दिया था। चूंकि पुनर्निर्माण की तारीख (1565) विनाश की संभावित तारीख से पहले की है, और चूंकि कालापहाड़ के पूर्व की ओर इतनी दूर जाने की जानकारी नहीं है, इसलिए अब यह माना जाता है कि मंदिर को कालापहाड़ ने नहीं बल्कि हुसैन शाह के कामता पर आक्रमण के दौरान नष्ट किया था। साम्राज्य (1498).

कहा जाता है कि मंदिर के खंडहरों की खोज कोच राजवंश के संस्थापक विश्वसिंह (1515-1540) ने की थी, जिन्होंने इस स्थल पर पूजा को पुनर्जीवित किया था; लेकिन उनके बेटे, नारा नारायण (1540-1587) के शासनकाल के दौरान, मंदिर का पुनर्निर्माण 1565 में पूरा हुआ। ऐतिहासिक अभिलेखों और पुरालेख साक्ष्यों के अनुसार, मुख्य मंदिर चिलाराई की देखरेख में बनाया गया था। पुनर्निर्माण में मूल मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया जो इधर-उधर बिखरी पड़ी थी, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं। पत्थर के शिखर मेघमुकदम को पुनर्स्थापित करने के दो असफल प्रयासों के बाद, एक कोच कारीगर ने ईंट चिनाई का सहारा लेने का फैसला किया और वर्तमान गुंबद का निर्माण किया। बंगाल की इस्लामी वास्तुकला से अधिक परिचित कारीगरों और वास्तुकारों द्वारा बनाया गया, गुंबद बल्बनुमा और अर्धगोलाकार हो गया जो मीनार से प्रेरित अंगशिखरों से घिरा हुआ था। मेघमुक्दम का नवप्रवर्तन-रथ आधार पर एक अर्धगोलाकार शिखर-अपनी खुद की शैली बन गया, जिसे नीलाचल-प्रकार कहा जाता है, और अहोमों के बीच लोकप्रिय हो गया।

बनर्जी (1925) ने दर्ज किया है कि कोच संरचना का निर्माण अहोम साम्राज्य के शासकों द्वारा किया गया था। पुराने कोच मंदिर के अवशेषों को सावधानीपूर्वक संरक्षित किया गया है। 1658 के अंत तक, राजा जयध्वज सिंह के नेतृत्व में अहोमों ने कामरूप पर विजय प्राप्त कर ली थी और इटाखुली की लड़ाई (1681) के बाद अहोमों का मंदिर पर निर्बाध नियंत्रण था। राजा, जो शैव या शाक्त के समर्थक थे, मंदिर के पुनर्निर्माण और मरम्मत में सहयोग देते रहे।

अहोम-काल के दौरान राजेश्वर सिंहा, द्वारा निर्मित नटमंदिर, की दीवारों में उच्च उभार वाली कामरूप-काल की पत्थर की मूर्तियां लगी हुई हैं।
रुद्र सिंहा (1696-1714) ने शाक्त संप्रदाय के प्रसिद्ध महंत कृष्णराम भट्टाचार्य को आमंत्रित किया, जो नादिया जिले के शांतिपुर के पास मालीपोटा में रहते थे, और उन्हें कामाख्या मंदिर की देखभाल का वादा किया; लेकिन राजा बनने पर उनके उत्तराधिकारी और पुत्र सिबा सिंघा (1714-1744) ने वादा पूरा किया। महंत और उनके उत्तराधिकारियों को परबतिया गोसाईं के नाम से जाना जाने लगा, क्योंकि वे नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर रहते थे। असम के कई कामाख्या पुजारी और आधुनिक शाक्त या तो परबतिया गोसाईं, या नाटी और ना गोसाईं के शिष्य या वंशज हैं।

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है?

पूजा

कालिका पुराण, जो कि संस्कृत का एक प्राचीन ग्रंथ है, कामाख्या को सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली, शिवप्रिया और मोक्ष दाता के रूप में वर्णित करता है। शक्ति को कामाख्या के नाम से जाना जाता है। देवी मां कामाख्या के इस प्राचीन मंदिर के परिसर में तंत्र पूजा का मूल आधार है।

असम में सभी महिला देवताओं की पूजा असम में आर्य और गैर-आर्यन तत्वों के “विश्वासों और प्रथाओं के संलयन” का प्रतीक है। देवी से जुड़े विभिन्न नाम स्थानीय आर्य और गैर-आर्यन देवी-देवताओं के नाम हैं। योगिनी तंत्र में उल्लेख है कि योगिनी पीठ का धर्म किरात मूल का है। बनिकांता काकती के अनुसार, नारायण द्वारा स्थापित पुजारियों के बीच एक परंपरा मौजूद थी कि गारो, एक मातृवंशीय लोग, सूअरों की बलि देकर सबसे पहले कामाख्या स्थल पर पूजन करते थे। बलि की परंपरा आज भी जारी है और भक्त हर सुबह देवी को बलि चढ़ाने के लिए जानवरों और पक्षियों के साथ आते हैं।

