शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि के नौ दिनों के नौ रूपों की पूजा
चैत्र नवरात्रि के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
प्रत्येक दिन एक विशेष रूप की पूजा की जाती है और उस दिन के रंग और विशेषताओं के अनुसार ध्यान और भक्ति केंद्रित की जाती है।
व्रतों का पालन और आहार
चैत्र नवरात्रि के दौरान लोग व्रत रखते हैं, जिसका मतलब होता है कि वे कुछ विशेष आहार का सेवन नहीं करते हैं।
आमतौर पर, व्रत में फल, सब्जियां, कटु और व्रत के उपयुक्त आहार शामिल होते हैं। व्रत में नॉन-वेज और अल्कोहल से बचा जाता है।
मां दुर्गा के द्वारा कई पुराने पौराणिक कथाओं में राक्षसों का वध किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
महिषासुर वध: महिषासुर नामक एक बड़े शक्तिशाली राक्षस ने स्वर्गीय देवताओं को बहुत परेशान किया था।
मां दुर्गा ने उनका वध करने के लिए दस दिनों तक लड़ाई लड़ी और उन्हें विजय प्राप्त की थी।
इस लड़ाई में मां दुर्गा ने उनके रूप में उसे मार डाला था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
शुम्ब निशुम्ब वध: शुम्ब और निशुम्ब नामक दो राक्षस भाई भी देवताओं के खिलाफ युद्ध करने आए थे।
मां दुर्गा ने उन्हें भी युद्ध करके मार डाला और देवताओं को उनकी शक्ति को विशेष रूप से प्रकट करके उन्हें जीत प्राप्त की थी।
राक्षस दैत्यक: एक दैत्यक नामक राक्षस ने बहुत बड़ी ताकत प्राप्त की थी और वह स्वर्गीय देवताओं को परेशान कर रहा था।
मां दुर्गा ने उसे भी वध करके देवताओं की रक्षा की थी।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
ये केवल कुछ कथाएं हैं जिनमें मां दुर्गा ने राक्षसों का वध किया। उनके विभिन्न रूपों में वे देवी दुर्गा ने असुरों और राक्षसों के प्रति धर्म की रक्षा की थी।
नवरात्रि महोत्सव के दौरान मां दुर्गा के द्वारा उनके असुरी शत्रुओं के वध की कई प्रमुख कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं। यह नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव में दिन-दिन विभिन्न रूपों में मां दुर्गा का पूजन किया जाता है, जिनमें उनके बदलते रूप और उनके शक्तियों का महत्व प्रतिस्थापित किया जाता है।
प्रथम दिन: नवरात्रि की शुरुआत माता शैलपुत्री के पूजन से होती है, जिन्हें पार्वती के रूप में जाना जाता है।
दूसरे दिन: द्वितीय दिन वंधे वरदा जी की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मचारिणी के रूप में भी जाना जाता है।
तीसरे दिन: तृतीय दिन चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है, जिनका रूप उनके परिणय के बाद का होता है।
चौथे दिन: चतुर्थ दिन कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है, जिनके रूप में मां दुर्गा ने दैत्यों को मारकर उनकी रक्षा की थी।
पांचवे दिन: पंचम दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जिन्हें स्कंद की मां भी कहा जाता है और उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) के साथ उनका दर्शन होता है।
छठे दिन: षष्ठी दिन कात्यायनी माता की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा की संजना थी और उन्होंने उनके द्वारा महिषासुर के वध का आयोजन किया था।
सातवे दिन: सप्तम दिन कालरात्रि माता की पूजा की जाती है, जिन्हें महिषासुर के खिलाफ लड़ते समय दिखाया गया था।
आठवे दिन: अष्टमी दिन महागौरी माता की पूजा की जाती है, जिन्होंने अपनी तपस्या से शिवजी को प्राप्त किया था।
नौवे दिन: नवमी दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है, जिन्हें सभी शक्तियों की दात्री भी कहा जाता है।
नवरात्रि महोत्सव के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करके उनकी महत्वपूर्ण कथाएं याद की जाती है और भक्तों को उनकी शक्तियों का आदर करने का अवसर मिलता है|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
और, नवरात्रि महोत्सव के दौरान भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाएँ भी आयोजित की जाती हैं, जैसे कि आरती, भजन, कथा-पाठ आदि।
इन दिनों में मां दुर्गा के भक्त उनके चरणों में अपनी भक्ति और प्रेम का अर्पण करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति का इंतजार करते हैं।
नवरात्रि के दिनों में भक्त उपवास, व्रत, और नियमों का पालन करते हैं, ताकि वे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकें। इसके अलावा, कई स्थानों पर नवरात्रि में दुर्गा पंडाल और रास-गरबा की आयोजना की जाती है, जिसमें लोग खुशियों के गाने और नृत्य से इस उत्सव का आनंद लेते हैं।
नवरात्रि का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत उच्च है, और यह उत्सव भक्तों के लिए मां दुर्गा के प्रति उनके समर्पण और आस्था का प्रतीक है।
और, नवरात्रि के दौरान भक्तों का यह उद्देश्य भी होता है कि वे अपने अंतरात्मा को शुद्धि और सात्विकता की ओर ले जाएं। इस अवसर पर व्रत, ध्यान और पूजा के माध्यम से भक्त अपने आंतरिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि के इन दिनों में महिलाएं भी विशेष रूप से मां दुर्गा की पूजा करती हैं और उनके दिव्य रूप का सम्मान करती हैं। इसके साथ ही, यह उनके समाज में महिलाओं के प्रति समर्पण और सम्मान की भावना को भी प्रकट करता है।
नवरात्रि के पावन दिनों में भक्तों का दिल आनंद, शांति और उत्कृष्टता से भर जाता है। यह एक ऐसा समय होता है जब वे अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास करते हैं और मां दुर्गा की कृपा से नए आरंभों की ओर बढ़ते हैं।
इस प्रकार, नवरात्रि महोत्सव मां दुर्गा की महत्वपूर्ण कथाओं, उनके विभिन्न रूपों की पूजा, ध्यान और भक्ति के साथ उनके आदर्शों का पालन करने का महत्वपूर्ण अवसर होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि में कलश पूजन एक महत्वपूर्ण पारंपरिक धार्मिक क्रिया है। इस पूजन में एक स्थानीय मिट्टी का कलश प्रतीत होता है, जिसे मां दुर्गा के आवागमन के रूप में स्थापित किया जाता है। नवरात्रि के प्रत्येक दिन में, इस कलश की पूजा की जाती है और उसका आदर किया जाता है।
कलश पूजन की विशेषता इसमें होती है कि कलश को अपने प्रत्येक दिन के पूजन के लिए तैयार किया जाता है। यह कलश प्रतिनिधित्व करता है मां दुर्गा के आवागमन के लिए और उसकी शक्तियों का प्रतीक माना जाता है।
कलश पूजन की प्रक्रिया निम्नलिखित होती है:
कलश की तैयारी: एक मिट्टी के कलश को पानी से भरा जाता है और उसमें सुपारी, नारियल, बत्ती, मोती या मिश्रित धान्य, आदि की रखवाली की जाती है। इसके बाद, कलश को पूजन के लिए तैयार किया जाता है।
