श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

 

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित | Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित, Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

सामग्री           मात्रा
रोली 20 ग्राम
पीला सिंदूर 20 ग्राम
पीला अष्टगंध चंदन 20 ग्राम
लाल चन्दन 10 ग्राम
सफेद चंदन 10 ग्राम
लाल सिंदूर 10 ग्राम
हल्दी (पिसी) 50 ग्राम
हल्दी (समूची) 50 ग्राम
सुपाड़ी (समूची बड़ी) 200 ग्राम
लौंग 20 ग्राम
इलायची 20 ग्राम
सर्वौषधि 1 डिब्बी
सप्तमृत्तिका 1 डिब्बी
सप्तधान्य 100 ग्राम
पीली सरसों 100 ग्राम
जनेऊ 21 पीस
इत्र बड़ी 1 शीशी
गरी का गोला (सूखा) 9 पीस
पानी वाला नारियल 1 पीस
अक्षत (चावल) 15 किलो
धूपबत्ती 2 पैकेट
रुई की बत्ती (गोल / लंबी) 2-2 पैकेट
देशी घी 2 किलो
सरसों का तेल 2 किलो
चमेली का तेल 100 ग्राम
कपूर 50 ग्राम
कलावा 10 पीस
चुनरी (लाल / पीली) 1/1 पीस
बताशा 500 ग्राम
लाल रंग 5 ग्राम
पीला रंग 5 ग्राम
काला रंग 5 ग्राम
नारंगी रंग 5 ग्राम
हरा रंग 5 ग्राम
बैंगनी रंग 5 ग्राम
अबीर गुलाल (लाल, पीला, हरा, गुलाबी) अलग-अलग 10-10 ग्राम
बुक्का (अभ्रक) 10 ग्राम
भस्म 100 ग्राम
गंगाजल 1 शीशी
गुलाब जल 1 शीशी
लाल वस्त्र 5 मीटर
पीला वस्त्र 8 मीटर
सफेद वस्त्र 5 मीटर
हरा वस्त्र 2 मीटर
नीला वस्त्र 2 मीटर
झंडा हनुमान जी का 1 पीस
चांदी का सिक्का 2 पीस
कुश (पवित्री) 4 पीस
लकड़ी की चौकी 7 पीस
पाटा 8 पीस
रुद्राक्ष की माला 1 पीस
तुलसी की माला 1 पीस
दोना (छोटा – बड़ा) 1-1 पीस
मिट्टी का कलश (बड़ा) 11 पीस
मिट्टी का प्याला 21 पीस
मिट्टी की दियाली 21 पीस
माचिस 2 पीस
हवन सामग्री 5 किलो
आम की लकड़ी (समिधा) 10 किलो
नवग्रह समिधा 1 पैकेट
तिल 500 ग्राम
जौ 500 ग्राम
गुड़ 500 ग्राम
कमलगट्टा 200 ग्राम
गुग्गुल 100 ग्राम
धूप लकड़ी 100 ग्राम
सुगंध बाला 50 ग्राम
सुगंध कोकिला 50 ग्राम
नागरमोथा 50 ग्राम
जटामांसी 50 ग्राम
अगर-तगर 100 ग्राम
इंद्र जौ 50 ग्राम
बेलगुदा 100 ग्राम
सतावर 50 ग्राम
गुर्च 50 ग्राम
जावित्री 25 ग्राम
भोजपत्र 1 पैकेट
कस्तूरी 1 डिब्बी
केसर 1 डिब्बी
काला उड़द 250 ग्राम
मूंग दाल का पापड़ 1 पैकेट
शहद 100 ग्राम
पंचमेवा 200 ग्राम
पंचरत्न व पंचधातु 1 डिब्बी
धोती (पीली /लाल) 2 पीस
अगोंछा (पीला /लाल) 2 पीस
सुहाग सामग्री – साड़ी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, आलता, नाक की कील, पायल, इत्यादि
काली मटकी (नजर वाली हाँड़ी)
1 चाँदी की गाय बछड़ा समेत

मिष्ठान 1 किलो

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित

पान के पत्ते (समूचे) 21 पीस
आम के पत्ते 2 डंठल
ऋतु फल 5 प्रकार के
दूब घास 100 ग्राम
शमी की पत्ती 10 ग्राम
कमल का फूल 11 पीस
फूल,हार लड़ी (गुलाब) की 5 मीटर
फूल, हार लड़ी (गेंदे) की 7 मीटर
गुलाब का खुला हुआ फूल 1 किलो
गेंदा का खुला हुआ फूल 1 किलो
तुलसी का पौधा 1 पीस
तुलसी की पत्ती 5 पीस
दूध 1 लीटर
दही 1 किलो

गणेश जी की मूर्ति 1 पीस
लक्ष्मी जी की मूर्ति 1 पीस
राम दरबार की प्रतिमा 1 पीस
कृष्ण दरबार की प्रतिमा 1 पीस
हनुमान जी महाराज की प्रतिमा 1 पीस
दुर्गा माता की प्रतिमा 1 पीस
शिव शंकर भगवान की प्रतिमा 1 पीस || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

आटा 100 ग्राम
चीनी 500 ग्राम
अखंड दीपक (ढक्कन समेत) 1 पीस
तांबे/पीतल का कलश (ढक्कन समेत) 1 पीस
थाली 7 पीस
लोटे 4 पीस
गिलास 9 पीस
कटोरी 9 पीस
चम्मच 2 पीस
परात 4 पीस
कैंची /चाकू (लड़ी काटने हेतु ) 1 पीस
हनुमंत ध्वजा हेतु बांस (छोटा/ बड़ा) 1 पीस
जल के लिए बाल्टी 2 पीस
जल (पूजन हेतु)
गाय का गोबर
मिट्टी
बिछाने का आसन

चुनरी 1 पीस
अंगोछा 1 पीस
पूजा में रखने हेतु सिंदौरा 1 पीस

नित्य प्रसाद भिन्न-भिन्न

धोती
कुर्ता
अंगोछा
पंच पात्र
माला इत्यादि

वस्त्र की व्यवस्थता पृथक दिन के अनुसार व्यवस्था करें
दो पगड़ी अलग – अलग कलर में एक पगड़ी कृष्ण जन्म में दूसरी रुक्मणि विवाह के लिए
कृष्ण जन्म वाले दिन के लिए लड्डू गोपाल के लिए पोशाक एवं सम्पूर्ण परिधान मुकुट वंशी आदि अगर संभव बन पाये व्यास जी के लिए स्वर्ण मुद्रिका अवश्य लाये |
रुक्मणि के विवाह के लिए सुन्दर वस्त्र चढ़ाये , जैसे धोती- कुर्ता साडी तथा कोई आभूषण अवश्य लाये |
कृष्ण जन्म में दिव्य सजावट एवं भोग में माखन मिश्री तथा पञ्चामृत का निर्माण |
विभिन्न प्रकार के खिलोने , टॉफ़िया , बिस्कुट आदि |
रुक्मणि विवाह में पैर पूजने हेतु परिवार में सभी को शामिल होना चाहिये , वस्त्र -पात्र – आभूषण आदि श्रद्धानुसार अर्पित करे |
इसके अतिरिक्त पाँचवे दिन गोवर्धन पूजा में छप्पन भोग की तैयारी , खीर , हलवा ,पूरी , कढ़ी – चावल आदि घर में निर्माण करवाए ,व अन्य पकवान बाज़ार से मँगवा सकते है | विशेष :- विश्राम दिवस में पोथी पूजन होता है उस दिन विदाई निर्मित जो आपको विशेष दक्षिणा, विशेष वस्त्र, विशेष गिफ्ट, अर्थांत कुछ विशेष भेट करना होता है जो आप अपनी सामर्थ्य और श्रद्धानुसार पंडित जी समर्पण कर सकते हो | || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित || Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

ब्रह्म पूर्णपात्र व्यवस्था

“ब्रह्मपूर्णपात्र ” की व्यवस्था आपकी मनोकामना पूर्ण हेतु की जाती है अत इसलिए :-
“ब्रह्म पूर्णपात्र ” एक बड़ा पात्र दक्कन सहित जिसमे सात किलो चावल भर जाये |
सात किलो चावल जो चावल खंडित बिलकुल न हो ,संभव हो तो बासमती चावल की व्यवस्था करे | Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

