शनि की साढ़ेसाती
हमारी इस शनि की साढ़े साती रिपोर्ट से हम आपको शनि ग्रह के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। शनि ग्रह को वैदिक ज्योतिष में कर्म का अधिष्ठाता ग्रह माना जाता है। शनि देव सूर्य देव तथा देवी छाया के पुत्र हैं और यम तथा यमि इनके भाई बहन हैं। यह पश्चिम दिशा पर अधिकार रखते हैं और इनकी वात प्रकृति है। इनके दस विशेष नाम कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रन्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद और पिप्पलाद हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा तुला राशि में उच्च के स्थिति में होते हैं तो मेष राशि में नीच अवस्था में माने जाते हैं। पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शनिदेव के आधिपत्य क्षेत्र में आते हैं। शनिदेव व्यक्ति को किए गए कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यदि कर्म अच्छे हैं तो व्यक्ति को रंक से राजा बनने की काबिलियत शनिदेव देते हैं और यदि कर्म बुरे हैं तो राजा को रंक बनाते हुए उन्हें समय नहीं लगता।