कलश के अवशेषों की पूजा: नवरात्रि के प्रत्येक दिन, कलश के अवशेषों की पूजा की जाती है। इसमें देवी का आवागमन किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
आरती और प्रार्थना: कलश पूजन के बाद आरती और प्रार्थना की जाती है। भक्त इस समय मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
आवगमन की पूजा: नवरात्रि के आखिरी दिन, कलश का आवगमन किया जाता है। इसमें मां दुर्गा के आवागमन के दौरान विभिन्न पूजा पद्धतियों का पालन किया जाता है और उन्हें विदाई दी जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कलश पूजन एक धार्मिक आयोजन होता है जो मां दुर्गा की आदर्शों को प्रकट करने और उनके शक्तियों की पूजा करने का मौका प्रदान करता है। यह उत्सव भक्तों के लिए मां दुर्गा के प्रति उनकी श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक होता है।
और, नवरात्रि के इस पावन अवसर पर कई लोग कलश पूजन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और इसे आनंद से आयोजित करते हैं। यह पूजन संकल्प और श्रद्धाभावना का प्रतीक होता है जो मां दुर्गा के प्रति भक्त का दिल से संवाद दिखाता है।
कलश पूजन में कलश को मां दुर्गा के दिव्य रूप का प्रतीक माना जाता है, जिसका आवागमन घर में खुशियों और शुभाशीषों का प्रतीक होता है। यह कलश भरे जाते हैं विभिन्न प्रकार के धान्यों, पुष्पों और अर्थिक अवशेषों के साथ, जो देवी के प्रति समर्पण का प्रतीक होते हैं।
नवरात्रि के दौरान, कलश पूजन से न केवल मां दुर्गा की पूजा होती है, बल्कि यह एक समाज में सद्भावना, आदर्शों का पालन और उन्हें अपने जीवन में अमल करने का प्रेरणा स्रोत भी बनता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
इस उपलब्धि और विकास के साथ ही, कलश पूजन नवरात्रि के अवसर को और भी अधिक खास और पावन बनाता है। इसके माध्यम से भक्त अपने मानसिक और आत्मिक स्तर पर शुद्धि की दिशा में कदम बढ़ाते हैं और मां दुर्गा के आशीर्वाद से नए उत्कृष्टता की ओर प्रगति करते हैं।
नवरात्रि के पूजन में विशेष रूप से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। निम्नलिखित है एक सामान्य नवरात्रि पूजन विधि:
सामग्री:
देवी मूर्ति या छवि
दीपक और घी
फूल
रोली, चावल, कुमकुम
पानी कलश
आभूषण, सिन्दूर, सुहाग का सिन्दूर
नौवीं दिन के लिए भोग (फल, प्रसाद, चना, हलवा)
पूजन के लिए विशिष्ट आसन
पूजन विधि:
पूजा का आदिकाल में आयोजन करें।
पूजन स्थल को साफ-सफाई और सजावट के साथ तैयार करें।
देवी मूर्ति या छवि को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
आरती करें और दीपक जलाएं।
देवी के समक्ष फूल, चावल, रोली, कुमकुम, आभूषण, सिन्दूर आदि को अर्पित करें।
पानी कलश को पूजा स्थल पर रखें। इसमें फूल, पुष्प, दर्शनीय आभूषण आदि रखें।
देवी की पूजा के बाद भोग अर्पित करें।
नौवीं दिन को देवी का विदाई करें और उन्हें अपने घर से बिदाई दें।
यह रीति नौ दिनों तक जारी रखें, हर दिन एक नए रूप की पूजा करें।
यदि आप विशेष देवी के पूजन मंत्र और पूजन सामग्री की जानकारी चाहते हैं, तो आपको अपने स्थानीय पंडित या धार्मिक ग्रंथों से सहायता मिल सकती है।
हवन सामग्री वह सामग्री होती है जिसे आग्नि यज्ञ के दौरान अग्नि में डालकर अग्नि की पूजा की जाती है। यह यज्ञ धार्मिक आयोजनों में मुख्य भूमिका निभाता है और विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग करके किया जाता है। निम्नलिखित है एक सामान्य हवन सामग्री की सूची:
गोमूत्र (गौ मूत्र): गोमूत्र को हवन में डालने से वातावरण शुद्ध होता है और शांति की भावना बनी रहती है।
गोबर (गौ मल): गोबर का उपयोग धूप और समिधा बनाने में होता है जो हवन में उपयोग किए जाते हैं।
धूप: धूप के बारे में आपने सुना ही होगा।
धूप का उपयोग हवन करते समय यजमान की शुभकामनाओं को आग्नि के माध्यम से पहुंचाने के लिए किया जाता है।समिधा (यज्ञ की लकड़ी): समिधा का उपयोग आग्नि में डालकर यज्ञ की आग को जलाने के लिए किया जाता है।
गुग्गल (गोगल): गुग्गल का उपयोग आग को जलाने के लिए किया जाता है और इससे वातावरण में शुद्धि होती है।लौंग (क्लोव्स): लौंग का उपयोग यज्ञ में समग्र प्रकृति की प्रतिष्ठा के लिए किया जाता है।
इलायची (कार्डमम): इलायची का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।दालचीनी (सिनमन): दालचीनी का उपयोग यज्ञ में उच्च केंद्रित ऊर्जा को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
जावित्री (मेस्टिक): जावित्री का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।बतीसा (वेतिवर): बतीसा का उपयोग यज्ञ में शुभता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।फूल: फूलों का उपयोग यज्ञ के दौरान आरती करते समय किया जाता है।द्रव्य: धन्य, फल, नवींतम अन्न, घी, चीनी, दूध आदि को यज्ञ में अर्पित किया जाता है।
यह थी कुछ सामान्य हवन सामग्री की सूची, लेकिन यह आवश्यकतानुसार विभिन्न यज्ञों और पूजाओं के लिए विभिन्न तरह की सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
व्रत एक धार्मिक आयोजन होता है जिसमें व्यक्ति विशेष प्रकार के आहार और आचरण का पालन करता है और इसके माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति और शुद्धि की प्राप्ति करता है। व्रत करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन कर सकते हैं:
1. उद्देश्य स्पष्ट करें:
पहले तो आपको व्रत करने का उद्देश्य स्पष्ट करना होगा। क्या कारण है जिसके लिए आप व्रत करना चाहते हैं? यह आपके मन में स्पष्ट होना चाहिए।
2. आहार की योजना बनाएं: आपको व्रत के दौरान क्या आहार खाने की पर्याप्त योजना बनानी होगी। यह आपके व्रत के प्रकार पर निर्भर करेगा, जैसे कि निराहार व्रत, फलाहार व्रत, शाकाहार व्रत, आदि।
3. व्रत अवधि निर्धारित करें: आपको व्रत करने की अवधि का निर्धारण करना होगा, जैसे कि एक दिन, नौ दिन, चौदह दिन, आदि।
4. संकल्प लें: व्रत के प्रारंभ में आपको आत्म-संकल्प करना होगा कि आप व्रत के दौरान अपने उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध रहेंगे और व्रत का पालन करेंगे।
5. आचरण का पालन करें: व्रत के दौरान आपको अपने आचरण का पालन करना होगा। इसमें आपको शुद्ध वस्त्र पहनना, स्नान करना, पूजा-अर्चना करना, आदि शामिल होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
6. आध्यात्मिक चिंतन: व्रत के दौरान आपको आध्यात्मिक चिंतन करना चाहिए। आप मंत्र जप, प्रार्थना, ध्यान आदि कर सकते हैं जिससे आपकी आध्यात्मिक उन्नति हो।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