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नोट :- अगर छेत्रपाल बलि निकालने की व्यवस्थता हो तो पंडित के निर्देशनुसार सामग्री की व्यवस्थता सुनश्चित करे |
श्रीमद् भागवत महापुराण का महत्व
श्रीमद् भागवत महापुराण हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है और इसका महत्व अत्यंत महान् है। यह पुराण महाभारत के महाभागवत ध्यान पर आधारित है और श्रीकृष्ण के अवतार, उनकी लीलाएं, उपदेश और महिमा को संकलित करता है।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi
ईश्वर के अवतार की महिमा
यह पुराण भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की महिमा, बाललीला, किशोरलीला और महारासलीला आदि का वर्णन करता है। इसके माध्यम से लोग भगवान की महिमा का अनुभव करते हैं और उनके प्रति भक्ति एवं समर्पण विकसित होता है।

भक्ति का मार्ग
श्रीमद् भागवत महापुराण भक्ति और साधना का मार्ग प्रदर्शित करता है। इसके अनुसार, भगवान के नाम का जाप, कीर्तन, सत्संग, श्रवण, स्मरण, वंदन आदि भक्ति के आठ रसों में से अधिक महत्वपूर्ण हैं। || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित || Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

धर्म और नैतिकता

श्रीमद् भागवत महापुराण में जीवन के नैतिक मूल्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन होता है। यह ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, त्याग, दया, सेवा, धर्म, अर्पण, सत्कर्म आदि को प्रमाणित करता है। समाज सेवा: इस पुराण में लोगों को समाज सेवा, दान-धर्म, गौसेवा, परमेश्वर की प्रतिमा के प्रति सम्मान आदि के महत्व के बारे में जागरूक किया जाता है।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
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मोक्ष का साधना

श्रीमद् भागवत महापुराण में मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपायों का वर्णन किया गया है। यह मोक्ष के साधन भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सेवा, समर्पण आदि की महिमा को बताता है और व्यक्ति को उच्चतर आदर्शों की ओर प्रेरित करता है। इस प्रकार, श्रीमद् भागवत महापुराण आपके जीवन में स्वर्ग के दरवाजे खोलने का काम करती है

श्रीमद् भागवत महापुराण का लाभ

श्रीमद् भागवत महापुराण भक्ति और प्रेम के विकास को प्रोत्साहित करता है। इसे पढ़ने और सुनने से मानसिक शांति, आनंद और संतुष्टि की अनुभूति होती है। यह मन को शुद्ध करके उच्च स्तर की आध्यात्मिक अनुभव के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित || Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्रीमद् भागवत महापुराण में विद्या, ज्ञान और दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांत सम्मिलित होते हैं। इसे पढ़ने से आप अपने पाठकों को आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ज्ञान का आदान कर सकते हैं। श्रीमद् भागवत महापुराण में धार्मिक तत्त्वों, मौलिक सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों, कर्म के सिद्धांतों, धार्मिक नियमों और जीवन के उद्देश्य के बारे में व्यापक ज्ञान मिलता है। इसे अपने ब्लॉग में समाविष्ट करके आप अपने पाठकों को धार्मिकता के महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में समझ सकते हैं। श्रीकृष्ण के चरित्र और उनकी उपासना से इस पुराण में आदर्श व्यक्तित्व के मार्गदर्शन के उदाहरण मिलते हैं। आप अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठकों को सच्चे मानवीय गुणों, दया, करुणा, धैर्य, और साधारण जीवन के नियमों के प्रेरणास्रोत प्रदान कर सकते हैं।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

निष्कर्ष

MantraKavach.com से आप घर बैठे श्रीमद् भागवत महापुराण का आयोजन करवाने के लिए हमारी ऑनलाइन पंडित सेवा द्वारा अपना पंडित बुक करवा सकते हो, इसके अतिरिक्त आप रामकथा पाठ, सुन्दरकांड पाठ, ग्रहप्रवेश, आदि धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन हेतु भी अपना पंडित ऑनलाइन बुक कर सकते है |  MantraKavach.com द्वारा श्रीमद् भागवत महापुराण पूजन सामग्री हेतु दी गयी जानकारी आपके कथा – पूजन में उपयोगी साबित होगी, ऐसी हम कामना करते है | || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित || Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

Q.भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं?
A.भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। वे योगेश्वर हैं, अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश देने के माध्यम से मानवता के लिए ज्ञान का संदेश देते हैं। उनकी बाललीलाएं और गोपियों के संग वास उनके भक्तों के लिए प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। उनकी लीलाएं, मक्के की छोड़ी और वृंदावन में किए गए आनंदमय खेल उनके भक्तों को परम आनंद का अनुभव कराते हैं।

Q.श्रीमद् भागवत पुराण में कितने अध्याय हैं और उनका संक्षेपिक सारांश क्या है?
A.श्रीमद् भागवत पुराण में कुल 12 स्कंध (अध्याय) हैं। यहां उनका संक्षेपिक सारांश दिया जा रहा है:
प्रथम स्कंध: भगवान के अवतारों की कथाएं, सृष्टि का वर्णन
द्वितीय स्कंध: कृष्ण की बाललीलाएं, गोपियों का प्रेम
तृतीय स्कंध: ब्रह्माजी के प्रश्नों का उत्तर, उद्धव गीता
चतुर्थ स्कंध: पृथु राजा का उद्धव से संवाद
पांचवा स्कंध: प्रह्लाद कथा, हिरण्यकशिपु के वध का वर्णन
छठा स्कंध: गजेंद्र मोक्ष, भगवान के महिमा गान का वर्णन
सातवा स्कंध: प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु के संवाद
आठवा स्कंध: गोपीयों का प्रेम, रासलीला का वर्णन
नवम स्कंध: कृष्ण के बचपन का वर्णन, वासुदेव और देवकी के जीवन की कथा
दशम स्कंध: कृष्ण और बालराम के युद्ध, भगवान के जीवन की कथा
एकादश स्कंध: कृष्ण के वृंदावन के विहार, गोपियों का प्रेम
द्वादश स्कंध: भगवान के वनवास, शुकदेव जी का प्रवचन
त्रयोदश स्कंध: भगवान का प्रयोग, प्रबुद्ध जीवों का उद्धार || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

Q.श्रीमद् भागवत पुराण में वर्णित भक्ति और धर्म के सिद्धांत क्या हैं?
A.श्रीमद् भागवत पुराण में भक्ति और धर्म के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन है। इस पुराण में बताया जाता है कि श्रीकृष्ण भगवान को भक्ति और प्रेम की प्राथमिकता देनी चाहिए। धर्म के सिद्धांतों में नैतिकता, सच्चाई, अहिंसा, सेवा, ध्यान, स्वाध्याय, तपस्या, वैराग्य, समर्पण आदि को महत्व दिया जाता है। इसके अलावा, पुराण में ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, कर्म और मोक्ष के मार्ग पर विचार किया जाता है।

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श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
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श्रीमद्भागवत पूजन विधि-

वक्ता प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि करके संक्षेप से सन्ध्या-वन्दनादि का नियम पूरा कर ले
और कथा में कोई विघ्न न आये, इसके लिये नित्यप्रति गणेशजी का पूजन कर लिया करें ।
सप्ताह के प्रथम दिन यजमान स्नान आदि से शुद्ध हो नित्यकर्म करके आभ्युदयिक श्राद्ध करे ।
आभ्युदयिक श्राद्ध और पहले भी किया जा सकता है ।

यज्ञ में इक्कीस दिन पहले भी आभ्युदयिक श्राद्ध करने का विधान है ।

उसके बाद गणेश, ब्रह्मा आदि देवताओं सहित नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त चिरजीवी (अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य तथा परशुरामजी) Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

एवं कलश की स्थापना तथा पूजा करे । एक चौकी पर सर्वतोभद्र-मण्डल बनाकर उसके मध्यभाग में ताम्रकलश स्थापित करे । कलश के ऊपर भगवान् लक्ष्मी-नारायण की स्वर्णमयी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

