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एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

एकादशी शुभ मुहूर्त-2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

 

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एकादशी महत्व: सम्पूर्ण जानकारी

एकादशी, हिन्दू पंचांग में एक महत्वपूर्ण तिथि है जो हर महीने आती है।

इस दिन को विशेष रूप से धार्मिक और सामाजिक महत्व दिया जाता है। हम इस लेख में एकादशी के महत्व पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे ताकि आपको इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी मिल सके।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

एकादशी का महत्व

एकादशी का महत्व विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में उच्च माना जाता है। इसे ‘हरि एकादशी’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ‘हरि के लिए एकादशी’।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है और भक्तगण व्रत रखते हैं।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

एकादशी के व्रत का महत्व

एकादशी के व्रत का पालन करने से मान्यता है कि व्यक्ति अपने जीवन में नेगेटिव ऊर्जा को दूर करता है और धार्मिकता में वृद्धि होती है।

इस व्रत का महत्व यह भी है कि यह शरीर, मन, और आत्मा को शुद्धि प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति अध्यात्मिक उन्नति की दिशा में बढ़ सकता है।

एकादशी के व्रत के लाभ

एकादशी के व्रत से शरीर में आने वाले तामसिक और राजसिक गुणों का संतुलन होता है जिससे व्यक्ति में शांति और सकारात्मकता की भावना बनी रहती है।

यह व्रत व्यक्ति को नैतिकता में सुधार करने में मदद करता है और सामाजिक जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

एकादशी व्रत का पालन कैसे करें

एकादशी व्रत शुरू करने से पहले संकल्प लें कि आप इसे पूर्ण करेंगे और नियमित रूप से पूजा-अर्चना करेंगे।

उपवास का पालन करें

एकादशी के दिन उपवास करें और विशेष रूप से सत्विक आहार का पालन करें।

भगवान की पूजा करें

व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें फल, फूल, और तुलसी के पत्ते से अर्चित करें।

दान करें

एकादशी के दिन दान करना भी बहुत श्रेष्ठ है। आप गरीबों को भोजन, वस्त्र, और धन दान कर सकते हैं।

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

1- पौष माह

सफला एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 7 जनवरी 2024
पौष पुत्रदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 21 जनवरी 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

2- माघ माह

षटतिला एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 6 फरवरी 2024
जया एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 20 फरवरी 2024

3- फाल्गुन माह

विजया एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 6 मार्च 2024
आमलकी एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 20 मार्च 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

4- चैत्र माह

पापमोचिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 5 अप्रैल 2024
कामदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 19 अप्रैल 2024

5- वैशाख माह

बरूथिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 4 मई 2024
मोहिनी एकादशी – 19 मई 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

6- ज्येष्ठ माह

अपरा एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 2 जून 2024
निर्जला एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 18 जून 2024

7- आषाढ़ माह

योगिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 2 जुलाई 2024
देवशयनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 17 जुलाई 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

8- सावन माह

कामिका एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 31 जुलाई 2024
सावन पुत्रदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 16 अगस्त 2024

9- भाद्रपद माह

अजा एकादशी (कृष्ण पक्ष)- 29 अगस्त 2024
परिवर्तिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 14 सितंबर 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

1- अश्विन माह

इंदिरा एकादशी (कृष्ण पक्ष) – 28 सितंबर 2024
पापांकुशा एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 13 अक्टूबर 2024

11- कार्तिक माह

रमा एकादशी (कृष्ण पक्ष)- 28 अक्टूबर 2024
देवउठनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) – 12 नवंबर 2024

12- मार्गशीर्ष माह

उत्पन्ना एकादशी (कृष्ण पक्ष)- 26 नवंबर 2024
मोक्षदा एकादशी (शुक्ल पक्ष)- 11 दिसंबर 2024

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

एकादशी व्रत का इतिहास

एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजीके मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि ‘महाराज!

मुझसे कोई व्रत नही किया जाता।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है।

अतः आप कोई ऐसा उपाय बतला दीजिये जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाय।

तब व्यासजी ने कहा कि ‘तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो,

इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा।’ तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गये। इसलिए यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है।

हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।

इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक मान्यता है कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे।इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।

सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित साल की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है।

जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है।

इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है।

यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। व्रत का विधान है।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

ध्यान रखें

1. पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं।

2. दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें।

3. दिनभर न सोएं।

4. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

5. झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद न करें।

एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

व्रत कथा

जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब युधिष्ठिर ने कहा – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान

श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् !

इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं।

तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है।

द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करें। यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिए।

राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना।

भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ।

मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि !

मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ,

ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।

व्यासजी ने कहा- भीम!

ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो।

केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है।

इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें।

वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।

शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।

कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो।

उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए, सामान्य गाय या घी से बनी गाय का दान भी किया जा सकता है।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं।

जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है,
उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है।

निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए।

जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।

जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है।
चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है।

भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे।

जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

समापन

एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है और आत्मा के साथ मिलकर एक ऊँचे स्तर पर पहुंचता है। इसे न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है,एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

बल्कि इसके आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव होता है। इसलिए, हम सभी को एकादशी व्रत का पालन करने की सलाह देते हैं ताकि आपका जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण रहे।एकादशी शुभ मुहूर्त2024-Ekadashi Vrat Vidhi- संपूर्ण एकादशी महत्व

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भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)
भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स( Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

जय श्री राम जय श्री रामजय श्री राम
जरा देर ठहरो राम तमन्ना यही है
अभी हमने जी भर के देखा नही है ॥
जरा देर ठहरो राम तमन्ना यही है
अभी हमने जी भर के देखा नही है

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

कैसी घड़ी आज जीवन की आई ।
अपने ही प्राणो की करते विदाई ।
अब ये अयोध्या हमारी नहीं है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)
भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

माता कौशल्या की आंखों के तारे।
दशरथ जी के राज दुलारे ।
कभी ये अयोध्या को भुलाना नहीं है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

जाओ प्रभु अब समय हो रहा है।
घरों का उजाला भी कम हो रहा है ।
अंधेरी निशा का ठिकाना नहीं है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है ॥
अभी हमने जी भर के देखा नही है

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)
भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

Jay shrii raam jay shrii raamajay shrii raam
Jaraa der ṭhaharo raam tamannaa yahii hai
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai ॥
Jaraa der ṭhaharo raam tamannaa yahii hai
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai

Kaisii ghadii aaj jiivan kii aaii .
Apane hii praaṇo kii karate vidaaii .
Ab ye ayodhyaa hamaarii nahiin hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

Maataa kowshalyaa kii aankhon ke taare.
Dasharath jii ke raaj dulaare .
Kabhii ye ayodhyaa ko bhulaanaa nahiin hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

Jaao prabhu ab samay ho rahaa hai.
Gharon kaa ujaalaa bhii kam ho rahaa hai .
Andherii nishaa kaa ṭhikaanaa nahiin hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai ॥
Abhii hamane jii bhar ke dekhaa nahii hai

भजन जरा देर ठहरो राम लिरिक्स(Jarader Thahro Ram Lyrics In Hindi)

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sanskrit me falo ke naam

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit
121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

फलों के नाम संस्कृत में:

एक अद्वितीय और शिक्षाप्रद जानकारी यदि आप संस्कृत की सुंदरता और धरोहर को समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो फलों के नाम संस्कृत में एक महत्वपूर्ण विषय है। संस्कृत, जिसे देववाणी भी कहा जाता है,

भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और इसकी भाषा में फलों के नामों का विशेष महत्व है।
हम इस लेख में संस्कृत में फलों के नामों की व्यापक और विस्तार सूची प्रस्तुत करेंगे, जो आपको इस सुंदर भाषा के रूप, व्यक्ति और संसार के साथ मिलेगा।

फलों के महत्व

फल, स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, और संस्कृत में इनके नामों का अध्ययन करने से हम इनके प्राकृतिक गुणों के बारे में भी जान सकते हैं। यहां हम कुछ महत्वपूर्ण फलों के संस्कृत नामों को प्रस्तुत कर रहे हैं:121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit
121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

1 सेब Apple सेवम्, फलप्रभेदः
2 केला Banana कदलीफलम्
3 आम Mango आम्रम्
4 अंगूर Grape द्राक्षा

5 अनार Pomegranate दाडिम
6 अमरूद Guava आग्रलम्
7 संतरा Orange नारङ्गम्
8 नाशपाती Pear अमृतफलम्

9 खजूर Date खर्जूरम्
10 नारियल Coconut नारिकेलम्
11 खरबूजा Muskmelon दशांगुलम्
12 सीताफल, शरीफा Custard apple सीताफलम्

13 तरबूज, कलिंदा Watermelon कालिङगम्
14 अनानास Pineapple अनानासम्
15 अंजीर, गूलर Fig उदुम्बरम्
16 चेरी Cherry प्रबदरम्

17 स्ट्रॉबेरी Strawberry तृण-बदरम्
18 जामुन Jamun जम्बू
19 कैथा Kaitha कपित्थम्
20 कटहल Jackfruit पनसम्

21 खीरा Cucumber कर्कटी
22 मौसंबी Sweet lemon मतुलुङगम्
23 पपीता Papaya मधुकर्कटी
24 सिंघाड़ा Water Chestnut श्रृंड्गाटकश्

25 लीची Lychee लीचिका
26 आड़ू Peach आद्रालुः
27 कन्दमूल Rhizome कंदमूलम्
28 आंवला Gooseberry आमलकम्

29 इमली Tamarind तिंतिडीकम्
30 गूलर Sycamore डदुम्बरम्
31 कमरख Kamarkha कमरक्षम्
32 शकरकंद Sweet Potato मिष्टालुकम्

33 बेर Berry बदरीफलम्
34 चकोतरा Grapefruit धुकर्कट
35 बकुला Bakula क्षीरिणी
36 रतालू Yam रक्तालू

37 चीकू Chikoo विकूतम्
38 कीवी Kiwi कीवी फलम्
39 महुआ Mahua मधूकः
40 नींबू Lemon निम्बूकम्

41 मकोय Makoy स्वर्णक्षिणी
42 करौंदा Karounda करमर्दकः
43 मुनक्का Raisins मधुरिका
44 बादाम Almond वातादम

45 पोस्ता Poppy पौस्टिकम
46 पिस्ता Pistachio अकोलम
47 चिरौंजी Chironji प्रियालम
48 किशमिश Raisin शुष्कद्राक्षा

49 काजू Cashew काजवम
50 अखरोट Walnut अक्षोटम
51 काले बेर Black Plum जम्बु
52 काली किशमिश Blackcurrant श्याम: किशमिश:

53 ब्लूबेरी Blueberry नील-बदरी
54 करौंदा Karounda आम्लकि
55 बेल Wood Apple कपित्थम्
56 खुबानी Apricot प्रियालु

57 एवोकाडो Avocado नीरबीज
58 जामुन Berries जम्‍बूफलम्
59 ब्लैकबेरी Blackberry जम्बुफलम्
60 अखरोट Walnut अक्षोटम्

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

61 ककरौदा Karonda करमर्दकः
62 गन्ना Sugarcane इक्षु
63 खिरनी Mimusops क्षीरिणी
64 चिनार Poplar डदुम्बरम्

65 बेर Plum बदरीफलम्
66 कंदमूल Root Vegetable कंदमूलम्
67 इमली Tamarind तिंतिडी, तिंतिडीकम्
68 गूलर Sycamore उदुम्‍बरम्

69 स्वर्णक्षीरी Mulberry टङ्कानक
70 ड्रैगन फल Dragon Fruit कमलम् फलानि
71 श्रीफल Quince श्रीफलमः
72 ककड़ी Cucumber कर्कटिका

73 कदम्ब Kadamb कदम्बम्

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit
121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

1. अंगूर – द्राक्षाफलम्
2. अंजीर – अंजीरम्
3. अखरोट – अक्षोटम्
4. अनानास – अनानासम्
5. अनार – दाडिमम्

6. अमरूद – बीजपूरम्‚ आम्रलम्‚ दृढबीजम्‚ अमृतफलम्
7. आंवला – आमलकम्
8. आडू – आद्रालुः
9. आम – आम्रम्, आम्रं
10. इमली – तिंतिडी, तिंतिडीकम्

11. एवोकाडो – नीरबीज
12. कंदमूल – कंदमूलम्
13. ककड़ी – कर्कटिका
14. ककरौदा – करमर्दकः
15. कटहल – पनसम्
16. कत्‍था – खदिर:

17. कदम् – कदंबम्, नीपः
18. कमरख – कमरक्षम्
19. करौंदा – करमर्दकः
20. कागजी निंबू – जंबीरम्

21. काली किशमिश – श्याम: किशमिश:
22. काले बेर – जंबु
23. कीवी – कीवी फलं
24. केला – कदलीफलम्, कदलिका, कदली
25. कैंथ – कपित्थ, कपित्थं

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

26. खजूर – खर्जूरम्
27. खरबूजा – खर्बूजम्, वृत्तकर्कट
28. खिरनी – क्षीरिणी
29. खुबानी – प्रियालु
30. गन्ना – इक्षु
31. गूलर – डदुंबरम्

32. चकोतरा – धुकर्कटी
33. चिकु – विकूतम्
34. चिनार – डदुंबरम्
35. चीकू – विकूतम्
36. चेरी – अष्ठिगर्भः

37. जामुन – जंबूफलम्
38. तरबूज – कलींदा कालिंदम्, कलिंग
39. नारियल – नारिकेलम्
40. नाशपाती – अमृतफलम्

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

41. नींबू – निंबुकम्
42. पपीता – मधुकर्कटी
43. पिस्ता – अकोलम्
44. बकुला – क्षीरिणी
45. बेर – बदरीफलम्

46. बेल – कपित्थम्
47. ब्लूबेरी – नील-बदरी
48. ब्लैकबेरी – जम्बुफलम्
49. मकोय – स्वर्णक्षीरी
50. महुआ – मधूक, मधूकः

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

मौसमी – मतुलुङ्गम्
रतालू – रक्तालु
लीची – लीचिका
शकरकंद – मिष्टालुकम्
शरीफा – सीताफलम्
शहतूत – तूत

संतरा – नारङ्गफलम्
सतालू – आर्द्रालुः
सिंघाड़ा – श्रृंड्गाटक
सीताफल (शरीफा) – शीतफलम्
सेब – सेवम्
स्ट्रॉबेरी – तृण-बदरम्
स्वर्णक्षीरी – टङ्कानक

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit
121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

संस्कृत में फलों के नाम संबंधी प्रश्न उत्तर

अंगूर को संस्कृत में क्या कहते है? – द्राक्षाफलम्
अमरूद को संस्कृत में क्या कहते हैं? – बीजपूरम्‚ आम्रलम्‚ दृढबीजम्‚ अमृतफलम्
अनार को संस्कृत में क्या कहते हैं? – दाडिमम्
आम को संस्कृत में क्या कहते है? – आम्रम्, आम्रं

इमली को संस्कृत में क्या कहते हैं? – तिंतिडी, तिंतिडीकम्
एप्पल को संस्कृत में क्या कहते हैं? – सेवम्
ऑरेंज को संस्कृत में क्या कहते हैं? – नारङ्गफलम्
नारियल को संस्कृत में क्या कहते हैं? – नारिकेलम्

पपीता को संस्कृत में क्या कहते हैं? – मधुकर्कटी
फल को संस्कृत में क्या कहते हैं? – फलम्
लीची को संस्कृत में क्या कहते हैं? – लीचिका
सेब को संस्कृत में क्या कहते हैं? – सेवम्

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

आम्रम् (आम – Mango)
नारङ्गम् (संतरा – Orange)
कदलिका (केला – Banana)
कीवी फलं (कीवी फल – Kiwi)
आग्रलम्, दृढबीजम् (अमरूद – Guava)

सेवम्, फलप्रभेदः (सेब – Apple)
दाडिमः (अनार – Pomegranate)
तृण-बदरम् (स्ट्रॉबेरी – Strawberry )
अमृतफलम् (नाशपाती – Pear)
लीचिका (लीची – Lychee)

द्राक्षाफलम् (अंगूर – Grape)
कालिङ्गम् (तरबूज – Watermelon)
श्रीफलमः (श्रीफल – Quince)
मधुकर्कटी (पपीता – Papaya)
अनासम् (अनानास – Pine-apple)

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

Q – फल को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – फल को संस्कृत में “फलानि” कहते हैं।

Q – सेब को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – सेब को संस्कृत में “सेवम्” कहते हैं।

Q – केले को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – केला को संस्कृत में “कदलिका” या “कदली” कहते हैं।

Q – अंगूर को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – अंगूर को संस्कृत में “द्राक्षाफलम्” कहते हैं।

Q – अनानास को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – अनानास को संस्कृत में “अनासम्” कहते हैं।

Q – तरबूज को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – तरबूज को संस्कृत में “कालिङ्गम्” कहते हैं।

Q – जामुन को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – जामुन को संस्कृत में “जम्‍बूफलम्” कहते हैं।

Q – नाशपाती को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – नाशपाती को संस्कृत में “अमृतफलम्” कहते हैं।

Q – कटहल को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – कटहल को संस्कृत में “पनसम्” कहते हैं।

Q – लीची को संस्कृत में क्या कहते हैं?
A – लीची को संस्कृत में “लीचिका” कहते हैं।

यहां हमने फलों के नामों की सूची संस्कृत में साझा की है, लेकिन किसी फल का नाम इस चार्ट में नहीं है तो आप उसका नाम हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं, वह जल्द ही उपलब्ध करा दिया जाएगा।

121+फलों के नाम संस्कृत में-Fruits Name In Sanskrit

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अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi
अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

हवन एक पवित्र आध्यात्मिक क्रिया है जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें यज्ञ के द्वारा भगवान का आदरणीय नाम सादर किया जाता है और विशेष आहुतियाँ दी जाती हैं। यह आध्यात्मिक समृद्धि और मानसिक शांति का अद्वितीय माध्यम होता है।

हवन की तैयारी

आग की तैयारी: हवन के लिए एक यज्ञकुंड या यज्ञकुंड की आवश्यकता होती है, जिसमें आग की तैयारी की जाती है। यह आग अग्निदेव को समर्पित की जाती है।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

यज्ञ के सामग्री: हवन के लिए यज्ञ के सामग्री की आवश्यकता होती है, जैसे कि द्रव्य, दर्भ, अग्निकुंड, और आदिक।

मंत्र और पुरोहित: हवन के दौरान विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, इसके लिए एक पुरोहित की सेवा लिया जाता है।

हवन की प्रक्रिया

यज्ञकुंड में आग रखना: हवन की शुरुआत में यज्ञकुंड में आग रखी जाती है। यह आग अग्निदेव को समर्पित की जाती है.

मंत्र जप: पुरोहित के मार्गदर्शन में, मंत्रों का जप किया जाता है। ये मंत्र भगवान की पूजा के लिए कहे जाते हैं.

आहुतियाँ देना: यज्ञकुंड में ध्यान से समर्पित होकर, व्यक्ति यज्ञ सामग्री की आहुतियाँ देता है. ये आहुतियाँ आग में दली जाती हैं.

प्रार्थना: हवन के अंत में, व्यक्ति भगवान से अपनी मनोकामनाएँ मांगता है और आशीर्वाद प्राप्त करता है.

हवन का अफसर: हवन के बाद, आग की समापन करने के लिए एक विशेष अफसर का आगमन किया जाता है, और यज्ञ का समापन किया जाता है.

हवन एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है जिसमें व्यक्ति आध्यात्मिक शुद्धि और सद्गुणों की वर्धन के लिए इसका पालन करता है. यह आत्मा के आनंद और सांत्वना की ओर एक कदम है, जो हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व रखता है।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi
अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

(भू रुदन, भू रजस्वला, भू शयन, भू हास्य, किस पक्ष मे शुभ कार्य न करे, यज्ञ कुंड के प्रकार, कितना हवन किया जाए?)

कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति – आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन ‘अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके ।

भू रुदन :-

हर महीने की अंतिम घडी, वर्ष का अंतिम् दिन, अमावस्या, हर मंगल वार को भू रुदन होता हैं । अतः इस काल को शुभ कार्य भी नही लिया जाना चाहिए ।

यहाँ महीने का मतलब हिंदी मास से हैं और एक घडी मतलब 24 मिनिट हैं । अगर ज्यादा गुणा न किया जाए तो मास का अंतिम दिन को इस आहुति कार्य के लिए न ले।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

भू रजस्वला :-

इस का बहुत ध्यान रखना चाहिए ।यह तो हर व्यक्ति जानता हैं की मकरसंक्रांति लगभग कब पड़ती हैं । अगर इसका लेना देना मकर राशि से हैं तो इसका सीधा सा तात्पर्य यह हैं की हर महीने एक सूर्य संक्रांति पड़ती ही हैं और यह एक हर महीने पड़ने वाला विशिष्ट साधनात्मक महूर्त होता हैं ।

तो जिस भारतीय महीने आपने आहुति का मन बनाया हैं ठीक उसी महीने पड़ने वाली सूर्य संक्रांति से (हर लोकलपंचांग मे यह दिया होता हैं । लगभग 15 तारीख के आस पास यह दिन होता हैं । मतलब सूर्य संक्रांति को एक मान कर गिना जाए तो 1, 5, 10, 11, 16, 18, 19 दिन भू रजस्वला होती हैं ।

भू शयन :-

आपको सूर्य संक्रांति समझ मे आ गयी हैं तो किसी भी महीने की सूर्य संक्रांती से 5, 7, 9, 15, 21 या 24 वे दिन को भू शयन माना
जाया हैं ।

सूर्य जिस नक्षत्र पर हो उस नक्षत्र से आगे गिनने पर 5, 7,9, 12, 19, 26 वे नक्षत्र मे पृथ्वी शयन होता हैं । इस तरह से यह भी
काल सही नही हैं ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

अब समय हैं यह जानने का कि भू हास्य क्या है ?
भू हास्य :- तिथि मे पंचमी ,दशमी ,पूर्णिमा ।

वार मे – गुरु वार ।

नक्षत्र मे – पुष्य, श्रवण मे पृथ्वी हसती हैं ।
अतः इन दिनों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

गुरु और शुक्र अस्त :- यह दोनों ग्रह कब अस्त होते हैं और कब उदित ।

आप लोकल पंचांग मे बहुत ही आसानी से देख सकते हैं और इसका निर्धारण कर सकते हैं । अस्त होने का सीधा सा मतलब हैं की ये ग्रह सूर्य के कुछ ज्यादा समीप हो गए और अब अपना असर नही दे पा रहे हैं ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

क्यूंकी इन दोनों ग्रहो का प्रत्येक शुभ कार्य से सीधा लेना देना हैं । अतः इनके अस्त होने पर शुभ कार्य नही किये जाते हैं और इन दोनों के उदय रहने की अवस्था मे शुभ कार्य किये
जाना चाहिये ।

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi
अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

आहुति कैसे दी जाए :-

• आहुति देते समय अपने सीधे हाँथ के मध्यमा और

का सहारा ले कर उसे प्रज्ज्वलित अग्नि मे ही छोड़ा जाए ।

• आहुति हमेशा झुक कर डालना चाहिए वह भी इस तरह से की पूरी आहुति अग्नि मे ही गिरे ।

• जब आहुति डाली जा रही हो तभी सभी एक साथ स्वाहा शब्द बोले ।

(यह एक शब्द नही बल्कि एक देवी का नाम है )

• जिन मंत्रो के अंत मे स्वाहा शब्द पहले से हैं उसमे फिर से पुनःस्वाहा शब्द न बोले यह ध्यान रहे।

वार :- रविवार और गुरुवार सामन्यतः सभी यज्ञों के लिए श्रेष्ठ दिवस हैं । शुकल पक्ष मे यज्ञ आदि कार्य कहीं ज्यादा उचित हैं ।

किस पक्ष मे शुभ कार्य न करे :-

ग्रंथ कार कहते हैं की जिस पक्ष मे दो क्षय तिथि हो मतलब वह पक्षः 15 दिन का न हो कर 13 दिन का ही हो जायेगा उस पक्ष मे समस्त शुभ कार्य वर्जित हैं ।

ठीक इसी तरह अधि़क मास या मल मास मे भी यज्ञ कार्य वर्जित हैं ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

किस समय हवन आदि कार्य करें :- सामान्यतः आपको इसके लिए पंचांग देखना होगा । उसमे वह दिन कितने समय का हैं । उस दिन मान के नाम से बताया जाता हैं ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

उस समय के तीन भाग कर दे और प्रथम भाग का उपयोग यज्ञ अदि कार्यों के लिए किया जाना चाहिए । साधारण तौर से यही अर्थ हुआ की की दोपहर से पहले यज्ञ आदि कार्य प्रारंभ हो जाना चहिये ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

हाँ आप राहु काल आदि का ध्यान रख सकते हैं और रखना ही चहिये क्योंकि यह समय बेहद अशुभ माना जाता हैं ।

यज्ञ कुंड के प्रकार :-

यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी का प्रयोजन अलग अलग होताहैं ।

1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।

2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।

3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।

4. वृत्त कुंड – जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।

5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।

6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।

7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।

8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।

तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं ।

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

ध्यान रखने योग्य बाते :-

अबतक आपने शास्त्रीय बाते समझने का
प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगम ना करें ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

पर जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ? कितने लोग और किस प्रकार के लोग कीआप सहायता ले सकते हैं ?

कितना हवन किया जाना हैं ? हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ? क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ?

किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ? किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ? किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं ?

दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ? कुछ और आवश्यक सावधानी ? आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बातों को अब हम देखेगे ।

जब शास्त्रीय गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

1. कितना हवन किया जाए?

शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।

इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे

1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति ।

(यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100 गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग।

तो किसी एक व्यक्ति के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?

2. तो क्या अन्य व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं ।

जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।

3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं ।

मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए संभव हैं ।

4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान मे या फ्लेट मे रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही हैं तब क्या ?

गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता हैं संकल्प ले कर की मैं दसवाँ हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ ।अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस मे शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।

5. श्त्रुक स्त्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्त्रुक 36 अंगुल लंबा और स्त्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए ।

इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।

6. हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?

• शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।

• पुष्टि क्रम मे बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।

• स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।

• दरिद्रयता दूर करने के लिये दही और घी का ।

• आकर्षण कार्यों मे पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।

• वशीकरण मे चमेली के फूल से ।

• उच्चाटन मे कपास के बीज से ।

• मारण कार्य मे धतूरे के बीज से हवन किया जा ना चाहिए ।

7. दिशा क्या होना चाहिए ?

साधरण रूप से जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता हैं । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi

• शांती और पुष्टि कर्म मे पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।

• आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण मे हो ।

• विद्वेषण मे नैरित्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।

• उच्चाटन मे अग्नि कोण मे मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।

• मारण कार्यों मे – दक्षिण दिशा मे मुंह और दक्षिण दिशा मे हवन हुंड हो ।

8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?

• शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।

• अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।

• उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।

• मोहन कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।

• और ताबे का हवन कुंड मे प्रत्येक कार्य मे उपयोग की या जा सकता हैं ।

9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?

• शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।

• पुर्णाहुति मे मृडा नाम की ।

• पुष्टि कार्योंमे बल द नाम की अग्नि का ।

• अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।

• वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये ।

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10. कुछ ध्यान योग बाते :-

• नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।

• यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।

• दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।

• दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।

• घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग मे और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।

• शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।

• यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।

• कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।

• हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।

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सबसे पहले गणना के लिए ध्यान रखना है कि रविवार को 1 तथा शनिवार को 7 संख्या मानकर वार गिने जायेंगे |

शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि को 1 तथा अमावस्या को 30 मानकर गणना होगी |

जिस दिन हवन करना हो उसी दिन की तिथि एवं वार की संख्या जोड़कर जो संख्या प्राप्त होगी उसमे 1(+) जोड़ें ,

तत्पश्चात 4 से भाग(divide) करें

यदि कुछ भी शेष न रहे अर्थात संख्या पूरी भाग हो जाये तो अग्नि का वास पृथ्वी पर जाने

यदि 3 शेष बचे तो भी अग्नि का वास पृथ्वी पर जाने |

यदि 1 शेष बचे तो अग्नि का वास आकाश में जाने |

यदि 2 शेष बचे तो अग्नि वास पाताल में जाने |

यदि अग्नि वास पृथ्वी पर है तो सुखकारक

यदि आकाश में है तो प्राण हानिकारक

यदि पाताल में है तो धनहानि कारक होता है|

अग्निवास विचार एवं हवन विधि-Agnivaas Evam Havan Vidhi In Hindi
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October 2023 अक्टुबर

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Agni Vaas October 2023 अक्टूबर
1st, 3rd, 5th, 7th, 9th, 11th, 13th, 15th, 17th, 19th, 21st, 23rd, 25th, 27th, 28th, and 30th.

Agni Vaas November 2023 नवम्बर

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Agni Vaas November 2023 नवम्बर
1st, 3rd, 6th, 9th, 11th,12th, 15th, 17th, 19th, 20th, 22nd, 24th, 26th, 28th, 30th.

Agni Vaas December 2023 दिसम्बर

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Agni Vaas December 2023 दिसम्बर
2nd, 3rd, 5th, 7th, 9th, 11th, 14th, 16th, 17th, 19th,21st, 23rd, 24th, 26th, 28th,and 29th.

Agni Vaas January 2024 जनवरी

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Agni Vaas January 2024 जनवरी
1st, 3rd, 5th, 7th, 9th, 11th, 12th, 15th, 17th, 19th, 22nd, 24th, 26th, 28th,and 30th.

Agni Vaas February फरवरी 2024

Agni Vaas February 2024 फरवरी
1st, 3rd, 5th, 7th, 9th, 11th, 13th, 15th, 17th, 18th, 20th, 22nd, 24th, 26th, and 28th.

Agni Vaas March 2024 मार्च

Agni Vaas March 2024 मार्च
1st, 3rd, 5th, 6th, 8th ,10th, 11th, 14th,16th, 18th, 20th, 22nd and 24th.

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संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री आदिनाथ जिन स्तुति
स्वयम्भुवां भूत- हितेन भूतले,
समञ्जस-ज्ञान-विभूति – चक्षुषा ।
विराजितं येन विधुन्वता तमः,
क्षपाकरेणेव गुणौत्करैः करैः ॥ १ ॥

प्रजापतिर्यः प्रथमं जिजीविषूः,
शशास कृष्यादिषु कर्मसु प्रजाः ।
प्रबुद्धतत्त्वः पुनरद्भुतोदयो,
ममत्वतो निर्विविदे विदांवरः ॥ २ ॥

विहाय यः सागर-वारि-वाससं,
वधूमिवेमां वसुधा-वधूं सतीम् ।
मुमुक्षुरिक्ष्वाकु कुलादिरात्मवान्,
प्रभुः प्रवव्राज सहिष्णुरच्युतः ॥३ ॥

स्व-दोष -मूलं स्व-समाधि- तेजसा,
निनाय यो निर्दय – भस्मसात्क्रियाम् ।
जगाद तत्त्वं जगतेऽर्थिनेऽञ्जसा,
बभूव च ब्रह्म-पदामृतेश्वरः ॥४ ॥

स विश्व – चक्षुर्वष भोऽर्चितः सतां,
समग्र-विद्याऽऽत्म-वपुर्निरञ्जनः ।
पुनातु चेतो मम नाभि-नन्दनो,
जिनोऽजित – दुल्लक- वादि-शासनः ॥५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री अजितनाथ जिन-स्तुति

यस्य प्रभावात् त्रिदिव- च्युतस्य
क्रीडास्वपि क्षीबमुखाऽरविन्दः,
अजेय-शक्तिर्भुवि बन्धु-वर्ग-
श्चकार नामाऽजित इत्यबन्ध्यम् ॥ ६ ॥

अद्याऽपि यस्याऽजितशासनस्य
सतां प्रणेतुः प्रतिमङ्गलार्थम् ।
प्रगृह्यते नाम परम- पवित्रं
स्वसिद्धि-कामेन जनेन लोके ॥ ७ ॥

यः प्रादुरासीत्प्रभु-शक्ति- भूम्ना
भव्याऽऽशयालीन- कलङ्क- शान्त्यै ।
महामुनिर्मुक्त- घनोपदेहो
यथाऽरविन्दाऽभ्युदयाय भास्वान् ॥८ ॥

येन प्रणीतं पृथु धर्म-तीर्थं
ज्येष्ठं जनाः प्राप्य जयन्ति दुःखम् ।
गाङ्गं हृदं चन्दन- पङ्क- शीतं
गज-प्रवेका इव धर्म-तप्ताः ॥ ९ ॥

स ब्रह्मनिष्ठः सम- मित्र – शत्रु-
विद्या – विनिर्वान्त-कषाय- दोषः ।
लब्धात्मलक्ष्मीरजितोऽजितात्मा
जिन श्रियं मे भगवान् विधत्ताम् ॥१० ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री शम्भवनाथ जिन स्तुति

त्वं शम्भवः सम्भव- तर्ष – रोगैः
सन्तप्यमानस्य जनस्य लोके ।
आसीरिहाऽऽकस्मिक एव वैद्यो
वैद्यो यथाऽनाथरुजां प्रशान्त्यै ॥ ११ ॥

अनित्यमत्राणमहंक्रियाभिः
प्रसक्त-मिथ्याऽध्यवसाय – दोषम् ।
इदं जगज्जन्म-जराऽन्तकार्तं
निरञ्जनां शान्तिमजीगमस्त्वम् ॥१२ ॥

शतहृदोन्मेष – चलं हि सौख्यं
तृष्णामयाऽप्यायन-मात्र- हेतुः ।
तृष्णाभिवृद्धिश्च तपत्यजस्त्रं
तापस्तदायासयतीत्यवादीः ॥ १३ ॥

बन्धश्च मोक्षश्च तयोश्च हेतू
बद्धश्च मुक्तश्च फलं च मुक्तेः ।
स्याद्वादिनो नाथ! तवैव युक्तं
नैकान्तदृष्टेस्त्वमतोऽसि शास्ता ॥ १४ ॥

शक्रोऽप्यशक्तस्तव पुण्यकीर्तेः
स्तुत्यां प्रवृत्तः किमु मादृशोऽज्ञः ।
तथाऽपि भक्त्या स्तुत-पाद-पद्मो
ममार्य ! देयाः शिवतातिमुच्चैः ॥ १५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री अभिनन्दननाथ जिन स्तुति

गुणाऽभिनन्दादभिनन्दनो भवान्
दया-वधूं क्षान्ति – सखीमशिश्रियत् ।
समाधि–तन्त्रस्तदुपोपपत्तये
द्वयेन नैर्ग्रन्थ्य-गुणेन चाऽयुजत् ॥ १६ ॥

अचेतने तत्कृत-बन्धजेऽपि च
ममेदमित्याभिनिवेशिक ग्रहात् ।
प्रभंगुरे स्थावर – निश्चयेन च
क्षतं जगत्तत्त्वमजिग्रहद्भवान् ॥ १७ ॥

क्षुदादि-दुःख- प्रतिकारतः स्थिति-
र्न चेन्द्रियार्थ–प्रभवाऽल्प- सौख्यतः ।
ततो गुणो नास्ति च देह देहिनो-
रितीदमित्थं भगवान् व्यजिज्ञपत् ॥ १८ ॥

जनोऽतिलोप्यनुबन्धदोषतो
भयादकार्येष्विह न प्रवर्तते ।
इहाऽप्यमुत्राऽप्यनुबन्धदोषवित्
कथं सुखे संसजतीति चाऽब्रवीत् ॥ १९ ॥

स चानुबन्धोऽस्य जनस्य तापकृत्
तृषोऽभिवृद्धि: सुखतो न च स्थितिः ।
इति प्रभो ! लोक-हितं यतो मतं
ततो भवानेव गतिः सतां मतः ॥ २०॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री सुमतिनाथ जिन – स्तुति

अन्वर्थसंज्ञः सुमतिर्मुनिस्त्वं,
स्वयं मतं येन सुयुक्ति- नीतम् ।
यतश्च शेषेषु मतेषु नास्ति,
सर्व-क्रिया- कारक-तत्त्व-सिद्धिः ॥२१॥

अनेकमेकं च तदेव तत्त्वं,
भेदाऽन्वयज्ञानमिदं हि सत्यम् ।
मृषोपचारोऽन्यतरस्य लोपे,
तच्छेषलोपोऽपि ततोऽनुपाख्यम् ॥२२॥

सतः कथञ्चित्तदसत्त्व – शक्तिः,
खे नास्ति पुष्पं तरुषु प्रसिद्धम् ।
सर्व-स्वभाव- च्युतमप्रमाणं,
स्व- वाग्विरुद्धं तव दृष्टितोऽन्यत् ॥२३॥

न सर्वथा नित्यमुदेत्यपैति,
न च क्रिया-कारकमंत्र युक्तम् ।
नैवाऽसतो जन्म सतो न नाशो,
दीपस्तमः पुद्गलभावतोऽस्ति ॥२४॥

विधिर्निषेधश्च कथञ्चिदिष्टौ,
विवक्षया मुख्य-गुण-व्यवस्था ।
इति प्रणीतिः सुमतेस्तवेयं,
मति – प्रवेकः स्तुवतोऽस्ति नाथ ! ॥ २५ ॥

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श्री पद्मप्रभ जिन स्तुति

पद्मप्रभः पद्म- पलाश-लेश्य:,
पद्मालयाऽऽ लिङ्गितचारुमूर्तिः ।
बभौ भवान् भव्य – पयोरुहाणां,
पद्माकराणामिव पद्मबन्धुः ॥२६ ॥

बभार पद्मां च सरस्वतीं च
भवान् पुरस्तात्प्रतिमुक्तिलक्ष्म्याः ।
सरस्वतीमेव समग्र-शोभां
सर्वज्ञ- लक्ष्मीज्वलितां विमुक्तः ॥ २७॥

शरीर-रश्मि- प्रसरः प्रभोस्ते
बालार्क- रश्मिच्छविराऽऽलिलेप ।
नराSमराऽऽकीर्ण-सभां प्रभा वां
शैलस्य पद्माभमणेः स्वसानुम् ॥ २८ ॥

नभस्तलं पल्लवयन्निव त्वं
सहस्रपत्राऽम्बुज- गर्भचारै: ।
पदाऽम्बुजैः पातित- मार-दर्पो
भूमौ प्रजानां विजहर्थ भूत्यै ॥ २९ ॥

गुणाम्बुधेर्विप्रुषमप्यजस्य
नाऽऽखंडलः स्तोतुमलं तवर्षेः ।
प्रागेव मादृक्किमुताऽतिभक्ति-
म बालमालापयतीदमित्थम् ॥ ३० ॥

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श्री सुपार्श्वनाथ जिन – स्तुति

स्वाथ्यं यदात्यन्तिकमेष पुंसां,
स्वार्थो न भोगः परिभंगुरात्मा ।
तृषोऽनुषंगान्न च तापशान्ति-
रितीदमाख्यद्भगवान् सुपार्श्वः ॥३१ ॥

अजङ्गगमं जङ्गम-नेय- यन्त्रं,
यथा तथा जीव- धृतं शरीरम् ।
बीभत्सु पूति क्षयि तापकं च,
स्नेहो वृथाऽत्रेति हितं त्वमाख्यः ॥३२ ॥

अलंघ्यशक्तिर्भवितव्यतेयं,
हेतु-द्वयाऽऽविष्कृत-कार्य-लिङ्गा ।
अनीश्वरो जन्तुरहंक्रियार्त्तः,
संहत्य कार्येष्विति साध्ववादीः ॥३३॥

बिभेति मृत्योर्न ततोऽस्ति मोक्षो,
नित्य शिवं वाञ्छति नाऽस्य लाभः ।
तथाऽपि बालो भय-काम- वश्यो,
वृथा स्वयं तप्यत इत्यवादीः ॥३४॥

सर्वस्य तत्त्वस्य भवान् प्रमाता,
मातेव बालस्य हितानुशास्ता ।
गुणाऽवलोकस्य जनस्य नेता,
मयाऽपि भक्त्या परिणयतेऽद्य ॥ ३५ ॥

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श्री चन्दप्रभ जिन – स्तुति

चन्द्रप्रभं चन्द्र- मरीचि – गौरं
चन्द्रं द्वितीयं जगतीव कान्तम् ।
वन्देऽभिवन्द्यं महतामृषीन्द्रं
जिनं जित-स्वान्त-कषाय-बन्धम् ॥३६ ॥

यस्याङ्ग- लक्ष्मी-परिवेश-भिन्नं
तमस्तमोरेरिव रश्मिभिन्नम् ।
ननाश बाह्यं बहु मानसं च
ध्यान- प्रदीपाऽतिशयेन भिन्नम ॥३७॥

स्व-पक्ष – सौस्थित्य-मदाऽवलिप्ता
वाक्सिंह-नादैर्विमदा बभूवुः ।
प्रवादिनो यस्य मदार्द्रगण्डा
गजा यथा केसरिणो निनादैः ॥३८ ॥

