शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि के नौ दिनों के नौ रूपों की पूजा
चैत्र नवरात्रि के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
प्रत्येक दिन एक विशेष रूप की पूजा की जाती है और उस दिन के रंग और विशेषताओं के अनुसार ध्यान और भक्ति केंद्रित की जाती है।

व्रतों का पालन और आहार

चैत्र नवरात्रि के दौरान लोग व्रत रखते हैं, जिसका मतलब होता है कि वे कुछ विशेष आहार का सेवन नहीं करते हैं।
आमतौर पर, व्रत में फल, सब्जियां, कटु और व्रत के उपयुक्त आहार शामिल होते हैं। व्रत में नॉन-वेज और अल्कोहल से बचा जाता है।

मां दुर्गा के द्वारा कई पुराने पौराणिक कथाओं में राक्षसों का वध किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
महिषासुर वध: महिषासुर नामक एक बड़े शक्तिशाली राक्षस ने स्वर्गीय देवताओं को बहुत परेशान किया था।

मां दुर्गा ने उनका वध करने के लिए दस दिनों तक लड़ाई लड़ी और उन्हें विजय प्राप्त की थी।
इस लड़ाई में मां दुर्गा ने उनके रूप में उसे मार डाला था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

शुम्ब निशुम्ब वध: शुम्ब और निशुम्ब नामक दो राक्षस भाई भी देवताओं के खिलाफ युद्ध करने आए थे।
मां दुर्गा ने उन्हें भी युद्ध करके मार डाला और देवताओं को उनकी शक्ति को विशेष रूप से प्रकट करके उन्हें जीत प्राप्त की थी।

राक्षस दैत्यक: एक दैत्यक नामक राक्षस ने बहुत बड़ी ताकत प्राप्त की थी और वह स्वर्गीय देवताओं को परेशान कर रहा था।
मां दुर्गा ने उसे भी वध करके देवताओं की रक्षा की थी।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

ये केवल कुछ कथाएं हैं जिनमें मां दुर्गा ने राक्षसों का वध किया। उनके विभिन्न रूपों में वे देवी दुर्गा ने असुरों और राक्षसों के प्रति धर्म की रक्षा की थी।

नवरात्रि महोत्सव के दौरान मां दुर्गा के द्वारा उनके असुरी शत्रुओं के वध की कई प्रमुख कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं। यह नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव में दिन-दिन विभिन्न रूपों में मां दुर्गा का पूजन किया जाता है, जिनमें उनके बदलते रूप और उनके शक्तियों का महत्व प्रतिस्थापित किया जाता है।

प्रथम दिन: नवरात्रि की शुरुआत माता शैलपुत्री के पूजन से होती है, जिन्हें पार्वती के रूप में जाना जाता है।

दूसरे दिन: द्वितीय दिन वंधे वरदा जी की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मचारिणी के रूप में भी जाना जाता है।

तीसरे दिन: तृतीय दिन चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है, जिनका रूप उनके परिणय के बाद का होता है।

चौथे दिन: चतुर्थ दिन कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है, जिनके रूप में मां दुर्गा ने दैत्यों को मारकर उनकी रक्षा की थी।

पांचवे दिन: पंचम दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जिन्हें स्कंद की मां भी कहा जाता है और उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) के साथ उनका दर्शन होता है।

छठे दिन: षष्ठी दिन कात्यायनी माता की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा की संजना थी और उन्होंने उनके द्वारा महिषासुर के वध का आयोजन किया था।

सातवे दिन: सप्तम दिन कालरात्रि माता की पूजा की जाती है, जिन्हें महिषासुर के खिलाफ लड़ते समय दिखाया गया था।

आठवे दिन: अष्टमी दिन महागौरी माता की पूजा की जाती है, जिन्होंने अपनी तपस्या से शिवजी को प्राप्त किया था।

नौवे दिन: नवमी दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है, जिन्हें सभी शक्तियों की दात्री भी कहा जाता है।

नवरात्रि महोत्सव के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करके उनकी महत्वपूर्ण कथाएं याद की जाती है और भक्तों को उनकी शक्तियों का आदर करने का अवसर मिलता है|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

और, नवरात्रि महोत्सव के दौरान भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाएँ भी आयोजित की जाती हैं, जैसे कि आरती, भजन, कथा-पाठ आदि।

इन दिनों में मां दुर्गा के भक्त उनके चरणों में अपनी भक्ति और प्रेम का अर्पण करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति का इंतजार करते हैं।

नवरात्रि के दिनों में भक्त उपवास, व्रत, और नियमों का पालन करते हैं, ताकि वे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकें। इसके अलावा, कई स्थानों पर नवरात्रि में दुर्गा पंडाल और रास-गरबा की आयोजना की जाती है, जिसमें लोग खुशियों के गाने और नृत्य से इस उत्सव का आनंद लेते हैं।

नवरात्रि का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत उच्च है, और यह उत्सव भक्तों के लिए मां दुर्गा के प्रति उनके समर्पण और आस्था का प्रतीक है।

और, नवरात्रि के दौरान भक्तों का यह उद्देश्य भी होता है कि वे अपने अंतरात्मा को शुद्धि और सात्विकता की ओर ले जाएं। इस अवसर पर व्रत, ध्यान और पूजा के माध्यम से भक्त अपने आंतरिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि के इन दिनों में महिलाएं भी विशेष रूप से मां दुर्गा की पूजा करती हैं और उनके दिव्य रूप का सम्मान करती हैं। इसके साथ ही, यह उनके समाज में महिलाओं के प्रति समर्पण और सम्मान की भावना को भी प्रकट करता है।

नवरात्रि के पावन दिनों में भक्तों का दिल आनंद, शांति और उत्कृष्टता से भर जाता है। यह एक ऐसा समय होता है जब वे अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास करते हैं और मां दुर्गा की कृपा से नए आरंभों की ओर बढ़ते हैं।

इस प्रकार, नवरात्रि महोत्सव मां दुर्गा की महत्वपूर्ण कथाओं, उनके विभिन्न रूपों की पूजा, ध्यान और भक्ति के साथ उनके आदर्शों का पालन करने का महत्वपूर्ण अवसर होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि में कलश पूजन एक महत्वपूर्ण पारंपरिक धार्मिक क्रिया है। इस पूजन में एक स्थानीय मिट्टी का कलश प्रतीत होता है, जिसे मां दुर्गा के आवागमन के रूप में स्थापित किया जाता है। नवरात्रि के प्रत्येक दिन में, इस कलश की पूजा की जाती है और उसका आदर किया जाता है।

कलश पूजन की विशेषता इसमें होती है कि कलश को अपने प्रत्येक दिन के पूजन के लिए तैयार किया जाता है। यह कलश प्रतिनिधित्व करता है मां दुर्गा के आवागमन के लिए और उसकी शक्तियों का प्रतीक माना जाता है।

कलश पूजन की प्रक्रिया निम्नलिखित होती है:

कलश की तैयारी: एक मिट्टी के कलश को पानी से भरा जाता है और उसमें सुपारी, नारियल, बत्ती, मोती या मिश्रित धान्य, आदि की रखवाली की जाती है। इसके बाद, कलश को पूजन के लिए तैयार किया जाता है।

कलश के अवशेषों की पूजा: नवरात्रि के प्रत्येक दिन, कलश के अवशेषों की पूजा की जाती है। इसमें देवी का आवागमन किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

आरती और प्रार्थना: कलश पूजन के बाद आरती और प्रार्थना की जाती है। भक्त इस समय मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

आवगमन की पूजा: नवरात्रि के आखिरी दिन, कलश का आवगमन किया जाता है। इसमें मां दुर्गा के आवागमन के दौरान विभिन्न पूजा पद्धतियों का पालन किया जाता है और उन्हें विदाई दी जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कलश पूजन एक धार्मिक आयोजन होता है जो मां दुर्गा की आदर्शों को प्रकट करने और उनके शक्तियों की पूजा करने का मौका प्रदान करता है। यह उत्सव भक्तों के लिए मां दुर्गा के प्रति उनकी श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक होता है।

और, नवरात्रि के इस पावन अवसर पर कई लोग कलश पूजन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और इसे आनंद से आयोजित करते हैं। यह पूजन संकल्प और श्रद्धाभावना का प्रतीक होता है जो मां दुर्गा के प्रति भक्त का दिल से संवाद दिखाता है।

कलश पूजन में कलश को मां दुर्गा के दिव्य रूप का प्रतीक माना जाता है, जिसका आवागमन घर में खुशियों और शुभाशीषों का प्रतीक होता है। यह कलश भरे जाते हैं विभिन्न प्रकार के धान्यों, पुष्पों और अर्थिक अवशेषों के साथ, जो देवी के प्रति समर्पण का प्रतीक होते हैं।

नवरात्रि के दौरान, कलश पूजन से न केवल मां दुर्गा की पूजा होती है, बल्कि यह एक समाज में सद्भावना, आदर्शों का पालन और उन्हें अपने जीवन में अमल करने का प्रेरणा स्रोत भी बनता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

इस उपलब्धि और विकास के साथ ही, कलश पूजन नवरात्रि के अवसर को और भी अधिक खास और पावन बनाता है। इसके माध्यम से भक्त अपने मानसिक और आत्मिक स्तर पर शुद्धि की दिशा में कदम बढ़ाते हैं और मां दुर्गा के आशीर्वाद से नए उत्कृष्टता की ओर प्रगति करते हैं।

नवरात्रि के पूजन में विशेष रूप से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। निम्नलिखित है एक सामान्य नवरात्रि पूजन विधि:

सामग्री:

देवी मूर्ति या छवि
दीपक और घी
फूल
रोली, चावल, कुमकुम
पानी कलश
आभूषण, सिन्दूर, सुहाग का सिन्दूर
नौवीं दिन के लिए भोग (फल, प्रसाद, चना, हलवा)
पूजन के लिए विशिष्ट आसन
पूजन विधि:

पूजा का आदिकाल में आयोजन करें।
पूजन स्थल को साफ-सफाई और सजावट के साथ तैयार करें।
देवी मूर्ति या छवि को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
आरती करें और दीपक जलाएं।

देवी के समक्ष फूल, चावल, रोली, कुमकुम, आभूषण, सिन्दूर आदि को अर्पित करें।
पानी कलश को पूजा स्थल पर रखें। इसमें फूल, पुष्प, दर्शनीय आभूषण आदि रखें।
देवी की पूजा के बाद भोग अर्पित करें।

नौवीं दिन को देवी का विदाई करें और उन्हें अपने घर से बिदाई दें।
यह रीति नौ दिनों तक जारी रखें, हर दिन एक नए रूप की पूजा करें।
यदि आप विशेष देवी के पूजन मंत्र और पूजन सामग्री की जानकारी चाहते हैं, तो आपको अपने स्थानीय पंडित या धार्मिक ग्रंथों से सहायता मिल सकती है।

हवन सामग्री वह सामग्री होती है जिसे आग्नि यज्ञ के दौरान अग्नि में डालकर अग्नि की पूजा की जाती है। यह यज्ञ धार्मिक आयोजनों में मुख्य भूमिका निभाता है और विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग करके किया जाता है। निम्नलिखित है एक सामान्य हवन सामग्री की सूची:

गोमूत्र (गौ मूत्र): गोमूत्र को हवन में डालने से वातावरण शुद्ध होता है और शांति की भावना बनी रहती है।

गोबर (गौ मल): गोबर का उपयोग धूप और समिधा बनाने में होता है जो हवन में उपयोग किए जाते हैं।

धूप: धूप के बारे में आपने सुना ही होगा।

धूप का उपयोग हवन करते समय यजमान की शुभकामनाओं को आग्नि के माध्यम से पहुंचाने के लिए किया जाता है।समिधा (यज्ञ की लकड़ी): समिधा का उपयोग आग्नि में डालकर यज्ञ की आग को जलाने के लिए किया जाता है।

गुग्गल (गोगल): गुग्गल का उपयोग आग को जलाने के लिए किया जाता है और इससे वातावरण में शुद्धि होती है।लौंग (क्लोव्स): लौंग का उपयोग यज्ञ में समग्र प्रकृति की प्रतिष्ठा के लिए किया जाता है।

इलायची (कार्डमम): इलायची का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।दालचीनी (सिनमन): दालचीनी का उपयोग यज्ञ में उच्च केंद्रित ऊर्जा को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

जावित्री (मेस्टिक): जावित्री का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।बतीसा (वेतिवर): बतीसा का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।फूल: फूलों का उपयोग यज्ञ के दौरान आरती करते समय किया जाता है।द्रव्य: धन्य, फल, नवींतम अन्न, घी, चीनी, दूध आदि को यज्ञ में अर्पित किया जाता है।

यह थी कुछ सामान्य हवन सामग्री की सूची, लेकिन यह आवश्यकतानुसार विभिन्न यज्ञों और पूजाओं के लिए विभिन्न तरह की सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

व्रत एक धार्मिक आयोजन होता है जिसमें व्यक्ति विशेष प्रकार के आहार और आचरण का पालन करता है और इसके माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति और शुद्धि की प्राप्ति करता है। व्रत करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन कर सकते हैं:

1. उद्देश्य स्पष्ट करें:

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पहले तो आपको व्रत करने का उद्देश्य स्पष्ट करना होगा। क्या कारण है जिसके लिए आप व्रत करना चाहते हैं? यह आपके मन में स्पष्ट होना चाहिए।

2. आहार की योजना बनाएं: आपको व्रत के दौरान क्या आहार खाने की पर्याप्त योजना बनानी होगी। यह आपके व्रत के प्रकार पर निर्भर करेगा, जैसे कि निराहार व्रत, फलाहार व्रत, शाकाहार व्रत, आदि।

3. व्रत अवधि निर्धारित करें: आपको व्रत करने की अवधि का निर्धारण करना होगा, जैसे कि एक दिन, नौ दिन, चौदह दिन, आदि।

4. संकल्प लें: व्रत के प्रारंभ में आपको आत्म-संकल्प करना होगा कि आप व्रत के दौरान अपने उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध रहेंगे और व्रत का पालन करेंगे।

5. आचरण का पालन करें: व्रत के दौरान आपको अपने आचरण का पालन करना होगा। इसमें आपको शुद्ध वस्त्र पहनना, स्नान करना, पूजा-अर्चना करना, आदि शामिल होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

6. आध्यात्मिक चिंतन: व्रत के दौरान आपको आध्यात्मिक चिंतन करना चाहिए। आप मंत्र जप, प्रार्थना, ध्यान आदि कर सकते हैं जिससे आपकी आध्यात्मिक उन्नति हो।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

7. व्रत का उद्धारण: व्रत की अवधि पूरी होने पर आपको व्रत का उद्धारण करना होगा। इसके बाद आप अपने आदरणीय देवता की पूजा कर सकते हैं और उनकी कृपा की प्राप्ति कर सकते हैं।

व्रत करते समय यह महत्वपूर्ण है कि आप श्रद्धा और आदर से व्रत का पालन करें और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने मन, वचन, और क्रियाएँ समर्पित करें।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आपको श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए। निम्नलिखित तरीकों से आप मां दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं:शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा करें: आप मां दुर्गा की मूर्ति या छवि को सजाकर पूजा कर सकते हैं। इसके दौरान उनके लिए पुष्प, धूप, दीप, आरती, व्रत कथा आदि का आयोजन करें।

मंत्र जप करें: मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करने से आप उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। “ॐ दुं दुर्गायै नमः” और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” ये मंत्र प्रसिद्ध हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

व्रत और उपासना:

मां दुर्गा के नवरात्रि के अवसर पर उनके व्रत और उपासना करने से उनकी प्रसन्नता मिल सकती है।

सेवा करें: मां दुर्गा की सेवा करने से आप उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं। आप मंदिरों में उनकी साफ-सफाई करने, प्रसाद बाँटने, या अन्य तरीकों से सेवा कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

ध्यान और आध्यात्मिकता: आप मां दुर्गा की ध्यान और आध्यात्मिकता में रत रहकर उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।

श्रद्धा और विश्वास: सबसे महत्वपूर्ण बात, आपकी श्रद्धा और विश्वास है। आपके मन में पूरी श्रद्धा के साथ मां दुर्गा के प्रति विश्वास होना चाहिए कि वह आपकी पूजा और प्रार्थनाओं का स्वागत करेंगी।

ध्यान दें कि मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आपकी नियति पवित्र और उचित होनी चाहिए, और आपका मार्गदर्शन और सहायता स्थानीय पंडित या धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ का महत्वपूर्ण स्थान होता है जो उनकी पूजा और आराधना का हिस्सा बनता है। नवरात्रि के इस अवसर पर आप मां दुर्गा के पाठ करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने आत्मा को शुद्धि की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।

नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जा सकता है:

दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम (दुर्गा के 108 नाम): इस मंत्र के जाप से आप मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की प्राप्ति कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं.

दुर्गा सप्तशती (दुर्गा की 700 श्लोकों की महिमा): नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के साथ ही आपके जीवन में शुभता और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है.शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

दुर्गा मानस पूजा: यदि आप दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते हैं, तो आप दुर्गा मानस पूजा कर सकते हैं जिसमें आप मां दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं मानसिक रूप से.

मां दुर्गा के मंत्र (जैसे कि “ॐ दुं दुर्गायै नमः”): ये सरल मंत्र भी मां दुर्गा की पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं और आपकी आराधना को सिद्ध कर सकते हैं।

नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ के द्वारा आप उनके शक्तिशाली आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में उत्कृष्टता, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि के दौरान जप मंत्र का जाप करना मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है। जप मंत्र के द्वारा आप मां दुर्गा की आराधना और उनकी शक्तियों का आदर कर सकते हैं। नवरात्रि के इस पवित्र अवसर पर निम्नलिखित मंत्रों का जाप कर सकते हैं:

“ॐ दुं दुर्गायै नमः”: यह मंत्र मां दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूप की प्रार्थना के लिए है।

“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”: यह मंत्र मां दुर्गा की शक्तियों की प्राप्ति के लिए है और विघ्नों को दूर करने में मदद करता है।

“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते।”: यह मंत्र मां दुर्गा की प्रार्थना और कृपा के लिए है।

“या देवी सर्वभूतेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”: इस मंत्र के जाप से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

“ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः”: यह मंत्र आपके जीवन में शुभता और समृद्धि की प्राप्ति के लिए है।

नवरात्रि के दौरान इन मंत्रों का जाप करते समय आपको ध्यान और श्रद्धा के साथ करना चाहिए ताकि आप मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकें।

और, नवरात्रि के इस अवसर पर कई जगहों पर कलश पूजन के अलावा भी विभिन्न आयोजन होते हैं जो मां दुर्गा की महिमा और शक्ति को प्रकट करते हैं। कुछ स्थानों पर देवी की छवि के पास कलश स्थापित किया जाता है, जिसे पूजन किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है।

नवरात्रि के इस अवसर पर कलश पूजन से न केवल दिव्यता और आदर्शों का पालन होता है, बल्कि यह समाज में एकता और सामर्थ्य की भावना को भी उत्तेजित करता है। लोग इस अवसर पर आपसी मेल-जोल और विभिन्न सामाजिक कार्यों में भाग लेते हैं, जिससे उनके आत्मा में उत्कृष्टता की भावना उत्पन्न होती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कलश पूजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मानवता के आदर्शों को भी प्रकट करता है। यह उपलब्धि के साथ ही समुदाय में सद्भावना, आदर्शों का पालन और शक्तिशाली समर्थन की भावना को भी प्रेरित करता है।

इस प्रकार, नवरात्रि के इस महान उत्सव में कलश पूजन एक महत्वपूर्ण आयोजन होता है जो भक्तों को मां दुर्गा के प्रति उनकी आदर्शों की सीख देता है और उन्हें उनके जीवन में नए ऊँचाइयों की ओर अग्रसर करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

दान और सेवा

नवरात्रि के दौरान लोग दान और सेवा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं।
वे धार्मिक स्थलों पर जाकर दान देते हैं, असहाय लोगों की सेवा करते हैं और धर्मिक कार्यों में भाग लेते हैं।

मां दुर्गा की आराधना और भक्ति

चैत्र नवरात्रि के दौरान, लोग मां दुर्गा की आराधना और भक्ति करते हैं।
उन्हें मां की शक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए उनके मन में पूजनीय भावनाएँ बनी रहती हैं।

चैत्र नवरात्रि के दौरान ये संबंधित व्रत और नियम लोगों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उन्हें मां दुर्गा की आराधना और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति में मदद करते हैं।

उपास्य देवी दुर्गा के आशीर्वाद से परिपूर्ण जीवन

नवरात्रि का आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह हमें अपने जीवन को सकारात्मकता, आत्म-निर्भरता और उत्तम दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

शारदीय नवरात्रि: खुशियों का महा त्योहार

नवरात्रि, भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और शारदीय नवरात्रि इसका एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधिता है। यह पर्व खुशियों, आशीर्वादों, और ध्यान का महा उत्सव है, जिसे भारत और दुनिया भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हम इस लेख में शारदीय नवरात्रि के महत्व, परंपराएँ, और उत्सव का महत्व विस्तार से जानेंगे।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

शारदीय नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि, जिसे शरद ऋतु में मनाया जाता है, हिन्दू पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा की आराधना के रूप में मनाई जाती है। इसके दौरान, देवी दुर्गा की पूजा और महिषासुर मर्दिनी की कथा का आयोजन किया जाता है। इसे नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिनमें भगवान दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व ध्यान और आध्यात्मिकता का महा उत्सव है, और लोग इसे बड़े ही आनंद से मनाते हैं।

शारदीय नवरात्रि की खास परंपराएँ

घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना

नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।

गरबा और रास गरबा

नवरात्रि के इस मौके पर, गुजरात और गुजराती भाषा क्षेत्रों में गरबा और रास गरबा का आयोजन किया जाता है। यह खासतर संगीत और नृत्य के प्रेमी लोगों के बीच बड़े ही आनंद से मनाया जाता है। गरबा और रास गरबा के द्वारा लोग देवी की महिमा का गीत गाते हैं और ध्यान में लिपट जाते हैं।

शारदीय नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि का महत्व अत्यधिक है, इसके अलावा भी कई प्राचीन और मान्यता है। यह पर्व देवी दुर्गा की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता है और लोगों को आध्यात्मिक दृष्टि से सुधारने का मौका प्रदान करता है। इसके साथ ही, यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर भी है जिसमें लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं और खुशियों का साझा आनंद लेते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि की तैयारी

नवरात्रि के आगमन के साथ ही लोग अपने घरों की तैयारी में लग जाते हैं। इसका मतलब है कि वे अपने घरों को सजाने-सवरने का काम करते हैं और उन्हें नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार करते हैं। इसमें घर की सजावट करना, नए कपड़े पहनना, और पूजा सामग्री की खरीदारी शामिल होती है।

नवरात्रि की रस्में

नवरात्रि के उत्सव के दौरान कई प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक रस्में मनाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख रस्में निम्नलिखित हैं:

घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना

नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।

नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि का महत्व अत्यधिक है, इसके अलावा भी कई प्राचीन और मान्यता है। यह पर्व देवी दुर्गा की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता है और लोगों को आध्यात्मिक दृष्टि से सुधारने का मौका प्रदान करता है। इसके साथ ही, यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर भी है जिसमें लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं और खुशियों का साझा आनंद लेते हैं।

नवरात्रि की तैयारी

नवरात्रि के आगमन के साथ ही लोग अपने घरों की तैयारी में लग जाते हैं। इसका मतलब है कि वे अपने घरों को सजाने-सवरने का काम करते हैं और उन्हें नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार करते हैं। इसमें घर की सजावट करना, नए कपड़े पहनना, और पूजा सामग्री की खरीदारी शामिल होती है।

घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना

नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।

गरबा और रास गरबा
नवरात्रि के इस मौके पर, गुजरात और गुजराती भाषा क्षेत्रों में गरबा और रास गरबा का आयोजन किया जाता है। यह खासतर संगीत और नृत्य के प्रेमी लोगों के बीच बड़े ही आनंद से मनाया जाता है। गरबा और रास गरबा के द्वारा लोग देवी की महिमा का गीत गाते हैं और ध्यान में लिपट जाते हैं।

नवरात्रि के खास प्रसाद

नवरात्रि के दौरान विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जो भक्तों को चढ़ाया जाता है। इसमें चना, पूरी, कट्टू, हलवा, और केसर पुड़ी शामिल होते हैं। ये प्रसाद भक्तों को चढ़ाया जाता है और उन्हें मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि एक आध्यात्मिक महत्वपूर्ण अवसर है जो लोगों को आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ने का मौका प्रदान करता है। इसके दौरान, लोग नौ दिनों तक देवी की पूजा और आराधना करते हैं और अपने मन को ध्यान में लगाते हैं। यह एक साधना का मौका होता है और लोग अपने आत्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि का सामाजिक महत्व
नवरात्रि एक सामाजिक महत्वपूर्ण अवसर भी है जो लोगों को एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका प्रदान करता है। इसके दौरान, लोग मिलकर गरबा और रास गरबा खेलते हैं, संगीत सुनते हैं, और आपसी मिलनसर का आनंद लेते हैं। इससे समाज में एक महान एकता और सांस्कृतिक संवाद का माहौल बनता है।

नवरात्रि का परिणाम
नवरात्रि के उत्सव के बाद, लोग नई ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने दैनिक जीवन में वापस आते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे अपने कामों को नई ऊर्जा के साथ निभाते हैं और समृद्धि की ओर बढ़ते हैं।

नवरात्रि के अवसर पर आपका स्वागत है

नवरात्रि एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है जो हमारे समाज और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उत्सव आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और लोगों को एक साथ आने और खुशियों का साझा आनंद लेने का मौका प्रदान करता है।

इस नवरात्रि पर, हम आपको आशीर्वाद और खुशियों की कामना करते हैं। इस उत्सव को सजाने, ध्यान में लिपटने, और परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का आनंद लें।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

दशहरा पर्व: उत्सव का महत्व और मां दुर्गा की महिमा

दशहरा, भारतीय हिन्दू समुदाय के लोगों के बीच मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। यह उत्सव विभिन्न रूपों में भारतवर्ष में मनाया जाता है और मां दुर्गा की महिमा का समर्थन करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

उत्सव का परिचय
दशहरा का पर्व विजयादशमी के रूप में भी जाना जाता है और यह पर्व नवरात्रि के आखिरी दिन मनाया जाता है। यह उत्सव हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा के विजय के प्रतीक रूप मां विजयदुर्गा की पूजा और आराधना की जाती है।

मां दुर्गा के परिप्रेक्ष्य में
दशहरा के उत्सव में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का महत्वपूर्ण भाग होता है। नवरात्रि के दौरान, नौ दिनों तक नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है और दशहरा पर उनकी विजय की खास उपासना की जाती है। यह पर्व मां दुर्गा की महिमा और शक्ति की महत्वपूर्णता को स्वीकार करता है और उनके प्रति भक्ति का प्रतीक होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

रावण दहन का आयोजन

दशहरा के उत्सव में भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में रावण दहन का आयोजन किया जाता है। यह एक परंपरागत रीति है जिसमें बड़े आकार के पुतले को रावण के रूप में तैयार किया जाता है और फिर उसे आग में जलाया जाता है। यह इस उत्सव का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और लोग इसे मां दुर्गा की विजय का प्रतीक मानते हैं।

आधिकारिक अवकाश

दशहरा के दिन भारत सरकार और राज्य सरकारें आधिकारिक अवकाश घोषित करती हैं। यह उत्सव समाज में एकता, भाईचारे, और धार्मिक भावनाओं को मजबूती से प्रकट करता है और लोग इस दिन आपसी मिलन-जुलन का आनंद लेते हैं।

दशहरा पर्व एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो मां दुर्गा की महिमा और शक्ति का समर्थन करता है। यह उत्सव समाज में एकता और भाईचारे की भावना को मजबूती से प्रकट करता है और लोग इसे उत्साह और धूमधाम के साथ मनाते हैं।

शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:।
ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
चन्द्रघण्टा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:।
स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा की उपासना की जाती है ।

पौराणिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा-आराधना का विधान है.