कलश के ही बगल में भगवान् शालिग्राम का सिंहासन विराजमान कर देना चाहिये ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

सर्वतोभद्र-मण्डल में स्थित समस्त देवताओं का पूजन करने के पश्चात् भगवान् नरनारायण, गुरु, वायु, सरस्वती, शेष, सनकादि कुमार, सांख्यायन, पराशर, बृहस्पति, मैत्रेय तथा उद्धव का भी आवाहन, स्थापन एवं पूजन करना चाहिये ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

फिर त्रय्यारुणि आदि छः पौराणिक का भी स्थापन-पूजन करके एक अलग पीठ पर उसे सुन्दर वस्त्र से आवृत करके, श्रीनारदजी की स्थापना एवं अर्चना करनी चाहिये । तदनन्तर आधारपीठ, पुस्तक एवं व्यास (वक्ता आचार्य) का भी यथाप्राप्त उपचारों से पूजन करना चाहिये ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

कथा निर्विघ्न पूर्ण हो इसके लिये गणेश-मन्त्र, द्वादशाक्षर-मन्त्र तथा गायत्री मन्त्र का जप और विष्णुसहस्रनाम एवं गीता का पाठ करने के लिये अपनी शक्ति के अनुसार सात, पाँच या तीन ब्राह्मणों का वरण करे ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्रीमद्भागवत का भी एक पाठ अलग ब्राह्मण द्वारा कराये ।

कथामण्डप में चारों दिशाओं या कोणों में एक-एक कलश और मध्यभाग में एक कलश—इस प्रकार पाँच कलश स्थापित करने चाहिये ।

चारों ओर के चार कलशों में से पूर्व के कलश पर ऋग्वेद की, दक्षिण कलश पर यजुर्वेद की, पश्चिम कलश पर सामवेद की और उत्तर कलश पर अथर्ववेद की स्थापना एवं पूजा करनी चाहिये ।

कोई-कोई मध्य में सर्वतोभद्र-मण्डल के मध्यभाग में एक ही ताम्र-कलश स्थापित करके उसी के चारों दिशाओं में सर्वतोभद्र-मण्डल की चौकी के चारों ओर चारों वेदों को स्थापना का विधान करते हैं । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

इसी कलश के ऊपर भगवान् लक्ष्मी-नारायण की सुवर्णमयी प्रतिमा स्थापित करे और षोडशोपचार-विधि से उसकी पूजा करे ।

देवपूजा का क्रम प्रारम्भ से इस प्रकार रखना चाहिये —

|| श्रीमद्भागवत पूजन विधि ||

पहले रक्षादीप प्रज्वलित करे । एक पात्र में घी भरकर रूई की फूलबत्ती जलाये और उसे सुरक्षित स्थान पर अक्षत के ऊपर स्थापित कर दे । वह वायु आदि के झोंके से बुझ न जाय, इसकी सावधानी के साथ व्यवस्था करे । पहले भगवत्सम्बन्धी स्तोत्रों एवं पदों के द्वारा मङ्गलाचरण और वन्दना करे। इसके बाद आचमन और प्राणायाम करें।

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।

स्थिररैरङ्गैस्तुष्टुवा ঌ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।।

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इत्यादि मन्त्रों से शान्तिपाठ करे। देवताओं की स्थापना और पूजा के पहले स्वस्तिवाचन पूर्वक हाथ में पवित्री, अक्षत, फूल, जल और द्रव्य लेकर एक महासङ्कल्प कर लेना चाहिये । सङ्कल्प इस प्रकार है —

ॐ तत्सद्य श्रीमहाभगवतो विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते विष्णुप्रजापतिक्षेत्रे वैवस्वतमनुभोग्यैकसप्ततियुगचतुष्टयान्तगताष्टाविंशतितमकलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे अमुकसंवत्सरे अमुकायने अमुककर्तौ अमुकराशिस्थिते भगवति सवितरि अमुकामुकराशिस्थितेषु चान्येषु ग्रहेषु महामाङ्गल्यप्रदे मासानामुत्तमे अमुकमासे अमुकपक्ष अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकमुहूर्तकरणादियुतायाम् अमुकतिथौ अमुकगोत्रेः अमुकप्रवरः अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्तः) अहं पूर्वातीतानेकजन्मसंचिताखिलदुष्कृतनिवृत्तिपुरस्सरैहिकाध्यात्मिकादिविविधतापपापापनोदार्थं दशाश्वमेधयज्ञजन्यसम्यगिष्टराजसूययज्ञसहस्रपुण्यसमपुण्यचन्द्रसूर्यग्रहणकालिकबहुब्राह्मणसम्प्रदानकसर्वसस्यपूर्णसर्वरत्नोपशोभितमहींदानपुण्यप्राप्तये श्रीगोविन्दचरणारविन्दयुगले निरन्तरमुत्तरोत्तरमेधमाननिस्सीमप्रेमोपलब्धये तदीयपरमानन्दमयोलोकधाम्नि नित्यनिवासपुर्वकतत्परिचर्यारसास्वादनसौभाग्यसिद्धये च अमुकगोत्रामुकप्रवरामुकशर्मब्राह्मणवदनारविन्दाच्छ्रीकृष्णवाङ्मयमूर्तीभूतं श्रीमद्भागवतमष्टादशपुराणप्रकृतिभूतमनेक श्रोतृश्रवणपूर्वकममुकदिनादारभ्यामुकदिनपर्यन्तं सप्ताह यज्ञरूपतया श्रोष्यामि प्राप्स्यमानेऽस्मिन् सप्ताहयज्ञे विघ्नपूगनिवारणपूर्वकं यज्ञरक्षाकरणार्थं गणपतिब्रह्मादिसहितनवग्रहषोडशमातृकासप्तचिरजीविपुरुषसर्वतोभद्रमण्डलस्थदेवकलशाद्यर्चनपुरस्सरं श्रीलक्ष्मीनारायणप्रतिमाशालग्रामनरनारायणगुरुवायुसरस्वतीशेषसनत्कुमारसांख्यायनपराशरबृहस्पतिमैत्रेयोद्धवत्रय्यारुणिकश्यपरामशिष्याकृतव्रणवैशम्पायनहारीतनारदपूजनमाधारपीठपुस्तकव्यासपूजनं च यथालब्धोपचारैः करिष्ये ।

सङ्कल्प के पश्चात् पूर्वोक्त देवताओं के चित्रपट में अथवा अक्षत-पुंज पर उनका आवाहन-स्थापन करके वैदिक-पूजा-पद्धति (सनातन)के अनुसार उन सबकी पूजा करनी चाहिये । सप्तचिरजीवि पुरुषों तथा सनत्कुमार आदि का पूजन नाम-मन्त्र द्वारा करना चाहिये । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

उसके बाद एक पात्र में चावल भरकर उस पर मौली में लपेटी हुई एक हल्दी- सुपारी रख दे और उसमें गौरी-गणेशजी का आवाहन करे —

ॐ भूर्भुवः स्वः गौरी-गणपते इहागच्छ इह तिष्ठ मम पूजां गृहाण ।’

इस प्रकार आवाहन करके ‘गणानां त्वा०’ इत्यादि मन्त्रों को पढ़े ।

फिर ‘गजाननं भूत०’ इत्यादि श्लोकों को पढ़ते हुए तद्नुरूप ध्यान करे ।

‘ॐ मनो जूतिः०’ इत्यादि मन्त्र से प्रतिष्ठा करके विभिन्न उपचार-समर्पण सम्बन्धी मन्त्र पढ़ते हुए अथवा

‘श्रीगौर्यै नमः’, ‘श्रीगणपतये नमः’ इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए गौरी-गणेशजी को क्रमशः पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीय, पञ्चामृत-स्नान, शुद्धोदकस्नान, वस्त्र, रक्षासूत्र, यज्ञोपवीत, चन्दन, रोली, सिन्दूर, अबीर-गुलाल, अक्षत, फूल, माला, दूर्वादल, आभूषण, सुगन्ध (इत्र का फाहा), धूप, दीप, नैवेद्य (मिष्टान्न एवं गुड़, मेवा आदि) तथा ऋतुफल अर्पण करे ।