यः सर्व- लोके परमेष्ठितायाः
पदं बभूवाऽद्भुत – कर्मतेजाः ।
अनन्त-धामाऽक्षर- विश्वचक्षुः
समन्तदुःख-क्षय- शासनश्च ॥३९॥

स चन्द्रमा भव्य-कुमुद्वतीनां
विपन्न-दोषाऽभ्र- कलङ्क-लेपः ।
व्याकोश-वाङ्-न्याय-मयूख-मालः
पूयात्पवित्रो भगवान्मनो मे ॥ ४० ॥

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श्री सुविधिनाथ जिन-स्तुति

एकान्तदृष्टि-प्रतिषेधि तत्त्वं
प्रमाण- सिद्धं तदतत्स्वभावम् ।
त्वया प्रणीतं सुविधे ! स्वधाम्ना
नैतत्समालीढ- पदं त्वदन्यैः ॥ ४१ ॥

तदेव च स्यान्न तदेव च स्यात्
तथाप्रतीतेस्तव तत्कथञ्चित् ।
नाऽत्यन्तमन्यत्वमनन्यता च
विधेर्निषेधस्य च शून्य- दोषात् ॥४२ ॥

नित्यं तदेवेदमिति प्रतीते –
र्न नित्यमन्यत् प्रतिपत्ति- सिद्धेः ।
न तद्विरुद्धं बहिरन्तरङ्ग –
निमित्त- नैमित्तिक- योगतस्ते ॥ ४३ ॥

अनेकमेकं च पदस्य वाच्यं
वृक्षा इति प्रत्ययवत्प्रकृत्या ।
आकांक्षिणः स्यादिति वै निपातो
गुणाऽनपेक्षं नियमेऽपवादः ॥ ४४ ॥

गुण- प्रधानार्थमिदं हि वाक्यं
जिनस्य ते तद् द्विषतामपथ्यम् ।
ततोऽभिवन्द्यं जगदीश्वराणां
ममाऽपि साधोस्तव पादपद्मम् ॥ ४५ ॥

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श्री शीतलनाथ जिन स्तुति

न शीतलाश्चन्दनचन्द्ररश्मयो
न गाङ्गमम्भो न च हारयष्टयः ।
यथा मुनेस्तेऽनघवाक्य- रश्मयः
शमाम्बुगर्भाः शिशिरा विपश्चिताम् ॥४६ ॥

सुखाऽभिलाषाऽनल- दाह-मूर्च्छितं
मनो निजं ज्ञानमयाऽमृताम्बुभिः ।
व्यदिध्यपस्त्वं विष- दाह-मोहितं
यथा भिषग्मन्त्र- गुणैः स्व-विग्रहम् ॥४७॥

स्व- जीविते काम-सुखे च तृष्णया
दिवा श्रमार्त्ता निशि शेरते प्रजाः ।
त्वमार्य ! नक्तं-दिवमप्रमत्तवा-
नजागरेवाऽऽत्म-विशुद्ध-वर्त्मनि ॥४८ ॥

अपत्य – वित्तोत्तर- लोक- तृष्णया
तपस्विनः केचन कर्म कुर्वते ।
भवन्पुनर्जन्म – जरा – जिहासया
त्रयीं प्रवृत्तिं समधीरवारुणत् ॥४९ ॥

त्वमुत्तम- ज्यातिरजः क्व निर्वृतः
क्व ते परे बुद्धि-लवोद्धव-क्षताः ।
ततः स्वनिः श्रेयस – भावनापरै-
बुध- प्रवेकैर्जिन ! शीतलेड्यसे ॥५०॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तुति

श्रेयान् जिनः श्रेयसि वर्त्मनीमाः
श्रेयः प्रजाः शासदजेयवाक्यः ।
भवांश्चकाशे भुवनत्रयेऽस्मि-
नेको यथा वीत- घनो विवस्वान् ॥५१ ॥

विधिर्विषक्त-प्रतिषेधरूपः
प्रमाणमत्राऽन्यतरत्प्रधानम् ।
गुणो परो मुख्य नियामहेतु-
र्नयः दृष्टान्तसमर्थनस्ते ॥५२॥

विवक्षितो मुख्य इतीष्यतेऽन्यो
गुणोऽविवक्षो न निरात्मकस्ते ।
तथाऽरिमित्राऽनुभयादिशक्ति
द्वयाऽवधेः कार्यकरं हि वस्तु ॥५३ ॥

दृष्टान्त-सिद्धावुभयोर्विवादे
साध्यं प्रसिद्ध्येन्न तु तादृगस्ति ।
यत्सर्वथैकान्त- नियामि दृष्टं
त्वदीय- दृष्टिर्विभवत्यशेषे ॥ ५४ ॥

एकान्त-दृष्टि-प्रतिषेध-सिद्धि-
न्यायेषुभिर्मोहरिपुं निरस्य ।
असि स्म कैवल्य-विभूति-सम्राट्
ततस्त्वमर्हन्नसि मे स्तवाऽर्हः ॥५५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री वासुपूज्य जिन – स्तुति

शिवासुपूज्योऽभ्युदय-क्रियासु
त्वं वासुपूज्यस्त्रिदशेन्द्र- पूज्यः ।
मयाऽपि पूज्योऽल्प-धिया मुनीन्द्र !
दीपार्चिषा किं तपनो न पूज्यः ॥५६ ॥

न पूजयाऽर्थस्त्वयि वीतरागे
न निन्दया नाथ ! विवान्त-वैरे ।
तथाऽपि ते पुण्य-गुण-स्मृतिर्नः
पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥५७॥

पूज्यं जिनं त्वाऽर्चयतो जनस्य
सावद्य – लेशो बहु- पुण्य- राशौ ।
दोषाय नाऽलं कणिका विषस्य
न दूषिका शीत- शिवाऽम्बुराशौ ॥५८ ॥

यद्वस्तु बाह्यं गुण-दोष-सूते –
निमित्तमभ्यन्तर- मूलहेतोः ।
अध्यात्म-वृत्तस्य तदङ्गभूत-
मभ्यन्तरं केवलमप्यलं ते ॥५९ ॥

बाह्येतरोपाधि- समग्रतेयं
कार्येषु ते द्रव्यगतः स्वभावः ।
नैवाऽन्यथा मोक्ष-विधिश्च पुंसां
तेनाभिवन्द्यस्त्वमृषिर्बुधानाम् ॥६०॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री विमलनाथ जिन स्तुति

य एव नित्य-क्षणिकादयो नया
मिथोऽनपेक्षा: स्व-पर-प्रणाशिनः ।
त एव तत्त्वं विमलस्य ते मुनेः
परस्परेक्षा स्व- परोपकारिणः ॥ ६१ ॥

यथैकशः कारकमर्थ-सिद्धये
समीक्ष्य शेषं स्व-सहाय-कारकम् ।
तथैव सामान्य- विशेष – मातृका
नयास्तवेष्टा गुण- मुख्य-कल्पतः ॥६२॥

परस्परेक्षाऽन्वय-भेद-लिङ्गतः
प्रसिद्ध- सामान्य-विशेषयोस्तव ।
समग्रताऽस्ति स्व- पराऽवभासकं
यथा प्रमाणं भुवि बुद्धि-लक्षणम् ॥६३॥

विशेष्य- वाच्यस्य विशेषणं वचो
यतो विशेष्यं विनियम्यते च यत् ।
तयोश्च सामान्यमतिप्रसज्यते
विवक्षितात्स्यादितितेऽन्यवर्जनम् ॥६४॥

नयास्तव स्यात्पद-सत्य-लाञ्छिता
रसोपविद्धा इव लोह – धातवः ।
भवन्त्यभिप्रेत- गुणा यतस्ततो
भवन्तमार्याः प्रणता हितैषिणः ॥ ६५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

अनन्तनाथ जिन-स्तुति

अनन्त-दोषाऽऽशय-विग्रहो ग्रहो
विषङ्गवान्मोह – मयश्चिरं हृदि ।
यतो जितस्तत्त्वरुचौ प्रसीदता
त्वया ततोऽभूर्भगवाननन्तजित् ॥६६ ॥

कषाय-नाम्नां द्विषतां प्रमाथिना-
मशेषयन्नाम भवानशेषवित् ।
विशोषणं मन्मथ- दुर्मदाऽऽमयं
समाधि-भैषज्य-गुणैर्व्यलीनयत ॥६७॥

परिश्रमाऽम्बुर्भय-वीचि – मालिनी
त्वया स्वतृष्णा – सरिदाऽऽर्य ! शोषिता ।
असङ्ग-धर्मार्क- गभस्ति- तेजसा
परं ततो निर्वृति-धाम तावकम् ॥६८ ॥

सुहृत्त्वयि श्री – सुभगत्वमश्नुते
द्विषंस्त्वयि प्रत्ययवत् प्रलीयते ।
भवानुदासीनतमस्तयोरपि
प्रभो ! परं चित्रमिदं तवेहितम् ॥६९ ॥

त्वमीदृशस्तादृश इत्ययं मम
प्रलाप-लेशोऽल्प-मतेर्महामुने!
अशेष- माहात्म्यमनीरयन्नपि
शिवाय संस्पर्श इवाऽमृताम्बुधेः ॥७०॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री धर्मनाथ जिन – स्तुति

धर्म-तीर्थमनघं प्रवर्तयन्
धर्म इत्यनुमतः सतां भवान् ।
कर्म-कक्षमदहत्तपोऽग्निभिः
शर्म शाश्वतमवाप शङ्करः ॥७१ ॥

देव-मानव- निकाय-सत्तमै-
रेजिषे परिवृतो वृतो बुधैः ।
तारका-परिवृतोऽतिपुष्कलो
व्यमनीव शश- लाञ्छनोऽमलः ॥७२॥

प्रातिहार्य – विभवैः परिष्कृतो
देहतोऽपि विरतो भवानभूत् ।
मोक्षमार्गमशिषन्नरामरान्
नाऽपि शासन- फलैषणाऽऽतुरः ॥७३॥

काय – वाक्य- मनसां प्रवृत्तयो
नाऽभवस्तव मुनेश्चिकीर्षया ।
नाऽसमीक्ष्य भवतः प्रवृत्तयो
धीर! तावकमचिन्त्यमीहितम् ॥७४॥

मानुषीं प्रकृतिमभ्यतीतवान्
देवतास्वपि च देवता यतः ।
तेन नाथ ! परमाऽसि देवता
श्रेयसे जिनवृष! प्रसीद नः ॥७५॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री शान्तिनाथ जिन-स्तुति

विधाय रक्षां परतः प्रजानां
राजां चिरं योऽप्रतिम- प्रतापः ।
व्यधात्पुरस्तात्स्वत एव शान्ति-
मुनिर्दया- मूर्तिरिवाऽघशान्तिम् ॥७६ ॥

चक्रेण यः शत्रु-भयङ्करेण
जित्वा नृपः सर्व- नरेन्द्र- चक्रम् ।
समाधि-चक्रेण पुनर्जिगाय
महोदयो दुर्जय-मोह- चक्रम् ॥७७॥

राज- श्रिया राजसु राज – सिंहो
रराज यो राज- सुभोग-तन्त्रः ।
आर्हन्त्य-लक्ष्म्या पुनरात्म-तन्त्रो
देवा सुरोदार – सभे रराज ॥७८॥

यस्मिन्नभूद्राजनि राज- चक्रं
मुनौ दया- दीधिति-धर्म- चक्रम् ।
पूज्ये मुहुः प्राञ्जलि देव-चक्रं
ध्यानोन्मुखे ध्वंसि कृतान्त – चक्रम् ॥७९ ॥

स्वदोष – शान्त्या विहिताऽऽत्मशान्तिः
शान्तेर्विधाता शरणं गतानाम् ।
भूयाद्भव-क्लेश- भयोपशान्त्यै
शान्तिर्जिनो मे भगवान् शरण्यः ॥८०॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
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श्री कुन्थुनाथ जिन स्तुति

कुन्थु-प्रभृत्यखिल – सत्त्व- दयैकतानः
कुन्थुर्जिनो ज्वर – जरा – मरणोपशान्त्यै ।
त्वं धर्म- चक्रमिह वर्तयसि स्म भूत्यै
भूत्वा पुरा क्षितिपतीश्वर – चक्रपाणिः ॥ ८१ ॥

तृष्णाऽर्चिषः परिदहन्ति न शान्तिरासा-
मिष्टेन्द्रियार्थ – विभवैः परिवृद्धिरेव ।
स्थित्यैव काय- परिताप-हरं निमित्त-
मित्यात्मवान् विषय-सौख्य-पराङ्मुखोऽभूत् ॥८२ ॥

बाह्यं तपः परम- दुश्चरमाचरस्त्व-
माध्यात्मिकस्य तपस:परिबृंहणार्थम् ।
ध्यानं निरस्य कलुष-द्वयमुत्तरस्मिन्
ध्यान – द्वये ववृतिषेऽतिशयोपपन्ने ॥ ८३ ॥

हुत्वा स्व-कर्म- कटुक – प्रकृतीश्चतस्रो
रत्नत्रयाऽतिशय – तेजसि जात-वीर्यः ।
बभ्राजिषे सकल – वेद-विधेर्विनेता
व्यभ्रे यथा वियति दीप्त-रुचिर्विवस्वान् ॥८४ ॥

यस्मान्मुनीन्द्र ! तव लोक-पितामहाद्या
विद्या विभूति कणिकामपि नाप्नुवन्ति ।
तस्माद्भवन्तमजमप्रतिमेयमार्याः
स्तुत्यं स्तुवन्ति सुधियः स्व- हितैकतानाः ॥८५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री अरनाथ जिन -स्तुति

गुण- स्तोकं सदुल्लङ्घ्य तद्बहुत्व – कथा स्तुतिः ।
आनन्त्यात्ते गुणा वक्तुमशक्यास्त्वयि सा कथम् ॥८६ ॥

तथाऽपि ते मुनीन्द्रस्य यतो नामाऽपि कीर्तितम् ।
पुनाति पुण्य – कीर्तेर्नस्ततो ब्रूयाम किञ्चन ॥८७॥

लक्ष्मी-विभव – सर्वस्वं मुमुक्षोश्चक्र- लाञ्छनम्।
साम्राज्यं सार्वभौमं ते जरत्तृणमिवाऽभवत् ॥८८ ॥

तव रूपस्य सौन्दर्यं दृष्ट्वा तृप्तिमनापिवान् ।
द्वयक्षः शक्रः सहस्राक्षो बभूव बहु – विस्मयः ॥८९ ॥

मोहरूपो रिपुः पापः कषाय- भट-साधनः ।
दृष्टि- संविदुपेक्षाऽस्त्रैस्त्वया धीर ! पराजितः ॥ ९० ॥

कन्दर्पस्योद्धर दर्प स्त्रैलोक्य- विजयार्जितः ।
हे पयामास तं धीरे त्वयि प्रतिहतोदयः ॥ ९१ ॥

आयत्यां च तदात्वे च दुःख- योनिर्दुरुत्तरा ।
तृष्णा नदी त्वयोत्तीर्णा विद्या- नावा विविक्तया ॥९२ ॥

अन्तकः क्रन्दको नृणां जन्म- ज्वर – सखः सदा ।
त्वामन्तकाऽन्तकं प्राप्य व्यावृत्तः काम-कारतः ॥९३॥

भूषा – वेषाऽऽयुध- त्यागि विद्या- दम – दया- परम् ।
रूपमेव तवाऽऽचष्टे धीर ! दोष-विनिग्रहम् ॥९४ ॥

समन्ततोऽङ्ग भासां ते परिवेषेण भूयसा ।
तमो बाह्यमपाकीर्णमध्यात्मं ध्यान तेजसा ॥९५ ॥

सर्वज्ञ – ज्योतिषोद्भूतस्तावको महिमोदयः ।
कं न कुर्यात्प्रणम्रं ते सत्त्वं नाथ! सचेतनम् ॥९६ ॥

तव वागमृतं श्रीमत्सर्व- भाषा – स्वभावकम् ।
प्रीणयत्यमृतं यद्वत्प्राणिनो व्यापि संसदि ॥ ९७ ॥

अनेकान्तात्मदृष्टिस्ते सती शून्यो विपर्ययः ।
ततः सर्वं मृषोक्तं स्यात्तदयुक्तं स्वघाततः ॥९८ ॥

ये पर – स्खलितोन्निद्राः स्व-दोषेभ- निमीलनाः ।
तपस्विनस्ते किं कुर्युरपात्रं त्वन्मत- श्रियः ॥ ९९ ॥

ते तं स्वघातिनं दोषं शमीकर्तुमनीश्वराः ।
त्वद्विषः स्वहनो बालास्तत्त्वाऽवक्तव्यतां श्रिताः ॥ १०० ॥

सदेक-नित्य-वक्तव्यास्तद्विपक्षाश्च ये नयाः ।
सर्वथेति प्रदुष्यन्ति पुष्यन्ति स्यादितीह ते ॥ १०१ ॥

सर्वथा नियम- त्यागी यथादृष्ट मपेक्षकः ।
स्याच्छब्दस्तावके न्याये नान्येषामात्मविद्विषाम् ॥ १०२ ॥

अनेकान्तोप्यनेकान्तः प्रमाण-नय-साधनः ।
अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽर्पितान्नयात् ॥ १०३ ॥

इति निरुपम – युक्त-शासनः
प्रिय-हित-योग-गुणाऽनुशासनः ।
अर-जिन ! दम-तीर्थ-नायक-
स्त्वमिव सतां प्रतिबोधनाय कः ? ॥ १०४॥

मति-गुण- विभवानुरूपत-
स्त्वयि – वरदाऽऽगम-दृष्टिरूपतः ।
गुण-कृषमपि किञ्चनोदितं
मम भवताद् दुरितासनोदितम् ॥१०५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री मल्लिनाथ जिन – स्तुति

यस्य महर्षेः सकल-पदार्थ-
प्रत्यवबोधः समजनि साक्षात् ।
साऽमर – मर्त्यं जगदपि सर्वं
प्राञ्जलि भूत्वा प्रणिपतति स्म ॥१०६ ॥

यस्य च मूर्तिः कनकमयीव
स्व- स्फुरदाभा – कृत- परिवेषा ।
वागपि तत्त्वं कथयितुकामा
स्यात्पद-पूर्वा रमयति साधून् ॥ १०७ ॥

यस्य पुरस्ताद्विगलित-माना
न प्रतितीर्थ्या भुवि विवदन्ते ।
भूरपि रम्या प्रतिपदमासी-
ञ्जात-विकोशाम्बुज- मृदु-हासा ॥ १०८ ॥

यस्य समन्ताज्जिन- शिशिरांशोः
शिष्यक-साधु-ग्रह-विभवोऽभूत् ।
तीर्थमपि स्वं जनन-समुद्र-
त्रासित-सत्त्वोत्तरण- पथोऽग्रम् ॥१०९ ॥

यस्य च शुक्लं परमतपोऽग्नि-
र्ध्यानमनन्तं दुरितमधाक्षीत् ।
तं जिन-सिंहं कृतकरणीय
मल्लिमशल्यं शरणमितोऽस्मि ॥ ११० ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री मुनिसुव्रत जिन – स्तुति

अधिगत-मुनि-सुव्रत-स्थिति-
मुनि – वृषभो मुनिसुव्रतोऽनघः ।
मुनि – परिषदि निर्बभौ भवा-
नुडु – परिषत्परिवीत- सोमवत् ॥ १११ ॥

परिणत-शिखि-कण्ठ-रागया
कृत-मद-निग्रह-विग्रहाभया ।
तव जिन ! तपसः प्रसूतया
ग्रह परिवेष- रुचेव शोभितम् ॥ ११२ ॥

शशि-रुचि – शुचि-शुक्ल-लोहितं
सुरभितरं विरजो निजं वपुः ।
तव शिवमतिविस्मयं यते !
यदपि च वाङ्मनसीयमीहितम् ॥ ११३ ॥

स्थिति-जनन-निरोध-लक्षणं
चरमचरं च जगत् प्रतिक्षणम् ।
इति जिन ! सकलज्ञ – लाञ्छनं
वचनमिदं वदतांवरस्य ते ॥ ११४ ॥

दुरित – मल- कलङ्कमष्टकं
निरुपम-योग- बलेन निर्दहन् ।
अभवदभव-सौख्यवान् भवान्
भवतु ममापि भवोपशान्तये ॥ ११५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री नमिनाथ जिन – स्तुति

स्तुति: स्तोतुः साधोः कुशल- परिणामाय स तदा
भवेन्मा वा स्तुत्यः फलमपि ततस्तस्य च ।
किमेवं स्वाधीन्याज्जगति सुलभे श्रायस – पथे
स्तुयान्न त्वां विद्वान्सततमभिपूज्यं नांमि – जिनम् ॥ ११६ ॥