नवरात्र के दौरान नव दुर्गा के इन बीज मंत्रों की प्रतिदिन की देवी के दिनों के अनुसार मंत्र जाप करने से मनोरथ सिद्धि होती है | नौ देवियों के दैनिक पूजा के बीज मंत्र-

माता शैलपुत्री- ह्रीं शिवायै नम:।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता दुर्गा का प्रथम रूप है. इनकी आराधना से कई सिद्धियां प्राप्त होती हैं.

प्रतिपदा को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्ये नम:’ की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें ।

माता ब्रह्मचारिणी- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

माता दुर्गा का दूसरा स्वरूप पार्वती जी का तप करते हुए हैं. इनकी साधना से सदाचार-संयम तथा सर्वत्र विजय प्राप्त होती है. चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन पर इनकी साधना की जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

द्वितिया को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’, की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें.

माता चन्द्रघण्टा- ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
माता दुर्गा का यह तृतीय रूप है. समस्त कष्टों से मुक्ति हेतु इनकी साधना की जाती है.

तृतीया को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.

माता कूष्मांडा- ऐं ह्री देव्यै नम:।
यह मां दुर्गा का चतुर्थ रूप है. चतुर्थी इनकी तिथि है. आयु वृद्धि, यश-बल को बढ़ाने के लिए इनकी साधना की जाती है.चतुर्थी को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.

माता स्कंदमाता- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
दुर्गा जी के पांचवे रूप की साधना पंचमी को की जाती है. सुख-शांति एवं मोक्ष को देने वाली हैं.

पांचवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.

माता कात्यायनी- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
मां दुर्गा के छठे रूप की साधना षष्ठी तिथि को की जाती है. रोग, शोक, संताप दूर कर अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को भी देती हैं.

छठे दिन मंत्र– ‘ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.

माता कालरात्रि – क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
सप्तमी को पूजित मां दुर्गा जी का सातवां रूप है. वे दूसरों के द्वारा किए गए प्रयोगों को नष्ट करती हैं.

सातवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.

माता महागौरी- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
मां दुर्गा के आठवें रूप की पूजा अष्टमी को की जाती है. समस्त कष्टों को दूर कर असंभव कार्य सिद्ध करती हैं.

आठवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ की एक माला जप कर घृत या खीर से हवन करें.

माता सिद्धिदात्री – ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
मां दुर्गा के इस रूप की अर्चना नवमी को की जाती है. अगम्य को सुगम बनाना इनका कार्य है.

नौवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ की एक माला जप कर जौ, तिल और घृत से हवन करें.

कन्या पूजा

कन्या पूजन, नवरात्रि के दौरान एक महत्वपूर्ण काम है जिसमे छोटी लड़कियों देवी माँ का रूप मानते हुए उनका सम्मान और पूजा की जाती है। कन्या पूजन में कन्या को देवी रूप देवी दुर्गा के अवतारों को माना जाता हैं। यह भी दावा किया जाता है कि देवी दुर्गा ने राक्षस कालसुर से लड़ने के लिए एक युवा लड़की का रूप धारण किया था। नतीजतन, कन्यायों के पास आज भी सार्वभौमिक रचनात्मक शक्तियां है जिनके आशीवार्द से आपकी सब समस्याएं खत्म हो सकती है।

कन्या पूजा, जिसे कंजक पूजा भी कहा जाता है, आमतौर पर नवरात्रि के आठवें और नौवें दिन की जाती है। देवी दुर्गा के नौ अवतार, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है, को नौ छोटी लड़कियों के रूप में पूजा जाता है। कुछ मंदिरों या पूजा संस्थानों में कन्या पूजन नवरात्रों में रोज़ होता है, यह आप माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू कश्मीर में आप देख सकते है। घरों में कन्या पूजन नवरात्रे के आंठवे दिन या नवें दिन व्रत या पूजा अनुष्ठान किया जाता है।

कन्या पूजा एक हिंदू रिवाज़ है जो दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। रामनवमी पर कुछ राज्य इस प्रथा को अंजाम देते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान, कन्या पूजा एक प्रमुख रीती रिवाज़ है। कन्या पूजा और कुमारिका पूजा कुमारी पूजा के अन्य नाम हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों में धार्मिक ग्रंथों में कन्या पूजा की का उल्लेख है और इसे विधि पूर्वक करने की शाश्त्र आज्ञा भी देता है। नवरात्रि के पहले दिन केवल एक कन्या की पूजा करनी चाहिए और जैसे जैसे नवरात्रे का दिन बढ़ते जाते है उसी प्रकार प्रतिदिन कन्यायों की संख्या बढ़ाकर पूजा करनी चाहिए।

दूसरी ओर, कई लोग एक ही दिन कुमारी पूजा करना पसंद करते हैं, जैसे अष्टमी पूजन या नवमी पूजन। उस दिन लोग अपने घर में नवरात्रे अनुसार ८ या ९ कन्यायों को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करते है।

भक्त इस दिन छोटी बच्चियों को अपने घर बुलाकर उपवास रखते हैं। माना जाता है कि यह अनुष्ठान दुर्गा देवी की प्रशंसा व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालराती, महागौरी और सिद्धिदात्री को देवी दुर्गा के नौ दिव्य रूपों के अवतार के रूप में पूजा जाता है।

कंजक के साथ अब छोटे लड़के भी लड़कियों के साथ जाते हैं। जिनमे हनुमान जी के बालरूप या माता के रक्षाक के रूप में जाना जाता है।

भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि का नौवां दिन भक्तों की मनोकामना पूरी करता है और जो नौ दिन का व्रत रखते हैं और नवरात्रि के अंत में कन्याओं की पूजा करते हैं, उन्हें माँ भगवती की कृपा जरूर प्राप्त होती है।

एक कन्या की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, दो कन्याओं की पूजा करने से ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है और तीन कन्याओं की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। बच्चे अधिकार और ज्ञान का पक्ष लेते हैं, और नौ कन्या पूजा को सर्वोच्चता का आशीर्वाद माना जाता है।

कन्या पूजन विधि

लड़कियों के पैर धोकर एक आसन पर बिठाया जाता है।
कलावा, या पवित्र धागा, उनकी कलाई के चारों ओर बांधें, फिर उनके माथे पर कुमकुम का टिका लगाएं।
पूरी, हलवा, काला चना और नारियल जैसे विशेष खाद्य पदार्थ तैयार करें और थाली में परोसे।

लड़कियों को दुपट्टे, चूड़ियाँ और नए कपड़े जैसे उपहार देने चाहिए।
कन्याओं के चरण स्पर्श करें, प्रसाद चढ़ाएं और उनका आशीर्वाद मांगें।

नवरात्रों में माता रानी की पूजा कैसे करनी चाहिए?
नवरात्रों में माता रानी के सामने जोत जलाकर माता के नो रूपों की पूजा अर्चना करनी चाहिए

प्रथम दिन की कथा:

शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

मां शैलपुत्री की पूजा और आराधनाचैत्र नवरात्रि के प्रारंभिक दिनों में प्रत्येक दिन एक विशेष देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के रूपों में जाना जाता है। प्रथम दिन मां दुर्गा का प्रथम रूप ‘शैलपुत्री’ होता है, जिन्हें ‘शैल’ के रूप में भी जाना जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय

शैलपुत्री देवी का परिचय महाभारत में भी पाया जाता है। उन्हें पर्वतराज हिमवान की पुत्री भी कहा जाता है, जिनका नाम प्रियव्रत्ती था। माता पार्वती के रूप में उन्होंने भगवान शिव की तपस्या को प्राप्त किया था और उनके साथ विवाह किया था।

पूजा और आराधना

शैलपुत्री की पूजा चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। उन्हें वीणा और त्रिशूल की धारणा करते हुए दिखाया जाता है और वे वाहन वृषभ पर सवार होती हैं। शैलपुत्री की पूजा करते समय उन्हें पुष्प, धूप, दीप, चावल, बिल्वपत्र, मिश्री, इलायची, सफ़ेद वस्त्र और कुंकुम से अर्चना की जाती है।

कथा: शैलपुत्री की उत्पत्ति और महत्व

ब्रह्मा जी के आदिकाल में देवराज इंद्र पुरी का राजा था। एक बार उन्होंने ब्रह्मा जी की आज्ञा से एक बड़ी यज्ञ की योजना बनाई। उन्होंने यज्ञ के लिए समस्त देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उनकी पत्नी सती को नहीं बुलाया।

सती ने इसका अत्यंत दुःख और आपत्ति महसूस किया क्योंकि वह अपने पति के आदर्श में रहना चाहती थी। उसने यज्ञ में अपनी ही आहुति देने का निश्चय किया और उसके प्राणों की आहुति देते समय वह अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गईं। उन्होंने अपने आत्मा को देवी पार्वती के रूप में प्रकट किया और फिर उसका जन्म लिया, जिन्हें शैलपुत्री कहा गया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद
शैलपुत्री देवी की पूजा से भक्तों को दिव्य शक्ति, शांति और सुख प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की मानसिक और शारीरिक ताकत में वृद्धि होती है और उन्हें आगे की जीवन में समृद्धि मिलती है।

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन, मां शैलपुत्री की पूजा करके हम उनके आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं और उनके प्रेरणास्त्रोत से जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

दूसरे दिन की कथा: मां ब्रह्मचारिणी की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन को मां दुर्गा का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’ कहलाता है। इस दिन उनकी उपासना की जाती है और उनके नैमित्तिक और धार्मिक महत्व को समझा जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां ब्रह्मचारिणी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे द्वितीय रूप में मां दुर्गा के उपासना के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम विश्वरूपिणी होता है।

पूजा और आराधना
ब्रह्मचारिणी की पूजा दूसरे दिन की जाती है। वे अपने वाम हाथ में कामधेनु की अवशिष्टा धारण करती हैं और दक्षिण हाथ में कटार या खड्ग धारण करती हैं। उनकी पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, नीला वस्त्र और इलायची का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा: मां ब्रह्मचारिणी का उत्पत्ति और महत्व

द्वापर युग में दक्ष राजा के घर जन्मी एक कन्या थी जिनका नाम उषा था। उषा का विवाह वनराज विब्बिशण से हुआ था, लेकिन उन्हें पति के साथ नहीं रहना था क्योंकि विब्बिशण रावण के छोटे भाई थे और उषा के पिता दक्ष उनके साथ नहीं रहने की आज्ञा देना चाहते थे।

इस पर उषा ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए अपने पिता के आदर्श में ब्रह्मचारिणी बनने का निश्चय किया और उन्होंने अपने जीवन को देवी पार्वती के सानिध्य में समर्पित कर दिया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद

ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा से भक्तों को स्वामित्व, साहस और स्वयंसेवा की भावना प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का मन और चित्त निरंतरता, साधना और साक्षात्कार की दिशा में मुख्य रूप से मुख्य होता है।

शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन, मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से हम अपने मानसिक और आध्यात्मिक संवाद में सुधार कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से साहस और संयम की प्राप्ति कर सकते हैं।

तृतीया दिन की कथा: मां चंद्रघंटा की महिमा और उपासना

शारदीय नवरात्रि के तृतीया दिन को मां दुर्गा का तीसरा रूप ‘चंद्रघंटा’ कहलाता है। इस दिन उनकी उपासना की जाती है और उनके सौन्दर्य और साहस की महिमा का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय

मां चंद्रघंटा का परिचय पुराणों में मिलता है। वे तीसरे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम चंद्रघंटा होता है, क्योंकि उनके मुख पर चंद्रमा की आकृति की अनुसूचित होती है।

पूजा और आराधना
चंद्रघंटा की पूजा तृतीया दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और कमण्डलु धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन सिंह पर सवार होते हैं। चंद्रघंटा की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, घी, शक्कर और कमल फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा: मां चंद्रघंटा की उपासना और महत्व

एक बार की बात है, मां चंद्रघंटा का जन्म राजर्षि किंग दक्ष के घर हुआ था। वह बचपन से ही भगवान शिव की आशीर्वाद प्राप्त कर बड़ी भक्तिभावना रखती थी। जब वह शैलपुत्री के रूप में आपके सामने प्रकट हुईं, तो वे चांद्रमा के रूप में अपनी आकृति को प्रकट करके आपकी आखों को आकर्षित करती हैं।

महत्व और आशीर्वाद
चंद्रघंटा देवी की पूजा से भक्तों को सौन्दर्य, शान्ति और साहस की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का दिल स्नेह, मैत्री और दया से भर जाता है और उन्हें अधिक सकारात्मकता की ओर अग्रसर करते है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

तृतीया दिन,
मां चंद्रघंटा की उपासना करके हम उनके साहस और सौन्दर्य की महिमा का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं।

चतुर्थ दिन की कथा: मां कूष्मांडा की उपासना और महत्व

नवरात्रि के चतुर्थ दिन को मां दुर्गा का चौथा रूप ‘कूष्मांडा’ कहलाता है। इस दिन हम मां कूष्मांडा की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और महिमा का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां कूष्मांडा का परिचय पुराणों में मिलता है। वे चौथे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कूष्मांडा होता है, क्योंकि उनके आघ्राण पर श्रीकृष्ण और राधा का जोड़ा अवस्थित होता है और इसे ‘कूष्माण्डम्’ कहते हैं।

पूजा और आराधना
कूष्मांडा मां की पूजा चतुर्थ दिन की जाती है। उन्हें दोनों हाथों में कटार और गदा धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन शेर पर सवार होते हैं। कूष्मांडा की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, घी, मिश्री और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा: मां कूष्मांडा की उपासना और महत्व

बहुत समय पहले की बात है, देवराज इंद्र द्वारा दानवराज बलि को पराजित करने के लिए मां कूष्मांडा ने अपने आविर्भाव को प्रकट किया था। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए बलि के सेनापति चांड और मुण्ड को मारकर उसे पराजित किया था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद
कूष्मांडा देवी की पूजा से भक्तों को आत्मसंरक्षण, साहस और संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों के आत्मविश्वास और आत्मयथार्थ में वृद्धि होती है और उन्हें उनके दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने की क्षमता मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

चतुर्थ दिन, मां कूष्मांडा की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और महिमा का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आत्मसंरक्षण और साहस की प्राप्ति कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पंचम दिन की कथा: मां स्कंदमाता की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन को मां दुर्गा का पांचवा रूप ‘स्कंदमाता’ कहलाता है। इस दिन हम मां स्कंदमाता की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां स्कंदमाता का परिचय पुराणों में मिलता है। वे पांचवे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम स्कंदमाता होता है, क्योंकि उनके गर्भ में कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना
स्कंदमाता मां की पूजा पांचवे दिन की जाती है। उन्हें चांद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन सिंह पर सवार होते हैं। स्कंदमाता की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, घी और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा: मां स्कंदमाता की उपासना और महत्व
दुर्गा देवी के पांचवे रूप मां स्कंदमाता के जन्म का कारण था देवता और दानवराजों के बीच हुए महायुद्ध को समाप्त करना। देवता और दानवराजों के बीच हुए महायुद्ध में देवताओं की असमर्थता थी, तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना करके मां पार्वती के रूप में प्रकट हुईं और उनकी आशीर्वाद से महायुद्ध को समाप्त किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद
स्कंदमाता देवी की पूजा से भक्तों को समर्पण, आत्मविश्वास और आनंद की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की वाणी में मधुरता और शक्ति होती है और उन्हें परिश्रम, साहस और संघर्ष में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पंचम दिन, मां स्कंदमाता की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से समर्पण और संघर्ष में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

षष्ठी दिन की कथा: मां कात्यायनी की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
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शारदीय नवरात्रि के षष्ठी दिन को मां दुर्गा का षष्ठ रूप ‘कात्यायनी’ कहलाता है। इस दिन हम मां कात्यायनी की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां कात्यायनी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे षष्ठी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कात्यायनी होता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या और साधना से महादेव को प्राप्त किया था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना
कात्यायनी मां की पूजा षष्ठी दिन की जाती है। उन्हें चंद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन बघड़ा पर सवार होते हैं। कात्यायनी मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, घी और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।

कथा: मां कात्यायनी की उपासना और महत्व

बहुत समय पहले की बात है, एक ब्राह्मण ऋषि कात्यायन अपनी आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने उन्हें एक वरदान मांगने का अवसर दिया।

ऋषि कात्यायन ने विचार किया कि वह दिव्य शक्ति प्राप्त करके मां पार्वती की सानिध्य में उनके प्रेम में वृद्धि करना चाहते हैं। उन्होंने वरदान मांगा कि वह उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पत्नी के रूप में प्रकट हो जाएं। मां पार्वती ने उनकी इच्छा को सुनकर उनके सामने प्रकट होकर उनकी पत्नी बनीं और उनका उपकार किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद
कात्यायनी देवी की पूजा से भक्तों को संकल्प, साहस और समर्पण की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में प्रेम और सम्मान की भावना बनी रहती है और उन्हें विचारशीलता, स्वतंत्रता और सफलता प्राप्त होती है।

षष्ठी दिन, मां कात्यायनी की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से संकल्प और साहस की प्राप्ति कर सकते हैं|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

सप्तमी दिन की कथा: मां कालरात्रि की उपासना और महत्व

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शारदीय नवरात्रि के सप्तमी दिन को मां दुर्गा का सातवां रूप ‘कालरात्रि’ कहलाता है। इस दिन हम मां कालरात्रि की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और उपासना का गान किया जाता है।

कथा का परिचय
मां कालरात्रि का परिचय पुराणों में मिलता है। वे सप्तमी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कालरात्रि होता है, क्योंकि उनकी आविष्कार शक्ति की अन्धकार और अवधियान धारण कर अत्यधिक कालभरण अवस्था में होती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना
कालरात्रि मां की पूजा सप्तमी दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और खड्ग धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन जाति पर सवार होते हैं। कालरात्रि मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, तिल और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा: मां कालरात्रि की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
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बहुत समय पहले की बात है, एक दैत्य राजा रत्तनसेन का पुत्र बहुत ही बलवान था और वह देवताओं की श्राप के कारण अपने शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा था। उसने सम्पूर्ण लोक को अत्याचार और विनाश की दिशा में ले जाने का प्रयास किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

देवताओं ने देखा कि उसकी दुराचारी और अधर्मिक गतिविधियों से धरती पर कलह और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो रही है। उन्होंने मां दुर्गा से आश्रय मांगा और मां दुर्गा ने उनकी बिना शस्त्रों के और अपने विशेष देवी रूप में प्रकट होकर उनको संकट से मुक्ति दिलाई।

महत्व और आशीर्वाद
कालरात्रि देवी की पूजा से भक्तों को आदिशक्ति, संकट के प्रति सहनशीलता और शक्ति की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की विचारशीलता, निर्णयशीलता और वीरता में वृद्धि होती है और उन्हें अध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

सप्तमी दिन, मां कालरात्रि की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और उपासना का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आदिशक्ति और साहस प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

अष्टमी दिन की कथा: मां महागौरी की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन को मां दुर्गा का आठवां रूप ‘महागौरी’ कहलाता है। इस दिन हम मां महागौरी की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां महागौरी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे आठवें दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम महागौरी होता है, क्योंकि उनके दिव्य स्वरूप का पराकाष्ठा दिखाता है कि वे अत्यंत श्वेतवर्ण में विभूषित होती हैं।

पूजा और आराधना
महागौरी मां की पूजा आठवें दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और खड्ग धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन वृषभ पर सवार होते हैं। महागौरी मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, चांदन, कमल के फूल और नारियल का उपयोग किया जाता है।

कथा: मां महागौरी की उपासना और महत्व
बहुत समय पहले की बात है, प्राचीन काल में देवराज इंद्र की सभी देवताएँ मिलकर देवी पार्वती की सानिध्य में आईं और उनसे भीक्षा मांगने लगीं। देवी पार्वती ने सभी को भोजन देने का आशीर्वाद दिया, लेकिन वह स्वयं भोजन करने के बाद अपने दिव्य स्वरूप को प्रकट करके महागौरी रूप में परिणत हो गईं।

उन्होंने अपने आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत तपस्या की और आत्मा की महत्वपूर्णता को सिद्ध किया।

महत्व और आशीर्वाद
महागौरी देवी की पूजा से भक्तों को शुद्धि, त्याग और आत्मा की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की चित्तशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

अष्टमी दिन, मां महागौरी की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से शुद्धि और आत्मा की प्राप्ति कर सकते हैं|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवमी दिन की कथा: मां सिद्धिदात्री की उपासना और महत्व

शारदीय नवरात्रि के नवमी दिन को मां दुर्गा का नौवां रूप ‘सिद्धिदात्री’ कहलाता है। इस दिन हम मां सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

कथा का परिचय
मां सिद्धिदात्री का परिचय पुराणों में मिलता है। वे नवमी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम सिद्धिदात्री होता है, क्योंकि उनके आशीर्वाद से भक्तों को सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा और आराधना
सिद्धिदात्री मां की पूजा नवमी दिन की जाती है। उन्हें चांद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन श्वान पर सवार होते हैं। सिद्धिदात्री मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, चांदन, अक्षता और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।

कथा: मां सिद्धिदात्री की उपासना और महत्व

कई साल पहले की बात है, एक ब्राह्मण तपस्वी अपनी तपस्या के फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुए और उनसे एक वरदान मांगा कि वे उन्हें जीवन के सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने की कृपा करें। ब्रह्मा जी ने उनकी यह इच्छा सीधे मां सिद्धिदात्री के पास भेज दी। मां सिद्धिदात्री ने उनकी भक्ति को प्रसन्न होकर उन्हें सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने की कृपा की।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