गङ्गाजल से आचमन कराकर मुखशुद्धि के लिये सुपारी, लवंग, इलायची और कपूर सहित ताम्बूल अर्पण करे ।

अन्त में दक्षिणा-द्रव्य एवं विशेषार्घ्य, प्रदक्षिणा एवं साष्टाङ्ग प्रणाम निवेदन करके प्रार्थना करे —

ॐ लम्बोदरं परमसुन्दरमेकदन्तं रक्ताम्बरं त्रिनयनं परमं पवित्रम् ।

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
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उद्यद्दिवाकरकरोज्ज्वलकायकान्तं विघ्नेश्वरं सकलविघ्नहरं नमामि ।।

त्वां देव विघ्नदलनेति च सुन्दरेति भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति ।

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव ।।

— ‘अनया पूजया गौरी-गणपतिः प्रीयतां न मम ।’

यों कहकर गौरी-गणेशजी को पुष्पाञ्जलि दे ।

इसके बाद

‘ॐ भूर्भुवः स्वः भो ब्रह्मविष्णुशिवसहितसूर्यादिनवग्रहा इहागच्छतेह तिष्ठत मम पूजां गृह्णीत’

इस प्रकार या वैदिक मन्त्रों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मादिसहित नवग्रहों का आवाहन करे ।

फिर पूर्ववत् उपचार मन्त्रों से अथवा

ॐ ब्रह्मणे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्रमसे नमः, ॐ भौमाय नमः,

ॐ बुधाय नमः, ॐ बृहस्पतये नमः, ॐ भार्गवाय नमः, ॐ शनैश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ केतवे नमः

— इन नाम-मन्त्रों से पाद्य, अर्घ्य आदि सब उपचार समर्पण करके निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़कर प्रार्थना करे —

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ।।

— ‘अनया पूजया ब्रह्मविष्णुशिवसहितसूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां न मम ।’

यों कहकर पुष्पाञ्जलि चढ़ाये ।

तत्पश्चात्

‘ॐ भूर्भुवः स्वः भो गौर्यादिषोडशमातर इहागच्छत मम पूजां गृह्णीत’

इस प्रकार आवाहन करके नाम-मन्त्रों द्वारा पाद्य-अर्घ्य आदि षोडशोपचार सहित षोडशमातृका का पूजन करे।

तदनन्तर सप्तचिरजीवियों का पूजन करें-

‘भो अश्वत्थामादिसप्तचिरजीविन इहागत्य मम पूजां गृह्णीत’

इस प्रकार आवाहन करके पूर्ववत् नाममन्त्र से पूजा करे —

१ ॐ अश्वत्थाम्ने नमः । २ ॐ बलये नमः । ३ ॐ व्यासाय नमः । ४ ॐ हनुमते नमः ।

५ ॐ विभीषणाय नमः । ६ ॐ कृपाय नमः । ७ ॐ परशुरामाय नमः ।

पूजा के पश्चात् हाथ में फूल लेकर निम्नाङ्कित रूप से प्रार्थना करे —

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः ।

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ।।

यजमानगृहे नित्यं सुखदाः सिद्धिदाः सदा ।।

— ‘अनया पूजया अश्वत्थामादिसप्तचिरजीविनः प्रीयन्तां न मम ।’

यह कहकर फूल चढ़ा दे । इसके अनन्तर सर्वतोभद्र-मण्डलस्थ देवताओं का आवाहन-पूजन (देवपूजापद्धतियों के अनुसार) करके मध्य में ताम्र-कलश स्थापित करे । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

फिर उस कलश के

पूर्व भाग में ‘ॐ अग्निमीळे०’ इत्यादि मन्त्र से ऋग्वेद का,

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित, Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

दक्षिण भाग में ‘ॐ इषे त्वोर्जत्वा०’ इत्यादि मन्त्र से यजुर्वेद का,

पश्चिम भाग में ‘ॐ अग्न आयाहि वीतये०‘ इत्यादि मन्त्र से सामवेद का

तथा ‘ॐ शन्नो देवी०’ इत्यादि मन्त्र से उत्तर भाग में अथर्ववेद का स्थापन करे ।

पाँच कलश हो तो पृथक्-पृथक् कलशों पर वेदों की स्थापना करनी चाहिये ।

इसके अनन्तर कलश में ‘ॐ गणानां त्वा०’ इत्यादि से गणेश का तथा ‘ॐ तत्त्वायामि०’ इत्यादि मन्त्र से वरुणदेवता का आवाहन करके इनका षोडशोपचार से पूजन करे । पूजन के पश्चात् ‘अनया पूजया वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्ताम्’ कहकर फूल छोड़ दे । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

तदनन्तर कलश के ऊपर सुवर्णमयी लक्ष्मीनारायणप्रतिमा का संस्कार करके स्थापित करे । पुरुषसूक्त के षोड्श मन्त्रों से षोडश-उपचार चढ़ाकर पूजन करे । साथ ही शालिग्रामजी की भी पूजा करे । पूजा के पश्चात् इस प्रकार भगवान् से प्रार्थना करे —

ब्रह्मसूत्रं करिष्यामि तवानुग्रहतो विभो ।

तन्निर्विघ्नं भवेद्देव रमानाथ क्षमस्व मे ।।

— ‘अनया पूजया लक्ष्मीसहितो भगवान्नारायणः प्रीयतां न मम ।’

यों कहकर पुष्पाञ्जलि चढ़ाये ।

ऐसा ही सर्वत्र करे इसके बाद

‘ॐ नरनारायणाभ्यां नमः’ इस मन्त्र से भगवान् नर-नारायण का आवाहन और पूजन करके इस प्रकार प्रार्थना करे —

यो मायया विरचितं निजमात्मनीदं खे रूपभेदमिव तत्प्रतिचक्षणाय ।

एतेन धर्मसदने ऋषिमूर्तिनाद्य प्रादुश्चकार पुरुषाय नमः परस्मै ।।

सोऽयं स्थितिव्यतिकरोपशमाय सृष्टान् सत्त्वेन नः सुरगणाननुमेयतत्त्वः ।

दृश्याददभ्रकरुणेन विलोकनेन यच्छ्रीनिकेतममलं क्षिपतारविन्दम् ।।

— ‘अनया पूजया भगवन्तौ नरनारायणौ प्रीयेतां न मम ।’

तत्पश्चात् वक्ता और श्रोताओं के सब विकारों को दूर करने के लिये वायुदेवता का आवाहन एवं पूजन करे —

‘ॐ वायवे सर्वकल्याणकत्रे नमः।’ इस मन्त्र से पाद्य आदि निवेदन करके निम्नाङ्कित रूप से प्रार्थना करे —

अन्तः प्रविश्य भूतानि यो विभर्त्यात्मकेतुभिः ।

अन्तर्यामीश्वरः साक्षात् पातु नो यद्वशे स्फुटम् ।।

— ‘अनया पूजया सर्वकल्याणकर्ता वायुः प्रीयतां न मम ।’

वायु की पूजा के पश्चात् गुरु का ‘ॐ गुरवे नमः ।

इस मन्त्र से पूजन करके प्रार्थना करे —

ब्रह्मस्थानसरोजमध्यविलसच्छीतांशुपीठस्थितं

स्फूर्जत्सूर्यरुचिं वराभयकरं कर्पूरकुन्दोज्ज्वलम् ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्वेतस्रग्वसनानुलेपनयुतं विद्युद्रुचा कान्तया

संश्लिष्टार्धतनुं प्रसन्नवदनं वन्दे गुरुं सादरम् ।।

— ‘अनया पूजया गुरुदेवः प्रीयतां न मम ।’

तदनन्तर श्वेतपुष्प आदि से ‘सरस्वत्यै नमः ।’ इस मन्त्र द्वारा सरस्वती का पूर्ववत् पूजन करके प्रार्थना करे —

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।

— ‘अनया पूजया भगवती सरस्वती प्रीयतां न मम ।’

सरस्वतीपूजन के पश्चात्

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‘ॐ शेषाय नमः’, ‘ॐ सनत्कुमाराय नमः’, ‘ॐ सांख्यायनाय नमः, ॐ पराशराय नम:’, Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