7. व्रत का उद्धारण: व्रत की अवधि पूरी होने पर आपको व्रत का उद्धारण करना होगा। इसके बाद आप अपने आदरणीय देवता की पूजा कर सकते हैं और उनकी कृपा की प्राप्ति कर सकते हैं।
व्रत करते समय यह महत्वपूर्ण है कि आप श्रद्धा और आदर से व्रत का पालन करें और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने मन, वचन, और क्रियाएँ समर्पित करें।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आपको श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए। निम्नलिखित तरीकों से आप मां दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं:शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा करें: आप मां दुर्गा की मूर्ति या छवि को सजाकर पूजा कर सकते हैं। इसके दौरान उनके लिए पुष्प, धूप, दीप, आरती, व्रत कथा आदि का आयोजन करें।
मंत्र जप करें: मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करने से आप उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। “ॐ दुं दुर्गायै नमः” और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” ये मंत्र प्रसिद्ध हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
व्रत और उपासना:
मां दुर्गा के नवरात्रि के अवसर पर उनके व्रत और उपासना करने से उनकी प्रसन्नता मिल सकती है।
सेवा करें: मां दुर्गा की सेवा करने से आप उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं। आप मंदिरों में उनकी साफ-सफाई करने, प्रसाद बाँटने, या अन्य तरीकों से सेवा कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
ध्यान और आध्यात्मिकता: आप मां दुर्गा की ध्यान और आध्यात्मिकता में रत रहकर उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।
श्रद्धा और विश्वास: सबसे महत्वपूर्ण बात, आपकी श्रद्धा और विश्वास है। आपके मन में पूरी श्रद्धा के साथ मां दुर्गा के प्रति विश्वास होना चाहिए कि वह आपकी पूजा और प्रार्थनाओं का स्वागत करेंगी।
ध्यान दें कि मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आपकी नियति पवित्र और उचित होनी चाहिए, और आपका मार्गदर्शन और सहायता स्थानीय पंडित या धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ का महत्वपूर्ण स्थान होता है जो उनकी पूजा और आराधना का हिस्सा बनता है। नवरात्रि के इस अवसर पर आप मां दुर्गा के पाठ करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने आत्मा को शुद्धि की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।
नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जा सकता है:
दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम (दुर्गा के 108 नाम): इस मंत्र के जाप से आप मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की प्राप्ति कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं.
दुर्गा सप्तशती (दुर्गा की 700 श्लोकों की महिमा): नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के साथ ही आपके जीवन में शुभता और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है.शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
दुर्गा मानस पूजा: यदि आप दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते हैं, तो आप दुर्गा मानस पूजा कर सकते हैं जिसमें आप मां दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं मानसिक रूप से.
मां दुर्गा के मंत्र (जैसे कि “ॐ दुं दुर्गायै नमः”): ये सरल मंत्र भी मां दुर्गा की पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं और आपकी आराधना को सिद्ध कर सकते हैं।
नवरात्रि में मां दुर्गा के पाठ के द्वारा आप उनके शक्तिशाली आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में उत्कृष्टता, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि के दौरान जप मंत्र का जाप करना मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है। जप मंत्र के द्वारा आप मां दुर्गा की आराधना और उनकी शक्तियों का आदर कर सकते हैं। नवरात्रि के इस पवित्र अवसर पर निम्नलिखित मंत्रों का जाप कर सकते हैं:
“ॐ दुं दुर्गायै नमः”: यह मंत्र मां दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूप की प्रार्थना के लिए है।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”: यह मंत्र मां दुर्गा की शक्तियों की प्राप्ति के लिए है और विघ्नों को दूर करने में मदद करता है।
“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते।”: यह मंत्र मां दुर्गा की प्रार्थना और कृपा के लिए है।
“या देवी सर्वभूतेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”: इस मंत्र के जाप से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
“ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः”: यह मंत्र आपके जीवन में शुभता और समृद्धि की प्राप्ति के लिए है।
नवरात्रि के दौरान इन मंत्रों का जाप करते समय आपको ध्यान और श्रद्धा के साथ करना चाहिए ताकि आप मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकें।
और, नवरात्रि के इस अवसर पर कई जगहों पर कलश पूजन के अलावा भी विभिन्न आयोजन होते हैं जो मां दुर्गा की महिमा और शक्ति को प्रकट करते हैं। कुछ स्थानों पर देवी की छवि के पास कलश स्थापित किया जाता है, जिसे पूजन किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है।
नवरात्रि के इस अवसर पर कलश पूजन से न केवल दिव्यता और आदर्शों का पालन होता है, बल्कि यह समाज में एकता और सामर्थ्य की भावना को भी उत्तेजित करता है। लोग इस अवसर पर आपसी मेल-जोल और विभिन्न सामाजिक कार्यों में भाग लेते हैं, जिससे उनके आत्मा में उत्कृष्टता की भावना उत्पन्न होती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कलश पूजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मानवता के आदर्शों को भी प्रकट करता है। यह उपलब्धि के साथ ही समुदाय में सद्भावना, आदर्शों का पालन और शक्तिशाली समर्थन की भावना को भी प्रेरित करता है।
इस प्रकार, नवरात्रि के इस महान उत्सव में कलश पूजन एक महत्वपूर्ण आयोजन होता है जो भक्तों को मां दुर्गा के प्रति उनकी आदर्शों की सीख देता है और उन्हें उनके जीवन में नए ऊँचाइयों की ओर अग्रसर करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
दान और सेवा
नवरात्रि के दौरान लोग दान और सेवा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं।
वे धार्मिक स्थलों पर जाकर दान देते हैं, असहाय लोगों की सेवा करते हैं और धर्मिक कार्यों में भाग लेते हैं।