महत्व और आशीर्वाद
सिद्धिदात्री देवी की पूजा से भक्तों को सभी सिद्धियाँ, कार्य सफलता और उच्च स्तर की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का सफलता में मार्ग प्रशस्त होता है और उन्हें सभी क्षेत्रों में सिद्धि मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

नवमी दिन, मां सिद्धिदात्री की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

संबंधित कन्या पूजन: युवा कन्याओं के समर्पण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया

कन्या पूजन एक पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें युवा कन्याएँ पूजित की जाती हैं और उन्हें आशीर्वाद दिए जाते हैं। यह उत्सव हिन्दू समाज में महिलाओं के महत्व की प्रतीक्षा करता है और उनके समर्पण और सेवानिवृत्ति की महत्वपूर्णता को प्रमोट करता है।

कन्या पूजन का आयोजन
कन्या पूजन को विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है, जिसमें नौ या अधिक युवा कन्याएँ पूजित की जाती हैं। इस पूजा में उनकी पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें समर्पण करके आशीर्वाद प्राप्त किए जाते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

पूजा की विशेषता
कन्या पूजन में युवा कन्याएँ समाज के महत्वपूर्ण देवी का प्रतीक मानी जाती हैं। उन्हें विशेष रूप से सजा-सवरकर भगवान की तरह पूजा जाता है।

कन्याओं के सम्मान और आशीर्वाद
कन्या पूजन के दौरान, युवा कन्याएँ सम्मान और आदर के साथ स्वागत की जाती हैं। उन्हें पूजा का अद्वितीय अवसर प्राप्त होता है और उन्हें आशीर्वाद दिए जाते हैं जिससे उनका सफल भविष्य सुनिश्चित होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि

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गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

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गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

1 एकः (पु.), एका (स्त्री.), एकम् (नपु.) एक
2 द्वौ (पु.), द्वे (स्त्री.), द्वे (नपु.) दो

 3 त्रयः (पु.), तिस्रः (स्त्री.), त्रीणि (नपु.) तीन
4 चत्वारः (पु.), चतस्रः (स्त्री.), चत्वारि (नपु.) चार

 5 पञ्च पाँच
6 षट् छः

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
7 सप्त सात
8 अष्ट, अष्टा आठ
9 नव नौ
10 दश दस

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Counting From 1 To 1000 In Sanskrit-
11 एकादश ग्यारह
12 द्वादश बारह
13 त्रयोदश तेरह

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
14 चतुर्दश चौदह
15 पञ्चदश पन्द्रह

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
16 षोडश सोलह
17 सप्तदश सत्रह

18 अष्टादश अठारह
19 नवदश, एकोनविंशतिः, ऊनविंशतिः उन्नीस

20 विंशतिः बीस
21 एकविंशतिः इक्कीस

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
22 द्वाविंशतिः बाइस
23 त्रयोविंशतिः तेइस

24 चतुर्विंशतिः चौबीस
25 पञ्चविंशतिः पच्चीस

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
26 षड्विंशतिः छब्बीस
27 सप्तविंशतिः सत्ताईस

28 अष्टविंशतिः अट्ठाईस
29 नवविंशतिः, एकोनत्रिंशत्, ऊनत्रिंशत् उनतीस

30 त्रिंशत् तीस
31 एकत्रिंशत् इकत्तीस

32 द्वात्रिंशत् बत्तीस
33 त्रयस्त्रिंशत् तैंतीस

34 चतुर्त्रिंशत् चौतीस
35 पञ्चत्रिंशत् पैंतीस

 36 षट्त्रिंशत् छत्तीस
37 सप्तत्रिंशत् सैंतीस

38 अष्टात्रिंशत् अड़तीस
39 नवत्रिंशत्, ऊनचत्वारिंशत्, एकोनचत्वारिंशत् उनतालीस

40 चत्वारिंशत् चालीस
41 एकचत्वारिंशत् इकतालीस

42 द्वाचत्वारिंशत् बयालीस
43 त्रिचत्वारिंशत् तिरालीस

 44 चतुश्चत्वारिंशत् चवालीस
45 पञ्चचत्वारिंशत् पैंतालीस

46 षट्चत्वारिंशत् छियालीस
47 सप्तचत्वारिंशत् सैंतालीस

48 अष्टचत्वारिंशत् अड़तालीस
49 नवचत्वारिंशत्, एकोनपञ्चाशत्, ऊनपञ्चाशत् उनचास

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

50 पञ्चाशत् पचास
51 एकपञ्चाशत् इक्यावन

 52 द्वापञ्चाशत् बावन
53 त्रिपञ्चाशत् तिरेपन

54 चतुःपञ्चाशत् चौवन
55 पञ्चपञ्चाशत् पचपन

56 षट्पञ्चाशत् छप्पन
57 सप्तपञ्चाशत् सत्तावन

58 अष्टपञ्चाशत् अट्ठावन
59 नवपञ्चाशत्, एकोनषष्टिः, ऊनषष्टिः उनसठ

 60 षष्टिः साठ
61 एकषष्टिः इकसठ

62 द्विषष्टिः बासठ
63 त्रिषष्टिः तिरेसठ

64 चतुःषष्टिः चौसठ
65 पञ्चषष्टिः पैसठ

 66 षट्षष्टिः छियासठ
67 सप्तषष्टिः सडसठ

68 अष्टषष्टिः अडसठ
69 नवषष्टिः, एकोनसप्ततिः, ऊनसप्ततिः उनहत्तर

 70 सप्ततिः सत्तर
71 एकसप्ततिः इकहत्तर

72 द्विसप्ततिः बहत्तर
73 त्रिसप्ततिः तिहत्तर

 74 चतुःसप्ततिः चौहत्तर
75 पञ्चसप्ततिः पिचहत्तर

76 षट्सप्ततिः छियत्तर
77 सप्तसप्ततिः सतत्तर
78 अष्टसप्ततिः अठत्तर

79 नवसप्ततिः, एकोनाशीतिः, ऊनाशीतिः उनयासी
80 अशीतिः अस्सी

81 एकाशीतिः इक्यासी
82 द्वयशीतिः बयासी

83 त्रयशीतिः तिरासी
84 चतुरशीतिः चौरासी

85 पञ्चाशीतिः पिचासी
86 षडशीतिः छियासी

 87 सप्ताशीतिः सत्तासी
88 अष्टाशीतिः अट्ठासी

89 नवाशीतिः, एकोननवतिः, ऊननवतिः नवासी
90 नवतिः नब्बे

 91 एकनवतिः इक्यानवे
92 द्वानवतिः बानवे

93 त्रिनवतिः तिरानवे
94 चतुर्नवतिः चौरानवे

95 पञ्चनवतिः पिचानवे
96 षण्णवतिः छियानवे

 97 सप्तनवतिः सतानवे
98 अष्टनवतिः, अष्टानवतिः अठानवे

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

99 नवनवतिः, एकोनशतम्, ऊनशतम् निन्यानवे
100 शतम्, एकशतम् सौ, एक सौ

 101 एकाधिकशतम् एक सौ एक
102 द्वयधिकशतम् एक सौ दो

103 त्र्यधिकशतम् एक सौ तीन
104 चतुरधिकशतम् एक सौ चार

 105 पञ्चाधिकशतम् एक सौ पाँच
106 षडधिकशतम् एक सौ छः

107 सप्ताधिकशतम् एक सौ सात
108 अष्टाधिकशतम् एक सौ आठ

 109 नवाधिकशतम् एक सौ नौ
110 दशाधिकशतम् एक सौ दस

111 एकादशाधिकशतम् एक सौ ग्यारह
121 एकविंशत्यधिकशतम् एक सौ इक्कीस

 131 एकत्रिंशदधिकशतम् एक सौ इकत्तीस
141 एकचत्वारिंशदधिकशतम् एक सौ इकतालीस

151 एकपञ्चाशदधिकशतम् एक सौ इक्यावन
161 एकषष्ट्यधिकशतम् एक सौ इकसठ

171 एकसप्तत्यधिकशतम् एक सौ इकहत्तर
181 एकाशीत्यधिकशतम् एक सौ इक्यासी

 191 एकनवत्यधिकशतम् एक सौ इक्यानवे
200 द्विशतम् दो सौ

201 एकाधिकद्विशतम् दो सौ एक
300 त्रिशतम् तीन सौ

400 चतुःशतम् चार सौ
500 पञ्चशतम् पाँच सौ
600 षट्शतम् छः सौ

 700 सप्तशतम् सात सौ
800 अष्टशतम् आठ सौ
900 नवशतम् नौ सौ

1000 सहस्रम् एक हजार
10000 अयुतम्, दशसहस्रम् दस हजार
100000 लक्षम् एक लाख

 1000000 दशलक्षम्, प्रयुतम्, नियुतम् दस लाख
10000000 कोटिः एक करोड़
100000000 दश कोटिः दस करोड़

1000000000 अर्बुदम् एक अरब
10000000000 दशार्बुदम् दस अरब
100000000000 खर्वम् एक खरब

 1000000000000 दशखर्वम् दस खरब
10000000000000 नीलम् एक नील

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
100000000000000 दशनीलम् दस नील
1000000000000000 एकपद्मम् एक पद्म

 10000000000000000 दशपद्मम् दस पद्म
100000000000000000 शंखम् एक शंख

1000000000000000000 दशशंखम् दस शंख
10000000000000000000 महाशंखम् महाशंख

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit

 क्रम संख्या सूचक संस्कृत गिनती शब्‍द (एक से बीस तक)
पुँल्लिङ्ग स्‍त्रीलिङ्ग नपुंसकलिङ्ग

गिनती 1 से 1000 तक संस्कृत में-Ginti 1 Se 1000 Tak Sanskrit
1st, First प्रथम: प्रथमा प्रथमम्
2nd, Second द्वितीय: द्वितीया द्वितीयम्

 3rd, Third तृतीय: तृतीया तृतीयम्
4th, Fourth चतुर्थ: चतुर्थी चतुर्थम्

5th, Fifth पञ्चमः पञ्चमी पञ्चमम्
6th, Sixth षष्ठः षष्ठी षष्ठम्

 7th, Seventh सप्तमः सप्तमी सप्तमम्
8th, Eighth अष्टम: अष्टमी अष्टमम्

9th, Nineth नवमः नवमी नवमम्
10th, Tenth दशम: दशमी दशमम्

 11th, Eleventh एकादश: एकादशी एकादशम्
12th, Twelfth द्वादश: द्वादशी द्वादशम्

 13th, Thirteenth त्रयोदश: त्रयोदशी त्रयोदशम्
14th, Fourteenth चतुर्दश: चतुर्दशी चतुर्दशम्

15th, Fifteenth पञ्चदश: पञ्चदशी पञ्चदशम्
16th, Sixteenth षोडश: षोडशी षोडशम्

 17th, Seventeenth सप्तदश: सप्तदशी सप्तदशम्
18th, Eighteenth अष्टादश: अष्टादशी अष्टादशम्

 19th, Nineteenth नवदश: नवदशी नवदशम्
20th, Twentieth विंश: विंशी विशम्

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नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

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मंत्र कवच नारायण बलि पूजा, मोक्ष नारायणबली पूजा या नारायणनागबली पूजा के लिए सर्वोत्तम और अत्यधिक मेधावी वैदिक पंडित प्रदान करता है और उन्हें करने के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रदान करता है।

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नारायण नागबली पूजा
नारायणनागबली पूजा तीन दिनों तक की जाती है।

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यह अनुष्ठान परिवारों द्वारा अपने दिवंगत परिवार के सदस्यों या असामयिक मृत्यु वाले सदस्यों की आत्माओं को मुक्त करने के लिए किया जाता है।

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नारायण बलि पूजन

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नारायण बलि पूजन

क्या आपके या परिवार के किसी सदस्य के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती हैं? फिर चाहे उसके निवारण के लिए आप कितना भी समय और धन खर्च कर लें, लेकिन अगर बावजूद हर प्रयास के बाद भी आपको किसी भी काम में सफल नहीं मिलती है तो, ऐसे में जातक की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष का होना संभव है।

 इस दोष के निवारण हेतु जातक द्वारा नारायण बलि पूजन करना वैदिक ज्योतिष में सबसे कारगर व एकमात्र विकल्प माना गया है।

नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

मंत्र कवच नारायण बलि पूजा, मोक्ष नारायणबली पूजा या नारायणनागबली पूजा के लिए सर्वोत्तम और अत्यधिक मेधावी वैदिक पंडित प्रदान करता है और उन्हें करने के लिए…

ये पूजन व अनुष्ठान नारायण बलि को पूर्वज के श्राप से मुक्त करने के लिए किया जाता है।

क्योंकि ये देखा गया है कि जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से मृत्य पश्चात अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ होता,
उनकी आगामी पीढ़ियों में पितृदोष उत्पन्न होता है।

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इस दोष से पीड़ित व्यक्ति का संपूर्ण जीवन तब तक कष्टमय रहता है,
जब तक कि पितरों के निमित्त नारायण बलि विधान न किया जाए।

साथ ही प्रेत योनि से होने वाली पीड़ा को दूर करने के लिए भी नारायण बलि की पूजा की जाती है।
इसके अलावा परिवार के किसी सदस्य की किसी भी कारण जैसे: आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से,
दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु हुई हो, ऐसी स्थिति में भी इस दोष का निर्माण होता है। ये पूजन-अनुष्ठान किसी विद्वान या योग्य पंडित द्वारा एक दिन में संपन्न की जाती है।

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पूजा की संपूर्ण जानकारी और विधि

योग्य व कर्मकांडी ब्राह्मण करते हैं मार्गदर्शन
मंत्र कवच के वरिष्ठ पुरोहित के नेतृत्व में सभी पाठ संपन्न किए जाते हैं।

हमारे प्रतिष्ठित व वरिष्ठ ज्योतिषी, अपनी विद्या की मदद से जन कल्याण का कार्य करते हुए जातकों के दुखों, कष्टों और समस्याओं का निवारण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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खास बात ये कि पूजा-पाठ करने वाले हमारे ज्योतिषी व पुरोहित अकादमिक और ज्योतिषीय योग्यता व अनुभव के मापदंडों पर प्रमाणित होते हैं, उन्हें स्वयं  मंत्र कवच वैरिफाइड करता है और ये वरिष्ठ पुरोहित पूजा-पाठ के दौरान, आपके हर प्रश्न का सरलता व स्पष्टता से उत्तर देने में पूरी तरह सक्षम होते हैं।

पूजा के लाभ

वैदिक ज्योतिष अनुसार पूजा करने से जीवन में समृद्धि आती हैं।
पूजा कराने से जातक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
जातक के व्यवहार में सकारात्मकता आती है।

जीवन में प्रसिद्ध , मान्यता और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
घर के सदस्यों का स्वास्थ्य बेहतर होता है।

यह पूजा अथवा अनुष्ठान कराने से आपके महत्वपूर्ण कार्य संपन्न होते हैं।
इस पूजा के प्रभाव से आपके वो सभी कार्य जो रुके हुए थे, वो पूरे हो जाते हैं।

शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं।
नौकरी, करियर और जीवन में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है।

विस्तृत पूजा विधि

किसी भी पूजा की शुरुआत वैदिक मंत्रों के उच्चारण व जप के साथ होती है। पूजा में “होमा” (हवन) अनुष्ठान भी शामिल है जिसमें घी, तिल, जौ और अन्य पवित्र सामग्री व मंत्र का पाठ करते हुए, अग्नि को अर्पित की जाती है।

जातक को इस पूजा से सर्वश्रेष्ठ लाभ देते हुए, उसकी समस्या को दूर करने के लिए यज्ञ एक महत्वपूर्ण उपाय होता है।

अधिकतम सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए, वैदिक पूजा सबसे अच्छे मुहूर्त, नक्षत्र के दिन करनी चाहिए। शुभ मुहूर्त के दौरान पूजा को पूरा करने के लिए, एक पुजारी यानी एक पंडित जी को नियुक्त किया जाता है, जो समय अनुसार पूजा को संपन्न करते हैं । नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

पूजा-अनुष्ठान में होता है चमत्कारी वैदिक मंत्रों का उच्चारण
पूजा-अनुष्ठानों के दौरान पारंपरिक वैदिक मंत्रों का जप, जातकों के लिए बहुत महत्व रखता है।

इस जप से ही मन, आत्मा और ऊर्जा को शुद्ध करने में मदद मिलती है, जिससे जातक मानसिक शक्ति और कौशल को पुनः प्राप्त करने में सक्षम होता है।
इन वैदिक मंत्रों के जप से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा से वातावरण में शांति और समृद्धि आती है, जिससे सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलती हैं।

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पूजा-पाठ के दौरान उससे संबंधित मंत्रों का जाप ही जातक को आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाता है और उसे देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलना सुनिश्चित होता है।

साथ ही मंत्रों की मदद से ही जातक को पूजा से शुभाशुभ परिणाम और आशीर्वाद के लिए देवी-देवताओं को प्रसन्न करने में भी मदद मिलती है। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. क्या इस पूजा में मेरी शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता होगी ?
नहीं, इस अनुष्ठान के दौरान आप शारीरिक रूप से अनुपस्थित होते हुए भी, इस पूजा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

Q2. इस पूजन का मुहूर्त कैसे निर्धारित किया जाएगा?
पूजा का समय शुभ मुहूर्त देखकर तय किया जाएगा।

Q3. क्या हर व्यक्ति ये पूजा कर सकता है?

ये पूजा आप कर सकते हैं या नहीं? इस सवाल का उत्तर आपको हमारे विद्वान पुरोहित आपसे बात करने के बाद ही बता पाएंगे।
हमारे विद्वान ज्योतिषियों से अभी लाइव बात करें।

Q4. इस पूजन के लिए किस सामग्री का उपयोग होता है?

इस पूजन में श्रीफल, धूप, फूल पान के पत्ते, सुपारी, हवन सामग्री, देसी घी, मिष्ठान, गंगाजल, कलावा, हवन के लिए लकड़ी (आम की लकड़ी), आम के पत्ते, अक्षत, रोली, जनेऊ, कपूर, शहद, चीनी, हल्दी, आदि विशेषरूप से उपयोग किया जाता है। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

Q5. पूजा सामग्री की व्यवस्था कौन करेगा?

पूजा सामग्री का पूर्ण जिम्मा एस्ट्रोसेज द्वारा किया जाएगा, जिसमें पंडित जी आवश्यकता के अनुसार पूजा से पूर्व समस्त सामग्री की व्यवस्था स्वयं करते हैं।

Q6. इस पूजा को कराने लिए क्या-क्या जानकारी होना अनिवार्य होता है ?

इस पूजा को कराने के लिए, पुरोहित जी यजमान से पूजा से पहले से कुछ जानकारी लेते हैं। जो इस प्रकार है:-आपका और आपके परिवार के सदस्यों का पूरा नाम , गोत्र , वर्तमान शहर सहित राज्य, देश, आदि।, पूजा करने का उद्देश्य – आप पूजा क्यों कर रहे हैं?

Q7. इस ऑनलाइन पूजा से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?

इच्छानुसार आप पूजा की शुरुआत में ही पंडित जी से पूजन-संबंधित मंत्र ले सकते हैं।
जिसके बाद जब पंडित जी पूजा अनुष्ठान कर रहे हो तो, आप अपने समय अनुसार अपने घर में उस मंत्र का निरंतर जाप कर, इस पूजा से उत्तम फल प्राप्त कर सकते हैं।

Q8. पूजा को संपन्न करने में कितने दिन का समय लगता है?

पूजन-अनुष्ठान को पूरा करना उस पूजा और उसमें शामिल अनुष्ठान पर निर्भर करता है, जिसे हम संपन्न कर रहे हैं। आमतौर पर शुभ दिन व मुहूर्त की उपलब्धता के आधार पर, पूजा करने में लगभग 5 से 10 दिन का समय लगता है। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

हालांकि जैसे ही आप अपनी आवश्यकता अनुसार कोई ऑनलाइन पूजा बुक करते हैं तो, हमारे द्वारा आपसे संपर्क किया जाता है, जिसमें हमारे विशेषज्ञ आपको पूजा का सम्पूर्ण विवरण देते हुए, आपके द्वारा पूजा समायोजित करने का प्रयास करते हैं। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

नारायण बली अनुष्ठान उन पैतृक आत्माओं के असंतुष्ट सपनों को पूरा करने के लिए किया जाता है जो दुनिया में फंस गए हैं और अपने पूर्वजों के लिए समस्याएं उत्पन्न करते हैं। नारायण बली में हिंदू अंतिम संस्कार के समान अनुष्ठान शामिल हैं। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

गेहूं के आटे से बना कृत्रिम शरीर उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, मंत्र का उपयोग ऐसी आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है, जिनकी कुछ इच्छाएँ शेष हैं। अनुष्ठान उन्हें शरीर का अधिकारी बनाता है और अंतिम संस्कार उन्हें दूसरी दुनिया में ले जाता है।

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नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

नारायण नागबली पूजा तिथि 2023 (मुहूर्त)

जनवरी – 2023 1, 4, 8, 11, 14, 20, 22, 28
फरवरी – 2023 1, (4), 7, 10, 14, 19, 24, 27

मार्च- 2023 4, 7, 11, 15, 18, 24, 28, 31
अप्रैल – 2023 3, 6, 10, (14), 20, 24, 27, 30

मई – 2023 4, 7, 12, 17, 20, 23, 27, 30
जून – 2023 3, 8, 14, 17, 21, 24, 28

जुलाई – 2023 3, 8, 14, 17, 21, 24, 28
अगस्त – 2023 17, 20, 24, 27, 29

सितम्बर – 2023 (3), (6), 9, 12, 16, (24), 26
अक्टूबर – 2023 1, 4, 8, 11, 29

नवंबर – 2023 1, 4, 7, 17, 19, 25, 28
दिसंबर – 2023 2, 5, 9, 12, 16, 22, 25, 29

नारायण नागबली पूजा मुहूर्त 2023
ये नारायण नागबली पूजा तिथि हे |

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

अनुष्ठान के लिए चावल पकाने के लिए बर्तन , पानी के बर्तन, छोटी प्लेटें, तांबे के बर्तन, पाली, 3 ब्राह्मण, कपास का बना बिछौना।
इसके अलावा, दरभा और रेशम, देवताओं की मूर्तियाँ, यज्ञ की अग्नि के लिए आवश्यक सामग्री, मक्खन, चावल, पलाश की लकड़ियाँ, समिधा।

इसके अलावा, गाय के गोबर के गोसे, तिल, जौ, फूल, फूलों की माला, दूध, घी, दही, शहद और चीनी का मिश्रण।
भगवान को भोग लगाने के लिए भोजन, पूजा के लिए आवश्यक सामग्री, पत्तों से बनी प्लेटें। अनुष्ठान के लिए आवश्यक गेहूं का आटा, सभी पौधे की सामग्री आदि जो कि अनुष्ठान के लिए आवश्यक हो। नारायण नागबली पूजा-Narayan Naag Bali Anushthan-नारायण नागबली पूजा तिथि मुहूर्त

ऐसी सामग्री जो किसी को अपने साथ ले जाने की आवश्यकता है

अपनी क्षमता के अनुसार सोने से बनी सांप की मूर्ति जो न्यूनतम 1 ग्राम सोने की हो, नई सफेद धोती, नया तौलिया, काली किनारी के बिना सफेद साड़ी, सफेद चोली, प्रार्थना में उपयोग के लिए कपड़े के 5 टुकड़े ।

नारायण नागबलि को कौन कर सकता है?