त्वया धीमन् ! ब्रह्म- प्रणिधि- मनसा जन्म-निगलं
समूलं निर्भिन्नं त्वमसि विदुषां मोक्ष – पदवी ।
त्वयि ज्ञान – ज्योतिर्विभव-किरणैर्भाति भगव-
न्नभूवन् खद्योता इव शुचिरवावन्यमतयः ॥ ११७ ॥

विधेयं वार्य चाऽनुभयमुभयं मिश्रमपि तद्-
विशेषैः प्रत्येकं नियम- विषयैश्चापरिमितैः ।
सदाऽन्योन्यापेक्षैः सकल- भुवन – ज्येष्ठ- गुरुणा
त्वया गीत तत्त्वं बहु-नय- विवक्षेतर – वशात् ॥ ११८ ॥

अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमं
न सा तत्राऽऽरम्भोऽस्त्यणुरपि च यत्राऽऽ श्रमविधौ ।
ततस्तत्सिद्ध्यर्थं परम- करुणो ग्रन्थमुभयं
भवानेवाऽत्याक्षीन्न च विकृत-वेषोपधि- रतः ॥११९ ॥

वपुर्भूषा- वेष- व्यवधि – रहितं शान्त- करणं
यतस्ते संचष्टे स्मर-शर- विषाऽऽतङ्क – विजयम् ।
विना भीमैः शस्त्रैरदय – हृदयाऽमर्ष – विलयं
ततस्त्वं निर्मोह: शरणमसि नः शान्ति-निलयः ॥ १२० ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री नेमिनाथ जिन – स्तुति

भगवानृषिः परम-योग-
दहन-हुत-कल्मषेन्धनः ।
ज्ञान- विपुल – किरणैः सकलं
प्रतिबुद्ध-कमलायतेक्षणा: ॥ १२१ ॥

हरिवंश-केतुरनवद्य-
विनय-दम-तीर्थ-नायकः ।
शील- जलधिरभवो विभव-
स्त्वमरिष्टनेमि – जिनकुञ्जरोऽजरः ॥१२२॥

त्रिदशेन्द्र– मौलि-मणि-रत्न-
किरण- विसरोपचुम्बितम् ।
पाद-युगलममलं भवतो
विकसत्कुशेशय-दलाऽरुणोदरम् ॥१२३ ॥

नख-चन्द्र-रश्मि-कवचाऽति-
रुचिर-शिखराऽङ्गुलि-स्थलम् ।
स्वार्थ-नियत-मनसः सुधियः
प्रणमन्ति मन्त्र – मुखरा महर्षयः ॥ १२४ ॥

द्युतिमद्रथाङ्ग-रवि-बिम्ब-
किरण- जटिलांशुमण्डलः ।
नील- जलद – जल – राशि – वपुः
सह बन्धुभिर्गरुडकेतुरीश्वरः ॥१२५ ॥

हलभृच्च ते स्वजनभक्ति-
मुदित- हृदयौ जनेश्वरौ ।
धर्म-विनय-रसिकौ सुतरां
चरणाऽरविन्द-युगलं प्रणेमतुः ॥ १२६ ॥

ककुदं भुवः खचरयोषि-
दुषित – शिखरैरलङ्कृतः ।
मेघ-पटल-परिवीत-तट-
स्तव लक्षणानि लिखितानि वज्रिणा ॥ १२७ ॥

वहतीति तीर्थमृषिभिश्च
सततमभिगम्यतेऽद्य च ।
प्रीति – वितत-हृदयैः परितो
भृशमूर्जयन्त इति विश्रुतोऽचलः ॥ १२८ ॥

बहिरन्तरप्युभयथा च
करणमविघाति नाऽर्थकृत् ।
नाथ ! युगपदखिलं च सदा
त्वमिदं तलाऽऽमलकवद्विवेदिथ ॥१२९ ॥

अत एव ते बुध-नुतस्य चरित-गुणमद्भुतोदयम्।
न्याय-विहितमवधार्य जिने
त्वयि सुप्रसन्न – मनसः स्थिता वयम् ॥ १३० ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति

तमाल-नीलैः सधनुस्तडिद्गुणैः ।
प्रकीर्ण- भीमाऽशनि – वायु- वृष्टिभिः ।
बलाहकैर्वैरि-वशैरुपतो
महामना यो न चचाल योगतः ॥ १३१ ॥

बृहत्फणा – मण्डल- मण्डपेन
यं स्फुरत्तडित्पिङ्ग-रुचोपसर्गिणम् ।
जुगूह नागो धरणो धराधरं
विराग-संध्या-तडिदम्बुदो यथा ॥ १३२ ॥

स्व-योग-निस्त्रिंश-निशात- धारया
निशात्य यो दुर्जय-मोह-विद्विषम् ।
अवापदाऽऽर्हन्त्यमचित्यमद्भुतं
त्रिलोकपूजातिशयाऽऽस्पदं पदम् ॥ १३३ ॥

यमीश्वरं वीक्ष्य विधूत- कल्मषं
तपोधनास्तेऽपि तथा बुभूषवः ।
वनौकसः स्व- श्रम-बन्ध्य-बुद्धयः
शमोपदेशं शरणं प्रपेदिरे ॥ १३४ ॥

स सत्य-विद्या- तपसां प्रणायकः
समग्रधीरुग्रकुलाऽम्बरांशुमान् ।
मया सदा पार्श्वजिनः प्रणम्यते
विलीन – मिथ्यापथ-दृष्टि-विभ्रमः ॥ १३५ ॥

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra

श्री महावीर जिन स्तुति

कीर्त्या भुवि भासि तया
वीर! त्वं गुण- समुत्थया भासितया ।
भासोडुस भाऽसितया
सोम इव व्योम्नि कुन्द-शोभासितया ॥ १३६ ॥

तव जिन ! शासन-विभवो
जयति कलावपि गुणानुशासन- विभवः ।
दोषकशासनविभवः
स्तुवन्ति प्रभा- कृशासनविभवः ॥१३७॥

अनवद्यः स्याद्वादस्तव
दृष्टेष्टाविरोधत: स्याद्वादः ।
इतरो न स्याद्वादो सद्वितय-
विरोधान्मुनीश्वराऽस्याद्वादः ॥ १३८ ॥

त्वमसि सुरासुर-महितो
ग्रन्थिकसत्त्वाऽऽशयप्रणामाऽमहितः ।
लोक-त्रय-परमहितो-
Sनावरणज्योतिरुज्ज्वलद्धाम- हितः ॥ १३९ ॥

सभ्यानामभिरुचितं
दधासि गुण-भूषणं श्रिया चारु- चितम् ।
मग्नं स्वस्यां रुचितं
जयसि च मृग-लाञ्छनं स्व- कान्त्या रुचितम् ॥ १४० ॥

त्वं जिन ! गत-मद-माय-
स्तव भावानां मुमुक्षु कामद! मायः ।
श्रेयान् श्रीमदमाय-
स्त्वया समादेशि सप्रयामदमायः १४१ ॥

गिरिभित्त्यवदानवतः
श्रीमत इव दन्तिनः स्त्रवद्दानवतः ॥
तव शम-वादानवतो
गतमूर्जितमपगत- प्रमादानवतः ॥ १४२ ॥

बहुगुण- सम्पदसकलं
परमतपि मधुर वचन – विन्यास- कलम् ।
नय-भक्तयवतंस-कलं
तव देव ! मतं समन्तभद्रं सकलम् ॥ १४३ ॥
आचार्य समन्तभद्र स्वामी जी द्वारा -रचित

संपूर्ण स्वयंभू स्तोत्र संस्कृत में-Sampoorna Swayambhu Stotra
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श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi
श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

दुर्गा चालीसा, माँ दुर्गा की पूजा के दौरान गाई जाने वाली एक प्रमुख भक्ति गीता है। इसमें माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति, और कृपा का गान किया जाता है।

यह चालीसा माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है और इसे रोज़ाना पढ़ने से व्यक्ति को शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

दुर्गा चालीसा के फायदे

दुर्गा चालीसा का पाठ करने के कई फायदे होते हैं:

1. माँ दुर्गा की कृपा

दुर्गा चालीसा का पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, और भक्त के जीवन में समस्याओं का समाधान होता है।

2. भयहारिणी माँ की रक्षा

दुर्गा चालीसा का पाठ करने से माँ दुर्गा भयहारिणी के रूप में रक्षा करती है और आपको सुरक्षित रखती है।

3. आध्यात्मिक उन्नति

दुर्गा चालीसा का पाठ आध्यात्मिक उन्नति में मदद करता है और आपके मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारता है।

दुर्गा चालीसा का पाठ करने का तरीका
दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:

1. तैयारी

पाठ करने से पहले एक शुद्ध और शांत स्थान चुनें और माँ दुर्गा की पूजा के लिए समय निकालें।

2. पुनः सजीवन समर्पण

अपने मन, वचन, और क्रियाओं को माँ दुर्गा के सामने समर्पित करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

3. चालीसा का पाठ

अब दुर्गा चालीसा का पाठ करें, माँ दुर्गा के प्रति अपने भक्ति और श्रद्धा के साथ।

4. आरती और प्रसाद

पाठ के बाद, माँ दुर्गा की आरती करें और प्रसाद बांटें।

दुर्गा चालीसा का महत्व समझा रहा है
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से केवल भक्ति और आशीर्वाद ही नहीं मिलता, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी लाता है।

यह एक आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा होता है और व्यक्ति को अपने आप में शांति और सुख की अनुभूति कराता है।

दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति का मन प्रासंगिकता और उद्देश्य की ओर बढ़ता है। यह उनके जीवन को सफलता की ओर ले जाता है और उन्हें संकटों के साथ लड़ने की शक्ति देता है।श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

दुर्गा चालीसा के महत्वपूर्ण प्रसंग
दुर्गा चालीसा के अतिरिक्त, इसके कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं:

1. नवरात्रि

नवरात्रि महोत्सव के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। यह नौ दिनों के यात्रा के दौरान माँ दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और भक्त इसके माध्यम से माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

2. दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा के दौरान भी दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। यह पूजा माँ दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण त्योहार है और भक्त इसे आनंद से मनाते हैं।

3. रोज़ाना की प्रथा

कुछ लोग दुर्गा चालीसा को रोज़ाना पढ़ते हैं, और इसे अपने दैनिक जीवन में एक अच्छे आदत के रूप में अपनाते हैं। इससे उनके जीवन में शांति और सुख बने रहते हैं।श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

निष्कर्षण

दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा की पूजा और भक्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके पाठ से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। यह एक अद्वितीय तरीका है जिससे माँ दुर्गा के प्रति भक्ति और विश्वास का प्रकट होता है, और व्यक्ति को उसके जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा पाठ विधि- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर के साफ एवं शुद्ध वस्त्र धारण करें; माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र को सामने रखें। रोली, कुंकुम, अक्षत, लाल पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा यथाशक्ति हलुआ, चना, दूध और मावे की मिठाई का भोग लगाएं। हाथ मे पुष्प लेकर यह श्लोक पढ़ें-श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

तत्पश्चात पुष्प अर्पण कर दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पाठ के अंत में ‘ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र का तुलसी या सफ़ेद चन्दन की माला से 108 बार जाप करें ।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi
श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा पाठ

॥ चौपाई॥

1.नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

2.निराकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

3.शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥

4.रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

5.तुम संसार शक्ति लय कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

6.अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

7.प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

8.शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

9.रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

10.धरा रूप नरसिंह को अम्बा।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥

11.रक्षा करि प्रहलाद बचायो।

हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥

12.लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

13.क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

14.हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

15.मातंगी धूमावति माता।

भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥

16.श्री भैरव तारा जग तारिणि।

छिन्न भाल भव दुख निवारिणि॥

17.केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

18.कर में खप्पर खड्ग विराजे।

जाको देख काल डर भाजे॥

19.सोहे अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

20.नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहूं लोक में डंका बाजत॥

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

21.शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

22.महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

23.रूप कराल कालिका धारा|

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

24.परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

25.अमरपुरी अरु बासव लोका।

तव महिमा सब रहें अशोका॥

26.ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥

27.प्रेम भक्ति से जो यश गावे।

दुख दारिद्र निकट नहिं आवे॥

28.ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

29.जोगी सुर मुनि क़हत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

30.शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

31.निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

32.शक्ति रूप को मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछतायो॥

33.शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

34.भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

35.मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुख मेरो।।

36.आशा तृष्णा निपट सतावें।

मोह मदादिक सब विनशावें॥

37.शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।

38.करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला।।

39.जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ।।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

40.दुर्गा चालीसा जो नित गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

41.देविदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi
श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

||इति श्री दुर्गा चालीसा पाठ संपूर्ण||

॥ चौपाई॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

अर्थात – सुख प्रदान करने वाली मां दुर्गा को मेरा नमस्कार है। दुख हरने वाली मां श्री अम्बा को मेरा नमस्कार है।

निराकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

अर्थात – आपकी ज्योति का प्रकाश असीम है, जिसका तीनों लोको (पृथ्वी, आकाश, पाताल) में प्रकाश फैल रहा है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥

अर्थात – आपका मस्तक चन्द्रमा के समान और मुख अति विशाल है। नेत्र रक्तिम एवं भृकुटियां विकराल रूप वाली हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

अर्थात – मां दुर्गा का यह रूप अत्यधिक सुहावना है। इसका दर्शन करने से भक्तजनों को परम सुख मिलता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अर्थात – संसार के सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। जगत के पालन हेतु अन्न और धन प्रदान किया है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

अर्थात – अन्नपूर्णा का रूप धारण कर आप ही जगत पालन करती हैं और आदि सुन्दरी बाला के रूप में भी आप ही हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

अर्थात – प्रलयकाल में आप ही विश्व का नाश करती हैं। भगवान शंकर की प्रिया गौरी-पार्वती भी आप ही हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

अर्थात – शिव व सभी योगी आपका गुणगान करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवता नित्य आपका ध्यान करते हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

अर्थात – आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि प्रदान की और उनका उद्धार किया।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा।

प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥

अर्थात – हे अम्बे माता! आप ही ने श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को चीरकर प्रकट हुई थीं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

रक्षा करि प्रहलाद बचायो।

हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥

अर्थात – आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योकिं वह आपके हाथों मारा गया।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

अर्थात – लक्ष्मीजी का रूप धारण कर आप ही क्षीरसागर में श्री नारायण के साथ शेषशय्या पर विराजमान हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

अर्थात – क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान हे दयासिन्धु देवी! आप मेरे मन की आशाओं को पूर्ण करें।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

अर्थात – हिंगलाज की देवी भवानी के रूप में आप ही प्रसिद्ध हैं। आपकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है।

मातंगी धूमावति माता।

भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥

अर्थात – मातंगी देवी और धूमावाती भी आप ही हैं भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख की दाता आप ही हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री भैरव तारा जग तारिणि।

छिन्न भाल भव दुख निवारिणि॥

अर्थात – श्री भैरवी और तारादेवी के रूप में आप जगत उद्धारक हैं। छिन्नमस्ता के रूप में आप भवसागर के कष्ट दूर करती हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

अर्थात – वाहन के रूप में सिंह पर सवार हे भवानी! लांगुर (हनुमान जी) जैसे वीर आपकी अगवानी करते हैं।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

कर में खप्पर खड्ग विराजे।

जाको देख काल डर भाजे॥

अर्थात – आपके हाथों में जब कालरूपी खप्पर व खड्ग होता है तो उसे देखकर काल भी भयग्रस्त हो जाता है।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

अर्थात – हाथों में महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल उठाए हुए आपके रूप को देख शत्रु के हृदय में शूल उठने लगते है।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहूं लोक में डंका बाजत॥

अर्थात – नगरकोट वाली देवी के रूप में आप ही विराजमान हैं। तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

अर्थात – हे मां! आपने शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया व रक्तबीज (शुम्भ-निशुम्भ की सेना का एक राक्षस जिसे यह वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से सैंकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) तथा शंख राक्षस का भी वध किया।

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

अर्थात – अति अभिमानी दैत्यराज महिषासुर के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी।

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

अर्थात – तब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी का सेना सहित सर्वनाश कर दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अर्थात – हे माता! संतजनों पर जब-जब विपदाएं आईं तब-तब आपने अपने भक्तों की सहायता की है।

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तव महिमा सब रहें अशोका॥

अर्थात – हे माता! जब तक ये अमरपुरी और सब लोक विधमान हैं तब आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥

अर्थात – हे मां! श्री ज्वालाजी में भी आप ही की ज्योति जल रही है। नर-नारी सदा आपकी पुजा करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे।

दुख दारिद्र निकट नहिं आवे॥

अर्थात – प्रेम, श्रद्धा व भक्ति सेजों व्यक्ति आपका गुणगान करता है, दुख व दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आते।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥

अर्थात – जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से निश्चित ही मुक्त हो जाता है।

जोगी सुर मुनि क़हत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

अर्थात – योगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं की आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है।

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

अर्थात – शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

अर्थात – उन्होने नित्य ही शंकर भगवान का ध्यान किया, लेकिन आपका स्मरण कभी नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछतायो॥

अर्थात – आपकी शक्ति का मर्म (भेद) वे नहीं जान पाए। जब उनकी शक्ति छिन गई, तब वे मन-ही-मन पछताने लगे।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

अर्थात – आपकी शरण आकार उनहोंने आपकी कीर्ति का गुणगान करके जय जय जय जगदम्बा भवानी का उच्चारण किया।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

अर्थात – हे आदि जगदम्बाजी! तब आपने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटाने में विलम्ब नहीं किया।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुख मेरो॥

अर्थात – हे माता! मुझे चारों ओर से अनेक कष्टों ने घेर रखा है। आपके अतिरिक्त इन दुखों को कौन हर सकेगा?