मां दुर्गा की आराधना और भक्ति
चैत्र नवरात्रि के दौरान, लोग मां दुर्गा की आराधना और भक्ति करते हैं।
उन्हें मां की शक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए उनके मन में पूजनीय भावनाएँ बनी रहती हैं।
चैत्र नवरात्रि के दौरान ये संबंधित व्रत और नियम लोगों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उन्हें मां दुर्गा की आराधना और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति में मदद करते हैं।
उपास्य देवी दुर्गा के आशीर्वाद से परिपूर्ण जीवन
नवरात्रि का आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह हमें अपने जीवन को सकारात्मकता, आत्म-निर्भरता और उत्तम दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
शारदीय नवरात्रि: खुशियों का महा त्योहार
नवरात्रि, भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और शारदीय नवरात्रि इसका एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधिता है। यह पर्व खुशियों, आशीर्वादों, और ध्यान का महा उत्सव है, जिसे भारत और दुनिया भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हम इस लेख में शारदीय नवरात्रि के महत्व, परंपराएँ, और उत्सव का महत्व विस्तार से जानेंगे।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
शारदीय नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि, जिसे शरद ऋतु में मनाया जाता है, हिन्दू पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा की आराधना के रूप में मनाई जाती है। इसके दौरान, देवी दुर्गा की पूजा और महिषासुर मर्दिनी की कथा का आयोजन किया जाता है। इसे नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिनमें भगवान दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व ध्यान और आध्यात्मिकता का महा उत्सव है, और लोग इसे बड़े ही आनंद से मनाते हैं।
शारदीय नवरात्रि की खास परंपराएँ
घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
गरबा और रास गरबा
नवरात्रि के इस मौके पर, गुजरात और गुजराती भाषा क्षेत्रों में गरबा और रास गरबा का आयोजन किया जाता है। यह खासतर संगीत और नृत्य के प्रेमी लोगों के बीच बड़े ही आनंद से मनाया जाता है। गरबा और रास गरबा के द्वारा लोग देवी की महिमा का गीत गाते हैं और ध्यान में लिपट जाते हैं।
शारदीय नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का महत्व अत्यधिक है, इसके अलावा भी कई प्राचीन और मान्यता है। यह पर्व देवी दुर्गा की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता है और लोगों को आध्यात्मिक दृष्टि से सुधारने का मौका प्रदान करता है। इसके साथ ही, यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर भी है जिसमें लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं और खुशियों का साझा आनंद लेते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि की तैयारी
नवरात्रि के आगमन के साथ ही लोग अपने घरों की तैयारी में लग जाते हैं। इसका मतलब है कि वे अपने घरों को सजाने-सवरने का काम करते हैं और उन्हें नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार करते हैं। इसमें घर की सजावट करना, नए कपड़े पहनना, और पूजा सामग्री की खरीदारी शामिल होती है।
नवरात्रि की रस्में
नवरात्रि के उत्सव के दौरान कई प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक रस्में मनाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख रस्में निम्नलिखित हैं:
घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का महत्व अत्यधिक है, इसके अलावा भी कई प्राचीन और मान्यता है। यह पर्व देवी दुर्गा की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता है और लोगों को आध्यात्मिक दृष्टि से सुधारने का मौका प्रदान करता है। इसके साथ ही, यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर भी है जिसमें लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं और खुशियों का साझा आनंद लेते हैं।
नवरात्रि की तैयारी
नवरात्रि के आगमन के साथ ही लोग अपने घरों की तैयारी में लग जाते हैं। इसका मतलब है कि वे अपने घरों को सजाने-सवरने का काम करते हैं और उन्हें नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार करते हैं। इसमें घर की सजावट करना, नए कपड़े पहनना, और पूजा सामग्री की खरीदारी शामिल होती है।
घर की सजावट
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व के दौरान, घरों को सजाने-सवरने का महौल बनता है। घरों को खास तरीके से सजाया जाता है, और धर्मिक चिन्हों और रंगों से सजावट की जाती है। यह एक खास महसूस करने के मौका प्रदान करता है और घरों को पूरी तरह से तैयार करता है इस धार्मिक उत्सव का स्वागत करने के लिए।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। इसके लिए, मंदिरों और पूजा घरों को खास तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है। लोग दिन-रात देवी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
गरबा और रास गरबा
नवरात्रि के इस मौके पर, गुजरात और गुजराती भाषा क्षेत्रों में गरबा और रास गरबा का आयोजन किया जाता है। यह खासतर संगीत और नृत्य के प्रेमी लोगों के बीच बड़े ही आनंद से मनाया जाता है। गरबा और रास गरबा के द्वारा लोग देवी की महिमा का गीत गाते हैं और ध्यान में लिपट जाते हैं।
नवरात्रि के खास प्रसाद
नवरात्रि के दौरान विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जो भक्तों को चढ़ाया जाता है। इसमें चना, पूरी, कट्टू, हलवा, और केसर पुड़ी शामिल होते हैं। ये प्रसाद भक्तों को चढ़ाया जाता है और उन्हें मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि एक आध्यात्मिक महत्वपूर्ण अवसर है जो लोगों को आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ने का मौका प्रदान करता है। इसके दौरान, लोग नौ दिनों तक देवी की पूजा और आराधना करते हैं और अपने मन को ध्यान में लगाते हैं। यह एक साधना का मौका होता है और लोग अपने आत्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि का सामाजिक महत्व
नवरात्रि एक सामाजिक महत्वपूर्ण अवसर भी है जो लोगों को एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका प्रदान करता है। इसके दौरान, लोग मिलकर गरबा और रास गरबा खेलते हैं, संगीत सुनते हैं, और आपसी मिलनसर का आनंद लेते हैं। इससे समाज में एक महान एकता और सांस्कृतिक संवाद का माहौल बनता है।
नवरात्रि का परिणाम