वो लोग जो नारायण नागबलि पूजा कर सकते हैं:
जो लोग आर्थिक समस्याओं, पारिवारिक स्वास्थ्य समस्याओं, व्यापार में बुरे दौर, विवाह की समस्याओं और शिक्षा में बाधा जैसे समस्याओं से पीड़ित हैं।
यह पूजा पत्नी, पिता, माता, भाई और यहां तक कि छोटे-मोटे कर्मचारियों के अभिशाप से दूर करने के लिए होती है।

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एक अच्छे और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए एक विवाहित जोड़े द्वारा यह पूजा 3 दिनों तक होती है।

यह अनुष्ठान पूर्वज आत्माओं की इच्छाओं को पूरा करता है और नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है। आत्मा सीधे या परोक्ष रूप से परिवार के सदस्यों के संपर्क में आने की कोशिश करती है और इसलिए अनुष्ठान आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है।

नारायण नागबली पूजा के लाभ

नारायण नागबली एक बहुत ही आवश्यक पूजा है जो पिछली 7 पीढ़ियों के पूर्वजों को शांति और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करती है।
यह पूजा संतान प्राप्ति के लिए भी बहुत फायदेमंद है और भूत या बुरी आत्मा से किसी भी तरह की हानि को समाप्त करती है।

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प्रगति करने और व्यावसायिक जीवन में सफलता और प्रगति प्राप्त करने में भी मदद करती है ।

यह पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है यह चरणधाम यात्रा, पितृसुव से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
यह पूजा परिवार के सदस्य की अकाल मृत्यु के कारण किसी भी समस्या से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। यह परिवार के किसी भी मृत व्यक्ति से परिवार को किसी भी अभिशाप से मुक्त करती है।

किन बातों का रखें ख्याल :

नारायण नागबली की पूजा 3 दिनों के लिए होती है।
नारायण नागबली पूजा के लिए एक पुरुष व्यक्ति की आवश्यकता होती है |

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क्योंकि हमारे शास्त्रों के अनुसार एक अकेली महिला नारायण नागबली में पिंड-दान और पिन-दान नहीं कर सकती।
मुहूर्त के दिन सुबह 6 बजे से एक दिन पहले या सुबह आना होगा।

एक बार पूजा शुरू होने के बाद आपको पूजा समाप्त होने तक त्र्यंबक को नहीं छोड़ना चाहिए |
अंतिम दिन, आप दोपहर के लगभग 12 बजे मुक्त होंगे।

पूजा के दिनों में आपको बिना प्याज, लहसुन के भोजन करना चाहिए।
पूजा समाप्ति के अगले दिन आप इन चीजों का उपयोग कर सकते हैं।

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दक्षिणा राशि 11000 / – रुपये होती है जिसमें सभी पूजा सामग्री और भोजन की व्यवस्था व 2 व्यक्तियों के लिए पूजा शामिल होती है।
दक्षिणा पूजा समाप्त होने पर दी जाती है ।

इसके अलावा, आपको अपने लिए नए कपड़े लाने होंगे जैसे कि पुरुष के लिए एक सफेद धोती, गमछा, तौलिया और महिलाओं के लिए काले हरे रंग को छोड़ कर प्लेन सफेद रंगों की साड़ी, ब्लाउज।
इस अनुष्ठान के लिए न्यूनतम 4 दिन पहले आरक्षण करना चाहिए।

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पूजा के लिए आने से पहले आपको नाम और टेलीफोन नंबर रजिस्टर करना चाहिए।
सभी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आरक्षण करना अनिवार्य है। आप फोन या मेल के माध्यम से आरक्षण कर सकते हैं।
पूजा के दिन सहित अगले 41 दिनों तक आप मांसाहार और मदिरा का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

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त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

 त्रिपिंडी पूजन का कारण होता है पितृ दोष को दूर करना और पितरों की आत्मा को शांति देना। यह पूजा उन पितरों को समर्पित होती है जिन्होंने इस जीवन में हमें जीवन दिया है और उनके बिना हमारा जीवन असंगत होता।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी पूजा करने से पितृ दोष, जिसे कई बार अजन्मेय कर्म के रूप में जाना जाता है,को दूर किया जा सकता है। यह पूजा पितरों की आत्मा को शांति देने के साथ ही उनके आशीर्वाद को भी प्राप्त करने का एक माध्यम होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि
त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी पूजा का विशेष महत्व श्राद्ध पक्ष के दौरान होता है, जब पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए यह पूजा की जाती है। इसमें पितरों के लिए अन्न,दान,और पूजा का अर्चना किया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके और उनके आशीर्वाद से हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध हो सके।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी पूजन विस्तृत जानकारी (Tripindi Shradh In Hindi)

त्रिपिण्डी पूजा, जिसे त्रिपिंडी श्राद्ध भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा को शांति देने और पितृ दोष को दूर करने के लिए की जाती है। यह पूजा श्राद्ध पक्ष के अंतर्गत की जाती है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार चार मास (आषाढ़, भाद्रपद, आश्वयुज, और कार्तिक) में होता है।

इस पूजा का मुख्य उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिण्डी शब्द का अर्थ होता है “तीन पिण्ड”। इस पूजा में प्रतितिथि, प्रतियोग, और देव पिण्ड का अर्पण किया जाता है। यह तीन पिण्डों को पितरों की आत्मा के लिए अर्पित करने का एक विशेष तरीका है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिण्डी पूजा की विधि:

तिथि का चयन: पूजा का अग्रिम तयारी में पूर्ववर्ती तीन दिनों में कुछ नहाना और शुद्धि के बाद, एक शुभ तिथि का चयन किया जाता है।

पितृ तर्पण: त्रिपिण्डी पूजा के दौरान, विशेष रूप से तैयारी की गई आहार का पितृ तर्पण किया जाता है। इसमें अन्न, दान, औषधि, और गंध शामिल होते हैं।

तीन पिण्डों का अर्पण: पूजा करते समय, प्रतितिथि, प्रतियोग, और देव पिण्डों का अर्पण किया जाता है। यह पिण्ड निर्मिति, ब्राह्मणों को दान देने, और विशेष मंत्रों का जाप करने के साथ किया जाता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

दान और भोजन: त्रिपिण्डी पूजा के दौरान गरीबों को दान देने का परंपरागत रूप से अनुशासन होता है। पितृ तर्पण के बाद, ब्राह्मणों को भोजन प्रदान करना भी महत्वपूर्ण होता है।

त्रिपिण्डी पूजा करने से पितरों को शांति मिलती है और पितृ दोष को दूर किया जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि त्रिपिण्डी पूजा के परिणामस्वरूप, पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी क्यों करते

त्रिपिण्डी पूजा का आयोजन पितरों की आत्मा को शांति देने और पितृ दोष को दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है। हम इस पूजा के माध्यम से अपने पूर्वजों और पितरों के प्रति आभार और समर्पण का अभिवादन करते हैं, जो हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण थे और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

इस पूजा में त्रिपिण्डी श्राद्ध के अंतर्गत, पितरों के लिए तीन पिण्डों का अर्पण किया जाता है – प्रतितिथि, प्रतियोग, और देव पिण्ड। यह पिण्ड उन पितरों के प्रति हमारा समर्पण होता है जो इस जीवन से परे हो गए हैं।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिण्डी पूजा के माध्यम से हम पितरों की आत्मा को शांति देते हैं और उनके द्वारा प्राप्त आशीर्वाद का आभार व्यक्त करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य होता है जिसका पूरा माहत्व अपने पितरों के सम्मान और आशीर्वाद प्राप्त करने में होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी करने के लाभ

त्रिपिण्डी पूजा करने के कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

पितृ दोष के निवारण:

त्रिपिण्डी पूजा करने से पितृ दोष को दूर किया जा सकता है। पितृ दोष जीवन में आने वाली कई समस्याओं का कारण हो सकता है, और इस पूजा के माध्यम से यह दोष समाप्त होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

पितरों की आत्मा को शांति:

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त्रिपिण्डी पूजा करके हम पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। यह हमारे पूर्वजों के प्रति आभार और समर्पण का संकेत होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

आशीर्वाद प्राप्ति:

इस पूजा के माध्यम से हम पितरों के आशीर्वाद की कामना करते हैं। पितरों के आशीर्वाद से हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध होता है और हम अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सफल होते हैं।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

पुण्य की प्राप्ति:

त्रिपिण्डी पूजा करने से हम पुण्य की प्राप्ति करते हैं। पुण्य का अर्थ होता है सकारात्मक कर्म, और इसके द्वारा हम अच्छे कर्मों का अवसर प्राप्त करते हैं।

परिवार के हित में: त्रिपिण्डी पूजा करने से परिवार के सभी सदस्यों को उनके पितरों के प्रति आदर और समर्पण का आभास होता है, जिससे परिवार का सामाजिक और आत्मिक संबंध मजबूत होते हैं।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

इन सभी लाभों के साथ, त्रिपिण्डी पूजा हमारे जीवन को धार्मिकता, आदर्श, और समृद्धि की ओर बढ़ाने में मदद करती है।

  • तिथि का चयन: सबसे पहला कदम होता है त्रिपिण्डी पूजा के लिए उपयुक्त तिथि का चयन करना। इसके लिए पंचांग का सहारा लिया जा सकता है।
  • पूजा स्थल: एक शुद्ध और पवित्र स्थल का चयन करें, जैसे कि घर का पूजा कक्ष या मंदिर।
  • देव पिण्ड: त्रिपिण्डी पूजा के लिए तीन देव पिण्ड तैयार करें। इनमें अन्न, दान, औषधि, और गंध शामिल होते हैं।
  • मंत्र पुस्तक: त्रिपिण्डी पूजा के दौरान प्रयुक्त मंत्रों की पुस्तक की आवश्यकता होती है।

ब्राह्मण का सहायता: इस पूजा का आयोजन विशेष रूप से पंडित या ब्राह्मण के सहायता से करना सुनिश्चित करता है कि सभी नियमों का पालन किया जा रहा है और पूजा सही तरीके से हो रही है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिण्डी पूजा के दौरान,आदिकाल से शुरुआत करें और यथासंभाव पूजा का आयोजन श्राद्ध पक्ष के तिथियों के अनुसार करें।

1- Tripindi – त्रिपिंडी श्राद्ध क्या होता है?

सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध, अपने कुल अथवा अज्ञात अतृप्त आत्माओं की मुक्ति हेतु किया जाता है। पितृगण जो सद्गति को प्राप्त न हुए या जिनको दुर्गति मिली तो, वो ऐसे ही भूमि, अंतरिक्ष एवं आकाश, तीनों स्थानों में भटकते रहते है, जब तक उनको मुक्ति नहीं मिलती और अपने कुल के लोगों को अदृश्य घोर कष्ट देने लगते है।

तो उन पितरों की सद्गति हेतु व प्रेतत्व दूर कर उनकी आत्माओं को मुक्ति देने हेतु त्रिपिंडी श्राद्ध करने का विधान है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

2- त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व

सामान्यतः बड़े बुजुर्गों का देहांत होने के बाद हम उनका क्रियाकर्म, पिंडदान व श्राद्ध विधि विधान से कर देते हैं। परन्तु किसी बालक की मृत्यु होने पर यह सब नहीं करते, जिससे उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाती है। यही एक पूजा है जिससे आप बाल्यावस्था के लिए पिंडदान कर सकते हैं। त्रिपिंडी पूजा में होने वाले पिंडदान से बाल्य, तारुण्य व वृद्ध इन सभी आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

3- त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए कौन बैठ सकता है

जिनकी कुंडली में दोष बताया गया हो उसे पूजा करनी चाहिए। चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हो यह कोई भी कर सकता है, केवल अकेली कोई महिला यह पूजा नहीं कर सकती। सनातन धर्म में महिलाओं को पिंडदान करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। यह कार्य परिवार का कोई पुरुष ही कर सकता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

4- त्रिपिंडी श्राद्ध करने के फायदे

इस श्राद्ध से तीन पीढ़ियों के पितृदोष का निवारण तथा पितरो को मुक्ति मिलती है पूजा समाप्ति के बाद पितरों का आशीर्वाद परिवार को मिलता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि घर में सुख शांति बनी रहती है, धन में वृद्धि होती है। तथा घर से बीमारियां दूर हो जाती है।

गुणवान संतान की प्राप्ति होती है, अगर बच्चे बड़े हो तो उनकी शादी के योग बनने लगते हैं, परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती है, सपने में मरे हुए परिजन नहीं आते हैं, काम धंधे में बरकत होती है, पिंड दान पितृसेवा करने वालों को तीनो लोक में मान सम्मान मिलता है तथा खुद को भी मरने के बाद मुक्ति मिलती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

5- त्रिपिंडी श्राद्ध कब करें

त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा – ये तिथियां एवं संपूर्ण पितृपक्ष उचित होता है ।

अमावस्या को एक मास समाप्त होकर अगली तिथि को नया मास शुरू होता है। पितरों का एक दिन, मानव के एक मास (महिना) के बराबर होता है। अमावस्या को पितरों का भी दिन बदलता है इसलिये अमावस्या तिथि त्रिपिंडी श्राध्द के लिए उचित मानी जाती है। यह विधी केवल एक दिन में संपन्न होती है। परिवार में जब अत्याधिक संकटो का निर्माण हो तो त्रिपिंडी श्राद्ध विधि तत्काल करना उचित माना गया है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

6- श्राद्ध के लिए निषेध काल

परिवार में मंगलकार्य के उपरांत अथवा अशुभ घटना के उपरांत एक वर्ष तक त्रिपिंडी श्राद्ध न करें । अत्यंत अपरिहार्य हो, उदाहरण के लिए – एक मंगलकार्य के उपरांत पुनः कुछ माह के अंतराल पर दूसरा मंगलकार्य नियोजित हो, तो दोनों के मध्यकाल में त्रिपिंडी श्राद्ध करें ।

गुरु शुक्रास्त, गणेशोत्सव एवं शारदीय नवरात्र की कालावधि में त्रिपिंडी श्राद्ध न करें।

श्राद्ध हेतु उचित स्थान

त्रिपिंडी श्राद्ध करने हेतु उचित स्थान – त्र्यंबकेश्वर, गोकर्ण, महाबलेश्वर, गरुडेश्वर, हरिहरेश्वर (दक्षिण काशी), काशी-पिशाच मोचन (वाराणसी)

त्रिपिंडी श्राद्ध ये संकल्पना अपने पूर्वजो की आत्माओ को शांति मिलने के लिए उनके वंशजों द्वारा कि जाने वाला एक अनुष्ठान है। त्रिपिंडी श्राद्ध ये एक काम्य श्राद्ध है, जो अपने मृत पूर्वजो के याद में अर्पित किया जाता है।

अगर तीन वर्षों तक, वंशजों द्वारा पूर्वजो के आत्माओ के शांति मिलने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध नहीं किया गया, तो मृत हिंसक हो जाते है, इसलिए उन्हें शांत करने के लिए पिंड दान विधि की जाती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

श्राद्ध कमलाकर शास्त्र के अनुसार, हमारे पूर्वजों के श्राद्ध एक वर्ष में ७२ बार किया जाना चाहिए अगर कई वर्षों से किसी कारण से श्राद्ध नहीं किया गया, तो पूर्वज असंतुष्ट और नाराज रहते हैं।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

आदित्यपुराण धर्मशास्त्र के अनुसार, यह कहा जाता है कि यदि त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान हर साल नहीं किया गया, तो पूर्वज असंतुष्ट हो कर वंशजों को उसके दुष्परीणामो का सामना करना पड़ता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

अमावस्या व्दादशैव क्षयाहव्दितये तथा।षोडशापरपक्षस्य अष्टकान्वष्टाकाश्च षट॥
संक्रान्त्यो व्दादश तथा अयने व्दे च कीर्तिते।चतुर्दश च मन्वादेर्युगादेश्च चतुष्टयम॥

न सन्ति पितरश्र्चेति कृत्वा मनसि यो नरः।
श्राध्दं न कुरुते तत्र तस्य रक्तं पिबन्ति ते॥(आदित्यपुराण)

ऊपर दिए गए मंत्र के श्लोक से, यह देखा गया है कि हर किसी को अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि वंशज श्राद्ध अनुष्ठान नहीं करते हैं, तो उन्हें दोष के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी श्राद्ध विधी करने के कारण

त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान भूतों, शकिनी, डाकिनी, आदि की यातनाओं से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान गृह क्लेश, व्यापार में असफलता, शांति की कमी, स्वास्थ्य, वित्तीय समस्या, असामयिक मृत्यु, इच्छाओं की असंतोषता, व्यावसायिक समृद्धि की कमी, शादी की समस्या, और संतान आदि विभिन्न समस्याओं दूर करने के लिए किया जाता है।

विभिन्न पापों और पूर्वजों द्वारा शापों से राहत पाने के लिए, यह त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। भगवान ब्रम्हा पुण्य के प्रतिनिधि हैं, भगवान विष्णु और भगवान महेश (शिव) क्रोध के प्रतिनिधि हैं जिनकी आराधना इस अनुष्ठान में की जाती है।

इस त्रिपिंडी श्राद्ध में भगवान ब्रम्हा की पूजा करके उन्हें जेवी पिंड (जौ की गांठ) की दिखाइ जाती है ताकि वे शवों को क्षत-विक्षत कर सकें। दुःख से राहत पाने के लिए, भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जबकि क्रोध के कष्टों से राहत के लिए, भगवान रुद्र की आराधना की जाती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

जो लोग बचपन या युवावस्था में गुजर गए, उनकी आत्माए असंतुष्ट और अप्रसन्न रहती है, उसके लिये उनके घर वालो को नासिक,त्र्यंबकेश्वर मंदिर में उनके लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए। त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान में पुर्वजो के नाम और “गोत्र” का उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि किसी को भी सखोल ज्ञान नहीं होता है कि कौनसे पूर्वजों के शाप से वे पीडित है और कौनसे पूर्वज नाराज हैं ।

हमारे पूर्वजों की असंतुष्ट आत्माओं को मुक्ति पाने के लिए, यह त्रिपिंडी श्राद्ध विधी मुख्य रूप से नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर में कि जाती है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्र्यंबकेश्वर में त्रिपिंडी श्राद्ध विधी

त्रिपिंडी श्राद्ध एक धार्मिक विधी है जो की केवल नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर मे ही की जाती है, जो मुख्यतः दानव मुक्ति के लिए है।

त्रिदेवता (भगवान श्री ब्रह्मा , भगवान श्री विष्णु , भगवान श्री शिव ) जो इस अनुष्ठान में प्रमुख देवता है, जिनके आशिर्वाद से पूर्वजो की असंतुष्ट आत्माओ को मोक्ष मिलता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

यह उचित है कि नवरात्र उत्सव के दिनों में इस श्राद्ध विधी को और इसके अलावा एक ही दिन त्रिपिंडी और तीर्थ श्राद्ध न करें। लेकिन अगर किसी कारणवश करना पड़े तो पहले त्रिपिंडी श्राद्ध करें और फिर तीर्थ श्राद्ध करें।

त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पहले, माफी मांगने और शरीर शुद्धिकरण के लिए गंगा नदी में एक पवित्र स्नान करना आवश्यक है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा

त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा “विष्णु पाद” पर संकलित “पिंड” (चावल के बनाये पिंड ) के साथ की जाती है, जिससे गदाधर के रूप में स्थित भगवान विष्णु शांत होते हैं। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, यह सुझाव दिया जाता है, कि यह त्रिपिंडी श्राद्ध केवल तीर्थक्षेत्र में किया जाता है, और अन्य तीर्थक्षेत्र जैसे रामेश्वरम, गोकर्ण, श्रीरंगपट्टण, श्रीशैलम, गया मे से त्र्यंबकेश्वर सबसे शुभ स्थान माना जाता है।त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

 त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा कब करनी चाहिए?

त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि
त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह अनुष्ठान वैशाखमास, श्रवणमास, कार्तिकमास, मार्गशीर्षमा, पौषमास, माघमास और फालुगुणमास जैसे महीनों में की जानी चाहिए।

त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान के लिए दक्षिणायन और पंचमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी जैसी तिथि या अमावस्या भी अधिक उचित है। इस त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा को कन्या राशी या तुलसी (राशि तुला) में सूर्य के पारगमन के दौरान करना होगा, जो कि आमतौर पर सितंबर और दिसंबर में होता है।

हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार तीन प्रकार के ऋण होते है. पितृ ऋण, ऋषि ऋण, परमात्मा ऋण, शास्त्रोनुसार पूजा करने से और उपास रखनेसे परमात्मा ऋण से मुक्ति मिलाती है. और श्राद्ध, पितृपुजन जैसे विधि करने से मनुष्य को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है ब्राम्हण यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण जैसे विधि करने के लिए वचनबद्ध है.

यह विधि मृत व्यक्ति के स्मरण दिन के आलावा हर रोज भी कर सकते है.

त्रिपिंडी श्राद्ध को काम्य श्राद्ध भी कहा जाता है. जिस मृत व्यक्ति का श्रद्ध लगातार ३ साल ना किया गया हो उसका आत्मा प्रेत योनी में परिवर्तित होता है. अमावस पितरोंका दिन होता है. अतः अमावस के दिन यह श्राद्ध किया जा सकता है.त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी श्राद्ध कब और कहा करे?

त्रिपिंडी श्राद्ध शुक्ल या कृष्ण पक्ष के पंचमी, अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस इन में से किसी भी दिन किया जा सकता है. सामान्यतः १६ सेप्टेम्बर से १५ नोवेम्बर के दरमियाँ सूर्य कन्या और तूल राशी में होता है. इन दिनों में पितर पृथ्वी लोक में आते है. अतः यह काल त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए सर्वोत्तम होता है.

त्रिपिंडी श्राद्ध त्र्यम्बकेश्वर में ही किया जाता है. जो भगवान शिवजी का पवित्र स्थान है. मात्र त्र्यम्बकेश्वर में यह विधि साल के किसीभी दिन किया जा सकता है.त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी करने का हक़ किस को है?

पति पत्नी जोड़ी से, विधवा, अविवाहित व्यक्ति यह विधि अपनी कुटुंब के कल्याण के लिए कर सकते है. हिन्दू धर्मशास्त्र अनुसार कोई स्त्री विवाह करते दुसरे घर में जाती है, तो वह अपने माता पिता की आत्मा की मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध नहीं कर सकती. मगर वह अपने ससुराल के पितरों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर सकती. इस विधि के लिए नए, न धोए हुए सफ़ेद कपडे परिधान किये जाते है.त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

त्रिपिंडी का प्रतिफल :

यह विधि धर्मशात्र में बताये गए तरीके नुसार ही होना चाहिए. और यह विधि करने वाले की विधि और भगवान पर पूरी श्रद्धा होना अपेक्षित है. तभी उसे विधि का अच्छा फल मिलता है. कई लोग अपने स्वकियों को या माता पिता को उनके जीवन काल में कष्ट देते है.

और उनकी मृत्य परांत अपनी कथित सामाजिक प्रतिष्ठा लोगोंको दिखने के लिए और बढ़ाने के लिए अनेकों प्रकार के विधि करते है. इस तरह के समारंभ इन दिनों आम हो गए है. इस तरह से किसी भी पीड़ित आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकती.