आशा तृष्णा निपट सतावें।

मोह मदादिक सब विनशावें॥

अर्थात – हे माता! आशा और तृष्णा मुझे निरन्तर सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या भी दुखी करते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

अर्थात – हे भवानी! मैं एकचित होकर आपका स्मरण करता हूँ। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥

अर्थात – हे दया बरसाने वाली अम्बे मां! मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिए और ऋद्धि-सिद्धि आदि प्रदान कर मुझे निहाल कीजिए।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥

अर्थात – हे माता! जब तक मैं जीवित रहूँ सदा आपकी दया दृष्टि बनी रहे और आपकी यशगाथा (महिमा वर्णन) मैं सबको सुनाता रहूँ।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

दुर्गा चालीसा जो नित गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

अर्थात – जो भी भक्त प्रेम व श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, सब सुखों को भोगता हुआ परमपद को प्राप्त होगा।

देविदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

अर्थात – हे जगदमबा! हे भवानी! ‘देविदास’ को अपनी शरण में जानकर उस पर कृपा कीजिए।

श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi
श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ अति फलदायी माना जाता है। विशेषकर नवरात्रि में दुर्गा चालीसा पाठ भक्तों को माँ जगदंबा के कृपा का पात्र बनाता है।

माँ दुर्गा अपने भक्तों का सदा कल्याण करती हैं, इसीलिए इन्हे जगतजननी माँ कल्याणी भी कहा जाता है। इस दुर्गा चालीसा का श्रद्धाभाव से निरंतर पाठ करने वाला भक्त समस्त बाधाओं से मुक्त होकर सुख-शांति प्राप्त करता है।

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श्री दुर्गा चालीसा अर्थ सहित-Sri Durga Chalisa Lyrics In Hindi

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सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना
सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान आराधना:

हनुमान आराधना, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और गौरवशाली परंपरा है। इस धार्मिक प्रथा का महत्व और इसके पीछे की कहानी हमारे इस लेख में हैं। हम इस लेख में हनुमान आराधना के महत्व, इतिहास, और पूजा की विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

हनुमान आराधना का महत्व

हनुमान आराधना का महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत गहरा है। हनुमान, भगवान राम के भक्त के रूप में जाने जाते हैं और उनकी आराधना भक्तों के लिए बड़े महत्वपूर्ण है। उनके पूजन से भक्तों को शक्ति, साहस, और आत्मविश्वास मिलता है।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान आराधना का इतिहास

हनुमान आराधना का इतिहास रामायण में मिलता है। हनुमान, भगवान राम के सबसे विश्वासी और प्रिय भक्त थे। उन्होंने लंका को जलाकर सीता माता को पाने में मदद की और रावण का अहंकार तोड़ा। इसके बाद, हनुमान ने भक्तों के लिए एक महान आदर्श स्थापित किया और उनका आशीर्वाद उनके लिए सदैव उपलब्ध है।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान आराधना की विधि

हनुमान आराधना की विधि अत्यंत सादगी से की जा सकती है। यह विधि विभिन्न प्रकार से की जा सकती है, लेकिन यहाँ हम आपको एक सामान्य तरीका बताएंगे:सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

1. पूजा का स्थल

हनुमान आराधना के लिए स्थल का चयन महत्वपूर्ण है। आप अपने घर के मंदिर में या किसी हनुमान जी के मंदिर में पूजा कर सकते हैं।

2. पूजा सामग्री

पूजा के लिए आपको हनुमान चालीसा, तुलसी के पत्ते, दीपक, और पूजा थाली की आवश्यकता होती है।

3. पूजा विधि

पूजा शुभ मुहूर्त में करें।
हनुमान चालीसा का पाठ करें।
तुलसी के पत्ते के साथ दीपक जलाएं।
मन, वचन, और क्रिया से हनुमान जी का स्मरण करें।

साक्षरता और श्रद्धा का महत्व

हनुमान आराधना के लिए साक्षरता और श्रद्धा का महत्वपूर्ण होता है। यह पूरी भावना के साथ की जानी चाहिए और साक्षरता से पूजा की जानी चाहिए।

आराधना के फायदे

हनुमान आराधना करने से बहुत सारे फायदे होते हैं। यह आपके जीवन में न सिर्फ आध्यात्मिक बल देता है, बल्कि आपको जीवन की हर कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता देता है।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान का जन्म|

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना
सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

रामभक्त हनुमान का दिव्य स्वरूप ऐसा है, जिसके मूल में अनेक दैवी शक्तियों की प्रेरणा समाई हुई है । हनुमान की स्तुति में संतों ने बार-बार इसे याद किया है।हनुमान चालीसा में “शंकर सुवन केसरी नंदन” कहकर जिस दिव्य शक्ति को स्मरण किया है, उसके जन्म के दो मूल शक्ति बिंदु याद किये गये हैं ।

हनुमान को पवन पुत्र, अंजना नंदन जैसे नाम भी दिये गये हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने इस दिव्य शक्ति का स्मरण इस रूप में किया है –

” दूत राम राम को, सपूत पूत पौन को, तू अंजनी को नंदन, प्रताप भूरि भानु को ।“
इस स्तुति से पता चलता है कि हनुमान के जन्म पालन-पोषण, प्रशिक्षण में अनेक देवताओं की प्रेरणा थी । इनमें प्रमुख भगवान शंकर हैं, हनुमान को रुद्र का अंश, पवन का अंश और सूर्य का तेज माना जाता है।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना  

भीम और हनुमान |

त्रेता युग में विष्णु के अवतार भगवान राम के साथ रहने वाले हनुमान द्वापर युग में भगवान कृष्ण के रथ की ध्वजा पर भी विराजमान थे । महाभारत में उनका प्रसंग अनेक बार आता है । भीम का अहंकार दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें हनुमान के पास भेज दिया था ।

हनुमान एक बूढ़े बंदर के रूप में एकांत वन में लेटकर विश्राम कर रहे थे । भीम ने अपनी सारी शक्ति लगा दी, लेकिन वे महाबली हनुमान की पूछ अपनी जगह से नहीं हिला सके ।

चिरंजीवी हनुमान |

त्रेतायुग के विजयी वीर महाबली हनुमान अजर-अमर हैं । चिरजीवियों की सूची में अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम को रखा गया है । इन सात चिरजीवियों में हनुमान एक प्रत्यक्ष देवता हैं, जो अपने आराधकों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।

उनके पुण्य की महिमा अपार हैं, वे मन की तरह शीघ्रगामी हैं, वायु की तरह वेगवान हैं, वे जितेंद्रिय हैं, वे बुद्धिमानों में सर्वश्रेष्ठ हैं ।

विद्या वारिध बुद्धि विधाता कहकर देवताओं में प्रथम पूजा के अधिकारी गणेश को स्मरण किया जाता है, लेकिन हनुमान युद्ध और शांति के अवसरों पर समान रूप से अपनी बुद्धि की विलक्षणता के उदाहरण देते हैं, उनके बुद्धि कौशल की प्रशंसा बार-बार करते हैं ।

हनुमान पूजा |

वैष्णव आध्यात्म और दर्शन में हनुमान सर्वश्रेष्ठ देवता माने जाते हैं । इसका यह अर्थ नहीं है कि शैव और शाक्त पूजा पद्धति में हनुमान का महत्व कम आका गया है । शिव और शक्ति के मंदिरों में भी हनुमान, पूजा के अधिकारी बने हुए हैं ।

आप देश के हर कोने में शिव शक्ति के मंदिर देख आइये, पवन पुत्र हनुमान लगभग सभी मंदिरों में विराजमान नजर आएंगे । रुद्र और शिव में उन्हें देखने वाले भक्तों की आस्था पूरी तरह यथार्थ है ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान आराधना |
हनुमत् आराधना (हनुमान आराधना) का क्षेत्र बहुत विशाल है । इनकी आराधना के बिना कोई भक्त भगवान राम के पास पहुंच ही नही सकता । राम की कृपा पाने के लिए हनुमत् को प्रसन्न करना जरूरी है ।

जगदंबा सीता की कृपा भी इन्हें प्रसन्न किये बिना प्राप्त हो ही नहीं सकती । माता सीता ने उन्हें अजर-अमर और गुणनिधि होने का वरदान दिया है, उनकी कृपा से ही हनुमान जी भगवान राम से अत्यधिक स्नेह करते हैं ।

भगवान राम ने तो अनेक बार अनेक अवसरों पर अपने भक्त की प्रशंसा में ऐसे विचार व्यक्त किये हैं, जिनके बारे में गहराई से सोचने पर भक्त और भगवान, सेवक और स्वामी, जीव और ब्रह्म की एकरूपता के उदाहरण मिलते हैं ।

भारतीय आध्यात्मिक मान्यता यह है कि भगवान सदैव भक्त के वेश में रहते हैं । भक्त के बिना भगवान की अपनी सत्ता भी कमजोर हो जाती है । भगवान का सच्चा भक्त संत होता है, वही किसी उपासक को भगवान से मिलाने का साधन बनता है । यह साधन भगवान की इच्छा से ही मिलता है । जिसे यह साधन मिल जाता है, उसके लिए संसार की कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं रह जाती ।

सिद्धि पाने के उपाय |
जाहिर है सिद्धि पाने के लिए साधक को हनुमान की उपासना करनी चाहिए । इस उपासना को परम गोपनीय माना गया है । यह इस हद तक गोपनीय है कि आज भी इसका बहुत छोटा हिस्सा साधकों को मालूम है । इसका ज्यादातर विधान परंपरा से गुरू अपने शिष्य को देते हैं ।

लेकिन जितना विधान सब लोगों को मालूम है, उतने से ही करोड़ों भक्तों की समस्याएं दूर हो जाती हैं ।

शत्रु संकट से घिरने पर, लड़ाई में विजय पाने के लिए, मुकदमा जीतने के लिए, परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए, रोग और दुःख दूर करने के लिए, संकटों से छुटकारा पाने के लिए भक्त हनुमान की शरण में जाते हैं, पवन पुत्र की पूजा सांसारिक समस्याओं से अलग एक अनंत आध्यात्मिक संसार भी है ।

मोक्ष की कामना करने वाले, पापों से छुटकारा पाने की इच्छा रखने वाले, परम पवित्र हनुमान उपासना की शरण लेते हैं ।

अष्ट सिद्धि नौ निधि

संसार से दूर इन विरागी भक्तों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होने की इच्छा रहती है । जो योगी आठों सिद्धियां और नवों निधियां चाहते हैं, वे भी हनुमान की उपासना करते हैं । सिद्धियों और निधियों को देने का अधिकार भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को सौंप रखा है ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

उनकी प्रसन्नता के बिना कोई भक्त सीधे भगवान से कुछ भी हासिल नहीं कर सकता । जिन व्यवसायों में बुद्धि कौशल की बहुत जरूरत पड़ती है । उनमें सफलता पाने के लिए भक्त बुद्धिमानों में वरिष्ठ हनुमानजी को शरण लेते हैं ।

हमारे समाज के अनेक सफल वैज्ञानिक, प्रोफेसर, डॉक्टर, वकील और न्यायाधीश हनुमान के भक्त हैं । देश के ध्रुव दक्षिण से उत्तर तक और पूरब से पश्चिम तक ऐसे भक्तों की संख्या लाखों में है।

हनुमान उपासना विधि |

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना
सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमत् उपासना (हनुमान उपासना) प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त हनुमान जयंती को माना जाता है । मनोकामना सिद्धि के लिए इसी पवित्र दिन से उपासना का दिन शुरू किया जा सकता है ।

हनुमान उपासना मंत्र

हनुमत् उपासना के अनेक मंत्र हैं इनमें बारह अक्षरों वाला एक मंत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली है । इस मंत्र का उपदेश भगवान श्रीहरि ने महारथी अर्जुन को दिया था । इस मंत्र के प्रभाव से ही अर्जुन महाभारत युद्ध में विजयी हुए थे । मंत्र निम्न है-

हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।

इस मंत्र के अलावा अन्य कुछ मंत्र भी प्रचलित हैं । जो इस प्रकार है –

हौं हस्फ्रें ख्फें हस्रों हस्ख्फ्रें ह्सौं हनुमते नमः ।
ह् स्फ्रें हस्फ्रें ह् स्ख्फें ह्सौं ।
ॐ ऐं श्रीं हां हीं हूं हस्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रों हस्ख्फ्रें ह्सौं ।

इन मंत्रों की जप संख्या किसी योग्य जानकार से पूछकर तय करनी चाहिए । मंत्र की सिद्धि में कितना समय लगेगा और कितनी संख्या में जप करना पड़ेगा, इसके बारे में पहले से कुछ बताया नहीं जा सकता ।

साधक की भावना जितनी प्रबल होगी, उसका आचरण जितना पवित्र होगा । वह साधना में जिस हृद तक संयम निभा पाएगा और उसका मन जितना एकाग्र होगा, सिद्धि उसी के अनुसार हासिल होगी ।

हनुमान उपासना के नियम |

हनुमत् उपासना (हनुमान उपासना) शुरू करने से पहले, एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए । यह उपासना सात्विक है ।

इसे सिर्फ संयमी, सदाचारी और अहिंसक स्वभाव के व्यक्ति कर सकते हैं, जिन लोगों का मन हमेशा विषय भोगों में लगा रहता है उन्हें सबसे पहले अपनी इच्छा शक्ति को प्रबल बनाना चाहिए ।

उन्हें हनुमान जी से याचना करनी चाहिए कि वे उपासक को आराधना शुरू करने की शक्ति प्रदान करें । आराधना की अवधि में झूठ बोलना, किसी का अहित करना, मन की चंचलता दिखाना वर्जित है । हनुमान जी स्वयं एक वीर साधक थे, उनकी उपासना केवल संयमी और वीर को ही सिद्धि दे सकती है ।

उपासना शुरू करने से पहले आप कोई उचित स्थान चुन लें और वहीं प्रतिदिन नियमित रूप से पूजन करें । यह स्थान कोई विष्णु मंदिर या हनुमानजी का मन्दिर हो सकता है ।

नदी का एकान्त तट या पहाड़ के किसी जन्य शून्य क्षेत्र में उपासना करने से एकाग्रता जल्दी हासिल होती है और सिद्धि आसानी से प्राप्त होती है ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान उपासना की विधि |

मंत्र जप से पहले यह देख लेना चाहिए कि साधक किस कार्य की सिद्धि चाहता है । साधक के कार्य के अनुसार भक्त हनुमान का ध्यान भी होना चाहिए । हनुमान के अनेक रूप हैं । उसी के अनुसार उनका ध्यान भी अलग-अलग रूपों में किया जाता है । अगर आप शत्रुओं से घिरे हैं, शत्रु आपको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं तो आप अपनी रक्षा के लिये हनुमान का ध्यान करते समय उनके रौद्र रूप को मन में लायें ।

लंका के युद्ध में क्रोधित हनुमान ने रावण पर प्रहार करने के लिये विशाल पर्वत उखाड़ लिया था ।
वे यह कहते हुए रावण की तरफ दौड़े थे – “ हे दुष्ट, युद्ध भूमि में खड़ा रह, जिससे मैं तुझे मार सकूं।

“ उस समय हनुमान का शरीर लाह के रस के समान लाल हो गया था, उनकी चेप्टाएं कालांतक यम जैसी हो गयी थीं । उनके दोनों नेत्रों से अग्नि की शिखाएं निकल रही थीं । उनकी शरीर करोड़ों सूर्य की तरह चमक रहा था ।

रूद्र के रूप वीर अंगद जैसे परम वीरों से घिरे हुए लंका की रणभूमि में अपना पराक्रम हनुमान दिखा रहे थे ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

मन में यह भावना करते हुए आप इस श्लोक का पाठ करें –

महाशैलं समुत्पाट्य, धावतं रावणं प्रति ।
तिष्ठ तिष्ठ रणे दुष्ट घोर रावत् समुत्सृजन ।।

लाक्षा रसारुणं रौद्रं, कालान्तक-यमोपमम् ।
ज्वलदग्नि लसन्नेत्र, सूर्य कोटि सम-प्रभम् ।।
अंगदाघैर्महा-वीरैर्वेष्टितं रुद्र-रुपिणम् ।।

यह रौद्र रूप का ध्यान तभी करना चाहिए, जब साधक शत्रुओं से घिरा हो ।

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र

सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले साधक को हनुमानजी के शान्त, मनोहारी भव्य रूप का ध्यान करना चाहिए । यह ध्यान इस प्रकार है –

दहन तप्त सुवर्ण समप्रभं, भय हरं हृदये विहितांजलिं ।
श्रवण कुण्डल शोभिमुखाम्बुजं, नमत वानराजमिहाद्भुतम् ।।

परिवार संकट दूर करने के लिए हनुमान मंत्र

परिवार में कोई संकट आये और शोक की आशंका को हर्ष के विश्वास में बदलना हो तो इस प्रकार ध्यान करना चाहिए –

अतुलित बल धामं-हेम शैलाभदेहम्,
दनुज बन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं ।
सकलगुण निधानं वानराणाम्धीशं,
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि । ।

अंजना नन्दनं वीरं जानकी शोक नाशनं,
कपीश मक्षहंतारं वन्दे लंका भयंकरं ।

हनुमान यंत्र |

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना
सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

आप यदि हनुमान जी की मूर्ति के सामने बैठकर आराधना कर रहे हैं, तो मंत्र जप से पहले आपको हनुमानजी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए ।

यदि आप मूर्ति के सामने पूजन नही कर रहे हैं तो हनुमत् यंत्र बना सकते हैं । इस यंत्र को विधि पूर्वक स्थापित करके आपको इसकी श्रद्धा सहित पूजा करनी चाहिए । पूजा सोलह उपचारों से की जाती है ।

इसमें जितना साधन सहज ही आपको मिल सके उसी का उपयोग करें । सबसे अच्छा और बहुमूल्य साधन आपकी भक्ति और निर्मल हृदय है इसके बिना कोई साधन कोई पुरश्चरण सफल नहीं होता ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमत् मंत्र । हनुमान मंत्र |
बारह अक्षरों वाले हनुमत् मंत्र को एक लाख की संख्या में जप कर साधक असम्भव कार्य को सम्भव बना सकते हैं । उपासना शुरू करने के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए । मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए और करांग्रयास भी करना चाहिए ।

सीताराम का ध्यान करते हुए तांबे के पत्तर पर हनुमत् यंत्र बनाया जा सकता है । यह यंत्र लाल चंदन की लेखनी और घिसे हुए लाल चन्दन से भी बनाया जा सकता है । हनुमान जी का आह्वान करने के साथ ही सुग्रीव, लक्ष्मण, अंगद, नल, नील, जाम्बवान, कुमुद और केशरी का भी पूजन किया जाता है ।

इन सभी का पूजन गंध, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य से करना चाहिए । हनुमानजी के दायीं ओर पवन देवता और बायीं ओर माता अंजना का पूजन किया जाता है ।

इसके बाद ॐ कपिभ्यो नमः मंत्र से हनुमान जी को आठ पुष्पांजलि समर्पित की जाती है । इतनी पूजा के बाद एकाग्र होकर मंत्र का जप करना चाहिए ।

एक लाख की संख्या में जप करना एक दिन में संभवं नहीं है । इसलिये कई दिनों तक नियम से जप करना चाहिए । हो सके तो हर दिन पूजा के समय हनुमानजी को अनार का भोग लगाना चाहिये । यह फल प्रभु हनुमान को अति प्रिय है ।

तांत्रिक विधि से हनुमान आराधना

तांत्रिक विधि से हनुमान की आराधना करने वाले साधक जप पूरा होने पर उनकी महापूजा करते हैं । कार्य की सिद्धि के लिये रात-दिन जप करते रहना चाहिए । साधक के मन में यह पक्का विश्वास होना चाहिए कि हनुमान दर्शन अवश्य देंगे।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान सिद्धि |

इस तरह जप करने वाले को आम तौर पर रात के समय प्रभु हनुमान का आभास होता है और उसके काम सिद्ध हो जाते हैं । बहुत से साधक ऐसे हैं जो सिर्फ परमार्थ की भावना से हनुमत् सिद्धि (हनुमान सिद्धि) करते हैं । उनकी इच्छा यह होती है कि वे हनुमानजी की कृपा प्राप्त कर लें ।

इस कृपा के बल पर वे दुःखियों का दुख दूर करना चाहते हैं । ऐसे साधकों को सिद्धि जल्दी मिल जाती है और वे कष्ट में पड़े हुए लोगों की सहायता करते रहते है, हमारे देश में ऐसे हनुमत उपासकों की बड़ी संख्या है । इनमें गृहस्थ और योगी, वैरागी सभी हैं ।

आम तौर पर हनुमान की उपासना करने वाले लोभ से परे होते हैं, वे किसी से कोई लाभ उठाने के लिए अपने इस सिद्धि का व्यवसाय नहीं करते ।

हनुमान वीर साधना । हनुमान वीर साधना मंत्र

हनुमानजी की उपासना का एक क्रम और है । इसे वीर साधना कहा गया है । इसमें साधक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान से निबटने के बाद तीर्थों का आह्वान करते हैं । फिर वे हनुमत् यंत्र से जल को अभिमंत्रित करते हैं ।

इस जल से वे बारह बार अपने मस्तक का अभिषेक करते हैं।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

इसके बाद सिर्फ दो वस्त्र पहनकर साधक को पूजा के स्थान पर बैठ जाना चाहिए । यह स्थान गंगा का तट, हनुमानजी का मंदिर, विष्णु मंदिर, राम मंदिर, शिव मंदिर या पहाड़ का कोई कोना हो सकता है । पूजा स्थान पर बैठकर करांगन्यास और प्राणायाम करना चाहिए । तीन बार प्राणायाम करने के बाद हनुमानजी के वीर रूप का ध्यान करना चाहिए ।

वीर हनुमान ने लंका के युद्ध में शक्ति प्रहार से लक्ष्मण को गिरा हुआ देखकर कोप किया था ।
वे करोड़ों वानरों की सेना लेकर रावण को पराजित करने के लिए दौड़ पड़े थे ।

उन्होंने क्रोध में भरकर विशाल पर्वत को उखाड़ लिया था और हाहाकार ध्वनि करते हुए तीनों लोकों को कंपा दिया था । उनका ब्रह्मांड व्यापी विशाल रूप देखकर राक्षस भयभीत होकर रण भूमि से भाग खड़े हुए थे ।

भक्त हनुमान के इस रूप का ध्यान करते समय यह श्लोक पढ़ना चाहिए –

ध्यायेद् रणे हनुमंतं, कोटि-कपि समन्वितम् ।
धावंतं रावणं जेतुं, दृष्टवा सत्वरमुत्थितम् ।।

लक्ष्मणं च महा-वीरं, पतितं रण-भूतले ।
गुरु चं क्रोधमुत्पाद्य गृहीत्वा गुरु पर्वतम् ।।

हाहाकारैः स-दर्पैश्च कम्पयन्तं जगत्रयम् ।
आ-ब्रह्मांडम् समावाप्य कृत्वा भीमं कलेवरम् । ।

इस ध्यान के बाद साधक को दस अक्षरो वाले हनुमत मंत्र का जाप करना चाहिए । मंत्र इस प्रकार है –

हं पवन नंदनाय स्वाहा ।

यह मंत्र साधक की मनोकामना पूरी करता है । साधक नियम पूर्वक प्रतिदिन एक हजार की संख्या में इसका जप कर सकता है । इस प्रकार ६ दिन तक जप करने से पुरश्चरण पूरा हो जाता है ।