‘ॐ बृहस्पतये नमः’ ‘ॐ मैत्रेयाय नमः,’ ‘ॐ उद्धवाय नम:’

—इन मन्त्रों से शेष आदि की पूजा करके प्रार्थना करे —

शेषः सनत्कुमारश्च सारख्यायनपराशरौ ।

बृहस्पतिश्च मैत्रेय उद्धवश्चात्र कर्मणि ।।

प्रत्यूहवृन्दं सततं हरन्तां पूजिता मया ।

— ‘अनया पूजया शेषसनत्कुमारसांख्यायनपराशरबृहस्पतिमैत्रेयोद्धवाः प्रीयन्तां न मम ।’

इसके बाद

‘ॐ त्रय्यारुणये नमः’, ‘ॐ कश्यपाय नमः,’ ‘ॐ रामशिष्याय नमः,

ॐ अकृतव्रणाय नमः, ‘ॐ वैशम्पायनाय नमः’, ‘ॐ हारीताय नमः

— इन मन्त्रों से त्रय्यारुणि आदि छ: पौराणिक की पूर्ववत् पूजा करके प्रार्थना करे—

त्रय्यारुणिः कश्यपश्च रामशिष्योऽकृतव्रणः ।

वैशम्पायनहारीतौ षड् वै पौराणिका इमे ।।

सुखदाः सन्तु मे नित्यमनया पूजयार्चिताः ।

— ‘अनया पूजया त्रय्यारुणिप्रभृतयः षट् पौराणिकाः प्रीयन्तां न मम ।’

तत्पश्चात्

‘ॐ भगवते व्यासाय नम:’

इस मन्त्र से भगवान् व्यासदेव की स्थापना और पूजा करके इस प्रकार प्रार्थना करे —

नमस्तस्मै भगवते व्यासायामिततेजसे ।

पपुर्ज्ञानमयं सौम्या यन्मुखाम्बुरुहासवम् ।।

— अनया पूजया भगवान् व्यासः प्रीयतां न मम ।’

इसके बाद सप्ताहयज्ञ के उपदेशक भगवान् सूर्य की स्थापना करके प्रतिदिन उनकी भी पूजा करे।

उनकी पूजा का मन्त्र ‘ॐ सूर्याय नमः’ हैं ।

पूजन के पश्चात् इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये —

लोकेश त्वं जगच्चक्षुः सत्कर्म तव भाषितम् ।

करोमि तच्च निर्विघ्नं पूर्णमस्तु त्वदर्चनात् ।।

— ‘अनया पूजया सप्ताहयज्ञोपदेष्टा भगवान् सूर्यः प्रीवतां न मम ।’ Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

इसके बाद दशावतारों की तथा शुकदेवजी की भी यथास्थान स्थापना करके पूजा करनी चाहिये । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

तदनन्तर नारदपीठ और पुस्तकपीठ दोनों की एक ही साथ पूजा करे ।

पहले उन दोनों पीठों का जल से अभिषेक करके उन पर चन्दनादि से अष्टदल कमल बनावे ।

फिर

‘ॐ आधारशक्तये नमः’, ‘ॐ मूलप्रकृतये नमः’, ‘ॐ क्षीरसमुद्राय नमः’, ‘ॐ श्वेतद्वीपाय नमः,

ॐ कल्पवृक्षाय नमः, ॐ रत्नमण्डपाय नमः, ॐ रत्नसिंहासनाय नमः’

— इन मन्त्रों से दोनों पीठों में आधारशक्ति आदि की भावना करके पूजा करे ।

फिर चारों दिशाओं में पूर्वादि के क्रम से

‘ॐ धर्माय नमः’, ‘ॐ ज्ञानाय नमः’, ‘ॐ वैराग्याय नमः’, ‘ॐ ऐश्वर्याय नमः’

— इन मन्त्रों द्वारा धर्मादि की भावना एवं पूजा करे ।

फिर पीठों के मध्यभाग में

‘ॐ अनन्ताय नमः’ से अनन्त की और ‘ॐ महापद्माय नम:’ से महापद्म की पूजा करे ।

फिर यह चिन्तन करे —

उस महापद्म का कन्द (मूलभाग) आनन्दमय है । उसकी नाल संवित्स्वरूप है, उसके दल प्रकृतिमय हैं, उसके केसर विकृतिरूप हैं, उसके बीज पञ्चाशत् वर्णस्वरूप हैं और उन्हीं से उस महापद्म की कर्णिका (गद्दी) विभूषित है । उस कर्णिका मे अर्कमण्डल, सोममण्डल और वह्निमण्डल की स्थिति है । वहीं प्रबोधात्मक सत्व, रज एवं तम भी विराजमान हैं । ऐसी भावना के पश्चात् उन सबकी पञ्चोपचार पूजा करे । मन्त्र इस प्रकार हैं —

‘ॐ आनन्दमयकन्दाय नमः, ॐ संविन्नालाय नमः’, ‘ॐ प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः,

ॐ विकृतिमयकेसरेभ्यो नमः, ॐ पञ्चाशद्वर्णबीजभूषितायै कर्णिकायै नमः’,

‘ॐ अं अर्कमण्डलाय नमः, ॐ सं सोममण्डलाय नमः, ॐ वं वह्निमण्डलाय नमः’,

‘ॐ सं प्रबोधात्मने सत्त्वाय नमः’, ‘ॐ रं रजसे नमः’, ‘ॐ तं तमसे नमः’ ।

इन सबकी पूजा के पश्चात् कमल के सब ओर पूर्वाद आठों दिशाओं में क्रमशः —

‘ॐ विमलायै नमः, ॐ उत्कर्षिण्यै नमः’, ‘ॐ ज्ञानायै नमः’, ‘ॐ क्रियायै नमः’,

‘ॐ योगायै नमः’, ‘ॐ प्रह्लयै नमः’, ‘ॐ सत्यायै नमः’, ‘ॐ ईशानाये नमः’

— इन मन्त्रों द्वारा विमला आदि आठ शक्तियों की पूजा करे और कमल के मध्यभाग में —

‘ॐ अनुग्रहायै नमः’ से अनुग्रह नाम की शक्ति की पूजा करे । Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

तदनन्तर

“ॐ नमो भगवते विष्णवे सर्वभूतात्मने वासुदेवाय ।

पद्मपीठात्मने नमः’

इस मन्त्र से सम्पूर्ण पद्मपीठ का पुजन करके उस पर सुन्दर वस्त्र डाल दे और उसके ऊपर स्थापित करने के लिये श्रीमद्भागवत की पुस्तक को हाथ में लेकर

‘ॐ ध्रुवा द्योर्ध्रुवा पृथिवी ध्रुवा सा पर्वता इमे ।

ध्रुवं विश्वमिदं जगद् ध्रुवो राजा विशामसि ।।’

इस मन्त्र को पढ़ते हुए उक्त पीठ पर स्थापित करें दें । फिर

‘ॐ मनो जूतिः० ‘ इस मन्त्र से पुस्तक की प्रतिष्ठा करके पुरुषसूक्त के षोडश मन्त्रों द्वारा षोडशोपचार-विधि से पूजा करे।

तदस्तु मित्रावरुणा तदग्ने शंय्योस्मभ्यमिदमस्तु शस्तम् ।

अशीमहि गाधमुत प्रतिष्ठां नमो दिवे बृहते सादनाय ॥

— यह मन्त्र पढ़कर श्रीमद्भागवत की सिंहासन या अन्य किसी आसन पर स्थापना करे । तत्पश्चात् पुरुषसूक्त के एक-एक मन्त्र द्वारा क्रमशः षोडश उपचार अर्पण करते हुए पूजन करे ।
श्रीमद्भागवत पूजन विधि

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श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित, Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

॥ पूजन-मन्त्र ॥

आवाहन- सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात् ।

स भूमिं सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद् दशाङ्गुलम् ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । आवाहयामि ।

— इस मन्त्र से भगवान् के नामस्वरूप भागवत को नमस्कार करके आवाहन करे ।

आसन- ॐ पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम् ।

उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । आसनं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से आसन समर्पित करे ।