बल के इस तरह से विधि करने से हम उन आत्माओं को नाराज कर देते है और अपनी परेशानिया और भी बढ़ जाती है. अगर किसी व्यक्ति ने नारायण नागबलि यह विधि किया हो, तो उसे त्रिपिंडी श्राद्ध करने की जरूरत नहीं.त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष निवारण)Tripindi Shradh In Hindi-त्रिपिंडी श्राद्ध पितृ दोष निवारण विधि

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रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

मंगल भवन अमंगल हारी संत शिरोमणि गोस्वामी बाबा तुलसीदासजी महाराज की रामचरितमानस में लिखित चौपाई है।मंगल भवन अमंगल हारी इस चौपाई मे भगवान राम के जीवन का सुन्दर वर्णन किया गया है। ये प्रसिद्ध चौपाई को बहुत सारे व्यक्तियों के द्वारा गया गया है |रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

यहाँ आप इसकी सारी 108 चौपाई पढ़ सकते हैं

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥
जय रघुनन्दन जय घनश्याम । पतित पावन सीताराम॥

मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रवउ सुदसरथ अजिर बिहारी,
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम,
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम॥

हरि अनंत हरि कथा अनंता,
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता,
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम,
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम ॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख हमारे॥
दशरथ के घर जन्में राम। पतित पावन सीताराम ॥1

विश्वामित्र मुनीश्वर आए। दशरथ भूप से वचन सुनाये।॥
संग में भेजे लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम ॥2

वन में जाय ताड़का मारी। चरण छुआय अहिल्या तारी॥
ऋषियों के दु:ख हरते राम। पतित पावन सीताराम॥3

जनकपुरी रघुनन्दन आए। नगर निवासी दर्शन पाए॥
सीता के मन भाये राम। पतित पावन सीताराम॥4

रघुनन्दन ने धनुष चढाया। सब राजों का मान घटाया॥
सीता ने वर पाये राम। पतित पावन सीताराम॥5

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

परशुराम क्रोधित हो आए। दुष्ट भूप मन में हरषाये॥
जनकराय ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥6

बोले लखन सुनो मुनि ज्ञानी। संत नहीं होते अभिमानी॥
मीठी वाणी बोले राम। पतित पावन सीताराम॥7

लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो। जो कुछ दण्ड दास को दीजो॥
धनुष तुडइय्या मैं हूँ राम। पतित पावन सीताराम॥8

लेकर के यह धनुष चढाओ। अपनी शक्ति मुझे दिखाओ॥
छूवत चाप चढाये राम। पतित पावन सीताराम॥9

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
१०
हुई उर्मिला लखन की नारी। श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी॥
हुई मांडवी भरत के वाम। पतित पावन सीताराम॥
११
अवधपुरी रघुनन्दन आए। घर-घर नारी मंगल गए॥
बारह वर्ष बिताये राम। पतित पावन सीताराम॥
१२
गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी। राजतिलक तैयारी कीनी॥
कल को होंगे राजा राम। पतित पावन सीताराम॥
१३
कुटिल मंथरा ने बहकायी। केकैई ने यह बात सुनाई॥
दे दो मेरे दो वरदान। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
१४
मेरी विनती तुम सुन लीजो। पुत्र भरत को गद्दी दीजो॥
होत प्रात: वन भेजो राम। पतित पावन सीताराम॥
१५
धरनी गिरे भूप तत्काल। लागा दिल में शूल विशाल॥
तब सुमंत बुलवाये राम। पतित पावन सीताराम॥
१६
राम, पिता को शीश नवाये। मुख से वचन कहा नहिं जाये॥
केकैयी वचन सुनायो राम। पतित पावन सीताराम॥
१७
राजा के तुम प्राण प्यारे। इनके दुःख हरोगे सारे॥
अब तुम वन में जाओ राम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
१८
वन में चौदह वर्ष बिताओ। रघुकुल रीति नीति अपनाओ॥
आगे इच्छा तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम॥
१९
सुनत वचन राघव हर्षाये। माता जी के मन्दिर आए॥
चरण-कमल में किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥
२०
माता जी मैं तो वन जाऊँ। चौदह वर्ष बाद फिर आऊं॥
चरण कमल देखूं सुख धाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
२१
सुनी शूल सम जब यह बानी। भू पर गिरी कौशल्या रानी।॥
धीरज बंधा रहे श्री राम। पतित पावन सीताराम॥
२२
समाचार सुनी लक्ष्मण आए। धनुष-बाण संग परम सुहाए॥
बोले संग चलूँगा राम। पतित पावन सीताराम॥
२३
सीताजी जब यह सुध पाईं। रंगमहल से निचे आईं॥
कौशल्या को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥
२४
मेरी चूक क्षमा कर दीजो। वन जाने की आज्ञा दीजो॥
सीता को समझाते राम। पतित पावन सीताराम॥
२५
मेरी सीख सिया सुन लीजो। सास ससुर की सेवा कीजो॥
मुझको भी होगा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
२६
मेरा दोष बता प्रभु दीजो। संग मुझे सेवा में लीजो॥
अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम॥
२७
राम लखन मिथिलेश कुमारी। बन जाने की करी तैयारी॥
रथ में बैठ गए सुख धाम। पतित पावन सीताराम॥
२८
अवधपुरी के सब नर-नारी। समाचार सुन व्याकुल भारी॥
मचा अवध में अति कोहराम। पतित पावन सीताराम ॥
२९
श्रृंगवेरपुर रघुबर आए। रथ को अवधपुरी लौटाए॥
गंगा तट पर आए राम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
३०
केवट कहे चरण धुलवाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ॥
पत्थर कर दी नारी राम। पतित पावन सीताराम॥
३१
लाया एक कठौता पानी। चरण-कमल धोये सुखमानी॥
नाव चढाये लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम॥
३२
उतराई में मुंदरी दीन्हीं। केवट ने यह विनती कीन्हीं॥
उतराई नहीं लूँगा राम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
३३
तुम आए हम घाट उतारे। हम आयेंगे घाट तुम्हारे॥
तब तुम पार लगाओ राम। पतित पावन सीताराम॥
३४
भारद्वाज आश्रम पर आए। राम लखन ने शीष नवाए॥
एक रात कीन्हा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥
३५
भाई भरत अयोध्या आए। केकैई को यह वचन सुनाए॥
क्यों तुमने वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम॥
३६
चित्रकूट रघुनन्दन आए। वन को देख सिया सुख पाये॥
मिले भरत से भाई राम। पतित पावन सीताराम॥
३७
अवधपुरी को चलिए भाई। ये सब केकैई की कुटिलाई॥
तनिक दोष नहीं मेरा राम। पतित पावन सीताराम॥
३८
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पाओ॥
भरत को कंठ लगाए राम। पतित पावन सीताराम॥

 ३९
आगे चले राम रघुराया। निशाचरों का वंश मिटाया॥
ऋषियों के हुए पूरन काम। पतित पावन सीताराम॥
४०
मुनिस्थान आए रघुराई। शूर्पणखा की नाक कटाई॥
खरदूषन को मारे राम।पतित पावन सीताराम॥
४१
पंचवटी रघुनन्दन आए। कनक मृग ‘मारीच’ संग धाये॥
लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम। पतित पावन सीताराम॥

 ४२
रावन साधु वेष में आया। भूख ने मुझको बहुत सताया॥
भिक्षा दो यह धर्म का काम। पतित पावन सीताराम॥
४३
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठी॥
सूनी कुटिया देखी राम। पतित पावन सीताराम॥
४४
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलताई॥
हे प्रिय सीते, चीखे राम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
४५
लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते। जनकदुलारी नहीं गवांते॥
तुमने सभी बिगाड़े काम। पतित पावन सीता राम॥
४६
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते॥
लगे चाँदनी जैसे घाम। पतित पावन सीता राम॥
४७
सुन री मैना, सुन रे तोता | ॥ मैं भी पंखों वाला होता॥
वन वन लेता ढूंढ तमाम। पतित पावन सीता राम॥

 ४८
सुन रे गुलाब, चमेली जूही। चम्पा मुझे बता दे तू ही॥
सीता कहाँ पुकारे राम। पतित पावन सीताराम॥
४९
हे नाग सुनो मेरे मन हारी। कहीं देखी हो जनक दुलारी॥
तेरी जैसी चोटी श्याम। पतित पावन सीताराम॥
५०
श्यामा हिरनी तू ही बता दे। जनक-नंदिनी मुझे मिला दे॥
तेरे जैसी आँखें श्याम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

 ५१
हे अशोक मम शोक मिटा दे। चंद्रमुखी से मुझे मिला दे॥
होगा तेरा सच्चा नाम। पतित पावन सीताराम॥
५२
वन वन ढूंढ रहे रघुराई। जनकदुलारी कहीं न पाई॥
गिद्धराज ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
५३
चखचख कर फल शबरी लाई। प्रेम सहित पाये रघुराई॥
ऐसे मीठे नहीं हैं आम। पतित पावन सीताराम॥
५४
विप्र रूप धरि हनुमत आए। चरण-कमल में शीश नवाए॥
कंधे पर बैठाये राम। पतित पावन सीताराम॥
५५
सुग्रीव से करी मिताई। अपनी सारी कथा सुनाई॥
बाली पहुँचाया निज धाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
५६
सिंहासन सुग्रीव बिठाया। मन में वह अति ही हर्षाया॥
वर्षा ऋतु आई हे राम। पतित पावन सीताराम॥
५७
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ। वानरपति को यूँ समझाओ॥
सीता बिन व्याकुल हैं राम। पतित पावन सीताराम॥
५८
देश-देश वानर भिजवाए। सागर के तट पर सब आए॥
सहते भूख, प्यास और घाम। पतित पावन सीताराम॥
५९
सम्पाती ने पता बताया। सीता को रावण ले आया॥
सागर कूद गये हनुमान। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
६०
कोने-कोने पता लगाया। भगत विभीषण का घर पाया॥
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥
६१
हनुमत अशोक वाटिका आए। वृक्ष तले सीता को पाए॥
आँसू बरसे आठों याम। पतित पावन सीताराम॥
६२
रावण संग निशाचरी लाके। सीता को बोला समझा के॥
मेरी और तो देखो बाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
६३
मंदोदरी बना दूँ दासी। सब सेवा में लंकावासी॥
करो भवन चलकर विश्राम। पतित पावन सीताराम॥
६४
चाहे मस्तक कटे हमारा। मैं देखूं न बदन तुम्हारा॥
मेरे तन-मन-धन हैं राम। पतित पावन सीताराम॥
६५
ऊपर से मुद्रिका गिराई। सीता जी ने कंठ लगाई॥
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
६६
मुझको भेजा है रघुराया। सागर कूद यहाँ मैं आया॥
मैं हूँ राम-दास हनुमान | ॥ पतित पावन सीताराम॥
६७
माता की आज्ञा मैं पाऊँ। भूख लगी मीठे फल खाऊँ॥
पीछे मैं लूँगा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥
६८
वृक्षों को मत हाथ लगाना। भूमि गिरे मधुर फल खाना॥
निशाचरों का है यह धाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
६९
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े। देख-देख माली ललकारे॥
मार-मार पहुंचाए धाम। पतित पावन सीताराम॥
७०
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुँचाया। इन्द्रजीत फाँसी ले आया॥
ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान। पतित पावन सीताराम॥
७१
सीता को तुम लौटा दीजो। प्रभु से क्षमा याचना कीजो॥
तीन लोक के स्वामी राम। पतित पावन सीताराम॥
७२
भगत विभीषन ने समझाया। रावण ने उसको धमकाया॥
सम्मुख देख रहे हनुमान। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
७३
रुई, तेल, घृत, बसन मंगाई। पूँछ बाँध कर आग लगाई॥
पूँछ घुमाई है हनुमान। पतित पावन सीताराम॥
७४
सब लंका में आग लगाई। सागर में जा पूँछ बुझाई॥
ह्रदय-कमल में राखे राम। पतित पावन सीताराम॥
७५
सागर कूद लौटकर आए। समाचार रघुवर ने पाए।॥
जो माँगा सो दिया इनाम। पतित पावन सीताराम॥
७६
वानर रीछ संग में लाए। लक्ष्मण सहित सिन्धु तट आए॥
लगे सुखाने सागर राम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
७७
सेतु कपि नल नील बनावें। राम राम लिख शिला तैरावें।॥
लंका पहुँचे राजा राम। पतित पावन सीताराम॥
७८
निशाचरों की सेना आई। गरज तरज कर हुई लड़ाई॥
वानर बोले जय सियाराम पतित पावन सीताराम॥
७९
इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई। धरनी गिरे लखन मुरछाई।॥
चिंता करके रोये राम। पतित पावन सीताराम॥
८०
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय! पिता ने प्राण गंवाया॥
वन में गई चुराई वाम। पतित पावन सीताराम॥
८१
भाई, तुमने भी छिटकाया। जीवन में कुछ सुख नहीं पाया॥
सेना में भारी कोहराम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
८२
जो संजीवनी बूटी को लाये। तो भी जीवित हो जाए॥
बूटी लायेगा हनुमान। पतित पावन सीताराम॥
८३
जब बूटी का पता न पाया। पर्वत ही लेकर के आया॥
कालनेमि पहुँचाया धाम। पतित पावन सीताराम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
८४
भक्त भरत ने बाण चलाया। चोट लगी हनुमत लंग्दय॥
मुख से बोले जय सिया राम। पतित पावन सीताराम॥
८५
बोले भरत बहुत पछता कर। पर्वत सहित बाण बिठा कर॥
तुम्हें मिला दूँ राजा राम । पतित पावन सीताराम॥
८६
बूटी लेकर हनुमत आया। लखन लाल उठ शीश नवाया।॥
हनुमत कंठ लगाये राम। पतित पावन सीता राम॥
८७
कुम्भकरण उठ कर तब आया। एक बाण से उसे गिराया॥
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
८८
दुर्गा पूजा रावण कीनो | ॥ नौ दिन तक आहार न लीनो॥
आसन बैठ किया है ध्यान। पतित पावन सीता राम॥
८9
रावण का व्रत खंडित किना। परम धाम पहुँचा ही दीना॥
वानर बोले जयसिया राम। पतित पावन सीता राम॥
९०
सीता ने हरि दर्शन किना। चिंता-शोक सभी ताज दीना॥
हंसकर बोले राजाराम। पतित पावन सीता राम॥
९१
पहले अग्नि परीक्षा कराओ। पीछे निकट हमारे आओ॥
तुम हो पति व्रता हे बाम। पतित पावन सीता राम॥
९२
करी परीक्षा कंठ लगाई। सब वानर-सेना हरषाई॥
राज विभीष्ण दीन्हा राम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
९३
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सहित बैठ रघुराया॥
किष्किन्धा को लौटे राम। पतित पावन सीता राम॥
९४
ऋषि पत्नी दर्शन को आई। दीन्ही उनको सुन्दर्तई॥
गंगा-तट पर आए राम। पतित पावन सीता राम॥
९५
नंदीग्राम पवनसूत आए। भगत भरत को वचन सुनाये॥
लंका से आए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥
९६
कहो विप्र, तुम कहाँ से आए। ऐसे मीठे वचन सुनाये॥
मुझे मिला दो भैया राम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
९७
अवधपुरी रघुनन्दन आए। मन्दिर-मन्दिर मंगल छाये॥
माताओं को किया प्रणाम। पतित पावन सीता राम॥
९८
भाई भरत को गले लगाया। सिंहासन बैठे रघुराया॥
जग ने कहा, हैं राजा राम। पतित पावन सीता राम॥
९९
सब भूमि विप्रों को दीन्ही। विप्रों ने वापिस दे दीन्ही॥
हम तो भजन करेंगे राम। पतित पावन सीता राम॥
१००
धोबी ने धोबन धमकाई। रामचंद्र ने यह सुन पाई॥
वन में सीता भेजी राम। पतित पावन सीता राम॥
१०१
बाल्मीकि आश्रम में आई। लव और कुश हुए दो भाई॥
धीर वीर ज्ञानी बलवान। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
१०२
अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम। सीता बिनु सब सुने काम।।॥
लव-कुश वहां लियो पहचान। पतित पावन सीता राम॥
१०३
सीता राम बिना अकुलाईँ। भूमि से यह विनय सुनाईं॥
मुझको अब दीजो विश्राम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi
१०४
सीता भूमि माई समाई। सुनकर चिंता करी रघुराई॥
उदासीन बन गए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥
१०५
राम-राज्य में सब सुख पावें। प्रेम-मग्न हो हरि गुन गावें॥
चोरी चाकरी का नहीं काम। पतित पावन सीता राम॥
१०६
ग्यारह हज़ार वर्षः पर्यन्त। राज किन्ही श्री लक्ष्मीकंता॥
फिर बैकुंठ पधारे राम। पतित पावन सीता राम॥
१०७
अवधपुरी बैकुंठ सीधी। नर-नारी सबने गति पाई॥
शरणागत प्रतिपालक राम। पतित पावन सीता राम॥
१०८
‘हरि भक्त’ ने लीला गाई। मेरी विनय सुनो रघुराई॥
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम। पतित पावन सीता राम॥

रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

॥इति रामायण मनका 108॥रामायण मनका १०८ चौपाई लिरिक्स-Ramayan Manka108 Lyrics In Hindi

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नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच, भारतीय संस्कृति में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है, जो हिन्दू धर्म के अनुष्ठानों में एक अत्यंत महत्व रखता है। इसके अर्थ और महत्व के साथ, यह आराधना और भक्ति का माध्यम भी होता है। हम इस लेख में नारायण कवच के महत्व, लाभ, और मंत्र की गहराईयों में जाएंगे और आपको इस आदर्श कवच के विशेष अर्थ को समझाने का प्रयास करेंगे।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
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नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच क्या है?

नारायण कवच एक प्रकार की पूजा या आराधना है जिसमें भगवान विष्णु की रक्षा के लिए एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है। यह कवच भक्तों को सुरक्षित और सुखी जीवन की प्राप्ति में मदद करता है और उन्हें नेगेटिव शक्तियों से बचाने में मदद करता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच के महत्व

नारायण कवच का उच्चारण करने से कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं:

रोग और बुराई से सुरक्षा:

नारायण कवच के उच्चारण से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित रहने की शक्ति मिलती है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

आत्मा का शांति:

यह कवच भक्तों को आत्मा की शांति और सकारात्मकता प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे वे जीवन के हर पहलू में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

पूजा और आराधना का माध्यम: नारायण कवच का उच्चारण भक्तों के लिए उनके भगवान के प्रति आदर्श रूप से काम आता है, जो उनकी आराधना को मजबूती और ध्यान केंद्रित करता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच का मंत्र यहाँ प्रस्तुत है:

ॐ नारायणाय नमः

इस मंत्र का नियमित उच्चारण करने से भक्त अपने जीवन में शुभ और सुख की ओर बढ़ सकते हैं।

नारायण कवच के उपयोग

नारायण कवच का उच्चारण अपने दैनिक जीवन में निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा सकता है:

पूजा और आराधना:

भक्तों के लिए रोज़ाना की पूजा में नारायण कवच का उच्चारण करना उनकी आराधना को अधिक प्रभावी बना सकता है।

सुरक्षा और रक्षा:

इसे सुरक्षा के उद्देश्यों के लिए भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि यात्रा के समय या कठिनाइयों का सामना करते समय।

मानसिक शांति:

नारायण कवच का उच्चारण मानसिक तनाव और चिंता को दूर करने में मदद कर सकता है और आत्मा को शांति प्रदान कर सकता है।

नारायण कवच का महत्वपूर्ण अंश

नारायण कवच का महत्वपूर्ण अंश है कि इसका नियमित उच्चारण और आराधना से भक्तों को भगवान के साथ एक गहरा और सांत्वना भरा संबंध बनाने में मदद मिलती है। यह एक पूर्ण रक्षा कवच के रूप में काम करता है और उन्हें अनगिनत शुभ गुण देता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच पाठ को नियमित रूप से करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें:

स्थिति और समय:

नारायण कवच का पाठ सुबह के समय या सायंकाल में करें। यह सबसे अच्छा होता है क्योंकि यह आपके दिन की शुरुआत और समापन को पवित्र बनाता है।

पवित्रता:

पाठ करते समय, आपको पवित्रता का पालन करना चाहिए। हाथ धोकर और साफ कपड़े पहनकर यह कवच पाठ करें।

मंत्र का उच्चारण:

नारायण कवच का मंत्र “ॐ नारायणाय नमः” का उच्चारण सुकून से और मन से करें। ध्यानपूर्वक और समर्पण भाव से मंत्र का जप करें।

स्थान:

ध्यान दें कि पाठ करते समय आपके आसपास शांति और सुकून हो, ताकि आप अपने मन को भगवान की ओर संजीवनी कर सकें।

नियमितता:

नारायण कवच पाठ को नियमित रूप से करें। यह हर दिन करने से अधिक फायदेमंद होता है।

आदरणीयता:

नारायण कवच का पाठ करते समय आपको भगवान के प्रति आदरणीय भाव रखना चाहिए।

समापन:

पाठ करने के बाद, ध्यानपूर्वक ध्यान करें और भगवान का आभार व्यक्त करें।

नारायण कवच पाठ के नियमों का पालन करने से आप अपने जीवन में शुभता और सुख की ओर बढ़ सकते हैं और भगवान के साथ गहरा संबंध बना सकते हैं।

नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच में पूछे जाने वाले प्रस्नों का उत्तर इस प्रकार हैं:

क्या नारायण कवच का पाठ किसी विशेष समय पर किया जा सकता है?

हां, नारायण कवच का पाठ सुबह के समय या सायंकाल में किया जा सकता है, लेकिन यह किसी भी समय किया जा सकता है, यदि आपके पास उचित स्थान और सांत्वना है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
क्या नारायण कवच का पाठ रोज़ाना करना चाहिए?

हां, नारायण कवच का नियमित उच्चारण अधिक फायदेमंद होता है। यह आपको आत्मिक और शारीरिक सुख की ओर अग्रसर करने में मदद करता है।
क्या नारायण कवच का पाठ किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जा सकता है?नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

हां, नारायण कवच का पाठ किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, जैसे कि सुरक्षा, सुख, या आराधना की वृद्धि के लिए। आप इसे अपने आवश्यकताओं और आदर्शों के अनुसार पाठ कर सकते हैं।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
क्या नारायण कवच का पाठ केवल हिन्दू धर्म के भक्त ही कर सकते हैं?

नहीं, नारायण कवच का पाठ किसी भी धर्म के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। यह एक भक्ति और आध्यात्मिकता का माध्यम है और सभी मानवों के लिए उपयोगी हो सकता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
क्या नारायण कवच का पाठ करने से कोई खास शक्तियाँ प्राप्त होती हैं?

नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है, और यह उन्हें बुराई से सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है। यह कवच आत्मा को शांति प्रदान करने की ओर बढ़ावा देता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
क्या नारायण कवच का पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है?

हां, नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, क्योंकि यह मानसिक तनाव को कम करने और शारीरिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
ये थे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर जो नारायण कवच के पाठ के संबंध में हैं। आप इस कवच को नियमित रूप से पाठ करके आत्मिक और शारीरिक सुख की ओर अग्रसर हो सकते हैं।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच का पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:

सामग्री:

शुद्ध और साफ कपड़े में बैठें।
जप माला (बीड़े)।

धूप और दीपक (अगर आवश्यक हो)।
पाठ की विधि:

पाठ करने से पहले,
धूप और दीपक जलाएं, और आपके आसपास की वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए मन में भगवान नारायण को स्मरण करें।

अपने असन पर सुखमय बैठें और ध्यान में रहें।

अपने मन को शांति और स्थिरता में लाने के लिए एक क्षण के लिए मौन बने रहें।

अब जप माला को अपने दाहिने हाथ की मध्यमा और अंगूठे के उस निशानी में रखें जो हृदय के बगीचे के निकट होता है।

माला के पहले मन्त्र

“ॐ नारायणाय नमः” का पाठ करें। माला के एक बीड़े को आपके अंगूठे और मध्यम उंगली के बीच ले जाएं और उसे धीरे से बढ़ाएं जैसे कि आप माला के बीड़े को फिंगरप्रिंट पर धकेल रहे हैं।

इसके बाद,
माला के हर एक बीड़े के साथ मन्त्र का उच्चारण करें, और समय और दिशा के साथ माला को घुमाएं।

आप जितना सके, इस पाठ को नियमित रूप से करें, और अपने मन को पूर्ण ध्यान में रखें।

पाठ के समापन के बाद, ध्यान में रहें और भगवान नारायण का आभार व्यक्त करें।

इस रूप में, आप नारायण कवच का पाठ कर सकते हैं और अपने आत्मिक और शारीरिक सुख की ओर अग्रसर हो सकते हैं। यह धार्मिक आदर्श और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

पूजन सामग्री

पूजन सामग्री का उपयोग धार्मिक पूजन और आराधना के दौरान किया जाता है और यह धार्मिक माहौल को पवित्र और सुंदर बनाने में मदद करता है। यहाँ पूजन सामग्री की एक सामान्य सूची दी गई है:

मूर्तियाँ या प्रतिमाएँ:

पूजन में विशेष देवता या देवी की मूर्ति या प्रतिमा का उपयोग किया जाता है।

पूजन कपड़ा:

एक पूजन कपड़ा धर्मिक स्थल पर फैलाया जाता है जिस पर मूर्ति या प्रतिमा रखी जाती है। यह धर्मिक पूजन के लिए साफ और शुद्ध होना चाहिए।

दीपक और दीप:

धार्मिक पूजन के दौरान दीपक (दिया) जलाया जाता है, जो प्रतितिथि को प्रकाशित करता है और आत्मिक शांति का प्रतीक होता है।

धूप और धूपदान:

धूप की गंध धार्मिक पूजन के लिए उपयोग की जाती है, और धूपदान इसे जलाने के लिए उपयोग होता है।

कुश या आसन:

पूजा करते समय एक कुश या आसन पर बैठा जाता है ताकि धार्मिक पूजन के दौरान सुखद और आरामदायक हो।

पूजन के यंत्र और उपकरण:

कुछ पूजा के लिए विशेष यंत्र और उपकरण भी उपयोग में आते हैं, जैसे कि माला, कमंडल, बेल, और शंख।

पुष्प और फल:

पुष्पों और फलों का उपयोग पूजन में अर्पित करने के लिए किया जाता है, जो आदर्श और सुंदर पूजन का हिस्सा होते हैं।

आचमनीय पानी:

पूजा के बाद आचमनीय पानी का पान किया जाता है, जिससे पवित्रता बनी रहती है।

प्रासाद:

पूजा के बाद भगवान को प्रासाद के रूप में आहार अर्पित किया जाता है, जिसे फिर भक्तों को बाँटा जाता है।

ये सामग्री धार्मिक पूजन और आराधना के दौरान उपयोग की जाती है और आत्मिक संबंध और धार्मिक माहौल को मजबूत बनाने में मदद करती है।

नारायण कवच का पूजन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है:

सामग्री:

नारायण कवच पाठ पुस्तक (यदि आपके पास हो)।
पूजन कपड़ा (पूजन के लिए विशेष कपड़ा)।
दीपक (दिया) और धूप (आरती के लिए)।
पुष्प (फूल) और फल (फलों की नैवेद्य)।
पूजा के लिए विशेष स्थान जैसे कि आलंब (यदि आपके पास हो)।
जल (पुजारी और देवता को शुद्ध करने के लिए)।
जप माला (मंत्र का जप करने के लिए)।

पूजन की विधि:

पूजा का आदरंग आयोजन करें:

पूजा की शुरुआत में पूजा कपड़ा फैलाएं और दीपक को जलाएं।

धूप और धूपदान:

धूप की गंध धार्मिक पूजा के लिए उपयोग की जाती है, और धूपदान इसे जलाने के लिए उपयोग होता है।

मंत्र का जप:

अब नारायण कवच का मंत्र “ॐ नारायणाय नमः” का उच्चारण करें, जब आप जप माला के साथ माला के बीड़े को धीरे से बढ़ाते हैं। मंत्र का जप ध्यानपूर्वक और श्रद्धा भाव से करें।