सातवें दिन साधक को दिन, रात आसन पर बैठकर जप करते रहना चाहिए ।
रात के चौथे पहर में साधक को भक्तराज हनुमान का आभास होने लगता है । यदि हनुमान का स्वरूप किसी भी रूप में दिखाई पड़े तो साधक को डरना नहीं चाहिए । उसे अपने को कृतार्थ और धन्य मानना चाहिए ।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

हनुमान सिद्धि साधना मंत्र

हनुमत् साधना के कुछ अन्य सिद्ध मंत्र हैं, जिनका पुरश्चरण करके साधकों ने लाभ उठाया है । शीघ्र फल देने वाला मंत्र इस प्रकार है –

नमो भगवते अंजनेयाय महाबलाय स्वाहा ।

इस मंत्र का पुरश्चरण करने से पहले हनुमत यंत्र का पूजन विधिवत कर लेना चाहिए । यंत्र के  अष्टदल  कमल में हनुमान के आठ रूपों का पूजन किया जाता है । ये रूप हैं-

रामभक्त, महातेजा, कपिराज, महाबल, द्रोणाद्रिहारकाय, मेरुपीठकार्चनकारक, दक्षिणाशाभास्कर और सर्वविघ्ननिवारक ।गंध अक्षत और फूल लेकर इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करना चाहिए –

राम भक्ताय नमः महातेजसे नमः, कपिराज नमः, महाबलाय नमः, द्रोणाद्रिहारकाय नमः, मेरुपीठकार्चनकारकाय नमः, दक्षिणाशाभास्कराय नमः और सर्वविघ्ननिवार्काय नमः ।

इन्हीं कमलों में क्रम से अन्य वानर वीरों का पूजन भी करना चाहिए ।

प्रारंभ से सुग्रीवाय नमः, अगदाय नमः, नीलाय नमः, जामवंते नमः, नलाय नमः, सुषेणाय नमः, द्विविदाय नमः और मंदाय नमः ।

इनके अलावा इंद्र, यम, अग्नि, निऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ब्रह्मा और अनंत का पूजन उनके अस्त्र-शस्त्रों सहित किया जाता है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की पूजा और उनका ध्यान हनुमत उपासना का पहला कार्य है ।

साधक को इसे सबसे पहले करना चाहिए । भगवान राम और भक्त हनुमान में ऐसा प्रगाड़ संबंध है कि इनमें से किसी की आराधना दूसरे के स्मरण, ध्यान के बिना पूरी नहीं हो सकती । इस मंत्र का विनियोग इस प्रकार करना चाहिए –

अस्य श्री हनुमन्मंत्रस्य ईश्वर ऋषिः अनुष्टुप छंदः हनुमान देवता हं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाभीष्ट अभियोगः जपे विनियोगः।

इस मंत्र का न्यास इस प्रकार करना चाहिए –

ईश्वर ऋषये नमः शिरसि अनुष्टुप छंदसे नमः मुखे हनुमद्देवतायै नमः हदये हं बीजाय नमः गुह्ये स्वाहा शक्तये नमः पादयोः विनियोगाय नमः सर्वांग्डें ।

इसके बाद मूल मंत्र से हृदयादि न्यास कर लेना चाहिए । फिर हाथ जोड़कर एकाग्र भाव से राम भक्त हनुमान का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए –

तप्तकांचन संकाशं हृदये विहितांजलिं ।
किरीटिनं कुंडलिनं ध्यायेद् वानर नायकं ।

आठ अक्षरों वाला हनुमान मंत्र

आठ अक्षरों वाला एक हनुमत् मंत्र और है जो अनेक प्रकार की सिद्धियां देता है । मंत्र इस प्रकार है –

ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः ॐ ।

इस मंत्र का जप शुरू करने से पहले करन्यास और हृदयादिन्यास में यह बीज जोड़ लेना चाहिए –

ॐ हां, ॐ हीं, ॐ हूं, ॐ हैं, ॐ हौं, ॐ हः ।

इस मंत्र के पुरश्चरण से मानसिक तनाव दूर होता है और मनोकामना पूर्ण होती है ।

शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए साधक को मेंहदी के रस और अष्टगंध से कोयल के पंख की कलम के जरिए हनुमानजी की आकृति बनानी चाहिए ।
इसके बीच अष्टकोण बनाकर आठों कोनों पर शत्रु का नाम लिख देना चाहिए । इस यंत्र को सामने रखकर मंत्र का १० हजार जप करना चाहिए ।

दस हजार का दसवां हिस्सा मातृका जप करना चाहिए ।
फिर मूल मंत्र जप के दसवें हिस्से के बराबर आहुति देकर हवन करना चाहिए ।

हवन के लिए काला तिल, खंडसारी और घी का हव्य बनाना चाहिए ।
हवन के बाद सदाचारी ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन कराना चाहिए ।

ग्रहण के समय अगर यह क्रिया पूरी कर ली जाये तो यंत्र सिद्ध हो जाता है ।
जरूरत के मुताबिक इस यंत्र को धूप देकर पांच माला मूल मंत्र का जप कर लेना चाहिए ।

यह यंत्र साधक के पास रहेगा तो उसे अनेक प्रकार से लाभ पहुंचाएगा । यह यंत्र साधक के बौद्धिक शक्ति को बनाए रखता है । साधक की हमेशा विजय होती है । शत्रु उससे घबराते हैं । उसकी सराहना होती है ।

हनुमत् आराधना के साथ अनेक संबंध में जो स्तुतियां ऋषियों, संतों और देवताओं ने की है, उनका पाठ भी साधकों को हर रोज करना चाहिए ।

इससे साधक को शांति मिलती है । उसके परिवार में सदा सुख शांति विराजती है ।
संकट से छुटकारा मिलता है।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

आमतौर पर हनुमान चालीसा का पाठ करोड़ों भक्त नित्य करते हैं । यह सिद्ध स्तुति है । हनुमान बाहुक और बजरंग बाण का पाठ भी बड़ा उपयोगी है । रामचरित मानस के सुंदर कांड का पाठ करने से शत्रु संकट खत्म होता है, रोग दूर होते हैं ।
घर का कोई प्राणी यदि घर से चला गया है या खो गया है तो उसे सकुशल वापस बुलाने के लिए सुंदर कांड का सहारा लिया जाता है ।

वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रामायण में वींर हनुमान की महिमा का जगह-जगह वर्णन किया है । ये दोनों सिर्फ कवि ही नहीं सिद्ध संत भी हैं । इनकी रचनाओं में हनुमानजी की महिमा की जो वर्णन किया गया है, उसे पढ़ने और मनन करने से साधकों के अनेक कष्ट दूर होते हैं ।

हनुमान कवच |

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना
सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

मनोकामनाओं की सिद्धि और संकटों से छुटकारा पाने के लिए हनुमत् कवच का पाठ किया जाता है । मुख्य रूप से दो हनुमत् कवच प्राप्त हैं – पंचमुखी हनुमत् कवच और एक मुखी हनुमत् कवच।सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

पंचमुखी हनुमत् कवच के ऋषि ब्रह्मा हैं, गायत्री छंद है, हनुमान देवता हैं, रां बीज है, में शक्ति है, चंद्र कीलक है । इस कवच के मुख्य अंश इस प्रकार है –

ईश्वर उवाच- अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वांङ् सुंदरम्
यत्कृतं देवेशि ध्यानं हनुमतः प्रियम् ।।

पंचवक्त्र महा भीमं कपियूथसमन्वितम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थ सिद्धिदम् ।।

पूर्वं तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम् ।
दंष्ट्राकरालवदनं भृकुटी कुटिलेक्षणम् ।।

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ।।

पश्चिमे गारुडं वक्त्र वक्रतुंडंमहाबलम् ।
सर्वनागप्रशमनं सर्वभूतादिकृन्ताम् ।।

उत्तरे सौकरं वक्त्रं कृष्णदीप्तनभोमयम् ।
पाताले सिद्ध बेतालं ज्वररोगादिकृंतनम् ।।

उध्रर्वं हयाननं घोरं दानवांतकरंपरम् ।
येनवक्त्रेण विप्रेद्र ताटकाया महाहवे ।।

दुर्गतेशरणं तस्य सर्वशत्रुहरं परम् ।
ध्यात्या पंचमुखं रुद्रं हनुमतं दयानिधिम् ।।

खड्ग त्रिशूलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम् ।।
मुष्टौ तु मोदकौ वृक्षं धारयंतं रमंडलुम् ।।

भिंदिपालं ज्ञानमुद्रां दमनं मुनि पुंगवं ।
एतान्यायुधजालामि धारयंतं भयापहम् ।।

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगंधानुलेपनम् ।
सवैश्वर्यमयं देवं हनुभद्धि श्वतोमुखम् ।।
पंचास्यमच्युतमनेकविचित्र वर्ण वक्रं सशंखविभृतं कपिराजवीर्यम् ।पीतांबरादिमुकटैरपि शोभितांगं पिंगाक्षमंजनिसुतं हृनिशं स्मरामि ।।

मर्कटस्य महोत्साहं सर्वशोक विनाशनम् ।शत्रुसंहारकं चैतत्कवचं ह्यापदं हरेत् ।।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पंचवदनायपूर्वकपि मुखायसकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा ।।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसम्पत्कराय स्वाहा ।।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उध्रर्वंमुखाय ह्मग्रीवाय सकल जनवश्यकराय स्वाहा ।

इस मूल मंत्र के बाद अंगन्यास, करन्यास आदि इस प्रकार करना चाहिए –

ॐ अस्य श्री पञ्चमुखिहनुमतकवच स्तोत्र मंत्रस्य श्रीरामचन्द्रऋअनुष्टुप छदः श्रीरामचन्द्रो देवता, सीताबीजम्, हनुमानइतिशक्तिः, हनमुतप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः। पुनर्हनुमनिति बीजम् ॐ वायुपुत्रायइतिशक्तिः, अंजनीसुतोयेति कीलकम्, श्रीरामचन्दवर प्रसाद सिद्धय्र्थे जपे विनियोगः ।

ॐ हं हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः, ॐ वं वायुपुत्राय तर्जनीभ्यां नमः, ॐ अंजनीसुताय मध्यमाभ्यां नमः, ॐ रां रामदूताय अनामिकाभ्यां नमः, ॐ रुं रुद्रमूर्तये कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ सं सीताशोकनिवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ अंजनीसुताय हृदयाय नमः, ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, ॐ बायुपुत्राय नमः, शिखायै वषट्, ॐ अग्निगर्भाय शिरसे स्वाहा, ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ पंचमुखिहनुमते अस्ताराय फट् ।

हृदयादि न्यास के बाद हनुमान जी का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए –

श्रीरामदूताय आंजनेयाय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय महाबलप्रचण्डाय लंकापुरीदहनाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्मांडविश्वरूपाय सप्तसमुद्रानिरन्तरलंघिताय पिंगल नयनायामितविक्रमाय सूर्यविम्बफलसेवाधिष्ठतनिराक्रमाय,

संजीवन्या, अंगदलक्ष्मणमहाकपिसैन्य प्राणदात्रे, दशग्रीवविघ्वंसनाय रामेष्टाय सीताहरामचन्द्रवरप्रसादाय षटप्रयोगागमपंचमुखि हनुमन्मन्त्र जपे विनियोगः |

इस मंत्र को पढ़कर विनियोग का जल छोड़ देना चाहिए । इससे सभी प्रकार की विपत्तियां नष्ट हो जाती हैं । इसके बाद यह पाठ करना चाहिए –

ॐ हरिमर्कटमर्कटायस्वाहा, ॐ हरिमर्कटमर्कटाय वं वं वं वं वं फट् स्वाहा,
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फं फं फं फं फट् स्वाहा, ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खं खं खं खं खं मारणाय स्वाहा,

ॐ हरिमर्कटमर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तंभनाय स्वाहा, ॐ हरिमर्कटमर्कटाय डं डं डं डं डं आकर्षणाय सकलसम्पतकराय पंचमुखवीर हनुमते स्वाहा, ॐ उच्चाटने ढं ढं ढं ढं ढं कूर्ममूतये पंचमुखहनुमते परयन्त्रपरतंत्रोच्चाटनाय स्वाहा, ॐ कं खं गं घं डं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं, तं यं दं धं नं पं फं बं भं मं, यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा ।

इस प्रकार दिगबन्ध करके पाठ करना चाहिए –

ॐ पूर्व कपिमुखेपंचमुखहनुमते ठं ठं ठं ठं ठं सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा,
ॐ दक्षिणमुखे पंचमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय हां हां हां हां हां सकलभूत प्रेतदमनाय स्वाहा ।

ॐ पश्चिममुखे गरुड़ासनाय पंचमुख वीर हनुमते मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा ।
ॐ उत्तरमुखेआदिवराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकण्ठाय पंचमुख हनुमते स्वाहा ।

अंजनी सुताय वायुपुत्राय महाबलाय रामेष्ट फाल्गुन सखाय सीताशोकनिवारणाय लक्ष्मण प्राणरक्षकाय कपि सैन्य प्रकाशकाय सुग्रीवाभिमानदहनाय श्री रामचंद्र वर प्रसादकाय महावीर्याय प्रथम ब्रह्माण्डनायकाय पंचमुख हनुमते भूत-प्रेत पिशाच ब्रह्म राक्षस, शाकिनी, डाकिनी अंतरिक्ष ग्रह परमंत्र परयंत्र परतंत्र सर्वग्रहोच्चाटनाय सकल शत्रु संहारणाय, पंचमुख हनुमद्वार प्रसादक सर्व रक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा ।

इस कवच को रोज एक बार पढ़ने से शत्रु नाथ होता है ।

दो बार पाठ करने से भयंकर शत्रु भी पराजित हो जाते हैं । तीन बार पाठ करने से सारी सम्पत्तियां प्राप्त होती हैं । चार बार पाठ करने से वशीकरण सिद्ध होता है । पांच बार पाठ करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं । छः बार पाठ करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं ।

प्रतिदिन सात बार पाठ करने से सभी काम सिद्ध होते हैं । प्रतिदिन आठ बार पाठ करने से साधक का सद्भाग्य उदित होता है । प्रतिदिन नौ बार पाठ करने से सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं । प्रतिदिन दस बार पाठ करने से तीनों लोकों के रहस्य का ज्ञान होता है और अध्यात्म शक्ति बढ़ती है ।

प्रतिदिन ग्यारह बार पाठ करने से सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इस कवच का पाठ करने वाला साधक महालक्ष्मी की प्रसन्नता सहज ही प्राप्त कर लेता है ।

आखिरी शब्द
हनुमान आराधना एक महत्वपूर्ण और धार्मिक प्रथा है जो भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। यह आपके जीवन को सफल और खुशहाल बनाने में मदद कर सकता है।

सुख समृद्धि के लिए हनुमान मंत्र-Hanuman Upasna Mantra Vidhi-तांत्रिक विधि से करें हनुमान आराधना

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Hanuman

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi
हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

हनुमान चालीसा:एक अद्भुत धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ हनुमान चालीसा का सुंदर बचन जब भी सुना जाता है, तो व्यक्ति के मन और आत्मा में एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव होता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

इस चालीसा का पठन और सुनना हिन्दू धर्म के विश्वासी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अद्भुत कार्य है। इस लेख में, हम हनुमान चालीसा के महत्व को और इसके चमत्कारिक लाभों को जानेंगे जो हमारे जीवन में आत्मिक और आध्यात्मिक विकास में मदद कर सकते हैं।

हनुमान चालीसा: अर्थ और महत्व

हनुमान चालीसा एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक ग्रंथ है जो पौराणिक कथाओं और भगवान हनुमान के गुणों की महिमा का वर्णन करता है। इस चालीसा का पठन करने से व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक सफलता, सुख, और शांति प्राप्त कर सकता है।

हनुमान चालीसा के महत्वपूर्ण अंश:

1. आध्यात्मिक उन्नति
हनुमान चालीसा का पठन करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसमें वर्णित भगवान हनुमान के गुण और शक्तियों का स्मरण करने से व्यक्ति के मानसिक स्थिति में सुधार होता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

2. संकटमोचन
हनुमान चालीसा के पाठ से भक्त के जीवन से समस्याओं और संकटों का समाधान होता है। हनुमान जी को ‘संकटमोचन’ के रूप में जाना जाता है, जो दुखों और मुश्किलों को दूर करने वाले हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

3. रोग निवारण
हनुमान चालीसा के पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है। भक्त इसे नियमित रूप से पढ़कर अपने शारीरिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

4. शांति और सुख
हनुमान चालीसा के पठन से व्यक्ति की आत्मा में शांति और सुख का अनुभव होता है। यह छोटी बड़ी मुश्किलों का समाधान करता है और जीवन को सुखमय बनाता है।

हनुमान चालीसा के बचन की महत्वपूर्ण विशेषताएँ

हनुमान चालीसा के बचन का महत्वपूर्ण भाग यह है कि यह एक प्राचीन संस्कृत पाठ है जिसमें भगवान हनुमान की प्रशंसा और महिमा की गाथाएँ हैं। इस पाठ को हिन्दू धर्म के अनुष्ठान के रूप में मान्यता दी जाती है और इसे दिनचर्या में शामिल किया जाता है।

हनुमान चालीसा के बचन की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ:

1. ४० चौपाई का संग्रह
हनुमान चालीसा में 40 चौपाई होते हैं, जो एक संग्रह के रूप में उपस्थित होते हैं। यह छोटे और मध्यम गरीबी के साथ व्यक्ति के लिए आसानी से पढने के लिए होते हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

2. भक्ति और श्रद्धा का एक माध्यम
हनुमान चालीसा का पठन एक व्यक्ति की भक्ति और श्रद्धा का एक महत्वपूर्ण माध्यम होता है। यह भक्त भगवान हनुमान के प्रति अपनी गहरी भक्ति को व्यक्त करने का साध्य करता है।

3. सुख-शांति का स्रोत
हनुमान चालीसा के पठन से मानव जीवन में सुख और शांति की खोज की जा सकती है। यह बचन मन की चिंताओं से राहत दिलाता है और जीवन को खुशहाली से भर देता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

हनुमान चालीसा के अन्य लाभ

हनुमान चालीसा के पठन के अलावा, इसके कई अन्य लाभ भी हैं:

1. विधि और तरीके
हनुमान चालीसा को अध्यात्मिक साधना के रूप में पढ़ने के लिए विशेष विधियाँ और तरीके हैं। इन्हें पालन करके भक्त अध्यात्मिक साधना में पूरी तरह से रूचाना पा सकते हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

2. संग्रहण क्षमता
हनुमान चालीसा का पठन संग्रहण क्षमता को बढ़ावा देता है। यह व्यक्ति को बेहतर मनसिक तत्त्वों को संग्रहण करने में मदद करता है और सुखमय जीवन जीने के लिए मदद करता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

3. सफलता की दिशा में मदद
हनुमान चालीसा के पठन से व्यक्ति की कार्यशैली और सफलता की दिशा में मदद मिलती है। यह भक्त को अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होता है।

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi
हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

।। अथ श्री हनुमान चालीसा ।।

॥ दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

॥ हनुमान चालीसा चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
रामदूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महावीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जग वंदन ॥

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाये सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लिल्यो ताहि मधुर फल जानु॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥

राम दुवारे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुवर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥

और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥

॥ दोहा ॥

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi
हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

तुलसीदास इस दोहे के माध्यम से कहतें हैं की हे रघुवर, हे प्रभु श्री राम, मैं आपके दोषरहित यश का वर्णन करना चाहता हूँ, जो चारों फलों अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है।

और आपके इस स्वरुप का वर्णन करने हेतु मैं अपने इस मन के दर्पण को, अपने गुरु के चरण-कमलों के धूल से साफ़ करना चाहता हूँ।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

श्री राम के चरित्र को साधारण बुद्धि से नहीं समझा जा सकता है अतः इस दोहे में संत तुलसीदास ये कहते हैं कि, हे पवन कुमार, हे श्री हनुमान, मैं अपने को बुद्धि विहीन जान कर आपको स्मरण कर रहा हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे दिव्य बल, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें तथा मेरे सारे कष्टों और विकारों को हर लें।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1॥

हे श्री हनुमान, आप ज्ञान और गुण के सागर हैं, आप कपीश हैं अर्थात वानरों में सर्वश्रेष्ट हैं तथा आप तीनों लोकों में विद्यमान हैं, हे श्री हनुमान आपकी जय हो।

रामदूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥

हे राम के दूत श्री हनुमान आप अतुलनीय आत्मिक, मानसिक और शारीरिक बल को धारण करने वाले हैं। आप माता अंजनी के पुत्र हैं तथा पवनपुत्र के नाम से भी जाने जातें हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

महावीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥

इन्द्रियों को अपने वाश में करने वाले हे महावीर आप विशेष पराक्रम के स्वामी हैं तथा आपका शरीर वज्र के समान सशक्त है। आप नकारात्मक बुद्धि का नाश कर सकारात्मकता प्रदान करने वालें हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥4॥

आप स्वर्ण के समान सुन्दर वर्ण तथा स्वच्छ और सुन्दर वेश धारण करने वालें हैं, आपके केश घुंघराले हैं तथा कुण्डल आपके कर्णों कि शोभा बढ़ा रहें हैं।

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥5॥

हे श्री हनुमान, आपके हाथों में वज्र तथा श्री राम कि ध्वजा विराजमान है और आपके कंधे पे मूंज कि जनेऊ आपकी शोभा बढ़ा रही है।

शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जग वंदन ॥6॥

भगवान् शिव के अंश, केसरीपुत्र हे श्री हनुमान आपका तेज़ और प्रताप समस्त जगत में वंदनीय है।

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥

आप सभी विद्याओं के ज्ञाता हैं, गुणों से युक्त हैं तथा सभी कार्यों को अति चतुरता से सम्पन्न कर लेने वालें हैं। हे श्री हनुमान, आप सदैव प्रभु श्री राम के दिए गए कार्यों को करने को आतुर रहतें हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥8॥

हे हनुमान, आप प्रभु श्री राम के चरित्र के श्रवण में अत्यधिक रस रखतें हैं तथा आपने अपने हृदय में श्री राम, श्री लक्ष्मण और माता सीता जैसी दिव्य आत्माओं को बसाये हुए हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥10॥

आपने अति सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता से संवाद स्थापित किया, वहीं विकराल रूप धारण कर लंका जला डाला, आप विशाल रूप धारण कर असुरों का संहार करते हैं और इस तरह आप अपने प्रभु श्री रामचंद्र के कार्यों को संपादन करते हैं।

लाये सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12॥

लक्ष्मणजी के मूर्छित होने पे आपने ही संजीवनी बूटी ला कर उनके प्राणो कि रक्षा कि थी जिससे प्रभु श्री राम अति प्रसन्न हो के आपको अपने ह्रदय से लगा लिया था। हे हनुमान तुम मेरे अत्यंत प्रिय भरत के समान भ्राता हो, ऐसा कहते हुए प्रभु श्री राम आपकी भूरी-भूरी प्रशंसा करतें हैं।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥

स्वयं भगवन शेषनाग जो सहस्त्र मुख वालें हैं तुम्हारे यश का गुणगान करेंगें ऐसा वरदान देते हुए प्रभु श्री राम ने आप श्री हनुमान को अपने ह्रदय से लगाया।
श्री सनक, श्री सनन्दन, श्री सनातन, और श्री सनत्कुमार अदि ऋषि , समस्त मुनि गण, ब्रह्माजी, माता शारदा और भगवान् शेषनाग आप श्री हनुमान का गुणगान करतें हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥15॥

मृत्यु के देवता यम, धन और सम्पदा के देवता श्री कुबेर, सभी दिशाओं के रक्षक दिक्पाल आदि भी आप श्री हनुमान का गुणगान करने में असमर्थ हैं तो ऐसे में कवि, विद्वान और बुद्धिवान कैसे आपकी सम्पूर्णता का गुणगान कर सकने में समर्थ हो सकतें हैं।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥16॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥17॥

आपने श्री राम से मिला कर सुग्रीव पर बहुत बड़ा उपकार किया जिससे सुग्रीव को राज-पाठ कि प्राप्ति हुई।
आपके ही मंत्रणा को मान कर विभीषण लंका का राजा हुए ये समस्त संसार जानता है।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लिल्यो ताहि मधुर फल जानु॥18॥

इस दोहे के द्वारा संत तुलसीदास कहतें हैं कि हे श्री हनुमान आपके लिए पृथ्वी से सहस्त्र युगों योजन पे स्थित सूर्य कि दुरी मापना इतना आसान है जितना कि आपके लिए किसी वृक्ष से मीठे फल को तोड़ के खा लेना है।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥19॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20॥

आपने प्रभु श्री राम के द्वारा दी गयी अंगूठी अपने मुख में रख कर विशाल समुंद्र को पार लिया, आपके इस कार्य पे भी आश्चर्य नहीं होता।
आपकी अति सुगमता से मिलने वाली कृपा से संसार के दुर्गम से दुर्गम प्रतीत होने वाले कार्य भी सरलता से सम्पन्न हो जातें हैं।

राम दुवारे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥

संत तुलसीदास इस दोहे के माध्यम से ये बता रहें हैं कि, आप श्री राम के द्वार के रक्षक हो अर्थात श्री हनुमान के गुणों (त्याग, भक्ति और समर्पण) को आत्मसात किये बिना कोई भी प्रभु श्री राम का सानिद्ध्य नहीं प् सकता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥23॥

जो भी व्यक्ति आपकी शरण में आता है उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं, हे श्री हनुमान जिसके स्वयं आप रक्षक हो जाएँ उसे किसी से भी डरने की कोई आवश्यकता नहीं।
हे श्री हनुमान, स्वयं आपके अतिरिक्त आपके तेज़ को कोई संभल नहीं सकता तथा आपने एक हुंकार मात्र से तीनों लोक कांप जाता है।

भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥24॥

आप बल के प्रतिक हैं तथा समस्त भय का नाश करने वाले हैं अतः जहाँ कहीं भी आपके नाम का जाप होता है वहां भूत या पिचास का भी भय कभी निकट नहीं आ सकता।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
संकट तै हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥26॥

हे भगवान् श्री हनुमान, आपके निरंतर जाप से सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं तथा आप उनकी पीड़ा को हरण कर लेते हैं। जो भी अपने संपूर्ण मन, वचन और कर्म से आपका ध्यान करता है उसे श्री हनुमान सभी प्रकार के संकटों से मुक्त कर देतें हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥27॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥28॥

समस्त राजाओं में सबसे बड़े तपस्वी भगवान् श्री राम हैं और हे श्री हनुमान आप उनके सभी कार्यों को बड़ी ही सहजता करतें हैं। आपके सम्मुख जो कोई भी अपनी मनोकामना लेकर आता है आप उसे जीवन भर न मिटने वाला फल प्रदान करतें हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥

आपके प्रताप का यश चारों युगों अर्ताथ सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग में व्याप्त है अर्थात आप अविनाशी हैं, हे श्री हनुमान, संपूर्ण जगत में आपकी ख्याति प्रकाशमान है।
साधु और संत जनों को रक्षा प्रदान करने वाले हे पवनसुत हनुमान आप असुर शक्तियों का नाश करने वाले तथा प्रभु श्री राम के अत्यंत प्रिय हैं।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥31॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥

आप माता सीता के दिए गए वरदान फलस्वरूप, किसी को भी आठों सिद्धियां और नवों निधियों को प्रदान करने वाले हे श्री हनुमान आपके पास प्रभु श्री राम कि भक्ति रुपी रस का भंडार है जिससे आप निरंतर प्रभु श्री राम की सेवा में रत हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥33॥
अंत काल रघुवर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥34॥

आपको भजने मात्र से ही प्रभु श्री राम रूपी परमात्मा को पाया जा सकता है, तथा आपका स्मरण जन्मो-जन्मो के दुखों का नाश करने वाला है।
हे केसरीनन्दन, आपके शरण में आकर ही मृत्युपर्यन्त रघुपति के धाम जाया जा सकता है जहाँ केवल हरी-भक्तों का ही प्रवेश हो सकता है।

और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥35॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36॥

जब श्री हनुमान की भक्ति मात्र से ही जगत के सारे सुखों की प्राप्ति हो जाती है तो किसी और देवी-देवताओं मई ध्यान लगाने की क्या आवश्यकता है।
जो आप महावीर हनुमान का स्मरण करता है उसके जीवन के सारे संकट और पीड़ा सदा सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥37॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥38॥

अपने इन्द्रियों के स्वामी, हे पवन कुमार हनुमान आपकी तीनों रूप में जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर एक गुरुदेव के समान कृपा करें तथा हमें सन्मार्ग पे अग्रसर करें।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

जो भी व्यक्ति आपके इस चरित्र का सौ बार अर्थात नियमित रूप से भावपूर्णता के साथ पाठ करेगा उसे आपमें निहित शक्तियों के द्वारा सारे बंधनो से मुक्ति मिल जाएगी और वह महासुख का भागी बनेगा।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥40॥

तुलसीदास जी इस पंक्ति में कहतें हैं की जो भी इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके सारे कार्य सिद्ध होते हैं और स्वयं भगवान् शिव इस बात के साक्षी हैं।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi
आगे संत तुलसीदास जी प्रार्थना करतें हैं कि हे प्रभु श्री राम मैं आपका सदा के लिए सेवक बना रहूँ, और आप मेरे ह्रदय में निवास करें।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

हे पवनपुत्र श्री हनुमान आप सभी संकट को हरने वाले हैं, आप कल्याणकारी तथा मंगलदायी हैं, हे महावीर आप प्रभु श्री राम, श्री लक्ष्मण, और माता सीता सहित मेरे ह्रदय मई निवास कीजिये।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

॥ हनुमान चालीसा अर्थ सहित समाप्त ॥

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi
हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

 

 

समापन
हनुमान चालीसा एक अद्भुत धार्मिक ग्रंथ है जो आध्यात्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मदद करता है। इसका पठन भक्ति, श्रद्धा, और आंतरिक शांति की ओर एक कदम बढ़ाता है।हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

हनुमान चालीसा चौपाई अर्थ सहित हिंदी में-Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi

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200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी  में
200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

1.रौद्र रूप -कठोर रूप
उदाहरण: मुझसे भैया का कंप्यूटर टूट गया, यह सुनते ही भैया ने रौद्र रूप धारण कर लिया।

2.घोंघा बसंत-मूर्ख
उदाहरण:सेठ ने अपने कर्मचारी से कहा तू एकदम घोंघा बसंत है।

3.सत्कार-सम्मान
उदाहरण:बारात की आने पर लड़की वालों ने सेवा सत्कार किया।

4.चेष्टा-कोशिश
उदाहरण:इस बार मैंने कुछ नया लिखने की चेष्टा की है।

5.निपुण– जो अपना काम पूरी अच्छी तरह से करता हो, कुशल, दक्ष, प्रवीण
उदाहरण:माताजी खाना बनाने में निपुण हैं।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

6.विविध-तरह-तरह के, विभिन्न
उदाहरण:मेले में मैंने विविध प्रकार के गुब्बारे देखें।

7.अमल करना- किसी भी काम या बात का अनुसरण करना, लागू करना, व्यवहार में लाना
उदाहरण:अध्यापक ने राम से कहा हमें सुबह जल्दी उठना चाहिए, राम ने उस बात पर अमल किया।

8.अवहेलना- तिरस्कार
उदाहरण:उच्च वर्गों द्वारा निम्न वर्गों की अवहेलना की जाती थी।

9.विपत्ति-संकट
उदाहरण:विपत्ति पड़ने पर हमें एक दूसरे का साथ देना चाहिए।

10.तिरस्कार-उपेक्षा
उदाहरण:मोहन ने समारोह में अपने दोस्त का तिरस्कार किया I

11.स्वच्छंदता -मनमानी
उदाहरण:स्वच्छंदता के विपरीत हमें निष्ठा और गंभीरता से काम करना चाहिए।

12.उग्र -तीखा
उदाहरण:अध्यापक उग्र होकर राम से बोले मेरी किताब को किसने फाड़ा।

13.कुटुंब- सभी का एक साथ रहना, भरा पूरा परिवार
उदाहरण:कुटुंब परिवार ही सुखी परिवार होता है।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

14.भीरुता -कायरता
उदाहरण:युद्ध में अकबर को देखकर अबुल माली ने अपनी भीरुता दिखाई।

15.विलक्षण -अनूठा
उदाहरण:सूर्य उदय के समय हमनें एक विलक्षण दृश्य देखा।

16.निर्दिष्ट- नियत किया हुआ
उदाहरण:राम गोपाल वर्मा को अध्यापक पद के लिए ने निर्दिष्ट किया गया।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

17.निवारण- किसी भी प्रश्न का हल ढूंढना
उदाहरण:आपके सभी प्रश्नों का निवारण करने के लिए हमेशा तैयार हैं।

18.अवयव-किसी भी वस्तु का हिस्सा, भाग ,अंग
उदाहरण:यह पिछले पाठ का अवयव है।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

19.संचित- इकट्ठा करना
उदाहरण:वर्षा के पानी को संचित करके उसे काम में लिया जा सकता है।

20.व्यतिक्रम- क्रम का उल्टा सीधा होना
उदाहरण:इस बार का परिणाम आने पर सभी छात्रों का व्यतिक्रम हो गया।

21.अभ्यस्त -अभ्यास करके किसी कार्य में निपुण होना, निपुण, जिस का अभ्यास किया गया हो।
उदाहरण:मोटे लाल खाने का अभ्यस्त है।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

22.क्षोभकारक -विचलित करने वाला
उदाहरण:उसका कथन क्षोभकारक था।

23.क्षात्रवृत्ति‌ – क्षत्रिय धर्म
उदाहरण:देवसेना का संबंध क्षात्रवृत्ति‌ कुल से है।

24.अकिंचित्कर -अर्थहीन
उदाहरण:परीक्षा में श्याम द्वारा दिया गया उत्तर अकिंचित्कर था।

25.दारुण-भयंकर
उदाहरण:उसकी मां की मृत्यु होने पर यह दारुण दुःख सहन नहीं कर पाया।

26.स्पृहा- इच्छा, अभिलाषा
उदाहरण:मेरी स्पृहा माउंट आबू देखने की है।

27.मुग्ध -किसी चीज में लीन हो जाना, मोहित
उदाहरण:मीरा कृष्ण की भक्ति में मुग्ध हो गई।

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28.अलापना-बोलना
उदाहरण: राधा अपनी बहन के तारीफ के ही राग अलापति रहती है।

29.सत्तारूढ़ -शासन पर बैठे
उदाहरण:सत्तारूढ़ नेता की सभी नागरिकों द्वारा आलोचना की गई।

30.संरक्षण -देखरेख, निगरानी
उदाहरण:हमने पिकनिक का भ्रमण अध्यापक के संरक्षण में किया।

31.विचलित -चंचल‌, अस्थिर
उदाहरण: राम के घर आने पर उसकी पत्नी का मन विचलित हो रहा था।

32.शमित- शांत किया हुआ
उदाहरण: शमित किया हुआ हाथी फिर से पागल हो गया।

33.सुललित- अत्यंत सुंदर
उदाहरण: वृक्ष पर सुललित फल लगे हुए हैं।

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34.प्रकोष्ठ – कमरा
उदाहरण:सभी कर्मचारियों ने सेठ से कहा हमें भोजन करने के लिए एक प्रकोष्ठ की आवश्यकता है।

35.निराश्रय -बेसहारा
उदाहरण: निराश्रय वृद्धा लोगों को आश्रम में रखा जाता है।

36.प्राचीर -परकोटा
उदाहरण: महल के प्राचीर से राजा ने अपनी सेना का आवाहन किया।

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37.पथिक -राहगीर
उदाहरण:निराश मोहन इस तरह से चल रहा था मानों जैसे पथिक हो।

38.उत्कोच -रिश्वत
उदाहरण:घर में पैसे की कमी से दुःखी राहुल ने उत्कोच स्वीकार कर लिया।

39.विरक्त -उदासीन
उदाहरण:वह सांसारिक मोह माया से विरक्त हो गया।

40.अपराजित वृत्ति -हार ना मानने की इच्छा शक्ति
उदाहरण: राजा में अपराजित वृत्ति ना होने के कारण उसने खुद को ही मार लिया।

41.पुनरावृति -फिर से दोहराना
उदाहरण:एक अनुच्छेद में बार-बार शब्दों की पुनरावृति थी।

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42.नेतृत्व-अगुवाई करना
उदाहरण:अकबर सेना का नेतृत्व कर रहे थे।

43.क्षितिज -धरती और आकाश के मिलन का स्थान
उदाहरण:पहाड़ियों पर चढ़कर हमने क्षितिज का दृश्य देखा।

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44.चैतन्य -चेतना में आना, जागरूकता
उदाहरण: कोरोना की बढ़ती बीमारी को देखकर मुख्यमंत्री जी मास्क के लिए चेतन्य नहीं कर रहे थे।

45.विस्मित-हैरान
उदाहरण:पुत्र की बात सुनकर पिताजी विस्मित हो गए।

46.किंकर्तव्यविमूढ़‌ -क्या करूं क्या ना करूं के चक्कर में पड़ा हुआ
उदाहरण: कल्पना में जीने वाला व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ में ही पड़ा रहता है।

47.सर्वोत्कृष्ट‌ -सबसे श्रेष्ठ
उदाहरण: सेना ने राजा का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए आप ही सर्वोत्कृष्ट आप ही सर्वोत्कृष्ट का नारा लगाया।

48.दृढ़ मंतव्य‌ -पक्का विचार
उदाहरण: सोनाली ने डॉक्टर बनने के लिए दृढ़ मंतव्य कर रखा है।

49.परिष्कार-सुधार, शुद्धीकरण
उदाहरण:आपके लेखन में परिष्कार की आवश्यकता है।

50.वीभत्स -घृणित
उदाहरण:राजा से वीभत्स व्यक्ति उनके सामने मदद मांगने जाने से डर रहा था

51.समीक्षक-गुण दोष पर विचार करने वाले
उदाहरण:माता पिता हमारे सही समीक्षक हैं।

52.प्रतीकात्मक रूप- प्रतीक के रूप में
उदाहरण: भाजपा पार्टी द्वारा कमल के फूल को प्रतीकात्मक रूप चुना गया था।

53.प्रतिकार -विरोध
उदाहरण:एक दल के लोग विपरीत दल के लोगों का प्रतिकार कर रहे थे।

54.चेत -होश
उदाहरण: सुजान दुर्घटना का दृश्य देखकर चेत खो बैठी।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

55.तत्क्षण -उसी समय
उदाहरण: चोर चोरी कर ही रहे थे की तत्क्षण पुलिस आ पहुंची।

56.तत्परता-जल्दबाजी
उदाहरण:अधिक तत्परता से किया गया काम बिगड़ जाता है।

57.दहकती -गुस्से के कारण जलती हुई
उदाहरण:रानी पद्मावती जोहर के लिए दहकती हुई आग में कूद गई थी।

58.अलौकिक -किसी अनोखी दुनिया से आया हुआ
उदाहरण:वह बातें तो ऐसी कर रहा था कि जैसे मानों वह अलौकिक दुनिया से आया हो।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

59.रंग रूट-सैनिक
उदाहरण:पाकिस्तान से जीतने के लिए हमें भारी संख्या में रंग रूट की आवश्यकता है।

60.कचहरी -न्यायालय
उदाहरण: राजाराम कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते-काटते थक गया।

61.पुरसा- सांत्वना देना
उदाहरण: मुश्किल वक्त में सब पुरसा रहे थे।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

62.मही-धरती
उदाहरण:गिन्नी पहलवान ने कुश्ती में मोहन को यही पर पटक दिया।

63.संशय -संदेह
उदाहरण:चोर की बातें सुनकर पुलिस को चोर पर संशय हो रहा था।

64.आँकना -किसी वस्तु या पदार्थ के आकार या मूल्य का अनुमान लगाया जाना; आँका जाना; नाप-जोख होना लिखा जाना; दर्ज होना अंकित होना; चित्रित होना किसी श्रेणी विशेष में गिना जाना; मूल्यांकन होना।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

मूल्य आँकना व्यय का अनुमान करना या निर्धारित करना नाप-जोख करना लिखना; दर्ज करना किसी को श्रेणी विशेष में गिनना; मूल्यांकन करना।
उदाहरण: बूढ़ा आदमी बिना तोले ही वस्तु का भार आँक रहा था।

65.अँकुड़ा-लोहे का बना हुआ एक टेढ़ा काँटा जिससे कोई चीज़ फँसाकर निकालते या टाँगते हैं टेढ़ी कटिया; (हुक) जलयानों का लंगर; (एंकर) बुनकरों का एक औज़ार पशुओं के पेट में होने वाली मरोड़; ऐंठन I

उदाहरण: मछुआरा मछली पकड़ने के लिए अँकुड़ा का इस्तेमाल करता है।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

66.अँनाकुरा-अँकुर निकलना , अँखु, आना; उगना।
उदाहरण:पानी में चने रखने से वे अँनाकुरा हो गए।

67.अँकोर- गले लगाने की क्रिया या भाव; आलिंगन अँकवार; गोद ,भेंट; नज़र; उपहार , रिश्वत; उत्कोच।
उदाहरण:बहुत समय बाद मिलने के कारण मित्र ने एक-दूसरे को अँकोर लिया।