नवरात्रि के उत्सव के बाद, लोग नई ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने दैनिक जीवन में वापस आते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे अपने कामों को नई ऊर्जा के साथ निभाते हैं और समृद्धि की ओर बढ़ते हैं।
नवरात्रि के अवसर पर आपका स्वागत है
नवरात्रि एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है जो हमारे समाज और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उत्सव आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और लोगों को एक साथ आने और खुशियों का साझा आनंद लेने का मौका प्रदान करता है।
इस नवरात्रि पर, हम आपको आशीर्वाद और खुशियों की कामना करते हैं। इस उत्सव को सजाने, ध्यान में लिपटने, और परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का आनंद लें।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
दशहरा पर्व: उत्सव का महत्व और मां दुर्गा की महिमा
दशहरा, भारतीय हिन्दू समुदाय के लोगों के बीच मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। यह उत्सव विभिन्न रूपों में भारतवर्ष में मनाया जाता है और मां दुर्गा की महिमा का समर्थन करता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
उत्सव का परिचय
दशहरा का पर्व विजयादशमी के रूप में भी जाना जाता है और यह पर्व नवरात्रि के आखिरी दिन मनाया जाता है। यह उत्सव हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा के विजय के प्रतीक रूप मां विजयदुर्गा की पूजा और आराधना की जाती है।
मां दुर्गा के परिप्रेक्ष्य में
दशहरा के उत्सव में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का महत्वपूर्ण भाग होता है। नवरात्रि के दौरान, नौ दिनों तक नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है और दशहरा पर उनकी विजय की खास उपासना की जाती है। यह पर्व मां दुर्गा की महिमा और शक्ति की महत्वपूर्णता को स्वीकार करता है और उनके प्रति भक्ति का प्रतीक होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
रावण दहन का आयोजन
दशहरा के उत्सव में भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में रावण दहन का आयोजन किया जाता है। यह एक परंपरागत रीति है जिसमें बड़े आकार के पुतले को रावण के रूप में तैयार किया जाता है और फिर उसे आग में जलाया जाता है। यह इस उत्सव का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और लोग इसे मां दुर्गा की विजय का प्रतीक मानते हैं।
आधिकारिक अवकाश
दशहरा के दिन भारत सरकार और राज्य सरकारें आधिकारिक अवकाश घोषित करती हैं। यह उत्सव समाज में एकता, भाईचारे, और धार्मिक भावनाओं को मजबूती से प्रकट करता है और लोग इस दिन आपसी मिलन-जुलन का आनंद लेते हैं।
दशहरा पर्व एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो मां दुर्गा की महिमा और शक्ति का समर्थन करता है। यह उत्सव समाज में एकता और भाईचारे की भावना को मजबूती से प्रकट करता है और लोग इसे उत्साह और धूमधाम के साथ मनाते हैं।
शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:।
ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
चन्द्रघण्टा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:।
स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा की उपासना की जाती है ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा-आराधना का विधान है.
नवरात्र के दौरान नव दुर्गा के इन बीज मंत्रों की प्रतिदिन की देवी के दिनों के अनुसार मंत्र जाप करने से मनोरथ सिद्धि होती है | नौ देवियों के दैनिक पूजा के बीज मंत्र-
माता शैलपुत्री- ह्रीं शिवायै नम:।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता दुर्गा का प्रथम रूप है. इनकी आराधना से कई सिद्धियां प्राप्त होती हैं.
प्रतिपदा को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्ये नम:’ की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें ।
माता ब्रह्मचारिणी- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
माता दुर्गा का दूसरा स्वरूप पार्वती जी का तप करते हुए हैं. इनकी साधना से सदाचार-संयम तथा सर्वत्र विजय प्राप्त होती है. चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन पर इनकी साधना की जाती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
द्वितिया को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’, की माला दुर्गा जी के चित्र के सामने यशाशक्ति जप कर घृत से हवन करें.
माता चन्द्रघण्टा- ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
माता दुर्गा का यह तृतीय रूप है. समस्त कष्टों से मुक्ति हेतु इनकी साधना की जाती है.
तृतीया को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.
माता कूष्मांडा- ऐं ह्री देव्यै नम:।
यह मां दुर्गा का चतुर्थ रूप है. चतुर्थी इनकी तिथि है. आयु वृद्धि, यश-बल को बढ़ाने के लिए इनकी साधना की जाती है.चतुर्थी को मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.
माता स्कंदमाता- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
दुर्गा जी के पांचवे रूप की साधना पंचमी को की जाती है. सुख-शांति एवं मोक्ष को देने वाली हैं.
पांचवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.
माता कात्यायनी- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
मां दुर्गा के छठे रूप की साधना षष्ठी तिथि को की जाती है. रोग, शोक, संताप दूर कर अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को भी देती हैं.
छठे दिन मंत्र– ‘ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.
माता कालरात्रि – क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
सप्तमी को पूजित मां दुर्गा जी का सातवां रूप है. वे दूसरों के द्वारा किए गए प्रयोगों को नष्ट करती हैं.
सातवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’ की एक माला जप कर घृत से हवन करें.
माता महागौरी- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
मां दुर्गा के आठवें रूप की पूजा अष्टमी को की जाती है. समस्त कष्टों को दूर कर असंभव कार्य सिद्ध करती हैं.
आठवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ की एक माला जप कर घृत या खीर से हवन करें.
माता सिद्धिदात्री – ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
मां दुर्गा के इस रूप की अर्चना नवमी को की जाती है. अगम्य को सुगम बनाना इनका कार्य है.
नौवें दिन मंत्र– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ की एक माला जप कर जौ, तिल और घृत से हवन करें.