पुष्पों और फलों का आरोपण:

पूजा के दौरान पुष्प (फूल) और फल (फलों की नैवेद्य) को देवता के चरणों पर अर्पित करें।

आरती:

आरती के लिए दीपक को आरती करें और गीत या मंत्रों के साथ देवता को अर्पित करें।

ध्यान और आभार:

पूजा के बाद ध्यान में रहें और भगवान का आभार व्यक्त करें।

प्रासाद:

पूजा के बाद भगवान को प्रासाद के रूप में आहार अर्पित करें, जिसे फिर भक्तों को बाँटा जाता है।

नारायण कवच का पूजन इस रूप में किया जा सकता है और इससे आप अपने आत्मिक और धार्मिक संबंध को मजबूत कर सकते हैं। यह धार्मिक आराधना का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और आत्मिक उन्नति में मदद करता है।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

नारायण कवच में प्रसाद|

नारायण कवच का पूजन करते समय, प्रसाद बनाने और प्रसाद अर्पित करने का प्रसंस्कार बड़े महत्वपूर्ण होता है। प्रसाद का अर्थ होता है भगवान के आशीर्वाद के रूप में कुछ आहार जो भक्तों को दिया जाता है। यहां एक सामान्य प्रसाद की सूची दी गई है:नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

पूरी और सब्जी:

बहुत से लोग नारायण कवच का पूजन करते समय पूरी और सब्जी तैयार करते हैं और इसे भगवान को अर्पित करते हैं।

केसरी:

केसरी (सफ्रोन) का बनाया गया हलवा भी प्रसाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

मिठाई:

मिठाई जैसे बेसन के लड्डू, गुड़ की पिंडी, और जलेबी भी प्रसाद के रूप में उपयोग होते हैं।

फल:

फलों को भी प्रसाद के रूप में अर्पित किया जा सकता है, जैसे कि नारियल, बनाने, और सेब।

चावल और दाल:

चावल और दाल के आलू या खिचड़ी भी प्रसाद के रूप में दिया जा सकता है।

दूध और पंचामृत:

पूजा के दौरान दूध और पंचामृत का उपयोग भी किया जाता है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद, और गंदक होता है।

फुली कृत्य वस्त्र:

पूजा करते समय पूजन कपड़े के ऊपर फुली कृत्य वस्त्र को प्रसाद के रूप में रखा जा सकता है।

प्रसाद के प्लेट और थाली:

प्रसाद को प्राप्त करने के लिए एक साफ प्लेट या थाली का उपयोग करते हैं और उसमें पूजन सामग्री रखते हैं।

नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम
नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

प्रसाद तैयार करने और प्रसाद देने का उद्देश्य होता है भगवान के आशीर्वाद को भक्तों के साथ साझा करना और आत्मिक उन्नति में मदद करना। धार्मिक पूजा और आराधना में प्रसाद का महत्वपूर्ण स्थान होता है और यह धार्मिक समुदायों में एक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा का हिस्सा होता है।

॥अथ श्री नारायण कवच॥

ॐ श्री विष्णवे नमः ॥
ॐ श्री विष्णवे नमः ॥
ॐ श्री विष्णवे नमः ॥

ॐ नमो नारायणाय ॥
ॐ नमो नारायणाय ॥
ॐ नमो नारायणाय ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताड़् घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।
दरारिचर्मासिगदेषुचापपाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ॥१॥

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात् ।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥२॥

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरुयूथपारिः ।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥३॥

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः ।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ॥४॥

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात् ।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥५॥

सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् ।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥६॥

धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा ।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ॥७॥

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात् ।
कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ॥८॥

मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसंगवमात्तवेणुः ।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥९॥

देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम् ।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः ॥१०॥

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥११॥

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम् ।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥१२॥

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥१३॥

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ॥१४॥

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि ।
चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥१५॥

यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च ।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ॥१६॥

सर्वाण्येतानि भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ॥१७॥

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः ।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥१८॥

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः ।
बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ॥१९॥

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसच्च यत् ।
सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥२०॥

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम् ।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ॥२१॥

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः ।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥२२॥

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः ।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥२३॥

हिन्दी भावार्थ

भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं, अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं आठ हाँथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश (फंदा) धारण किए हुए हैं वे ही ॐकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें॥१॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुओं से और वरूण के पाश से मेरी रक्षा करें माया से ब्रह्मचारी रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें ॥२॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययूथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें ॥३॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें ॥४॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

भगवान् नारायण मारण – मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धन से मेरी रक्षा करें ॥५॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें ॥६॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से, बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवशनामक सर्पों के गणों से मेरी रक्षा करें ॥७॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें धर्म-रक्षा करने वाले महान अवतार धारण करने वाले भगवान् कल्कि पाप-बहुल कलिकाल के दोषों से मेरी रक्षा करें ॥८॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर, दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ॥९॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

तीसरे पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषिकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ॥१०॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं में कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ॥११॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह है आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये ॥१२॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

कौमुद की गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ इसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर – चूर कर दीजिये ॥१३॥

शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से तुरन्त भगा दीजिये ॥१४॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

भगवान् की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दीजिये। भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दीजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये ॥१५॥

सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ोंवाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों – वे सभी भगावान् के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायें ॥१६-१७॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें॥१८॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें ॥१९॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

जितना भी कार्य अथवा कारण रूप जगत है, वह वास्तव में भगवान् ही है इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें ॥२०॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों से रहित है-भेदों से रहित हैं फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं यह बात निश्चित रूप से सत्य है इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें ॥२१-२२॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी रक्षा करें ॥२३॥नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

समापन

नारायण कवच हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका नियमित उच्चारण और आराधना से भक्तों को अद्भुत लाभ मिलता है। यह एक पूर्ण रक्षा कवच के रूप में काम करता है और भक्तों को सुरक्षित और सुखी जीवन की दिशा में मदद करता है। इसलिए, हम सभी को नारायण कवच का नियमित उच्चारण करने का सुझाव देते हैं, ताकि हम सभी अपने जीवन को सुखमय और समृद्धि से भर सकें।नारायण कवच क्या है?Narayan Kavach Paath-नारायण कवच पाठ के नियम

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सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ
सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

|| श्री गणेशाय नमः ||

प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ।।

॥ किष्किन्धाकाण्ड सुन्दरकाण्ड ॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ। उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाई ।।
अंगद कहई जाऊँ मै पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा ।।
जामवंत कह तुम सब लायक। पठई किमि सबहि कर नायक ।।

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना ।।
पवन तनय बल पवन समाना। बुद्धि विवेक बिग्यान निधाना ।।

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ।।
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा ।।

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरन्हि कर राजा ।।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा।।

सहित सहाय रावनहि मारी। आनउ इहाँ त्रिकुट उपारि ।।
जामवंत मैं पूँछउँ तोहि। उचित सिखावनु दीजहु मोही ।।

एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई ।।
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना ।।

॥ छन्द ॥
कपि सेन संग संघारी निसिचर रामु सीतहि आनि हैं।
त्रिलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानि हैं।।
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई।।

॥ दोहा ॥

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि ।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि ।।
नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनेउ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक।।

||रामचरितमानस || पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड ||

श्लोक –
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥

भावार्थ:
शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च॥2॥

भावार्थ:
हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम|सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि॥3॥

भावार्थ:
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥3॥सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

चौपाई :
जामवंत के बचन सुहाए | सुनि हनुमंत हृदय अति भाए ||
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई | सहि दुख कंद मूल फल खाई ||

जब लगि आवौं सीतहि देखी | होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी ||
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा | चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ||

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर | कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर ||
बार बार रघुबीर सँभारी | तरकेउ पवनतनय बल भारी ||

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता | चलेउ सो गा पाताल तुरंता ||
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना | एही भाँति चलेउ हनुमाना ||
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी | तैं मैनाक होहि श्रमहारी ||

दोहा – 1

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ||1 ||

जात पवनसुत देवन्ह देखा | जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा ||
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता | पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता ||

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा | सुनत बचन कह पवनकुमारा ||
राम काजु करि फिरि मैं आवौं | सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं ||

तब तव बदन पैठिहउँ आई | सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ||
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना | ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना ||

जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा | कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ||
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ | तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ ||

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा | तासु दून कपि रूप देखावा ||
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा | अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ||

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा | मागा बिदा ताहि सिरु नावा ||
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा | बुधि बल मरमु तोर मै पावा ||

दोहा – 2

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान ||2 ||

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई | करि माया नभु के खग गहई ||
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं | जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं ||

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई | एहि बिधि सदा गगनचर खाई ||
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा | तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा ||
ताहि मारि मारुतसुत बीरा | बारिधि पार गयउ मतिधीरा ||

तहाँ जाइ देखी बन सोभा | गुंजत चंचरीक मधु लोभा ||
नाना तरु फल फूल सुहाए | खग मृग बृंद देखि मन भाए ||

सैल बिसाल देखि एक आगें | ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें ||
उमा न कछु कपि कै अधिकाई | प्रभु प्रताप जो कालहि खाई ||

गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी | कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी ||
अति उतंग जलनिधि चहु पासा | कनक कोट कर परम प्रकासा ||

छं0 – कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना ||

गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै ||
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै ||1 ||

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ||
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं ||2 ||

करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं ||
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही ||3 ||

दोहा – 3

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार ||3 ||

मसक समान रूप कपि धरी | लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ||
नाम लंकिनी एक निसिचरी | सो कह चलेसि मोहि निंदरी ||

जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा | मोर अहार जहाँ लगि चोरा ||
मुठिका एक महा कपि हनी | रुधिर बमत धरनीं ढनमनी ||

पुनि संभारि उठि सो लंका | जोरि पानि कर बिनय संसका ||
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा | चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा ||

बिकल होसि तैं कपि कें मारे | तब जानेसु निसिचर संघारे ||
तात मोर अति पुन्य बहूता | देखेउँ नयन राम कर दूता ||

दोहा – 4

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ||4 ||

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा | हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ||
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई | गोपद सिंधु अनल सितलाई ||

गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही | राम कृपा करि चितवा जाही ||
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना | पैठा नगर सुमिरि भगवाना ||

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा | देखे जहँ तहँ अगनित जोधा ||
गयउ दसानन मंदिर माहीं | अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं ||

सयन किए देखा कपि तेही | मंदिर महुँ न दीखि बैदेही ||
भवन एक पुनि दीख सुहावा | हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा ||

दोहा – 5

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ ||5 ||

लंका निसिचर निकर निवासा | इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ||
मन महुँ तरक करै कपि लागा | तेहीं समय बिभीषनु जागा ||

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा | हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ||
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी | साधु ते होइ न कारज हानी ||

बिप्र रुप धरि बचन सुनाए | सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ||
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई | बिप्र कहहु निज कथा बुझाई ||

की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई | मोरें हृदय प्रीति अति होई ||
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी | आयहु मोहि करन बड़भागी ||

दोहा – 6

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ||6 ||

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी | जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी ||
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा | करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा ||

तामस तनु कछु साधन नाहीं | प्रीति न पद सरोज मन माहीं ||
अब मोहि भा भरोस हनुमंता | बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता ||

जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा | तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा ||
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती | करहिं सदा सेवक पर प्रीती ||

कहहु कवन मैं परम कुलीना | कपि चंचल सबहीं बिधि हीना ||
प्रात लेइ जो नाम हमारा | तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा ||

दोहा – 7

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ||7 ||

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी | फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ||
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा | पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा ||

पुनि सब कथा बिभीषन कही | जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही ||
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता | देखी चहउँ जानकी माता ||

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई | चलेउ पवनसुत बिदा कराई ||
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ | बन असोक सीता रह जहवाँ ||

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा | बैठेहिं बीति जात निसि जामा ||
कृस तन सीस जटा एक बेनी | जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी ||

दोहा – 8

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ||8 ||

तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई | करइ बिचार करौं का भाई ||
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा | संग नारि बहु किएँ बनावा ||

बहु बिधि खल सीतहि समुझावा | साम दान भय भेद देखावा ||
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी | मंदोदरी आदि सब रानी ||

तव अनुचरीं करउँ पन मोरा | एक बार बिलोकु मम ओरा ||
तृन धरि ओट कहति बैदेही | सुमिरि अवधपति परम सनेही ||

सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा | कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा ||
अस मन समुझु कहति जानकी | खल सुधि नहिं रघुबीर बान की ||
सठ सूने हरि आनेहि मोहि | अधम निलज्ज लाज नहिं तोही ||

दोहा – 9

आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ||9 ||

सीता तैं मम कृत अपमाना | कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ||
नाहिं त सपदि मानु मम बानी | सुमुखि होति न त जीवन हानी ||

स्याम सरोज दाम सम सुंदर | प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर ||
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा | सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा ||

चंद्रहास हरु मम परितापं | रघुपति बिरह अनल संजातं ||
सीतल निसित बहसि बर धारा | कह सीता हरु मम दुख भारा ||

सुनत बचन पुनि मारन धावा | मयतनयाँ कहि नीति बुझावा ||
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई | सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई ||
मास दिवस महुँ कहा न माना | तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना ||

दोहा – 10

भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद ||10 ||

त्रिजटा नाम राच्छसी एका | राम चरन रति निपुन बिबेका ||
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना | सीतहि सेइ करहु हित अपना ||

सपनें बानर लंका जारी | जातुधान सेना सब मारी ||
खर आरूढ़ नगन दससीसा | मुंडित सिर खंडित भुज बीसा ||

एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई | लंका मनहुँ बिभीषन पाई ||
नगर फिरी रघुबीर दोहाई | तब प्रभु सीता बोलि पठाई ||

यह सपना में कहउँ पुकारी | होइहि सत्य गएँ दिन चारी ||
तासु बचन सुनि ते सब डरीं | जनकसुता के चरनन्हि परीं ||

सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

दोहा – 11

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ||11 ||

त्रिजटा सन बोली कर जोरी | मातु बिपति संगिनि तैं मोरी ||
तजौं देह करु बेगि उपाई | दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई ||

आनि काठ रचु चिता बनाई | मातु अनल पुनि देहि लगाई ||
सत्य करहि मम प्रीति सयानी | सुनै को श्रवन सूल सम बानी ||

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि | प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि ||
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी | अस कहि सो निज भवन सिधारी ||

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला | मिलहि न पावक मिटिहि न सूला ||
देखिअत प्रगट गगन अंगारा | अवनि न आवत एकउ तारा ||

पावकमय ससि स्त्रवत न आगी | मानहुँ मोहि जानि हतभागी ||
सुनहि बिनय मम बिटप असोका | सत्य नाम करु हरु मम सोका ||

नूतन किसलय अनल समाना | देहि अगिनि जनि करहि निदाना ||
देखि परम बिरहाकुल सीता | सो छन कपिहि कलप सम बीता ||

सो0 – 12

कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब।
जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ ||12 ||

तब देखी मुद्रिका मनोहर | राम नाम अंकित अति सुंदर ||
चकित चितव मुदरी पहिचानी | हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी ||

जीति को सकइ अजय रघुराई | माया तें असि रचि नहिं जाई ||
सीता मन बिचार कर नाना | मधुर बचन बोलेउ हनुमाना ||

रामचंद्र गुन बरनैं लागा | सुनतहिं सीता कर दुख भागा ||
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई | आदिहु तें सब कथा सुनाई ||

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई | कहि सो प्रगट होति किन भाई ||
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ | फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ ||

राम दूत मैं मातु जानकी | सत्य सपथ करुनानिधान की ||
यह मुद्रिका मातु मैं आनी | दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी ||
नर बानरहि संग कहु कैसें | कहि कथा भइ संगति जैसें ||

 दोहा – 13

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास ||
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ||13 ||

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी | सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ||
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना | भयउ तात मों कहुँ जलजाना ||

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी | अनुज सहित सुख भवन खरारी ||
कोमलचित कृपाल रघुराई | कपि केहि हेतु धरी निठुराई ||

सहज बानि सेवक सुख दायक | कबहुँक सुरति करत रघुनायक ||
कबहुँ नयन मम सीतल ताता | होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता ||

बचनु न आव नयन भरे बारी | अहह नाथ हौं निपट बिसारी ||
देखि परम बिरहाकुल सीता | बोला कपि मृदु बचन बिनीता ||

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता | तव दुख दुखी सुकृपा निकेता ||
जनि जननी मानहु जियँ ऊना | तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना ||

दोहा – 14

रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर ||14 ||

कहेउ राम बियोग तव सीता | मो कहुँ सकल भए बिपरीता ||
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू | कालनिसा सम निसि ससि भानू ||

कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा | बारिद तपत तेल जनु बरिसा ||
जे हित रहे करत तेइ पीरा | उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा ||

कहेहू तें कछु दुख घटि होई | काहि कहौं यह जान न कोई ||
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा | जानत प्रिया एकु मनु मोरा ||

सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं | जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं ||
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही | मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही ||

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता | सुमिरु राम सेवक सुखदाता ||
उर आनहु रघुपति प्रभुताई | सुनि मम बचन तजहु कदराई ||

दोहा – 15

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ||15 ||

जौं रघुबीर होति सुधि पाई | करते नहिं बिलंबु रघुराई ||
रामबान रबि उएँ जानकी | तम बरूथ कहँ जातुधान की ||

अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई | प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई ||
कछुक दिवस जननी धरु धीरा | कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा ||

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं | तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं ||
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना | जातुधान अति भट बलवाना ||

मोरें हृदय परम संदेहा | सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा ||
कनक भूधराकार सरीरा | समर भयंकर अतिबल बीरा ||
सीता मन भरोस तब भयऊ | पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ ||

दोहा – 16

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ||16 ||

मन संतोष सुनत कपि बानी | भगति प्रताप तेज बल सानी ||
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना | होहु तात बल सील निधाना ||

अजर अमर गुननिधि सुत होहू | करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ||
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना | निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ||

बार बार नाएसि पद सीसा | बोला बचन जोरि कर कीसा ||
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता | आसिष तव अमोघ बिख्याता ||

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा | लागि देखि सुंदर फल रूखा ||
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी | परम सुभट रजनीचर भारी ||
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं | जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं ||

दोहा – 17

देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ||17 ||

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा | फल खाएसि तरु तोरैं लागा ||
रहे तहाँ बहु भट रखवारे | कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे ||

नाथ एक आवा कपि भारी | तेहिं असोक बाटिका उजारी ||
खाएसि फल अरु बिटप उपारे | रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे ||

सुनि रावन पठए भट नाना | तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना ||
सब रजनीचर कपि संघारे | गए पुकारत कछु अधमारे ||

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा | चला संग लै सुभट अपारा ||
आवत देखि बिटप गहि तर्जा | ताहि निपाति महाधुनि गर्जा ||

दोहा – 18

कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि ||18 ||

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना | पठएसि मेघनाद बलवाना ||
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही | देखिअ कपिहि कहाँ कर आही ||

चला इंद्रजित अतुलित जोधा | बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा ||
कपि देखा दारुन भट आवा | कटकटाइ गर्जा अरु धावा ||

अति बिसाल तरु एक उपारा | बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा ||
रहे महाभट ताके संगा | गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा ||

तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा | भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई | ताहि एक छन मुरुछा आई ||
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया | जीति न जाइ प्रभंजन जाया ||

दोहा – 19

ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ||19 ||

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा | परतिहुँ बार कटकु संघारा ||
तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ | नागपास बाँधेसि लै गयऊ ||

जासु नाम जपि सुनहु भवानी | भव बंधन काटहिं नर ग्यानी ||
तासु दूत कि बंध तरु आवा | प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा ||

कपि बंधन सुनि निसिचर धाए | कौतुक लागि सभाँ सब आए ||
दसमुख सभा दीखि कपि जाई | कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई ||

कर जोरें सुर दिसिप बिनीता | भृकुटि बिलोकत सकल सभीता ||
देखि प्रताप न कपि मन संका | जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका ||

दोहा – 20

कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद ||20 ||

कह लंकेस कवन तैं कीसा | केहिं के बल घालेहि बन खीसा ||
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही | देखउँ अति असंक सठ तोही ||

मारे निसिचर केहिं अपराधा | कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा ||
सुन रावन ब्रह्मांड निकाया | पाइ जासु बल बिरचित माया ||

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा | पालत सृजत हरत दससीसा।
जा बल सीस धरत सहसानन | अंडकोस समेत गिरि कानन ||

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता | तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता।
हर कोदंड कठिन जेहि भंजा | तेहि समेत नृप दल मद गंजा ||
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली | बधे सकल अतुलित बलसाली ||

दोहा – 21

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ||21 ||

जानउँ मैं तुम्हरि प्रभुताई | सहसबाहु सन परी लराई ||
समर बालि सन करि जसु पावा | सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा ||

खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा | कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा ||
सब कें देह परम प्रिय स्वामी | मारहिं मोहि कुमारग गामी ||

जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे | तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे ||
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा | कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा ||

बिनती करउँ जोरि कर रावन | सुनहु मान तजि मोर सिखावन ||
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी | भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ||

जाकें डर अति काल डेराई | जो सुर असुर चराचर खाई ||
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै | मोरे कहें जानकी दीजै ||

दोहा – 22

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ||22 ||

राम चरन पंकज उर धरहू | लंका अचल राज तुम्ह करहू ||
रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका | तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका ||

राम नाम बिनु गिरा न सोहा | देखु बिचारि त्यागि मद मोहा ||
बसन हीन नहिं सोह सुरारी | सब भूषण भूषित बर नारी ||

राम बिमुख संपति प्रभुताई | जाइ रही पाई बिनु पाई ||
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं | बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं ||

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी | बिमुख राम त्राता नहिं कोपी ||
संकर सहस बिष्नु अज तोही | सकहिं न राखि राम कर द्रोही ||

दोहा – 23

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ||23 ||

जदपि कहि कपि अति हित बानी | भगति बिबेक बिरति नय सानी ||
बोला बिहसि महा अभिमानी | मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी ||

मृत्यु निकट आई खल तोही | लागेसि अधम सिखावन मोही ||
उलटा होइहि कह हनुमाना | मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना ||

सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना | बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना ||
सुनत निसाचर मारन धाए | सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए।

नाइ सीस करि बिनय बहूता | नीति बिरोध न मारिअ दूता ||
आन दंड कछु करिअ गोसाँई | सबहीं कहा मंत्र भल भाई ||
सुनत बिहसि बोला दसकंधर | अंग भंग करि पठइअ बंदर ||

दोहा – 24

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ ||24 ||

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि | तब सठ निज नाथहि लइ आइहि ||
जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई | देखेउँûमैं तिन्ह कै प्रभुताई ||

बचन सुनत कपि मन मुसुकाना | भइ सहाय सारद मैं जाना ||
जातुधान सुनि रावन बचना | लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना ||

रहा न नगर बसन घृत तेला | बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला ||
कौतुक कहँ आए पुरबासी | मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी ||

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी | नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी ||
पावक जरत देखि हनुमंता | भयउ परम लघु रुप तुरंता ||
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं | भई सभीत निसाचर नारीं ||

दोहा – 25

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जéा कपि बढ़ि लाग अकास ||25 ||

देह बिसाल परम हरुआई | मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई ||
जरइ नगर भा लोग बिहाला | झपट लपट बहु कोटि कराला ||

तात मातु हा सुनिअ पुकारा | एहि अवसर को हमहि उबारा ||
हम जो कहा यह कपि नहिं होई | बानर रूप धरें सुर कोई ||

साधु अवग्या कर फलु ऐसा | जरइ नगर अनाथ कर जैसा ||
जारा नगरु निमिष एक माहीं | एक बिभीषन कर गृह नाहीं ||

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा | जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ||
उलटि पलटि लंका सब जारी | कूदि परा पुनि सिंधु मझारी ||

दोहा – 26

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ||26 ||

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा | जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा ||
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ | हरष समेत पवनसुत लयऊ ||

कहेहु तात अस मोर प्रनामा | सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ||
दीन दयाल बिरिदु संभारी | हरहु नाथ मम संकट भारी ||

तात सक्रसुत कथा सुनाएहु | बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु ||
मास दिवस महुँ नाथु न आवा | तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा ||

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना | तुम्हहू तात कहत अब जाना ||
तोहि देखि सीतलि भइ छाती | पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती ||

दोहा – 27

जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह ||27 ||

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी | गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी ||
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा | सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा ||

हरषे सब बिलोकि हनुमाना | नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना ||
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा | कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा ||