पाद्य-ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।

पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । पाद्यं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से पैर पखारने के लिये गंगाजल समर्पित करे ।

अर्घ्य- ॐ त्रिपादूर्ध्व उदैत् पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः ।

ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । अर्घ्यं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से अर्घ्य (गन्ध पुष्पादिसहित गंगाजल) निवेदित करे ।

आचमन- ॐ ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः ।

स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । आचमनं समर्पयामि ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

— इस मन्त्र से आचमन के लिये गंगाजल अर्पित करे ।

स्नान- ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम् ।

पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान् ग्राम्याश्च ये ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । स्नानं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से स्नान के लिये गंगाजल अथवा शुद्ध जल अर्पित करे ।

वस्त्र- ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।

छन्दांस जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तमादजायत ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । वस्त्रं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से वस्त्र समर्पित करे ।

यज्ञोपवीत- ॐ तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।

गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से यज्ञोपवीत अर्पित करे ।

गन्ध-चन्दन- ॐ तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । गन्धं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से गन्ध-चन्दनादि चढ़ाये ।

तुलसीदल- पुष्प- ॐ यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।

मुख़ं किमस्यासीत् किम्बाहू किमूरू पादा उच्येते ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः ।

तुलसीदलं च पुष्पाणि समर्पयामि ।

—इस मन्त्र से तुलसीदल एवं पुष्प चढ़ावे ।

धूप- ॐ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।

ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिये भागवताय नमः । धूपमाघ्रापयामि ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

— इस मन्त्र से धूप सुँघाये ।

दीप- ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।

श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । दीपं दर्शयामि ।

इस मन्त्र से घी का दीप जलाकर दिखाये । (उसके बाद हाथ धो लें।)

नैवेद्य- ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष ঌ शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।

पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । नैवेद्य निवेदयामि ।

— इस मन्त्र से नैवेद्य अर्पित करे ।

नैवेद्य के बाद

“मध्ये पानीयं समर्पयामि” एवम् ‘उत्तरापोशनं समर्पयामि’

कहकर तीन-तीन बार जल छोड़े (प्रसाद) ।

ताम्बूल- ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः ।

एलालवङ्गपूगीफलकर्पूरसहितं ताम्बूलं समर्पयामि । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

— इस मन्त्र से ताम्बूल समर्पण करे ।

दक्षिणा- ॐ सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिःसप्त समिधः कृताः ।

देवा यद्-यज्ञं तन्वाना अवध्नन् पुरुषं पशुम् ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । दक्षिणां समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से दक्षिणा समर्पित करे ।

नमस्कार – ॐ वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्णं तमसस्तु पारे ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

सर्वाणि भूतानि विचिन्त्य धीरः नामानि कृत्वाभिवदन् यदास्ते ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । नमस्कार समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से नमस्कार करे ।

प्रदक्षिणा- ॐ धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार शक्रः प्रविद्वान् प्ररिशश्चतस्त्रः । Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

तमेवं विद्वानमृत इह भवति नान्यः पन्था अयनाय विद्यते ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से प्रदक्षिणा समर्पण करे ।

पुष्पाञ्जलि- ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

श्रीभगवन्नामस्वरूपिणे भागवताय नमः । मन्त्रपुष्पं समर्पयामि ।

— इस मन्त्र से पुष्पांजलि समर्पित करे ।

प्रार्थना- वन्दे श्रीकृष्णदेवं मुरनरकभिदं वेदवेदान्तवेद्यं

लोके भक्तिप्रसिद्धं यदुकुलजलधौ प्रादुरासीदपारे।

यस्यासीद् रूपमेवं त्रिभुवनतरणे भक्तिवच्च स्वतन्त्रं शास्त्रं रूपं च

लोके प्रकटयति मुदा यः स नो भूतिहेतुः।।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

श्रीभागवतरूपं तत् पूजयेद् भक्तिपूर्वकम् ।

अर्चकायाखिलान् कामान् प्रयच्छति न संशयः।।

तत्पश्चात् द्वितीय पीठ को श्वेत वस्त्र से आच्छादित करके उस पर देवर्षि नारद को स्थापित करे और

‘ॐ सुरर्षिवरनारदाय नमः’ इस मन्त्र से उनकी विधिवत् पूजा करके निम्नाङ्कित रूप से प्रार्थना करे —

ॐ नमस्तुभ्यं भगवते ज्ञानवैराग्यशालिने ।

नारदाय सर्वलोकपूजिताय सुरर्षये ।।

— ‘अनया पूजया देवर्षिनारदः प्रीयतां न मम ।’

इस प्रकार पूजन के पश्चात् यजमान पुष्प, चन्दन, ताम्बूल, वस्त्र, दक्षिणा, सुपारी तथा रक्षासूत्र हाथ में लेकर

‘ॐ अद्यामुकगोत्रममुकप्रवरममुकशर्माणं ब्राह्मणमेभिर्वरणद्रव्यैः सर्वेष्टदश्रीमद्भागवतवक्तृत्वेन भवन्तमहं वृणे

— इस प्रकार कहते हुए कथावाचक आचार्य का वरण करे । हाथ में ली हुई सब सामग्री उनको दे दे । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

वह सब लेकर कथावाचक व्यास ‘वृतोऽस्मि’ यों कहें ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

इसके बाद पुनः उन्हीं सब सामग्रियों को हाथ में लेकर जप और पाठ करनेवाले ब्राह्मणों का वरण करे ।

इसके लिये सङ्कल्प-वाक्य इस प्रकार हैं —

‘अद्याहममुकगोत्रानमुकप्रवरानमुकशर्मणो यथासंख्याकान् ब्राह्मणानेभिर्वरणद्रव्यैर्गाथाविघ्नापनोदार्थं गणेशगायत्रीवासुदेवमन्त्रजपकर्तृत्वेन गीताविष्णुसहस्रनामपाठकर्तृत्वेन च वो विभज्य वृणे ।’

इस प्रकार सङ्कल्प करके प्रत्येक ब्राह्मण को वरण-सामग्री अर्पित करे ।

सामग्री लेकर वे ब्राह्मण कहें ‘वृताः स्मः’।

इसके बाद पहले कथावाचक आचार्य हाथ में दिये हुए रक्षासूत्र को लेकर उन्हीं के हाथ में बाँध दे ।

उस समय आचार्य निम्नाङ्कित मन्त्र का पाठ करें —

‘व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।

दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यसाप्यते ।।’

रक्षा बाँधने के अनन्तर यजमान उनके ललाट में कुङ्कम (रोली) और अक्षत से तिलक करे ।

इसी प्रकार जपकर्ता ब्राह्मणों के हाथों में भी रक्षा बाँधकर तिलक करे । तदनन्तर पीले अक्षत लेकर यजमान चारों दिशाओं में रक्षा के लिये बिखेरे । उस समय निम्नाङ्कित मन्त्रों का पाठ भी करे —

पूर्वे नारायणः पातु वारिजाक्षश्च दक्षिणे ।

पश्चिमे पातु गोविन्द उत्तरे मधुसूदनः ।।

ऐशान्यां वामनः पातु चाग्नेय्यां च जर्नादनः ।

नैर्ऋत्यां पद्मनाभश्च वायव्यां माधवस्तथा ।।

ऊर्ध्वं गोवर्धनधरो ह्यधस्ताच्च त्रिविक्रमः ।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं तत्सर्व रक्षतां हरिः ।।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

इसके बाद वक्ता आचार्य यजमान के हाथ में —

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।

तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

इस मन्त्र को पढ़कर रक्षा बाँधे और —

आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः ।

तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये ।। —

इस मन्त्र से उसके ललाट मे तिलक कर दे । फिर यजमान व्यासासन को चन्दन-पुष्य आदि से पूजा करे । पूजन का मन्त्र इस प्रकार है —

’ॐ व्यासासनाय नमः।’

तदनन्तर कथावाचक आचार्य ब्राह्मणों और वृद्ध पुरुषों की आज्ञा लेकर विप्रवर्ग को नमस्कार और गुरुचरणों का ध्यान करके व्यासासन पर बैठे । मन-ही-मन गणेश और नारदादि का स्मरण एवं पूजन करें ।