68.अँखिया-आँख; नेत्र, नक्काशी करने की कलम।
उदाहरण:उसकी अखियां देख कर मेरा मन मोहित हो गया।

69.अँगड़ाई-जम्हाई लेते हुए शरीर को तानना; परिवर्तन की आकांक्षा के लिए तत्पर होना या क्रियाशील होना; सुप्तावस्था को त्यागना,
उदाहरण: भाषण सुनकर जनता का उत्साह अँगड़ाई लेने लगा।200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

70.अँगना-घर के भीतर का खुला स्थान चौक; अजिर,आँगन; परिसर; प्रांगण।
उदाहरण:अँगना में बाबा दुआरे पे मां खड़ी थी।

71.अँगरखा-एक परंपरागत मरदाना पहनावा ,एक प्रकार की अचकन; अंगा; चपकन।
उदाहरण:मैंने एक ऐसे आदमी को देखा जिसने अँगरखा पहन रखा था।

72.अँगीठी-मिट्टी का बना चूल्हे जैसा पात्र; बोरसी; सिगड़ी; अंगारिका।
उदाहरण:आज हमने अंगीठी पर बाटी सेंकीं।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

73.अँगुली-हाथ या पैर की उँगली; अंगुलि; अँगुलिका।
उदाहरण:बेटे पापा की अँगुली पकड़ कर ही चलना सीखते हैं।

74.अँगूठाछाप-निरक्षर; अनपढ़; अँगूठाटेक।
उदाहरण:अंगूठा छाप होने के कारण जमीन के कागज उसने किसी और से पढ़वाऐं।

75.अँगोछना-कपड़े से शरीर पोंछना, अँगोछे से देह पोंछना।
उदाहरण:खेत में काम करते करते किसान इतना थक कर पसीने से भीग गया कि वह अपना शरीर अँगोछने लगा।

76.अँगौरिया-मज़दूरी के बदले हल-बैल लेकर खेती करने वाला हलवाहा या किसान।
उदाहरण:अँगौरिये ने कठिन परिश्रम करके जमीन को उपजाऊ बना दिया।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

77.अँग्रेज़ियत-अँग्रेज़ों की तहज़ीब या व्यवहार; अँग्रेज़ जैसा चाल-चलन,अँग्रेज़ों की तरह का पहनावा या वेशभूषा।उदाहरण:गांव में रहने के बाद भी मोहन का चाल चलन अँग्रेज़ियत था।200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

78.अँजुली-दोनों हथेलियों को ऊपर की ओर जोड़ने से बनने वाला गड्ढा जिसमें पानी या कोई वस्तु भरकर दी जाती है; करसंपुट; चुल्लू; ओक; अंजुरी; अंजलि।
उदाहरण:पंडित जी ने प्रसाद लेने के लिए अँजुली बनाने को कहा।

79.अंगमर्दक-शरीर की मालिश करने वाला, शरीर दबाने वाला।
उदाहरण:पहलवान शेर सिंह के यहां १०० अंगमर्दक थे।

80.अंगविभ्रम-एक ख़ास तरह का रोग जिसमें किसी और अंग के होने का भ्रम होना
उदाहरण:सीता इतना सोचने लगी कि उसे अंगविभ्रम की बीमारी हो गई।

81.अंजुमन-सभा; संस्था, मजलिस; महफ़िल।
उदाहरण:कविता कहने की कला ने मुझे अंजुमन का हिस्सा बना दिया।

82.अंतर्मनस्क-अतंर्मुखी , आत्मकेंद्रित।
उदाहरण:साधु राम गोपाल मंत्र बोलने में अंतर्मनस्क थे।

83.अंतर्वेग-अशांति, चिंता आदि भावनाओं का वेग, शरीर में बना रहने वाला बुख़ार।
उदाहरण:हजारों कोशिशों के बाद भी सफल ना होने पर उसे अंतर्वेग होने लगा।

84.अंत्यकर्म-अंत्येष्टि; दाहकर्म।
उदाहरण:पुत्र अपने पिता के अंत्यकर्म में भी सम्मिलित नहीं हुआ। परंतु उसकी अंत्यकर्म क्रम में सम्मिलित हुई।

85.अंत्याक्षर-किसी पद का अंतिम अक्ष र ,किसी कविता में चरण का अंतिम अक्षर
उदाहरण:श्याम द्वारा लिखी गई कविता में अंत्याक्षर आकर्षक था।

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86.अंत्र-आँत; अँतड़ी।
उदाहरण:डॉक्टर ने भूख ना लगने का कारण अंत्र में खराबी बताइए।

87.अंत्योदय-आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गो का विकास करने की क्रिया या भाव।
उदाहरण:कमजोर वर्ग को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई योजना का अंत्योदय किया।

88.अंधानुकृति-बिना सोचे-समझे किया गया अनुकरण; नकल; अंधानुकरण।
उदाहरण:जीशान जो परीक्षा में बिना कुछ पढ़े आया था वह उसके पास में बैठे छात्र की कॉपी में से अंधानुकृति करता पाया गया।

89.अकर्तव्य-जो करने योग्य न हो; अनुचित;अकरणीय।
उदाहरण:बड़े बूढ़ों पर अत्याचार करना अकर्तव्य है।

90.अकर्मण्य-आलसी
उदाहरण:माता ने उसके पुत्र को काम ना करने पर अकर्मण्य कहा।

91.अकृत्यकारी-दुष्कर्म करने वाला; कुकर्मी; अपराधी; (क्रिमिनल)
उदाहरण: नेता का बेटा अकृत्यकारी होने पर भी पुलिस द्वारा छोड़ दिया गया।

92.अकृतार्थ-जो कृतार्थ न हुआ हो; जिसका मनोरथ सफल न हुआ हो;विफल; असफल।
उदाहरण:अकृतार्थ होने पर भी हमें हार नहीं माननी चाहिए।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

93.अनिमेष -अपलक, ‌बिना पलक झपके
उदाहरण:छोटू टेलीविजन को अनिमेष में देख रहा था।

94.पेचीदा-कठिन
उदाहरण:न्यायालय में जज को वकील का मामला बड़ा पेचीदा लगा।

95.काष्ठगोदाम-लकड़ी का गोदाम
उदाहरण:जब राम के घर को पुलिस द्वारा जांच आ गया तो उसमें एक काष्ठगोदाम था जिसमें बंदूके रखी हुई थी।

96.बर्दाश्त- सहना
उदाहरण:छात्रों की शरारत अध्यापक के लिए बर्दाश्त से बाहर हो गई थी।

97.नस्ल – जाति, वंश
उदाहरण:जैसलमेर में ऊंटों की खास नस्ल पाई जाती है।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

98.भद्दा – अनाकर्षक, कुरूप
उदाहरण:चित्रकला की परीक्षा में राधा ने एक भद्दा सा चित्र बनाया।

99.प्रतिरूप -छाया
उदाहरण:रात के समय अंधेरे में सोनिया अपना ही प्रतिरूप देखकर डर गई।

100.संदिग्ध-जिसे पहले कभी ना देखा गया हो, संदेह योग्य
उदाहरण:हमने पहली बार घर के बाहर एक संदिग्ध आदमी को देखा।

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

कठिन शब्दार्थ हिंदी 

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी  में
200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

101.स्वैच्छिक संस्था – एक संस्था जो सरकार से स्वतंत्र हो
102.आवन – आगमन
103.विथा-व्यधा
104.क्लिस्ट – जटिल -‘कठिन’

105.गाद – नदियों द्वारा वहन किये जाने वाले मिट्टी, रेत, धूल एवं पत्थर।
106.विरहिन – वियाग में जीने वाली
107.मरजादा – मर्यादा, प्रतिष्ठा
108.अट्टालिका – किसी उंच्ची इमारत का ऊपरी कक्ष या हिस्सा।

109.विस्थापन– लोगों को अपने घरों एवं जमीनों से हटाना।
110.गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना
111.उत– उधर, वहाँ
112.जिजीविषा – जीवित रहने की इच्छा।

113.भक्ष्याभक्ष – खादय, अखादय
114.धीर– धैर्य
115.तिनहिं – उनको
116.मधुकर– भौंरा
117.तारतम्य – किसी घटना या क्रम की आवृत्ति।

118.हस्तामलकवत् – हथेली पर रखे आंवले के समान
119.पठाए – भेजे
120.अनीति – अन्याय
121.अक्षुण्ण – जिसके टुकड़े करना संभव ना हो।

122.वात्याचक्र – भंवर
123.भंजनिहारा – भंजन करने वाला, तोड़ने वाला
124.कृतघ्न – उपकार ना मानने वाला।
125.रिसाइ – क्रोध करना

126.रिपु – शत्रु
127.निर्वाण का अर्थ – मुक्ति, मोक्ष या मृत्यु
128. बिलगाउ – अलग होना
129.अवमाने – अपमान करना
130.स्वैराचार – स्वेच्छाचार

131.लकिराई – बचपन में
132.कोही – क्रोधी
133.श्लाघ्य – प्रशंसनीय
134.महाभट – महा योद्धा

135.कीर – तोता
136.चटकारी – चुटकी
137.बाग़ का अर्थ – बगीचा
138.सिलानि – शिला पर
139.उमगे – उमड़ना

140. सांसोच्छेदन – सांसों को समाप्त करना
141.मकरंद – फूलों का रस
142.प्रवंचना – धोखा
143.चरायंध – दुर्गंध

144.पंथा – राह, रास्ता
145.धाराधर – बादल
146.कंगाल का अर्थ – जिसके बिल्कुल धन न हो
147.निदाध – गर्मी

148.आभा – चमक
149.निर्निमेष – अपलक देखना
150.अट – प्रविष्ट, समाना

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में
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वर्ण के अनुसार कठिन शब्दार्थ

अ से कठिन शब्द

1.अंतरिक्ष – पृथ्वी और नक्षत्रों के बीच का स्थान
2.अंतरित -अंदर छिपा हुआ
3.अंतरिम – दो समय के बीच का

4.अंताक्षरी – गाना गाए जाने वाला खेल
5.अत्यंत – बहुत अधिक

6.अंदरूनी – अंदर, भीतरी
7.अंदेशा – शक, संदेह
8.अंबिका – देवी का नाम
9.अकल्पित – कल्पना से परे
10.अकरणीय – जो करने योग्य ना हो

आ से कठिन शब्द

1.आतुरता – घबराहट, उतावलापन
2.आत्मत्यागी – खुद के जीवन को त्यागने वाला
3.आत्मानुभव – अनुभूति
4.आधिपत्य – किसी वस्तु या स्थान पर अधिकार

5.आपेक्षिक – अन्य से अपेक्षा रखना
6.आमोदित – जिसका मन आमोदन किया गया हो
7.आयुक्त- किसी काम को करने के लिए जिसे नियुक्त किया गया हो

8.आरक्षी – सुरक्षित किया गया स्थान
9.आर्थिक – धन संबंधित
10.आलाप – बोलना, संगीत में स्वरों का अभ्यास

इ से कठिन शब्द

1.इश्तहार – सार्वजनिक सूचना
2.इम्तिहान – परीक्षा,जाँच
3.इष्टतम – सबसे वांछनीय संभव के तहत एक प्रतिबंध व्यक्त या निहित
4.इस्तीफा – त्यागपत्र

5.इस्पात – एक प्रकार का लोहा
6.इस्तरी – कपड़ों की तह जमाने या सिलवटें दूर करने का काम।
7.इल्जाम – आरोप

8.इंद्रियजित – जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो
9.इकलौता – अकेली संतान
10.इकाई – गिनती में एक होने की अवस्था, अंश, समूह का टुकड़ा

ई से कठिन शब्दार्थ

1.ईर्ष्या – जलन
2.ईदृश – इस प्रकार
3.ईश्वरीय – दैवीय
4.ईश्वर निष्ठ – भगवान पक्षपाती
5.ईंधन – साधन

6.ईमान – ईश्वर में विश्वास
7.ईसाई – एक प्रकार की जाति
8.ईरानी – ईरान देश में रहने वाले

9.ईमानदार – नियत से नेक
10.ईश्वराधीन – ईश्वर की इच्छानुसार होनेवाला

उ से कठिन शब्दार्थ

1.उड्डयन – आकाश में उड़ने का भाव
2.उज्जवल – जो जल कर प्रकाश दे रहा हो
3.उत्तल – जिसके परत का बीच का भाग उठा हुआ हो
4.उत्तम – सर्वश्रेष्ठ

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5.उत्केंद्र – केन्द्र से हटा हुआ, अनियमित
6.उत्तेजित – उत्तेजना से भरा हुआ, भड़का हुआ
7.उत्सुक – बेचैन
8.उद्भव – उत्पत्ति

9.उद्यान – बगीचा
10.उपघात – बुरा आघात

ऊ से कठिन शब्दार्थ

1.ऊर्ध्वाधर – ऊंचाई में सीधा, खड़ा
2.उर्मिला – विनम्र
3.ऊष्म – भाप
4.ऊष्मा – गर्मी

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5.ऊर्जित – ऊर्जा प्रदान करने के लिए
6.ऊतक – वनस्पतियों और जंतुओं के शरीर में एक प्रकार की संरचना
7.ऊबड़-खाबड़ – ऊंचा नीचा

ऋ से कठिन शब्दार्थ

1.ऋणी – जिसके ऊपर कर्ज हो
2.ऋण- उधार
3.ऋतु- मौसम
4.ऋजुता – छल कपट से दूर रहने का भाव
5.ऋतुराज – मौसम का राजा

ए से कठिन शब्दार्थ

1.एकांत – अकेला, निर्जन स्थान
2.एकाधिकार – किसी चीज पर एक व्यक्ति का पूरा अधिकार
3.एकीकृत – दो या दो से अधिक वस्तुओं को एक करना, एकत्रित करना
4.एतबार – विश्वास

5.एकाग्र – किसी एक ही विषय या वस्तु पर मन लगाकर काम करना
6.एकार्थक – जिनका अर्थ एक जैसा हो
7.एकांतवासी – एकांत में वास या रहने वाला

8.एकलिंगी – जिनमें एक ही लिंग हो
9.एकाक्षर – जिसमें एक ही अक्षर हो
10.एकांकी – एक अंक वाला

ऐ से कठिन शब्दार्थ

1.ऐतिहासिक – इतिहास संबंधी
2.ऐलान – उद्घोषणा
3.ऐंठना – मुड़ना या संकुचित होना
4.ऐकमत्य – विचार एवं भाव की एकता, सहमति
5.ऐच्छिक – जिसे अपनी इच्छा से करना हो

ओ से कठिन शब्दार्थ

1.ओढ़नी – आंचल, दुपट्टा
2.ओहदा – पद
3.ओज – उजाला, प्रकाश

4.ओसर – अवसर, मौका, ऐसी मादा जो अभी तक गाभिन न हुई हो
5.ओसाना – अनाज को हवा में उड़ाकर भूसे को अलग करना

औ से कठिन शब्दार्थ

1.औपचारिक – दिखावटी
2.औद्योगीकरण – बड़े-बड़े उद्योगों के विकास
3.औचित्य – समर्थन

4.औषधीय – दवा संबंधी
5.औलाद – संतान
6.औरत – स्त्री

7.औसत – संख्याओं का माध्य
8.औपस्थ्य – सहवास, संभोग, रतिक्रिया

9.औषधालय – मेडिकल, जहां औषधि या दवा रखी जाती है
10.औपनिवेशिक – उपनिवेश में होने अथवा उससे संबंध रखने वाला

200+Kathin Shabdarth In Hindi-कठिन शब्द एवं उनके अर्थ हिंदी में
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दुनिया का सबसे कठिन शब्द कौन सा है?
इसके अलावा कुछ ऐसे कठिन शब्द जिनके बारे में शायद ही आपको पता होगा, जो हैं :

शब्द अर्थ
1.स्निगधभिन्नान्जनाभा स्निग्ध लेपयुक्त चमक
2.यत्किंचित थोड़ा बहुत

3.सुमुत्सुक उत्साहित
4.वात्याचक्र भंवर

5.हस्तामलकवत् हथेली पर रखे आंवले के समान
6.भक्ष्याभक्ष खादय, अखादय

7.प्रगल्भ चतुर, हाेशियार
8.क्षीणवपु कमजोर

9.आरूझाई उलझाना
10.पाषाण कोर्त्तक पत्थर की मूर्ति बनाने वाला

11.निर्निमेष अपलक देखना
12.चरायंध दुर्गंध

13.सांसोच्छेदन सांसों को समाप्त करना
14.श्लाघ्य प्रशंसनीय
15.स्वैराचार स्वेच्छाचार

कठिन शब्द का सही अर्थ क्या है?

कठिन शब्द का अर्थ मुश्किल होता है।

कठिन का पर्यायवाची शब्द क्या होता है?
कठिन का पर्यायवाची अगम्य, कठिन, दुर्बोध, मुश्किल, दुश्वार, अज्ञेय, अथाह, गहरा, अपार, विकट, बहुतअधिक आदि हैं।

20 कठिन शब्द हिंदी में कौनसे हैं?
1. रौद्र रूप – कठोर रूप
2. घोंघा बसंत – मूर्ख
3. सत्कार – सम्मान
4. चेष्टा – कोशिश

5. निपुण – जो अपना काम पूरी अच्छी तरह से करता हो, कुशल, दक्ष, प्रवीण
6. विविध – तरह-तरह के, विभिन्न
7. अमल करना – किसी भी काम या बात का अनुसरण करना, लागू करना, व्यवहार में लाना
8. अवहेलना – तिरस्कार

9. विपत्ति – संकट
10. तिरस्कार – उपेक्षा
11. स्वच्छंदता – मनमानी
12. उग्र – तीखा

13. कुटुंब – सभी का एक साथ रहना, भरा पूरा परिवार
14. भीरुता – कायरता
15. विलक्षण – अनूठा
16. निर्दिष्ट – नियत किया हुआ

17. निवारण – किसी भी प्रश्न का हल ढूंढना
18. अवयव – किसी भी वस्तु का हिस्सा, भाग ,अंग
19. संचित – इकट्ठा करना
20. व्यतिक्रम – क्रम का उल्टा सीधा होना

आशा करते हैं आपको हमारा यह ब्लॉग कठिन शब्द पसंद आया होगा। यदि आप हिंदी के अन्य ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं तो MantraKavach.com के साथ बनें रहें।

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श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-
श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

विनियोग:अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।

अथ ध्यानम्‌:

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम।

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥1॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।

जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥2॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌ ।

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥3॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।

शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।

स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।

उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥8॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।

पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥9॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ ।

स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥10॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।

न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌ ।

नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌ ।

यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।

अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥14॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।

तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌ ।

अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥16॥

तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥

शरण्यौ सर्र्र्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।

रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥20॥

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।

गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।

काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।

जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥

रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌ ।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥25॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥26॥

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥

श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः

स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं

जाने नैव जाने न जाने ॥30॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥31॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥

कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥34॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌ ।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥35॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌ ।

तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥36॥

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं

रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥

॥ इति रामरक्षास्तोत्र संपूर्णम्‌ ॥

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-
श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥

विनियोग:

श्रीगणेशायनम: ।

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।

श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

अर्थ: इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता ऋषि बुध कौशिक हैं, माता सीता और श्री रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, माता सीता शक्ति रूप हैं, हनुमान जी कीलक है तथा प्रभु रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra)के जप में विनियोग किया जाता हैं |

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥

वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥

ध्यान कीजिये :- प्रभु राम जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर बस्त्र पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं ।श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |

॥ इति ध्यानम्‌ ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥

अर्थ: श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥

अर्थ: नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

अर्थ: जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

अर्थ: मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

अर्थ: कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |

जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

अर्थ: मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

अर्थ: मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥

अर्थ: मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

अर्थ: मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ ।

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-
श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥

अर्थ: शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

अर्थ: जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

अर्थ: राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥

अर्थ: जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥

अर्थ: जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

अर्थ: भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥

अर्थ: जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

अर्थ: जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

अर्थ: जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

अर्थ: ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥

अर्थ: संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

अर्थ: हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

अर्थ: भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

अर्थ: वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

अर्थ: नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

अर्थ: दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |

रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥

अर्थ: लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

अर्थ: राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

अर्थ: हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

अर्थ: मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-
श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

अर्थ: श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥

अर्थ: जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

अर्थ: मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

अर्थ: जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥

अर्थ: मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥

अर्थ: मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं|

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

अर्थ: ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

अर्थ: राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

अर्थ: शिव पार्वती से बोले – हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीराम रक्षा स्तोत्र संपूर्णम्‌ ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

श्री रामरक्षा स्तोत्र अर्थ सहित-Sri Ramraksha Stotra-

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