मिले सकल अति भए सुखारी | तलफत मीन पाव जिमि बारी ||
चले हरषि रघुनायक पासा | पूँछत कहत नवल इतिहासा ||

तब मधुबन भीतर सब आए | अंगद संमत मधु फल खाए ||
रखवारे जब बरजन लागे | मुष्टि प्रहार हनत सब भागे ||

दोहा – 28

जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ||28 ||

जौं न होति सीता सुधि पाई | मधुबन के फल सकहिं कि खाई ||
एहि बिधि मन बिचार कर राजा | आइ गए कपि सहित समाजा ||

आइ सबन्हि नावा पद सीसा | मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा ||
पूँछी कुसल कुसल पद देखी | राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ||

नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना | राखे सकल कपिन्ह के प्राना ||
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ | कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ।

राम कपिन्ह जब आवत देखा | किएँ काजु मन हरष बिसेषा ||
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई | परे सकल कपि चरनन्हि जाई ||

दोहा – 29

प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज।
पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ||29 ||

जामवंत कह सुनु रघुराया | जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ||
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर | सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ||

सोइ बिजई बिनई गुन सागर | तासु सुजसु त्रेलोक उजागर ||
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू | जन्म हमार सुफल भा आजू ||

नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी | सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी ||
पवनतनय के चरित सुहाए | जामवंत रघुपतिहि सुनाए ||

सुनत कृपानिधि मन अति भाए | पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए ||
कहहु तात केहि भाँति जानकी | रहति करति रच्छा स्वप्रान की ||

दोहा – 30

नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ||30 ||

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही | रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही ||
नाथ जुगल लोचन भरि बारी | बचन कहे कछु जनककुमारी ||

अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना | दीन बंधु प्रनतारति हरना ||
मन क्रम बचन चरन अनुरागी | केहि अपराध नाथ हौं त्यागी ||

अवगुन एक मोर मैं माना | बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना ||
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा | निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा ||

बिरह अगिनि तनु तूल समीरा | स्वास जरइ छन माहिं सरीरा ||
नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी | जरैं न पाव देह बिरहागी।
सीता के अति बिपति बिसाला | बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ||

दोहा – 31

निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ||31 ||

सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना | भरि आए जल राजिव नयना ||
बचन काँय मन मम गति जाही | सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ||

कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई ||
केतिक बात प्रभु जातुधान की | रिपुहि जीति आनिबी जानकी ||

सुनु कपि तोहि समान उपकारी | नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी ||
प्रति उपकार करौं का तोरा | सनमुख होइ न सकत मन मोरा ||

सुनु सुत उरिन मैं नाहीं | देखेउँ करि बिचार मन माहीं ||
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता | लोचन नीर पुलक अति गाता ||

दोहा – 32

सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ||32 ||

बार बार प्रभु चहइ उठावा | प्रेम मगन तेहि उठब न भावा ||
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा | सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा ||

 

सावधान मन करि पुनि संकर | लागे कहन कथा अति सुंदर ||
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा | कर गहि परम निकट बैठावा ||

कहु कपि रावन पालित लंका | केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका ||
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना | बोला बचन बिगत अभिमाना ||

साखामृग के बड़ि मनुसाई | साखा तें साखा पर जाई ||
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा | निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा।
सो सब तव प्रताप रघुराई | नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ||

दोहा – 33

ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल।
तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल ||33 ||

नाथ भगति अति सुखदायनी | देहु कृपा करि अनपायनी ||
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी | एवमस्तु तब कहेउ भवानी ||

उमा राम सुभाउ जेहिं जाना | ताहि भजनु तजि भाव न आना ||
यह संवाद जासु उर आवा | रघुपति चरन भगति सोइ पावा ||

सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा | जय जय जय कृपाल सुखकंदा ||
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा | कहा चलैं कर करहु बनावा ||

अब बिलंबु केहि कारन कीजे | तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे ||
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी | नभ तें भवन चले सुर हरषी ||

दोहा – 34

कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ||34 ||

प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा | गरजहिं भालु महाबल कीसा ||
देखी राम सकल कपि सेना | चितइ कृपा करि राजिव नैना ||

राम कृपा बल पाइ कपिंदा | भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा ||
हरषि राम तब कीन्ह पयाना | सगुन भए सुंदर सुभ नाना ||

जासु सकल मंगलमय कीती | तासु पयान सगुन यह नीती ||
प्रभु पयान जाना बैदेहीं | फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं ||

जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई | असगुन भयउ रावनहि सोई ||
चला कटकु को बरनैं पारा | गर्जहि बानर भालु अपारा ||

नख आयुध गिरि पादपधारी | चले गगन महि इच्छाचारी ||
केहरिनाद भालु कपि करहीं | डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं ||

छं0 – चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे ||

कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं ||1 ||

सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई।
गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई ||

रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी।
जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी ||2 ||

दोहा – 35

एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर ||35 ||

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका | जब ते जारि गयउ कपि लंका ||
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा | नहिं निसिचर कुल केर उबारा ||

जासु दूत बल बरनि न जाई | तेहि आएँ पुर कवन भलाई ||
दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी | मंदोदरी अधिक अकुलानी ||

रहसि जोरि कर पति पग लागी | बोली बचन नीति रस पागी ||
कंत करष हरि सन परिहरहू | मोर कहा अति हित हियँ धरहु ||

समुझत जासु दूत कइ करनी | स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी ||
तासु नारि निज सचिव बोलाई | पठवहु कंत जो चहहु भलाई ||

तब कुल कमल बिपिन दुखदाई | सीता सीत निसा सम आई ||
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें | हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें ||

दोहा – 36

राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक ||36 ||

श्रवन सुनी सठ ता करि बानी | बिहसा जगत बिदित अभिमानी ||
सभय सुभाउ नारि कर साचा | मंगल महुँ भय मन अति काचा ||

जौं आवइ मर्कट कटकाई | जिअहिं बिचारे निसिचर खाई ||
कंपहिं लोकप जाकी त्रासा | तासु नारि सभीत बड़ि हासा ||

अस कहि बिहसि ताहि उर लाई | चलेउ सभाँ ममता अधिकाई ||
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता | भयउ कंत पर बिधि बिपरीता ||

बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई | सिंधु पार सेना सब आई ||
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू | ते सब हँसे मष्ट करि रहहू ||
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं | नर बानर केहि लेखे माही ||

दोहा – 37

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||37 ||

सोइ रावन कहुँ बनि सहाई | अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई ||
अवसर जानि बिभीषनु आवा | भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा ||

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन | बोला बचन पाइ अनुसासन ||
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता | मति अनुरुप कहउँ हित ताता ||

जो आपन चाहै कल्याना | सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ||
सो परनारि लिलार गोसाईं | तजउ चउथि के चंद कि नाई ||

चौदह भुवन एक पति होई | भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई ||
गुन सागर नागर नर जोऊ | अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ||

दोहा – 38

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ||38 ||

तात राम नहिं नर भूपाला | भुवनेस्वर कालहु कर काला ||
ब्रह्म अनामय अज भगवंता | ब्यापक अजित अनादि अनंता ||

गो द्विज धेनु देव हितकारी | कृपासिंधु मानुष तनुधारी ||
जन रंजन भंजन खल ब्राता | बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ||

ताहि बयरु तजि नाइअ माथा | प्रनतारति भंजन रघुनाथा ||
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही | भजहु राम बिनु हेतु सनेही ||

सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा | बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ||
जासु नाम त्रय ताप नसावन | सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ||

दोहा – 39

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ||39(क) ||

मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ||39(ख) ||

माल्यवंत अति सचिव सयाना | तासु बचन सुनि अति सुख माना ||
तात अनुज तव नीति बिभूषन | सो उर धरहु जो कहत बिभीषन ||

रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ | दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ ||
माल्यवंत गृह गयउ बहोरी | कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी ||

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं | नाथ पुरान निगम अस कहहीं ||
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना | जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ||

तव उर कुमति बसी बिपरीता | हित अनहित मानहु रिपु प्रीता ||
कालराति निसिचर कुल केरी | तेहि सीता पर प्रीति घनेरी ||

दोहा – 40

तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार ||40 ||

बुध पुरान श्रुति संमत बानी | कही बिभीषन नीति बखानी ||
सुनत दसानन उठा रिसाई | खल तोहि निकट मुत्यु अब आई ||

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा | रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा ||
कहसि न खल अस को जग माहीं | भुज बल जाहि जिता मैं नाही ||

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती | सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती ||
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा | अनुज गहे पद बारहिं बारा ||

उमा संत कइ इहइ बड़ाई | मंद करत जो करइ भलाई ||
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा | रामु भजें हित नाथ तुम्हारा ||
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ | सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ ||

दोहा – 41

रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ||41 ||

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं | आयूहीन भए सब तबहीं ||
साधु अवग्या तुरत भवानी | कर कल्यान अखिल कै हानी ||

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा | भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा ||
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं | करत मनोरथ बहु मन माहीं ||

देखिहउँ जाइ चरन जलजाता | अरुन मृदुल सेवक सुखदाता ||
जे पद परसि तरी रिषिनारी | दंडक कानन पावनकारी ||

जे पद जनकसुताँ उर लाए | कपट कुरंग संग धर धाए ||
हर उर सर सरोज पद जेई | अहोभाग्य मै देखिहउँ तेई ||

दोहा – 42

जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ ||42 ||

एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा | आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा ||
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा | जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा ||

ताहि राखि कपीस पहिं आए | समाचार सब ताहि सुनाए ||
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई | आवा मिलन दसानन भाई ||

कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा | कहइ कपीस सुनहु नरनाहा ||
जानि न जाइ निसाचर माया | कामरूप केहि कारन आया ||

भेद हमार लेन सठ आवा | राखिअ बाँधि मोहि अस भावा ||
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी | मम पन सरनागत भयहारी ||
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना | सरनागत बच्छल भगवाना ||

दोहा – 43

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ||43 ||

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू | आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ||
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं | जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ||

पापवंत कर सहज सुभाऊ | भजनु मोर तेहि भाव न काऊ ||
जौं पै दुष्टहदय सोइ होई | मोरें सनमुख आव कि सोई ||

निर्मल मन जन सो मोहि पावा | मोहि कपट छल छिद्र न भावा ||
भेद लेन पठवा दससीसा | तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा ||

जग महुँ सखा निसाचर जेते | लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते ||
जौं सभीत आवा सरनाई | रखिहउँ ताहि प्रान की नाई ||

दोहा – 44

उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत ||44 ||

सादर तेहि आगें करि बानर | चले जहाँ रघुपति करुनाकर ||
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता | नयनानंद दान के दाता ||

बहुरि राम छबिधाम बिलोकी | रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी ||
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन | स्यामल गात प्रनत भय मोचन ||

सिंघ कंध आयत उर सोहा | आनन अमित मदन मन मोहा ||
नयन नीर पुलकित अति गाता | मन धरि धीर कही मृदु बाता ||

नाथ दसानन कर मैं भ्राता | निसिचर बंस जनम सुरत्राता ||
सहज पापप्रिय तामस देहा | जथा उलूकहि तम पर नेहा ||

दोहा – 45

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ||45 ||

अस कहि करत दंडवत देखा | तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा ||
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा | भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा ||

अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी | बोले बचन भगत भयहारी ||
कहु लंकेस सहित परिवारा | कुसल कुठाहर बास तुम्हारा ||

खल मंडलीं बसहु दिनु राती | सखा धरम निबहइ केहि भाँती ||
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती | अति नय निपुन न भाव अनीती ||

बरु भल बास नरक कर ताता | दुष्ट संग जनि देइ बिधाता ||
अब पद देखि कुसल रघुराया | जौं तुम्ह कीन्ह जानि जन दाया ||

दोहा – 46

तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम ||46 ||

तब लगि हृदयँ बसत खल नाना | लोभ मोह मच्छर मद माना ||
जब लगि उर न बसत रघुनाथा | धरें चाप सायक कटि भाथा ||

ममता तरुन तमी अँधिआरी | राग द्वेष उलूक सुखकारी ||
तब लगि बसति जीव मन माहीं | जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं ||

अब मैं कुसल मिटे भय भारे | देखि राम पद कमल तुम्हारे ||
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला | ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला ||

मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ | सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ ||
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा | तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा ||

सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

दोहा –47

अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य जुगल पद कंज ||47 ||

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ | जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ ||
जौं नर होइ चराचर द्रोही | आवे सभय सरन तकि मोही ||

तजि मद मोह कपट छल नाना | करउँ सद्य तेहि साधु समाना ||
जननी जनक बंधु सुत दारा | तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा ||

सब कै ममता ताग बटोरी | मम पद मनहि बाँध बरि डोरी ||
समदरसी इच्छा कछु नाहीं | हरष सोक भय नहिं मन माहीं ||

अस सज्जन मम उर बस कैसें | लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें ||
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें | धरउँ देह नहिं आन निहोरें ||

दोहा – 48

सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम ||48 ||

सुनु लंकेस सकल गुन तोरें | तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें ||
राम बचन सुनि बानर जूथा | सकल कहहिं जय कृपा बरूथा ||

सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी | नहिं अघात श्रवनामृत जानी ||
पद अंबुज गहि बारहिं बारा | हृदयँ समात न प्रेमु अपारा ||

सुनहु देव सचराचर स्वामी | प्रनतपाल उर अंतरजामी ||
उर कछु प्रथम बासना रही | प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ||

अब कृपाल निज भगति पावनी | देहु सदा सिव मन भावनी ||
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा | मागा तुरत सिंधु कर नीरा ||

जदपि सखा तव इच्छा नाहीं | मोर दरसु अमोघ जग माहीं ||
अस कहि राम तिलक तेहि सारा | सुमन बृष्टि नभ भई अपारा ||

दोहा – 49

रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड ||49(क) ||

जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ ||49(ख) ||

अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना | ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना ||
निज जन जानि ताहि अपनावा | प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा ||

पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी | सर्बरूप सब रहित उदासी ||
बोले बचन नीति प्रतिपालक | कारन मनुज दनुज कुल घालक ||

सुनु कपीस लंकापति बीरा | केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा ||
संकुल मकर उरग झष जाती | अति अगाध दुस्तर सब भाँती ||

कह लंकेस सुनहु रघुनायक | कोटि सिंधु सोषक तव सायक ||
जद्यपि तदपि नीति असि गाई | बिनय करिअ सागर सन जाई ||

दोहा – 50

प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि।
बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि ||50 ||

सखा कही तुम्ह नीकि उपाई | करिअ दैव जौं होइ सहाई ||
मंत्र न यह लछिमन मन भावा | राम बचन सुनि अति दुख पावा ||

नाथ दैव कर कवन भरोसा | सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा ||
कादर मन कहुँ एक अधारा | दैव दैव आलसी पुकारा ||

सुनत बिहसि बोले रघुबीरा | ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा ||
अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई | सिंधु समीप गए रघुराई ||

प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई | बैठे पुनि तट दर्भ डसाई ||
जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए | पाछें रावन दूत पठाए ||

दोहा – 51

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ||51 ||

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ | अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ ||
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने | सकल बाँधि कपीस पहिं आने ||

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर | अंग भंग करि पठवहु निसिचर ||
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए | बाँधि कटक चहु पास फिराए ||

बहु प्रकार मारन कपि लागे | दीन पुकारत तदपि न त्यागे ||
जो हमार हर नासा काना | तेहि कोसलाधीस कै आना ||

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए | दया लागि हँसि तुरत छोडाए ||
रावन कर दीजहु यह पाती | लछिमन बचन बाचु कुलघाती ||

दोहा – 52

कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार ||52 ||

तुरत नाइ लछिमन पद माथा | चले दूत बरनत गुन गाथा ||
कहत राम जसु लंकाँ आए | रावन चरन सीस तिन्ह नाए ||

बिहसि दसानन पूँछी बाता | कहसि न सुक आपनि कुसलाता ||
पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी | जाहि मृत्यु आई अति नेरी ||

करत राज लंका सठ त्यागी | होइहि जब कर कीट अभागी ||
पुनि कहु भालु कीस कटकाई | कठिन काल प्रेरित चलि आई ||

जिन्ह के जीवन कर रखवारा | भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा ||
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी | जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ||

दोहा –53

की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ||53 ||

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें | मानहु कहा क्रोध तजि तैसें ||
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा | जातहिं राम तिलक तेहि सारा ||

रावन दूत हमहि सुनि काना | कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना ||
श्रवन नासिका काटै लागे | राम सपथ दीन्हे हम त्यागे ||

पूँछिहु नाथ राम कटकाई | बदन कोटि सत बरनि न जाई ||
नाना बरन भालु कपि धारी | बिकटानन बिसाल भयकारी ||

जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा | सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा ||
अमित नाम भट कठिन कराला | अमित नाग बल बिपुल बिसाला ||

दोहा – 54

द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ||54 ||

ए कपि सब सुग्रीव समाना | इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना ||
राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं | तृन समान त्रेलोकहि गनहीं ||

अस मैं सुना श्रवन दसकंधर | पदुम अठारह जूथप बंदर ||
नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं | जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं ||

परम क्रोध मीजहिं सब हाथा | आयसु पै न देहिं रघुनाथा ||
सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला | पूरहीं न त भरि कुधर बिसाला ||

मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा | ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा ||
गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका | मानहु ग्रसन चहत हहिं लंका ||

दोहा –55

सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।
रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम ||55 ||

राम तेज बल बुधि बिपुलाई | सेष सहस सत सकहिं न गाई ||
सक सर एक सोषि सत सागर | तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर ||

तासु बचन सुनि सागर पाहीं | मागत पंथ कृपा मन माहीं ||
सुनत बचन बिहसा दससीसा | जौं असि मति सहाय कृत कीसा ||

सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई | सागर सन ठानी मचलाई ||
मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई | रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई ||

सचिव सभीत बिभीषन जाकें | बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें ||
सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी | समय बिचारि पत्रिका काढ़ी ||

रामानुज दीन्ही यह पाती | नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती ||
बिहसि बाम कर लीन्ही रावन | सचिव बोलि सठ लाग बचावन ||

दोहा –56

बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस।
राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस ||56(क) ||

की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग।
होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग ||56(ख) ||

सुनत सभय मन मुख मुसुकाई | कहत दसानन सबहि सुनाई ||
भूमि परा कर गहत अकासा | लघु तापस कर बाग बिलासा ||

कह सुक नाथ सत्य सब बानी | समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी ||
सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा | नाथ राम सन तजहु बिरोधा ||

अति कोमल रघुबीर सुभाऊ | जद्यपि अखिल लोक कर राऊ ||
मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही | उर अपराध न एकउ धरिही ||

जनकसुता रघुनाथहि दीजे | एतना कहा मोर प्रभु कीजे।
जब तेहिं कहा देन बैदेही | चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही ||

नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ | कृपासिंधु रघुनायक जहाँ ||
करि प्रनामु निज कथा सुनाई | राम कृपाँ आपनि गति पाई ||

रिषि अगस्ति कीं साप भवानी | राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी ||
बंदि राम पद बारहिं बारा | मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा ||

दोहा – 57

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ||57 ||

लछिमन बान सरासन आनू | सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू ||
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती | सहज कृपन सन सुंदर नीती ||

ममता रत सन ग्यान कहानी | अति लोभी सन बिरति बखानी ||
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा | ऊसर बीज बएँ फल जथा ||

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा | यह मत लछिमन के मन भावा ||
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला | उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ||

मकर उरग झष गन अकुलाने | जरत जंतु जलनिधि जब जाने ||
कनक थार भरि मनि गन नाना | बिप्र रूप आयउ तजि माना ||

दोहा – 58

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ||58 ||

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे | छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ||
गगन समीर अनल जल धरनी | इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ||

तव प्रेरित मायाँ उपजाए | सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए ||
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई | सो तेहि भाँति रहे सुख लहई ||

प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही | मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही ||
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||

प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई | उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई ||
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई | करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई ||

दोहा – 59

सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ ||59 ||

नाथ नील नल कपि द्वौ भाई | लरिकाई रिषि आसिष पाई ||
तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे | तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ||

मैं पुनि उर धरि प्रभुताई | करिहउँ बल अनुमान सहाई ||
एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ | जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ ||

एहि सर मम उत्तर तट बासी | हतहु नाथ खल नर अघ रासी ||
सुनि कृपाल सागर मन पीरा | तुरतहिं हरी राम रनधीरा ||
देखि राम बल पौरुष भारी | हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी ||
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा | चरन बंदि पयोधि सिधावा ||

छंद -निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।
यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ ||
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना ||
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ||

दोहा – 60

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ||60 ||

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने
पञ्चमः सोपानः समाप्तः।

सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ
सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड के नियम

सुन्दरकाण्ड के नियम एक महत्वपूर्ण भाग हैं जो हमें भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान जी के महात्म्य का ज्ञान देते हैं और हमें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यहां हम सुन्दरकाण्ड के नियमों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे:सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

1. विश्वास (Faith)

सुन्दरकाण्ड के नियमों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण नियम है विश्वास। हमें भगवान में अथवा ईश्वर में गहरा विश्वास रखना चाहिए। हनुमान जी का विश्वास और समर्पण ही उन्हें लंका का भ्रष्ट राजा रावण के पास भेज दिया था।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

2. साधना (Devotion)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में साधना का महत्व बताया गया है। हमें भगवान के प्रति आदर्श भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। हनुमान जी की साधना और उनका समर्पण उनकी महाकाव्यात्मक भक्ति का प्रतीक हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

3. कर्म (Action)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में कर्म के महत्व को भी बताया गया है। हमें निष्काम कर्म करना चाहिए और अपने कर्मों के माध्यम से भगवान की सेवा करनी चाहिए। हनुमान जी ने अपने कर्मों के माध्यम से भगवान राम की सेवा की थी।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

4. समर्पण (Surrender)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में समर्पण का महत्व बताया गया है। हमें अपने जीवन को भगवान के समर्पण में रखना चाहिए। हनुमान जी ने अपने पूरे जीवन को भगवान राम के समर्पण में किया था।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

5. संकल्प (Determination)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में संकल्प का महत्व बताया गया है। हमें अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प रखना चाहिए और समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए संकल्पित रहना चाहिए। हनुमान जी का संकल्प और उनकी महान कठिनाइयों के सामना करने की दृढ़ इच्छा ही उनकी सफलता का कुंजी था।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

6. श्रद्धा (Patience)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में श्रद्धा का महत्व भी बताया गया है। हमें सभी परिस्थितियों में धैर्य और शांति बनाए रखना चाहिए। हनुमान जी की श्रद्धा और साहस ने उन्हें सफल बनाया।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

7. परमात्मा का साक्षात्कार (Realization of the Supreme)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में हमारे जीवन का उद्देश्य परमात्मा को पहचानने और उसके साथ एकता प्राप्त करने में होना चाहिए। हनुमान जी ने भगवान के परम रूप का आत्मा को साक्षात्कार किया और उनकी महात्म्य को समझा।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

8. सेवा (Service)

सुन्दरकाण्ड के नियमों में सेवा का महत्व बताया गया है। हमें अपने समाज और समाज के लोगों की सेवा करना चाहिए। हनुमान जी ने भगवान राम की सेवा करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया और हमें भी सेवा का महत्व समझना चाहिए।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

इन सुन्दरकाण्ड के नियमों का पालन करके हम अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से धन्य और सफल बना सकते हैं। यह नियम हमें भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और हमारे जीवन को सफल और संतुष्ट बनाने में मदद करते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड कैसे करें?