देवी की पूजा वामाचार (“बाएं हाथ का मार्ग”) और दक्षिणाचार (“दाहिने हाथ का मार्ग”) दोनों तरीकों से की जाती है। देवी को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में सबसे ज्यादा फूल होते हैं, लेकिन इसमें जानवरों की बलि भी शामिल हो सकती है। सामान्य तौर पर मादा जानवरों को बलि से छूट दी जाती है, सामूहिक बलि के दौरान इस नियम में ढील दी जाती है।

दंतकथाएं

पहाड़ियों पर स्थित माँ  कामाख्या

 माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है
माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी                                                                 मंदिर कहा है?

 

                                                                              पहाड़ियों पर स्थित माँ  कामाख्या

कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर उस स्थान को दर्शाता है जहां सती शिव के साथ अपने प्रेम को संतुष्ट करने के लिए गुप्त रूप से संन्यास लेती थीं, और यह वह स्थान भी था जहां शिव तांडव (विनाश का नृत्य) के बाद उनकी योनि (जननांग, गर्भ) गिरी थी। सती की लाश.

इसमें कामाख्या को चार प्राथमिक शक्तिपीठों में से एक के रूप में उल्लेख किया गया है: अन्य पुरी, ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर विमला मंदिर हैं; तारा तारिणी) स्थान खंड (स्तन), ब्रह्मपुर, ओडिशा के पास, और पश्चिम बंगाल राज्य में कालीघाट, कोलकाता में दक्षिनेस्वर कालिका,बलरामपुर में पाटनदेवी,

माता सती के शव के अंगों से उत्पन्न हुई थीं। जिसमें सती के शरीर से जुड़े 108 स्थानों की सूची है, हालांकि पूरक सूची में कामाख्या का उल्लेख मिलता है।

देवी के एक पौराणिक श्राप के कारण, कोच बिहार शाही परिवार के सदस्य मंदिर नहीं जाते हैं और जब भी वहां से गुजरते हैं तो अपनी नजरें दूसरी तरफ कर लेते हैं।
समारोह

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है?

माँ कामाख्या मंदिर में स्थानीय लोगों द्वारा
सुंदर भजन कीर्तन किया जाता है,

तंत्र पूजा का केंद्र होने के कारण यह मंदिर अंबुबाची मेले के नाम से जाने जाने वाले वार्षिक
उत्सव में हजारों तंत्र भक्तों को आकर्षित करता है। एक अन्य वार्षिक उत्सव मनसा पूजा है।
शरद ऋतु में नवरात्रि के समय कामाख्या में प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा भी मनाई जाती है। यह पाँच दिवसीय उत्सव कई हज़ार आने वाले भक्तों को आकर्षित करता है।

उम्मीद है यह आर्टिकल आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगा,ऐसे ही तमाम जानकारी पाने के लिए सबस्क्राइब करें Mantra Kavach को एवं ऐसे ही तमाम पोस्ट आपको हमारे वेबसाइट  mantrakavach.com पर समय समय पर मिलती रहेगी |

धन्यवाद

पं. श्रवण उपाध्याय (साहित्याचार्य)

माँ कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य/Kamakhya Devi Mandir Ka Gupt Rahasya/कामाख्या देवी मंदिर कहा है?

घरेलु सामान की जानकारी व सुझाव के लिए विजिट करें – trustwelly.com

सरल पूजन विधि मंत्र प्रार्थना सहित Poojan vidhi mantra sahit  MantraKavach.com 

Shree-Durga-Beesa-Yantra-Final-min

दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra | Best & Powerful Durga Bisa Yantra

दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra
दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

दुर्गा बीसा यंत्र देवी दुर्गा का प्रतीक है। यह यंत्र बहुत शक्तिशाली है और जिसके पास यह होता है उस पर देवी दुर्गा की दिव्य कृपा बरसती है। जो लोग अपने घरों में इस यंत्र की स्थापना करते हैं उन्हें व्यावसायिक पहलुओं में सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। यह सभी अच्छे और सकारात्मक का प्रदाता है। जब कोई व्यक्ति इस यंत्र की पूजा करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और उसके सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति के पास यह यंत्र होता है उसे देवताओं के अलावा कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। इस यंत्र की पूजा करने के बाद लोग अपने शैक्षिक और करियर पथ में सौभाग्य का अनुभव करते हैं। यह गरीबी और धन संबंधी सभी समस्याओं को दूर करने में भी सहायक है। यह यंत्र सबसे प्रभावशाली और प्रसिद्ध यंत्रों में से एक है और इसकी पूजा करने से साधक को धन, पारिवारिक सुरक्षा, अच्छा स्वास्थ्य और सौभाग्य मिलता है।