इसके बाद यजमान

‘ॐ नमः पुराणपुरुषोत्तमाय’ इस मन्त्र से पुनः पुस्तक की गन्ध, पुष्प, तुलसीदल एवं दक्षिणा आदि के द्वारा पूजा करे । फिर गन्ध, पुष्प आदि से वक्ता का पूजन करते हुए निम्नाङ्कित श्लोक का पाठ करे —

जयति पराशरसूनुः सत्यवतीहृदयनन्दनो व्यासः ।

यस्यास्यकमलगलितं वाङ्यममृतं जगत्पिबति ।।

तत्पश्चात् नीचे लिखे हुए श्लोकों को पढ़कर प्रार्थना करे —

शुकरूप प्रबोधज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

एतत्कथाप्रकाशेन मदज्ञानं विनाशय ।।

संसारसागरे मग्नं दीनं मां करुणानिधे ।

कर्मग्राहगृहीताङ्गं मामुद्धर भवार्णवात् ।।

इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात् निम्नाङ्कित श्लोक पढ़कर श्रीमद्भागवत पर पुष्प, चन्दन और नारियल आदि चढ़ाये —

श्रीमद्भागवताख्योऽयं प्रत्यक्षः कृष्ण एव हि ।

स्वीकृतोऽसि मया नाथ मुक्त्यर्थं भवसागरे ।।

मनोरथो मदीयोऽयं सफलः सर्वथा त्वया ।

निर्विघ्नेनैव कर्तव्यो दासोऽहं तव केशव ।।

कथा-मण्डप में वायुरूपधारी आतिवाहिक शरीरवाले जीवविशेष के लिये एक सात गाँठ के बाँस को भी स्थापित कर देना चाहिये । तत्पश्चात् वक्ता भगवान् का स्मरण करके उस दिन श्रीमद्भागवतमाहात्म्य की कथा सब श्रोताओं को सुनाये ।

सन्ध्या को कथा की समाप्ति होनेपर भी नित्यप्रति पुस्तक तथा वक्ता की पूजा तथा आरती, प्रसाद एवं तुलसीदल का वितरण, भगवन्नामकीर्तन एवं शङ्खध्वनि करनी चाहिये । कथा के प्रारम्भ में और बीच-बीच में भी जब कथा का विराम हो तो समयानुसार भगवन्नामकीर्तन करना चाहिये । वक्ता को चाहिये कि प्रतिदिन पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व एक सौ आठ बार ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादशाक्षर-मन्त्र का अथवा ‘ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा’ इस गोपाल-मन्त्र का जप करे । इसके बाद निम्नाङ्कित वाक्य पढ़कर विनियोग करें —

विनियोग- दाहिने हाथ की अनामिका में कुश की पवित्री पहन ले। फिर हाथ में जल लेकर नीचे लिखे वाक्य को पढ़कर भूमि पर गिरा दे-

ॐ अस्य श्रीमद्भागवताख्यस्तोत्रमन्त्रस्य नारद ऋषिः। बृहती छन्दः। श्रीकृष्णः परमात्मा देवता। ब्रह्म बीजम्। भक्तिः शक्तिः। ज्ञानवैराग्ये कीलकम्। मम श्रीमद्भगवत्प्रसादसिद्धयर्थे पाठे विनियोगः।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

न्यास-विनियोग में आये हुए ऋषि आदि का तथा प्रधान देवता के मन्त्राक्षरों का अपने शरीर के विभिन्न अङ्गों में जो स्थापन किया जाता है, उसे ‘न्यास’ कहते हैं। मन्त्र का एक-एक अक्षर चिन्मय होता है, उसे मूर्तिमान देवता के रूप में देखना चाहिये। इन अक्षरों के स्थापन से साधक स्वयं मन्त्रमय हो जाता है, उसके हृदय में दिव्य चेतना का प्रकाश फैलता है, मन्त्र के देवता उसके स्वरूप होकर उसकी सर्वथा रक्षा करते हैं। ऋषि आदि का न्यास सिर आदि कतिपय अङ्गों में होता है मन्त्र पदों अथवा अक्षरों का न्यास प्रायः हाथ की अँगुलियों और हृदयादि अङ्गों में होता है। || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

इन्हें क्रमश: करन्यास’ और ‘अङ्गन्यास’ कहते हैं। किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों का न्यास सर्वाङ्ग में होता है। न्यास से बाहर-भीतर की शुद्धि, दिव्य बल की प्राप्ति और साधना की निर्विघ्र पूर्ति होती है। यहाँ क्रमशः ऋष्यादिन्यास, करन्यास और अङ्गन्यास दिये जा रहे हैं-

ऋष्यादिन्यासः—

नारदर्षये नमः शिरसि ।

बृहतीछन्दसे नमः मुखे ।

श्रीकृष्णपरमात्मदेवतायै नमः हृदि ।

ब्रह्मबीजाय नमः गुह्ये ।

भक्तिशक्तये नमः पादयोः ।

ज्ञानवैराग्यकीलकाभ्यां नम: नाभौ ।

श्रीमद्भगवत्प्रसादसिद्धयर्थकपाठविनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

करन्यास- इसमें ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादशाक्षर मन्त्र के एक-एक अक्षर प्रणव से सम्पुटित करके दोनों हाथों की अङ्गलियों में स्थापित करना है।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

करन्यासः—

ॐ क्लां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ क्लीं तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ क्लूं मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ क्लैं अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अङ्गन्यासः—

ॐ क्लां हृदयाय नमः ।

ॐ क्ली शिरसे स्वाहा ।

ॐ क्लूं शिखायै वषट् ।

ॐ क्लैं कवचाय हुम् ।

ॐ क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ क्लः अस्त्राय फट् ।

इसके बाद निम्नाङ्कित रूप से ध्यान करे —

कस्तूरीतिलक ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं

नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कङ्कणम् ।

सर्वाङ्ग हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावली

गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः ।।Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

अस्ति स्वस्तरुणीकराग्रविगलत्कल्पप्रसूनाप्लुतं

वस्तु प्रस्तुतवेणुनादलहरीनिर्वाणनिर्व्याकुलम् ।

स्रस्तस्रस्तनिबद्धनीविविलसद्गोपीसहस्रावृतं

हस्तन्यस्तनतापवर्गमखिलोदारं किशोराकृतिः ।।

इस प्रकार ध्यान के पश्चात् कथा प्रारम्भ करनी चाहिये । सूर्योदय से आरम्भ करके प्रतिदिन साढ़े तीन प्रहर तक कथा बाँचनी चाहिये । मध्याह्न में दो घड़ी कथा बंद रखनी चाहिये । प्रातःकाल से मध्याह्न तक मूल का पाठ होना चाहिये और मध्याह्न से सन्ध्या तक उसका संक्षिप्त भावार्थ अपनी भाषा में कहना चाहिये । मध्याह्न में विश्राम के समय तथा रात्रि के समय भगवन्नाम-कीर्तन की व्यवस्था होनी चाहिये ।

कथा-समाप्ति के दूसरे दिन वहाँ स्थापित हुए सम्पूर्ण देवताओं का पूजन करके हवन की वेदी पर पञ्चभूसंस्कार, अग्निस्थापन एवं कुशकण्डिका करे । फिर विधिपूर्वक वृत ब्राह्मणों द्वारा हवन, तर्पण एवं मार्जन कराकर श्रीमद्भागवत की शोभायात्रा निकाले और ब्राह्मण-भोजन कराये । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

मधुमिश्रित खीर और तिल आदि से भागवत के श्लोकों का दशांश (अर्थात् १८००) आहुति देनी चाहिये । खीर के अभाव में तिल, चावल, जौ, मेवा, शुद्ध घी और चीनी को मिलाकर हवनीय पदार्थ तैयार कर लेना चाहिये । इसमें सुगन्धित पदार्थ (कपूर-काचरी, नागरमोथा, छड़छड़ीला, अगर-तगर, चन्दनचूर्ण आदि) भी मिलाने चाहिये । || श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित ||