सुन्दरकाण्ड को पढ़ने और उसके लाभ प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:

1. पूजा स्थल का तैयारी (Prepare a Place for Worship)
सुन्दरकाण्ड को पढ़ने के लिए एक शांत, पवित्र, और ध्यान करने के लिए स्थल का तैयारी करें। यह स्थल पूजा के लिए स्वच्छ और शुद्ध होना चाहिए।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

आरामदायक पोजिशन में बैठें और ध्यान केंद्रित करें। अगर आप पूजा आसन पर बैठ रहे हैं, तो उसको शुद्ध करें और फूलों या धूप की सुगंध से सजाएं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

शुद्धि का पालन (Observing Purity)

पूजा करते समय आपको शरीरिक और मानसिक शुद्धता का पालन करना चाहिए। हाथों को धोना और शुद्ध वस्त्र पहनना उपयुक्त होता है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

मन की शांति (Mental Peace)

मन को शांति और ध्यान में लाने के लिए पूरी तरह से संरक्षित और ध्यानित रहें। मन को चिंताओं से दूर रखने के लिए ध्यान की प्रक्रिया में लिपटे रहें।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

श्री हनुमान चालीसा का पाठ (Recite Hanuman Chalisa)

पूजा का प्रारंभ श्री हनुमान चालीसा के पाठ से करें। यह चालीसा हनुमान जी की महिमा का वर्णन करती है और आपको उनकी कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकती है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड का पाठ (Recite Sundarkand)

फिर सुन्दरकाण्ड का पाठ शुरू करें। सुन्दरकाण्ड को पढ़ते समय आपका मन और बुद्धि सुन्दरकाण्ड की कथा में लीन होना चाहिए।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

आरती (Offer Aarti)

सुन्दरकाण्ड के पाठ के बाद, आरती चढ़ाकर हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त करें। आरती के दौरान आप दीपक और कम्बल के साथ आरती कर सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

प्रसाद (Offer Prasad)

समापन में, प्रसाद को भगवान के चरणों में चढ़ाएं और फिर उसे आप और आपके परिवार के सदस्यों के बीच बाँटें। इसे ब्रह्मिनों या गरीबों को दान भी कर सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड को नियमित रूप से पढ़ने से आपको आध्यात्मिक और मानसिक शांति मिल सकती है, और हनुमान जी के आशीर्वाद से आपके जीवन में सुख-शांति आ सकती है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड कब करें?

सुन्दरकाण्ड का पाठ करने का सही समय और मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे निम्नलिखित प्रकार के समयों पर करने के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है:सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

1. मंगलवार (Tuesday)

मंगलवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मंगलवार भगवान हनुमान के दिन माना जाता है। इस दिन हनुमान जी की पूजा और उनके चालीसा या सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से आपको उनकी कृपा मिल सकती है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

2. शनिवार (Saturday)

शनिवार को भगवान हनुमान के व्रत का दिन माना जाता है। इस दिन सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद मिल सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

3. हनुमान जन्मोत्सव (Hanuman Jayanti)

हनुमान जयंती के दिन सुन्दरकाण्ड का पाठ करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इस दिन हनुमान जी के जन्मोत्सव के रूप में उनकी पूजा का आयोजन किया जाता है और सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

4. शुभ मुहूर्त (Auspicious Occasions)

किसी शुभ अवसर पर जैसे कि विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ, और धार्मिक आयोजनों के दौरान भी सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जा सकता है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

5. रोगनाशक (Healing)

यदि कोई व्यक्ति बीमार हो तो उसके लिए भी सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जा सकता है। सुन्दरकाण्ड को पढ़कर रोगनाशक गुण हो सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड का पाठ इन उपयुक्त समयों पर करने से आप भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और आपके जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति आ सकती है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड पूजन विधि

सुन्दरकाण्ड पूजा को सही और धार्मिक तरीके से करने के लिए निम्नलिखित पूजन विधि का पालन करें:

 साफ़ और शुद्धता (Cleanliness)

पूजा करने से पहले, आपको साफ़ और शुद्ध होना चाहिए। हाथ धोकर और शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजन स्थल को भी साफ़ रखें।

 पूजन स्थल की तैयारी (Prepare the Altar)

एक छोटे से मंदिर या पूजा स्थल को सजाने के लिए स्थापना करें। इस पूजा स्थल पर हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखें।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

पूजन स्थल पर आरामदायक पोजिशन में बैठें। आपके बाएं हाथ में तुलसी की माला और दाएं हाथ में हनुमान चालीसा की पुस्तक होनी चाहिए।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

 ध्यान और मनःपूजा (Meditation and Mental Worship)

मनोमुग्ध होकर हनुमान जी का ध्यान करें। उनकी भक्ति और प्रेम में लीन हों और उनकी कृपा का अनुभव करें। मानसिक पूजा के दौरान आप उन्हें अपने मन में स्थापित कर सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

मंत्र जाप (Chanting of Mantras)

हनुमान चालीसा के मंत्रों का जाप करें। ध्यान से हर शब्द को चांटते हुए हनुमान जी की महिमा का गान करें।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड का पाठ (Recite Sundarkand)

अब सुन्दरकाण्ड का पाठ करें। सुन्दरकाण्ड को पढ़ते समय आपका मन और बुद्धि सुन्दरकाण्ड की कथा में लीन होना चाहिए।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

 आरती (Offer Aarti)

सुन्दरकाण्ड के पाठ के बाद, आरती चढ़ाकर हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त करें। आरती के दौरान आप दीपक और कम्बल के साथ आरती कर सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

 प्रसाद (Offer Prasad)

समापन में, प्रसाद को भगवान हनुमान के चरणों में चढ़ाएं और फिर उसे आप और आपके परिवार के सदस्यों के बीच बाँटें। इसे ब्राह्मणों या गरीबों को दान भी कर सकते हैं।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

समापन (Conclusion)

पूजा का समापन करने के बाद, हनुमान जी से आशीर्वाद मांगें और उनके आशीर्वाद का आभार जाहिर करें।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

सुन्दरकाण्ड पूजा को नियमित रूप से करने से आपको आध्यात्मिक और मानसिक शांति मिल सकती है और आपके जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति आ सकती है।सुन्दरकाण्ड कैसे करें जाने नियम-Sundarkand Paath In Hindi-सुन्दरकाण्ड पाठ के लाभ

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सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra Arth Sahit-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें? 

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।

अथ मंत्रः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

। इति मंत्रः ।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।

ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते।।३।।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।।

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।५।।

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।६।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।

सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra Arth Sahit-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें? 

सिध्कुंजिका स्तोत्र:

सिध्कुंजिका स्तोत्र का महत्व

सिध्कुंजिका स्तोत्र, जिसे हम अक्सर मां दुर्गा के उपासना के समय पढ़ते हैं, एक प्रमुख धार्मिक पाठ है जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है। इसे अक्सर नवरात्रि के दौरान और मां दुर्गा के पूजन के समय पढ़ा जाता है। सिध्कुंजिका स्तोत्र का अर्थ है “सिध्कुंजिका की स्तुति” और इसमें मां दुर्गा की महाकाव्यत्मक महिमा का वर्णन किया गया है।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के लिए आपको एक शुद्ध मन से बैठकर ध्यान देना चाहिए। इसे निरंतरता और भक्ति भाव से किया जाता है। आपको अपने मन को शांति में रखना होगा और मां दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा को मजबूत करना होगा।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ बड़े ही ध्यानपूर्वक और समर्पित भाव से किया जाता है। इसमें मां दुर्गा की महिमा, उनके गुण, और उनके दिव्य स्वरूप का विवरण होता है।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र का महत्व

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से हमारा मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। यह हमें संतुलित और शांत मन से रहने में मदद करता है और हमारी आंतरिक शांति को बढ़ावा देता है। सिध्कुंजिका स्तोत्र के पाठ से हमारे मानसिक तनाव कम होता है और हम जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए नई ऊर्जा प्राप्त करते हैं।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र के लाभ

मां दुर्गा की कृपा: सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से मां दुर्गा हमारे जीवन में अपनी कृपा बनाए रखती हैं। वह हमारे सभी संकटों को दूर करती हैं और हमें सफलता की ओर बढ़ते हुए दिखती हैं।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

मानसिक शांति: सिध्कुंजिका स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह हमारे मन को स्थिर और प्रसन्न बनाता है और तनाव को कम करता है।

आत्मिक विकास: इस पाठ का नियमित अभ्यास करने से हमारा आत्मिक विकास होता है। हम अपने आत्मा के गुणों को विकसित करते हैं और अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

समृद्धि और सफलता: सिध्कुंजिका स्तोत्र के पाठ से हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता आती है। मां दुर्गा हमें सार्थक और सफल जीवन जीने की सीख देती हैं।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र का महत्व

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह हमें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए मां दुर्गा के आशीर्वाद को प्राप्त करने का माध्यम प्रदान करता है।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से हमारा जीवन खुशियों से भरा होता है। यह हमें नेगेटिविटी से दूर रखता है और हमारे चरित्र को सुदृढ़ करता है।

जब आप सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो आपको इसके संबंधित पूजन विधि का भी पालन करना चाहिए। यहां हम आपको सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने की सही पूजन विधि के बारे में जानकारी देंगे:सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

पूजन स्थल की तैयारी:

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थल का चयन करें।
पूजन स्थल पर दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
शुद्धि क्रियाएं:

हाथ धोकर शुद्धि विधान करें।
मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो के सामने बैठें।
माला का उपयोग:

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते समय माला का उपयोग करें।
बीज मंत्र “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे;का उपयोग करने के लिए कंघी का उपयोग करें।

ध्यान और भक्ति:

पूजा करते समय मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो को दृढ़ ध्यान में रखें।
आपका मन और आत्मा पूरी भक्ति भाव से प्रशंसा करें।
सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ:

सिध्कुंजिका स्तोत्र को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

प्रत्येक मंत्र को ध्यान से सुनें और उनका मनन करें।
आरती और प्रसाद:

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के बाद मां दुर्गा की आरती करें।
फिर प्रसाद बांटें और खुद भी प्रसाद लें।

मन्त्र जाप:

सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ का नियमित अभ्यास करें, खासकर नवरात्रि के दौरान।
इस प्रकार, सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने के लिए उपयोगी पूजन विधि का पालन करें। यह आपके आत्मिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करेगा और मां दुर्गा के आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करेगा।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

सिध्कुंजिका मंत्र जाप एक प्राचीन और पवित्र प्रथा है, जिसे विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। सिध्कुंजिका मंत्र का जाप करने से मां दुर्गा के आशीर्वाद को प्राप्त किया जा सकता है। यहां हम आपको सिध्कुंजिका मंत्र का जाप करने की विधि देंगे:सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्लीं आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।”

सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra Arth Sahit-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें? 

मंत्र जाप की विधि:

सबसे पहले, एक शुद्ध और शांत स्थल का चयन करें।

ध्यान से बैठें और मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो के सामने बैठें।

माला को अपने दाहिने हाथ की मध्यमा और अंगूठे के निचले फलंग के साथ रखें।

मंत्र का जाप करने से पहले, अपने मन को शुद्ध करने के लिए कुछ गहरी सांस लें और ध्यान में जाएं।

फिर से मन्त्र का जाप करें, एक माला के एक बीज मंत्र के साथ।

मंत्र को मनन करते समय, मां दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को मजबूत करें।

इस प्रक्रिया को नियमित रूप से जारी रखें, कम से कम 108 बार मंत्र का जाप करें, या जितनी आपकी साधना अनुसार संभावना हो।

मंत्र के जाप के बाद, मां दुर्गा की आरती करें और प्रसाद बांटें।

इस अभ्यास को नवरात्रि के दौरान नियमित रूप से करें, ताकि आप मां दुर्गा के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकें।

सिध्कुंजिका मंत्र का जाप करने से आप अपने आत्मिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं, और मां दुर्गा के कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। यह मंत्र आपके जीवन में खुशियों और समृद्धि को लेकर आ सकता है।सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

समापन

इस आलेख में हमने सिध्कुंजिका स्तोत्र के महत्व को जाना और इसके लाभों का वर्णन किया है। सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से हम न केवल आत्मिक और मानसिक विकास करते हैं, बल्कि हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता की ओर बढ़ते हैं। इसलिए, इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से हमारा जीवन सफल और खुशहाल होता है। सिध्कुंजिका स्तोत्र का विशेष महत्व-Sidhkunjika Stotra Arth Sahit-सिध्कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

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गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

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श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र

मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम्।
कला धराव तंसकं विलासि लोक रक्षकम्।
अनाय कैक नायकं विनाशि तेभ दैत्यकम्।
नता शुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम्।। १

नते तराति भीकरं नवो दितार्क भास्वरम्।
नमत् सुरारि निर्जरं नताधि काप दुद्धरम्।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम्।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्।। 2

समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरे तरो दरं वरं वरे भवक् त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। 3

अकिं चनार्ति मार्जनं चिरन्त नोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनं जयादि भूषणम् ।
कपोल दान वारणं भजे पुराण वारणम् ।। 4

नितान्तकान्त दन्तकान् तिमन्त कान्त कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
रुदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन् तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ।। 5

महागणेश पञ्चरत्न मादरेण यो न्वहम् ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगता मदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहिता युरष्ट भूति मभ्युपैति सो चिरात् ।। 6

।गणेश पंचरत्न स्तोत्र: गणपति के प्रति समर्पण का नया दृष्टिकोण

गणेश पंचरत्न स्तोत्र, जिसे श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित किया गया था, गणपति भगवान के प्रति हमारे समर्पण का अद्वितीय प्रतीक है। यह प्रसिद्ध स्तोत्र गणेश देव के आशीर्वाद और कृपा की प्राप्ति के लिए पठने वाले व्यक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में, हम आपको गणेश पंचरत्न स्तोत्र के महत्व, अर्थ, और इसके आदर्श अर्थ को बताएंगे, जिससे कि आप इसे अपने जीवन में शामिल कर सकें और गणपति के प्रति अपने भक्ति का एक नया दृष्टिकोण प्राप्त कर सकें।गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र का महत्व

गणेश पंचरत्न स्तोत्र गणपति के प्रति विशेष समर्पण का प्रतीक है। इसका पाठन गणेश देव की आराधना के लिए किया जाता है और यह उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। इस स्तोत्र का महत्व उन गुणों और योग्यताओं को स्पष्ट करता है जो गणपति भगवान में होते हैं, जैसे कि उनकी बुद्धि, विवेक, और करुणा।गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र का अर्थ

गणेश पंचरत्न स्तोत्र का अर्थ अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस स्तोत्र में, श्री आदि शंकराचार्य ने गणपति देव की महिमा, गुण, और शक्तियों की प्रशंसा की है। यह अर्थपूर्ण स्तोत्र हमें गणपति के स्वरूप और कार्यों के प्रति समझने में मदद करता है।गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के आदर्श अर्थ

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के आदर्श अर्थ हमें यह सिखाते हैं कि गणपति देव के प्रति हमारी भक्ति कैसे होनी चाहिए। इसमें उनकी सर्वोत्तम भक्ति का वर्णन किया गया है, जिसमें श्रद्धा, समर्पण, और प्रेम का महत्व बताया गया है। इस स्तोत्र के पाठन से हम गणपति भगवान के साथ हमारे सच्चे संबंध को मजबूती से बढ़ा सकते हैं।गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के पाठन से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र गणपति भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करता है, जिसमें समृद्धि, सफलता, और सुख की प्राप्ति शामिल है। यह भी माना जाता है कि इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।

गणेश पंचरत्न स्तोत्र की महत्वपूर्ण पंक्तियां

आरंभ: इस स्तोत्र का पाठ करते समय, हमें गणपति देव के सामने अपने मन और विचारों को समर्पित करना चाहिए।गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

श्रद्धा और भक्ति:

इस स्तोत्र के पाठन के साथ हमें श्रद्धा और भक्ति के साथ गणपति देव के प्रति अपने मन को ले जाना चाहिए।

गणपति के गुण:

इस स्तोत्र में गणपति देव के गुणों की प्रशंसा होती है, जैसे कि उनकी बुद्धि, विवेक, और साहस।

करुणा के प्रतीक:

गणपति देव की करुणा को प्राप्त करने के लिए हमें इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे हमारे जीवन में उनकी करुणा का अनुभव होता है।

समापन

गणेश पंचरत्न स्तोत्र गणपति भगवान के प्रति हमारे समर्पण का प्रतीक है और इसके पाठ से हम उनके आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। यह स्तोत्र हमारे जीवन में समृद्धि, सफलता, और सुख की प्राप्ति में मदद करता है और हमें गणपति देव के साथ एक मजबूत संबंध बनाने में मदद करता है।

गणेश पंचरत्न स्तोत्र के लाभ-Ganesh Panchratan Stotra-गणेश पंचरत्न पाठ विधि

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कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

 कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?
कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

कनकधारा स्तोत्र

अगं हरे: पुलकभूषण माश्रयन्ती
भूङ्गाङ्गनेव मुकुलाधरणं तमालम्।
अगीकृताखिलविभतिरपागलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मगळदेवतायाः ।।1।।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारे:
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: ।।2।।

विश्वामरेन्द्र पदविभ्रम दान दक्षम्
आनन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धम्
इन्दीवरोदर सहोदरमिन्दिराय: ।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्
आनन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांगनाया: ।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला
कल्याण मावहतु मे कमलालयाया: ।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्
धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्ति
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया: ।।6।।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्
अस्मिन्नकिञ्चन विहंग शिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: ।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयोअपि यया दयार्द्र
दृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रह्ष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कुषीष्ट मम पुष्करविष्टराया: ।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज सुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायें
तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतानायै
पुष्टयै नमोऽस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै ।।11।।

नमोऽस्तु नालीक निभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृत सोदरायै
नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै ।।12।।

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्त भुमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङगायुधवल्लभायै ।।13।।

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ।।14।।

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु देवादिभिर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ।।15।।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि
साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणणोद्यतानि
मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये ।।16।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि:
सेवकस्य सकलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानर्सेसस्
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ।।17।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते
धवलत​मांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।।18।।

दिग्घस्तिभिः कनक​कुंभमुखा व सृष्ट
स्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम् ।।19।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया:।।20।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते बुधभाविताश​या: ।।21।।

कनकधारा का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा, कनकधारा स्तोत्र की रचना आदिगुरु शंकराचार्य जी ने की थी। कहते हैं कि इस स्तोत्र के द्वारा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके उन्होंने सोने की वर्षा कराई थी।

सिद्ध मंत्र होने के कारण कनकधारा स्तोत्र का पाठ शीघ्र फल देनेवाला और दरिद्रता का नाश करनेवाला है।
कनकधारा स्तोत्र के नियमित पाठ से धन संबंधी सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

 कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ –
जैसे भौंरा अर्ध-खिले कुसुम से सुशोभित तामल वृक्ष की शरण लेता है, वैसे ही जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्री अंगों पर गिरता रहता है और जिसमें सभी ऐश्वर्य निवास करते हैं, वह अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी का कटाक्ष है। सभी मंगल के देवता, मेरे लिए धन्य हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ –
जैसे भ्रमरी आता-जाता रहता है या कमल के विशाल पुष्प पर मँडराता रहता है, उसी प्रकार मुरशत्रु बार-बार प्रेम से श्री हरि के मुख पर जाता है और लज्जा के कारण लौट आता है, समुद्र के सुन्दर नेत्रों की सुन्दर माला कन्या लक्ष्मी मुझे धन और धन प्रदान करें।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष – मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध – मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ –
जो समस्त देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ है, जो मुरारी श्री हरि को अधिकाधिक आनन्द प्रदान करता है, और वह नीलकमल के आन्तरिक भाग के समान सुन्दर है। वह लक्ष्मीजी की अधखुले नयन मुझ पर भी एक पल के लिए अवश्य रहें।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द – मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ –
शेषशायी भगवान विष्णु की पत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करे, जिसकी आंखे और भौहें प्रेम से आधी खुली हैं, लेकिन साथ ही, आनंदकांड श्रीमुकुंद को, जो स्पष्ट आंखों से देखता है, उसके पास थोड़ा तिरछा हो जाता है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ –
जो मधुसूदन भगवान के कौस्तुभमणि में सुशोभित हैं, इंद्र-निलमयी हरावली की तरह भगवान मधुसूदन की छाती में सुशोभित हैं और जो भगवान मधुसूदन मन में प्रेम का संचार करते हैं, कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मुझे आशीर्वाद दे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

अर्थ –
जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ –
समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ –
भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ –
वह विशेष बुद्धि वाला व्यक्ति, जो प्रेम का प्रेमी बन जाता है और उसकी दया के प्रभाव में आसानी से स्वर्गीय स्थान प्राप्त कर लेता है, पद्मासन पद्मा की वह उज्ज्वल दृष्टि मुझे वांछित पुष्टि दे।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ –
जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्म शक्ति के रूप में स्थित हैं, लीला करते हुए वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान हैं और प्रलय-लीला के समय में रुद्रशक्ति के रूप में स्थित हैं, जो उनमें से एकमात्र गुरु हैं। त्रिभुवन भगवान नारायण प्रिय श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ –
हे माता ! अच्छे कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार। कमल वन में निवास करने वाली लक्ष्मी और पुरुषोत्तमप्रिय पुष्टि को नमस्कार।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ –
कमलवदना कमला को प्रणाम है। क्षीरसिंधु संभूता श्रीदेवी को नमन। चंद्र और सुधा की सगी बहन को नमस्कार। भगवान नारायण के वल्लभ को नमस्कार।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

अर्थ –
कमल के समान नेत्रों वाली आदरणीय माता! आपके चरणों में की गई पूजा धन प्रदान करती है, सभी इंद्रियों को सुख देती है, राज्य देने में सक्षम है और सभी पापों को हरने के लिए पूरी तरह तैयार है। मुझे सदैव आपके चरणों में प्रणाम करने का शुभ अवसर मिले।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ –
मैं मन, वचन और शरीर से उसी लक्ष्मीदेवी की पूजा करता हूं, जो श्री हरि की हृदयेश्वरी हैं, जिनकी कृपा के लिए की गई पूजा से सभी इच्छाओं और संपत्तियों का विस्तार होता है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ –
भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ –
मैं सुबह-सुबह भगवान विष्णु की गृहिणी जगज्जननी लक्ष्मी को, जो सभी लोकों के अधीक्षक और क्षीरसागर की पुत्री हैं, उन्हें आकाशगंगा के शुद्ध और सुंदर जल से नमन करता हूं, जिसे दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुंह से गिराया गया था।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ –
कमलनयन केशव की प्यारी कामिनी कमले! मैं गरीब लोगों में सबसे आगे हूं, इसलिए मैं आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम मुझे करुणा की बाढ़ की बहती लहरों की तरह व्यंग्य से देखते हो।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ –
जो लोग प्रतिदिन त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति इन स्तोत्रों से वेदत्रयी के रूप में करते हैं, वे इस धरती पर महान गुणी और बहुत भाग्यशाली हैं, और विद्वान पुरुष भी उनकी भावनाओं को जानने के लिए उत्सुक हैं|कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

 कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

कनक धारा स्तोत्र को पढ़ने के कई कारण होते हैं:

आत्मा के प्रशंसा में: कनक धारा स्तोत्र आत्मा के महात्मा की प्रशंसा करता है और आत्मा के महत्व को समझाने में मदद करता है। यह आत्मा के आंतरिक शांति और सुख को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

आत्मा के महात्मा के गुणों का स्मरण: इस स्तोत्र के पाठ के माध्यम से हम आत्मा के महात्मा के गुणों को स्मरण कर सकते हैं और उनके महत्व को बढ़ा सकते हैं।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

धार्मिकता में सुधार: कनक धारा स्तोत्र का पाठ करने से हम अपने धार्मिकता में सुधार कर सकते हैं और आत्मा के साथ गहरे संबंध बना सकते हैं।

जीवन में सुख और शांति: यह स्तोत्र हमें आत्मा के साथ जुड़कर जीवन में सुख और शांति की ओर एक कदम बढ़ा सकता है और हमें जीवन को सफल बनाने में मदद कर सकता है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

कनक धारा स्तोत्र का पाठ करके हम अपने आत्मा के प्रति भक्ति और समर्पण विकसित कर सकते हैं, जिससे हमारे जीवन को आध्यात्मिक और मानवीय दृष्टि से समृद्धि मिल सकती है।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं:

ध्यान और पूजा: माता लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती हैं। आप रोज़ या वार्षिक रूप से माता लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं। इसके लिए ध्यान, मंत्र, और आरती का पालन करें।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

दान करें: धन और संपत्ति को बाँटने में माता लक्ष्मी का बड़ा महत्व है। आप गरीबों को दान देकर, विशेष रूप से तिनके (गरीबों के लिए खाद्य दान) करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

सच्चे मन से पूजा करें: माता लक्ष्मी की पूजा के समय, आपके मन में सच्ची भक्ति और श्रद्धा होनी चाहिए। आपके दिल से आराधना करने से माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने में मदद मिलेगी।

कर्मों में ईमानदारी: कर्मों में ईमानदारी और मेहनत करने से भी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। नियमित और मेहनती काम करें और अच्छे आचरण का पालन करें।कनकधारा पाठ के फायदे-Kanak Dhara Stotra-माता लक्ष्मी को प्रसन्न कैसे करें?

लक्ष्मी की कथाएँ सुनें: माता लक्ष्मी की कथाएँ सुनने से उनके गुण और महत्व का ज्ञान होता है और आपके मन में भक्ति बढ़ती है।

ध्यान और मनन: माता लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति को ध्यान से देखें और मनन करें। यह उनकी प्रासाद को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

आपसी सहायता: दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा में वृद्धि होती है।

माता लक्ष्मी के प्रसन्न होने के लिए श्रद्धापूर्ण प्रयास करें और धन, संपत्ति, और सुख की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें।

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