दुर्गा बीसा यन्त्र के प्रकार (दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra)

दुर्गा बीसा यंत्र विभिन्न प्रकार और आकारों में खरीदा जा सकता है। तांबे की प्लेट पर सबसे आम है। यह तांबे की प्लेट पर भी उपलब्ध है जिस पर सोना चढ़ा हुआ है। एक अन्य प्रकार अष्टधातु की थाली पर उभरा हुआ होता है। अष्टधातु आठ धातुओं का मिश्रण है और बहुत कम पाया जाता है। यंत्र का निर्माण भोजपत्र पर भी किया जाता है। इस शक्तिशाली यंत्र को भोजपत्र पर उकेरना एक पारंपरिक तरीका है और इसे सर्वश्रेष्ठ में से एक माना जाता है। इस यंत्र को गले में पेंडेंट के रूप में भी पहना जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान यंत्र में निवास करते हैं और इसलिए यह किसी भी रूप में प्रभावी होता है, लेकिन केवल तभी जब इसे पूरी आस्था और ईमानदारी के साथ स्थापित किया जाए।

दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra
दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

दुर्गा सप्तशती के अध्याय 4 और श्लोक 17 के अनुसार दुर्गा बीसा यंत्र की पूजा करना प्रभावी माना जाता है क्योंकि यह दरिद्रता को दूर करने में मदद करता है। यदि साधक दुर्गा बीसा यंत्र की विभिन्न प्रकार के फूलों से पूजा करेगा और काले अगर से प्रज्वलित दीपक का धुंआ देगा तो उसे अधिकतम लाभ मिलेगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि पूजा करने वाले व्यक्ति को उच्च शक्ति पर पूरा विश्वास हो।

दुर्गा बीसा यंत्र को स्थापित करने से पहले व्यक्ति को अपने शरीर को शुद्ध करना होगा और अपने दिमाग को सभी नकारात्मकता से मुक्त करना होगा।
दूसरे, उसे दुर्गा बीसा यंत्र को फर्श पर ऐसे स्थान पर रखना होगा जो पूर्व की ओर हो और जहां वह बिना किसी परेशानी के पूजा कर सके।
पूजा करते समय धूप या दीपक जलाना जरूरी है।
साधक को ऊर्जावान यंत्र के सामने ताजे फूल और फल भी रखने चाहिए।
फिर उसे यंत्र को यंत्र से संबंधित भगवान की छवि के साथ उस स्थान पर रखना होगा।
फिर उसे किसी पेड़ के पत्ते से थोड़ा पानी अपने ऊपर और फिर यंत्र पर छिड़कना होगा।
तब समय आ जाता है कि समर्पण कर दिया जाए और अपना ध्यान पूरी तरह से देवता पर केंद्रित कर दिया जाए और भगवान से सभी इच्छाओं को पूरा करने और सभी परेशानियों को दूर करने के लिए प्रार्थना की जाए।

सिद्ध दुर्गा बीसा यंत्र की पूजा
दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

सिद्ध दुर्गा बीसा यंत्र की पूजा करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। देवी दुर्गा के आशीर्वाद से आप साहसी बनें और विजयी बनें। आप शत्रुओं पर विजय पाने और यदि कोई बुराई हो तो उससे छुटकारा पाने में सक्षम हैं। देवी आपको अपने कौशल और प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए एक बड़ा मंच पाने का आशीर्वाद देती हैं। जीवन में संघर्ष करने वाले को राहत मिलती है, आनंद मिलता है, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन मिलता है। आप सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हो जाते हैं और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। देवी दुर्गा आपको अच्छे सामान्य स्वास्थ्य का आशीर्वाद देती हैं और धन प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती हैं। आप आत्मविश्वास से काम करेंगे और सामाजिक दायरे में सम्मान हासिल करेंगे।

उम्मीद है यह आर्टिकल आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगा,ऐसे ही तमाम जानकारी पाने के लिए सबस्क्राइब करें Mantra Kavach को एवं ऐसे ही तमाम पोस्ट आपको हमारे वेबसाइट  mantra kavach पर समय समय पर मिलती रहेगी | दुर्गा बीसा यन्त्र Shri Durga Bisa Yantra

धन्यवाद

पं. श्रवण उपाध्याय (साहित्याचार्य)