कन्या पूजा
कन्या पूजन, नवरात्रि के दौरान एक महत्वपूर्ण काम है जिसमे छोटी लड़कियों देवी माँ का रूप मानते हुए उनका सम्मान और पूजा की जाती है। कन्या पूजन में कन्या को देवी रूप देवी दुर्गा के अवतारों को माना जाता हैं। यह भी दावा किया जाता है कि देवी दुर्गा ने राक्षस कालसुर से लड़ने के लिए एक युवा लड़की का रूप धारण किया था। नतीजतन, कन्यायों के पास आज भी सार्वभौमिक रचनात्मक शक्तियां है जिनके आशीवार्द से आपकी सब समस्याएं खत्म हो सकती है।
कन्या पूजा, जिसे कंजक पूजा भी कहा जाता है, आमतौर पर नवरात्रि के आठवें और नौवें दिन की जाती है। देवी दुर्गा के नौ अवतार, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है, को नौ छोटी लड़कियों के रूप में पूजा जाता है। कुछ मंदिरों या पूजा संस्थानों में कन्या पूजन नवरात्रों में रोज़ होता है, यह आप माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू कश्मीर में आप देख सकते है। घरों में कन्या पूजन नवरात्रे के आंठवे दिन या नवें दिन व्रत या पूजा अनुष्ठान किया जाता है।
कन्या पूजा एक हिंदू रिवाज़ है जो दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। रामनवमी पर कुछ राज्य इस प्रथा को अंजाम देते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान, कन्या पूजा एक प्रमुख रीती रिवाज़ है। कन्या पूजा और कुमारिका पूजा कुमारी पूजा के अन्य नाम हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में धार्मिक ग्रंथों में कन्या पूजा की का उल्लेख है और इसे विधि पूर्वक करने की शाश्त्र आज्ञा भी देता है। नवरात्रि के पहले दिन केवल एक कन्या की पूजा करनी चाहिए और जैसे जैसे नवरात्रे का दिन बढ़ते जाते है उसी प्रकार प्रतिदिन कन्यायों की संख्या बढ़ाकर पूजा करनी चाहिए।
दूसरी ओर, कई लोग एक ही दिन कुमारी पूजा करना पसंद करते हैं, जैसे अष्टमी पूजन या नवमी पूजन। उस दिन लोग अपने घर में नवरात्रे अनुसार ८ या ९ कन्यायों को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करते है।
भक्त इस दिन छोटी बच्चियों को अपने घर बुलाकर उपवास रखते हैं। माना जाता है कि यह अनुष्ठान दुर्गा देवी की प्रशंसा व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालराती, महागौरी और सिद्धिदात्री को देवी दुर्गा के नौ दिव्य रूपों के अवतार के रूप में पूजा जाता है।
कंजक के साथ अब छोटे लड़के भी लड़कियों के साथ जाते हैं। जिनमे हनुमान जी के बालरूप या माता के रक्षाक के रूप में जाना जाता है।
भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि का नौवां दिन भक्तों की मनोकामना पूरी करता है और जो नौ दिन का व्रत रखते हैं और नवरात्रि के अंत में कन्याओं की पूजा करते हैं, उन्हें माँ भगवती की कृपा जरूर प्राप्त होती है।
एक कन्या की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, दो कन्याओं की पूजा करने से ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है और तीन कन्याओं की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। बच्चे अधिकार और ज्ञान का पक्ष लेते हैं, और नौ कन्या पूजा को सर्वोच्चता का आशीर्वाद माना जाता है।
कन्या पूजन विधि
लड़कियों के पैर धोकर एक आसन पर बिठाया जाता है।
कलावा, या पवित्र धागा, उनकी कलाई के चारों ओर बांधें, फिर उनके माथे पर कुमकुम का टिका लगाएं।
पूरी, हलवा, काला चना और नारियल जैसे विशेष खाद्य पदार्थ तैयार करें और थाली में परोसे।
लड़कियों को दुपट्टे, चूड़ियाँ और नए कपड़े जैसे उपहार देने चाहिए।
कन्याओं के चरण स्पर्श करें, प्रसाद चढ़ाएं और उनका आशीर्वाद मांगें।
नवरात्रों में माता रानी की पूजा कैसे करनी चाहिए?
नवरात्रों में माता रानी के सामने जोत जलाकर माता के नो रूपों की पूजा अर्चना करनी चाहिए
प्रथम दिन की कथा:
मां शैलपुत्री की पूजा और आराधनाचैत्र नवरात्रि के प्रारंभिक दिनों में प्रत्येक दिन एक विशेष देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के रूपों में जाना जाता है। प्रथम दिन मां दुर्गा का प्रथम रूप ‘शैलपुत्री’ होता है, जिन्हें ‘शैल’ के रूप में भी जाना जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
शैलपुत्री देवी का परिचय महाभारत में भी पाया जाता है। उन्हें पर्वतराज हिमवान की पुत्री भी कहा जाता है, जिनका नाम प्रियव्रत्ती था। माता पार्वती के रूप में उन्होंने भगवान शिव की तपस्या को प्राप्त किया था और उनके साथ विवाह किया था।
पूजा और आराधना
शैलपुत्री की पूजा चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। उन्हें वीणा और त्रिशूल की धारणा करते हुए दिखाया जाता है और वे वाहन वृषभ पर सवार होती हैं। शैलपुत्री की पूजा करते समय उन्हें पुष्प, धूप, दीप, चावल, बिल्वपत्र, मिश्री, इलायची, सफ़ेद वस्त्र और कुंकुम से अर्चना की जाती है।
कथा: शैलपुत्री की उत्पत्ति और महत्व
ब्रह्मा जी के आदिकाल में देवराज इंद्र पुरी का राजा था। एक बार उन्होंने ब्रह्मा जी की आज्ञा से एक बड़ी यज्ञ की योजना बनाई। उन्होंने यज्ञ के लिए समस्त देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उनकी पत्नी सती को नहीं बुलाया।
सती ने इसका अत्यंत दुःख और आपत्ति महसूस किया क्योंकि वह अपने पति के आदर्श में रहना चाहती थी। उसने यज्ञ में अपनी ही आहुति देने का निश्चय किया और उसके प्राणों की आहुति देते समय वह अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गईं। उन्होंने अपने आत्मा को देवी पार्वती के रूप में प्रकट किया और फिर उसका जन्म लिया, जिन्हें शैलपुत्री कहा गया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
शैलपुत्री देवी की पूजा से भक्तों को दिव्य शक्ति, शांति और सुख प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की मानसिक और शारीरिक ताकत में वृद्धि होती है और उन्हें आगे की जीवन में समृद्धि मिलती है।
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन, मां शैलपुत्री की पूजा करके हम उनके आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं और उनके प्रेरणास्त्रोत से जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
दूसरे दिन की कथा: मां ब्रह्मचारिणी की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन को मां दुर्गा का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’ कहलाता है। इस दिन उनकी उपासना की जाती है और उनके नैमित्तिक और धार्मिक महत्व को समझा जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां ब्रह्मचारिणी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे द्वितीय रूप में मां दुर्गा के उपासना के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम विश्वरूपिणी होता है।
पूजा और आराधना
ब्रह्मचारिणी की पूजा दूसरे दिन की जाती है। वे अपने वाम हाथ में कामधेनु की अवशिष्टा धारण करती हैं और दक्षिण हाथ में कटार या खड्ग धारण करती हैं। उनकी पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, नीला वस्त्र और इलायची का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा: मां ब्रह्मचारिणी का उत्पत्ति और महत्व
द्वापर युग में दक्ष राजा के घर जन्मी एक कन्या थी जिनका नाम उषा था। उषा का विवाह वनराज विब्बिशण से हुआ था, लेकिन उन्हें पति के साथ नहीं रहना था क्योंकि विब्बिशण रावण के छोटे भाई थे और उषा के पिता दक्ष उनके साथ नहीं रहने की आज्ञा देना चाहते थे।
इस पर उषा ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए अपने पिता के आदर्श में ब्रह्मचारिणी बनने का निश्चय किया और उन्होंने अपने जीवन को देवी पार्वती के सानिध्य में समर्पित कर दिया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा से भक्तों को स्वामित्व, साहस और स्वयंसेवा की भावना प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का मन और चित्त निरंतरता, साधना और साक्षात्कार की दिशा में मुख्य रूप से मुख्य होता है।
शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन, मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से हम अपने मानसिक और आध्यात्मिक संवाद में सुधार कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से साहस और संयम की प्राप्ति कर सकते हैं।
तृतीया दिन की कथा: मां चंद्रघंटा की महिमा और उपासना
शारदीय नवरात्रि के तृतीया दिन को मां दुर्गा का तीसरा रूप ‘चंद्रघंटा’ कहलाता है। इस दिन उनकी उपासना की जाती है और उनके सौन्दर्य और साहस की महिमा का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां चंद्रघंटा का परिचय पुराणों में मिलता है। वे तीसरे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम चंद्रघंटा होता है, क्योंकि उनके मुख पर चंद्रमा की आकृति की अनुसूचित होती है।
पूजा और आराधना
चंद्रघंटा की पूजा तृतीया दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और कमण्डलु धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन सिंह पर सवार होते हैं। चंद्रघंटा की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, घी, शक्कर और कमल फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा: मां चंद्रघंटा की उपासना और महत्व
एक बार की बात है, मां चंद्रघंटा का जन्म राजर्षि किंग दक्ष के घर हुआ था। वह बचपन से ही भगवान शिव की आशीर्वाद प्राप्त कर बड़ी भक्तिभावना रखती थी। जब वह शैलपुत्री के रूप में आपके सामने प्रकट हुईं, तो वे चांद्रमा के रूप में अपनी आकृति को प्रकट करके आपकी आखों को आकर्षित करती हैं।
महत्व और आशीर्वाद
चंद्रघंटा देवी की पूजा से भक्तों को सौन्दर्य, शान्ति और साहस की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का दिल स्नेह, मैत्री और दया से भर जाता है और उन्हें अधिक सकारात्मकता की ओर अग्रसर करते है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
तृतीया दिन,
मां चंद्रघंटा की उपासना करके हम उनके साहस और सौन्दर्य की महिमा का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं।
चतुर्थ दिन की कथा: मां कूष्मांडा की उपासना और महत्व
नवरात्रि के चतुर्थ दिन को मां दुर्गा का चौथा रूप ‘कूष्मांडा’ कहलाता है। इस दिन हम मां कूष्मांडा की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और महिमा का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां कूष्मांडा का परिचय पुराणों में मिलता है। वे चौथे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कूष्मांडा होता है, क्योंकि उनके आघ्राण पर श्रीकृष्ण और राधा का जोड़ा अवस्थित होता है और इसे ‘कूष्माण्डम्’ कहते हैं।
पूजा और आराधना
कूष्मांडा मां की पूजा चतुर्थ दिन की जाती है। उन्हें दोनों हाथों में कटार और गदा धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन शेर पर सवार होते हैं। कूष्मांडा की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, घी, मिश्री और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा: मां कूष्मांडा की उपासना और महत्व
बहुत समय पहले की बात है, देवराज इंद्र द्वारा दानवराज बलि को पराजित करने के लिए मां कूष्मांडा ने अपने आविर्भाव को प्रकट किया था। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए बलि के सेनापति चांड और मुण्ड को मारकर उसे पराजित किया था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
कूष्मांडा देवी की पूजा से भक्तों को आत्मसंरक्षण, साहस और संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों के आत्मविश्वास और आत्मयथार्थ में वृद्धि होती है और उन्हें उनके दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने की क्षमता मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
चतुर्थ दिन, मां कूष्मांडा की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और महिमा का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आत्मसंरक्षण और साहस की प्राप्ति कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पंचम दिन की कथा: मां स्कंदमाता की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन को मां दुर्गा का पांचवा रूप ‘स्कंदमाता’ कहलाता है। इस दिन हम मां स्कंदमाता की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां स्कंदमाता का परिचय पुराणों में मिलता है। वे पांचवे दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम स्कंदमाता होता है, क्योंकि उनके गर्भ में कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
स्कंदमाता मां की पूजा पांचवे दिन की जाती है। उन्हें चांद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन सिंह पर सवार होते हैं। स्कंदमाता की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, घी और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा: मां स्कंदमाता की उपासना और महत्व
दुर्गा देवी के पांचवे रूप मां स्कंदमाता के जन्म का कारण था देवता और दानवराजों के बीच हुए महायुद्ध को समाप्त करना। देवता और दानवराजों के बीच हुए महायुद्ध में देवताओं की असमर्थता थी, तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना करके मां पार्वती के रूप में प्रकट हुईं और उनकी आशीर्वाद से महायुद्ध को समाप्त किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
स्कंदमाता देवी की पूजा से भक्तों को समर्पण, आत्मविश्वास और आनंद की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की वाणी में मधुरता और शक्ति होती है और उन्हें परिश्रम, साहस और संघर्ष में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पंचम दिन, मां स्कंदमाता की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से समर्पण और संघर्ष में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
षष्ठी दिन की कथा: मां कात्यायनी की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के षष्ठी दिन को मां दुर्गा का षष्ठ रूप ‘कात्यायनी’ कहलाता है। इस दिन हम मां कात्यायनी की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां कात्यायनी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे षष्ठी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कात्यायनी होता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या और साधना से महादेव को प्राप्त किया था।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
कात्यायनी मां की पूजा षष्ठी दिन की जाती है। उन्हें चंद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन बघड़ा पर सवार होते हैं। कात्यायनी मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, घी और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।
कथा: मां कात्यायनी की उपासना और महत्व
बहुत समय पहले की बात है, एक ब्राह्मण ऋषि कात्यायन अपनी आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने उन्हें एक वरदान मांगने का अवसर दिया।
ऋषि कात्यायन ने विचार किया कि वह दिव्य शक्ति प्राप्त करके मां पार्वती की सानिध्य में उनके प्रेम में वृद्धि करना चाहते हैं। उन्होंने वरदान मांगा कि वह उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पत्नी के रूप में प्रकट हो जाएं। मां पार्वती ने उनकी इच्छा को सुनकर उनके सामने प्रकट होकर उनकी पत्नी बनीं और उनका उपकार किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
कात्यायनी देवी की पूजा से भक्तों को संकल्प, साहस और समर्पण की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में प्रेम और सम्मान की भावना बनी रहती है और उन्हें विचारशीलता, स्वतंत्रता और सफलता प्राप्त होती है।