पूर्वोक्त अठारह सौ आहुति गायत्री मन्त्र अथवा दशमस्कन्ध के प्रति श्लोक से देनी चाहिये । हवन के अन्त में दिक्पाल आदि के लिये बलि, क्षेत्रपाल-पूजन, छायापात्रदान, हवन का दशांश तर्पण एवं तर्पण का दशांश मार्जन करना चाहिये । फिर आरती के पश्चात् किसी नदी, सरोवर या कूपादि पर जाकर अवभृथस्नान (यज्ञान्त-स्नान) भी करना चाहिये ।

श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित 
श्री मद भागवत सप्ताह विधि एवं पूजन सामग्री आरती सहित, Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

जो पूर्ण हवन करने में असमर्थ हो, वह यथाशक्ति हवनीय पदार्थ दान करें । अन्त में कम-से-कम बारह ब्राह्मणों को मधुयुक्त खीर का भोजन कराना चाहिये । व्रत की पूर्ति के लिये सुवर्ण-दान और गोदान करना चाहिये । सुवर्ण-सिंहासन पर विराजित सुन्दर अक्षरों में लिखित श्रीमद्भागवत की पूजा करके उसे दक्षिणासहित कथावाचक आचार्य को दान कर देना चाहिये । अन्त में सब प्रकार की त्रुटियों की पूर्ति के लिये विष्णुसहस्रनाम का पाठ कथावाचक आचार्य के द्वारा सुनना चाहिये । विरक्त श्रेताओं को ‘गीता’ सुननी चाहिये ।

|| श्रीमद्भागवतजी की आरती ||

॥ श्रीभागवत भगवान् की आरती ॥

श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती ।

ये अमर ग्रन्थ ये मुक्ति पन्थ,

ये पंचम वेद निराला,

नव ज्योति जलाने वाला ।

हरि नाम यही हरि धाम यही,

यही जग मंगल की आरती

पापियों को पाप से है तारती ॥

श्री भागवत भगवान की है आरती……

ये शान्ति गीत पावन पुनीत,

पापों को मिटाने वाला,

हरि दरश दिखाने वाला ।

यह सुख करनी, यह दुःख हरिनी,

श्री मधुसूदन की आरती,

पापियों को पाप से है तारती ॥

श्री भागवत भगवान की है आरती……

ये मधुर बोल, जग फन्द खोल,

सन्मार्ग दिखाने वाला,

बिगड़ी को बनानेवाला ।

श्री राम यही, घनश्याम यही,

यही प्रभु की महिमा की आरती

पापियों को पाप से है तारती ॥

श्री भागवत भगवान की है आरती…….

श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती ।

॥ श्रीमद्भागवत पुराण की आरती ॥Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

आरती अतिपावन पुराण की ।

धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥

महापुराण भागवत निर्मल ।

शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥

परमानन्द सुधा-रसमय कल ।

लीला-रति-रस रसनिधान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुराण की… ॥

कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि ।

जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥

सेवत सतत सकल सुखकारिणि ।

सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुराण की… ॥

विषय-विलास-विमोह विनाशिनि ।

विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥Shrimad Bhagwat Saptah Vidhi

भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि ।

परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुराण की… ॥

परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि ।

रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥

भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि ।

कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुराण की… ॥

॥ इति श्री भागवत पुराण आरती समाप्त ॥

॥इति श्री मद भागवत विधि समाप्त॥

 

॥श्री रामचरितमानस पूजन सामग्री॥

रोली 10 ग्राम
पीला सिंदूर 10 ग्राम
पीला अष्टगंध चंदन 10 ग्राम
लाल चन्दन 10 ग्राम
सफ़ेद चन्दन 10 ग्राम
लाल सिंदूर 10 ग्राम
हल्दी (पिसी) 50 ग्राम
हल्दी (समूची) 50 ग्राम
सुपाड़ी (समूची बड़ी) 100 ग्राम
लौंग 10 ग्राम
इलायची 10 ग्राम
सर्वौषधि 1 डिब्बी
सप्तमृत्तिका 1 डिब्बी
सप्तधान्य 100 ग्राम
पीली सरसों 50 ग्राम
नवग्रह चावल 1 पैकेट
जनेऊ 5 पीस
इत्र 1 शीशी
गरी का गोला (सूखा) 2 पीस
पानी वाला नारियल 1 पीस
जटादार सूखा नारियल 1 पीस
अक्षत (चावल) 1 किलो
धूपबत्ती 1 पैकेट
रुई की बत्ती (गोल / लंबी) 1-1 पैकेट
देशी घी 1 किलो
कपूर 20 ग्राम
कलावा 5 पीस
अबीर-गुलाल (लाल, पीला, हरा, गुलाबी) अलग- अलग 10-10 ग्राम
बुक्का (अभ्रक) 10 ग्राम
गंगाजल 1 शीशी
गुलाबजल 1 शीशी
चुनरी (लाल / पीली) 1/1 पीस
बताशा 500 ग्राम
लाल वस्त्र 1 मीटर
पीला वस्त्र 1 मीटर
झंडा हनुमान जी का 1 पीस
कुश (पवित्री) 4 पीस
लकड़ी की चौकी 1 पीस
दोना (छोटा – बड़ा) 1-1 पीस
मिट्टी का कलश (बड़ा) 1 पीस
मिट्टी का प्याला 8 पीस
मिट्टी की दियाली 8 पीस
हवन कुण्ड 1 पीस
माचिस 1 पीस
आम की लकड़ी 2 किलो
नवग्रह समिधा 1 पैकेट
हवन सामग्री 500 ग्राम
तिल 100 ग्राम
जौ 100 ग्राम
गुड़ 500 ग्राम
कमलगट्टा 100 ग्राम
गुग्गुल 100 ग्राम
धूप लकड़ी 100 ग्राम
सुगंध बाला 50 ग्राम
सुगंध कोकिला 50 ग्राम
नागरमोथा 50 ग्राम
जटामांसी 50 ग्राम
अगर-तगर 100 ग्राम
इंद्र जौ 50 ग्राम
बेलगुदा 100 ग्राम
सतावर 50 ग्राम
गुर्च 50 ग्राम
जावित्री 25 ग्राम
कस्तूरी 1 डिब्बी
केसर 1 डिब्बी
शहद 50 ग्राम
पंचमेवा 200 ग्राम
पंचरत्न व पंचधातु 1 डिब्बी
धोती (पीली/लाल) 1 पीस
अगोंछा (पीला/लाल) 1 पीस
सुहाग सामग्री – साड़ी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, आलता, नाक की कील, पायल, इत्यादि।

मिष्ठान 500 ग्राम
पान के पत्ते (समूचे) 21 पीस
केले के पत्ते 5 पीस
आम के पत्ते 2 डंठल
ऋतु फल 5 प्रकार के
दूब घास 50 ग्राम
फूल, हार (गुलाब) की 2 माला
फूल, हार (गेंदे) की 2 माला
गुलाब/गेंदा का खुला हुआ फूल 500 ग्राम
तुलसी का पौधा 1 पीस
तुलसी की पत्ती 5 पीस
दूध 1 लीटर
दही 1 किलो

राम दरबार की प्रतिमा 1 पीस
रामचरितमानस ग्रंथ 1 पीस
रेहल (ग्रन्थ को रखने हेतु) 1 पीस

आटा 100 ग्राम
चीनी 500 ग्राम
अखंड दीपक (ढक्कन समेत) 1 पीस
तांबे/पीतल का कलश (ढक्कन समेत) 1 पीस
थाली 2 पीस
लोटे 2 पीस
कटोरी 4 पीस
चम्मच 2 पीस
परात 2 पीस
कैंची /चाकू (लड़ी काटने हेतु) 1 पीस
हनुमंत ध्वजा हेतु बांस (छोटा/ बड़ा) 1 पीस
जल (पूजन हेतु)
गाय का गोबर
मिट्टी
बिछाने का आसन

चुनरी 1 पीस
अंगोछा 1 पीस
पूजा में रखने हेतु सिंदौरा 1 पीस

पंचामृत

धोती
कुर्ता
अंगोछा
पंच पात्र
माला इत्यादि

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