षष्ठी दिन, मां कात्यायनी की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से संकल्प और साहस की प्राप्ति कर सकते हैं|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
सप्तमी दिन की कथा: मां कालरात्रि की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के सप्तमी दिन को मां दुर्गा का सातवां रूप ‘कालरात्रि’ कहलाता है। इस दिन हम मां कालरात्रि की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और उपासना का गान किया जाता है।
कथा का परिचय
मां कालरात्रि का परिचय पुराणों में मिलता है। वे सप्तमी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम कालरात्रि होता है, क्योंकि उनकी आविष्कार शक्ति की अन्धकार और अवधियान धारण कर अत्यधिक कालभरण अवस्था में होती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
कालरात्रि मां की पूजा सप्तमी दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और खड्ग धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन जाति पर सवार होते हैं। कालरात्रि मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, मिश्री, तिल और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा: मां कालरात्रि की उपासना और महत्व
बहुत समय पहले की बात है, एक दैत्य राजा रत्तनसेन का पुत्र बहुत ही बलवान था और वह देवताओं की श्राप के कारण अपने शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा था। उसने सम्पूर्ण लोक को अत्याचार और विनाश की दिशा में ले जाने का प्रयास किया।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
देवताओं ने देखा कि उसकी दुराचारी और अधर्मिक गतिविधियों से धरती पर कलह और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो रही है। उन्होंने मां दुर्गा से आश्रय मांगा और मां दुर्गा ने उनकी बिना शस्त्रों के और अपने विशेष देवी रूप में प्रकट होकर उनको संकट से मुक्ति दिलाई।
महत्व और आशीर्वाद
कालरात्रि देवी की पूजा से भक्तों को आदिशक्ति, संकट के प्रति सहनशीलता और शक्ति की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की विचारशीलता, निर्णयशीलता और वीरता में वृद्धि होती है और उन्हें अध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
सप्तमी दिन, मां कालरात्रि की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और उपासना का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से आदिशक्ति और साहस प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
अष्टमी दिन की कथा: मां महागौरी की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन को मां दुर्गा का आठवां रूप ‘महागौरी’ कहलाता है। इस दिन हम मां महागौरी की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां महागौरी का परिचय पुराणों में मिलता है। वे आठवें दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम महागौरी होता है, क्योंकि उनके दिव्य स्वरूप का पराकाष्ठा दिखाता है कि वे अत्यंत श्वेतवर्ण में विभूषित होती हैं।
पूजा और आराधना
महागौरी मां की पूजा आठवें दिन की जाती है। उन्हें त्रिशूल और खड्ग धारण करती हुई दिखाया जाता है और उनके वाहन वृषभ पर सवार होते हैं। महागौरी मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, चांदन, कमल के फूल और नारियल का उपयोग किया जाता है।
कथा: मां महागौरी की उपासना और महत्व
बहुत समय पहले की बात है, प्राचीन काल में देवराज इंद्र की सभी देवताएँ मिलकर देवी पार्वती की सानिध्य में आईं और उनसे भीक्षा मांगने लगीं। देवी पार्वती ने सभी को भोजन देने का आशीर्वाद दिया, लेकिन वह स्वयं भोजन करने के बाद अपने दिव्य स्वरूप को प्रकट करके महागौरी रूप में परिणत हो गईं।
उन्होंने अपने आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत तपस्या की और आत्मा की महत्वपूर्णता को सिद्ध किया।
महत्व और आशीर्वाद
महागौरी देवी की पूजा से भक्तों को शुद्धि, त्याग और आत्मा की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों की चित्तशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
अष्टमी दिन, मां महागौरी की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से शुद्धि और आत्मा की प्राप्ति कर सकते हैं|शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवमी दिन की कथा: मां सिद्धिदात्री की उपासना और महत्व
शारदीय नवरात्रि के नवमी दिन को मां दुर्गा का नौवां रूप ‘सिद्धिदात्री’ कहलाता है। इस दिन हम मां सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं, जिनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान किया जाता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
कथा का परिचय
मां सिद्धिदात्री का परिचय पुराणों में मिलता है। वे नवमी दिन मां दुर्गा के रूप के रूप में प्रकट होती हैं और उनका नाम सिद्धिदात्री होता है, क्योंकि उनके आशीर्वाद से भक्तों को सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा और आराधना
सिद्धिदात्री मां की पूजा नवमी दिन की जाती है। उन्हें चांद्रमा की आकृति के साथ दिखाया जाता है और उनके वाहन श्वान पर सवार होते हैं। सिद्धिदात्री मां की पूजा में पुष्प, धूप, दीप, बिल्वपत्र, चांदन, अक्षता और कमल के फूल का उपयोग किया जाता है।
कथा: मां सिद्धिदात्री की उपासना और महत्व
कई साल पहले की बात है, एक ब्राह्मण तपस्वी अपनी तपस्या के फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुए और उनसे एक वरदान मांगा कि वे उन्हें जीवन के सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने की कृपा करें। ब्रह्मा जी ने उनकी यह इच्छा सीधे मां सिद्धिदात्री के पास भेज दी। मां सिद्धिदात्री ने उनकी भक्ति को प्रसन्न होकर उन्हें सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने की कृपा की।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
महत्व और आशीर्वाद
सिद्धिदात्री देवी की पूजा से भक्तों को सभी सिद्धियाँ, कार्य सफलता और उच्च स्तर की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से भक्तों का सफलता में मार्ग प्रशस्त होता है और उन्हें सभी क्षेत्रों में सिद्धि मिलती है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
नवमी दिन, मां सिद्धिदात्री की उपासना करके हम उनके दिव्य स्वरूप और आशीर्वाद का गान कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
संबंधित कन्या पूजन: युवा कन्याओं के समर्पण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया
कन्या पूजन एक पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें युवा कन्याएँ पूजित की जाती हैं और उन्हें आशीर्वाद दिए जाते हैं। यह उत्सव हिन्दू समाज में महिलाओं के महत्व की प्रतीक्षा करता है और उनके समर्पण और सेवानिवृत्ति की महत्वपूर्णता को प्रमोट करता है।
कन्या पूजन का आयोजन
कन्या पूजन को विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है, जिसमें नौ या अधिक युवा कन्याएँ पूजित की जाती हैं। इस पूजा में उनकी पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें समर्पण करके आशीर्वाद प्राप्त किए जाते हैं।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
पूजा की विशेषता
कन्या पूजन में युवा कन्याएँ समाज के महत्वपूर्ण देवी का प्रतीक मानी जाती हैं। उन्हें विशेष रूप से सजा-सवरकर भगवान की तरह पूजा जाता है।
कन्याओं के सम्मान और आशीर्वाद
कन्या पूजन के दौरान, युवा कन्याएँ सम्मान और आदर के साथ स्वागत की जाती हैं। उन्हें पूजा का अद्वितीय अवसर प्राप्त होता है और उन्हें आशीर्वाद दिए जाते हैं जिससे उनका सफल भविष्य सुनिश्चित होता है।शारदीय नवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि-Navratri Vrat Pujan Vidhi-कन्या पूजन विधि
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